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					 अधिकतर 
					तो मैं उन सब की बातें चुपचाप सुन लेती थी, किन्तु आज मेरा जी 
					तिलमिला उठा मन में आया कह दूँ तुम सब एक ही थैले के 
					चट्टे–बट्टे हो, सब का एक ही रंग है। नहीं तो आजतक रौनी के 
					लिये किसी ने तो न्याय की माँग की होती। किन्तु समय की नज़ाकत 
					को समझते हुए मैं किसी से मिलने का बहाना बना कर वहाँ से 
					चुपचाप उठ गई। 
 रौनी की माँ सिन्थिया ब्रिटेन आने से पहले सेंट किटज द्वीप में 
					रहती थी। वहीं उसकी मुलाकात फ्रेंक से हुई थी। फ्रेंक वेल्स से 
					सेंट किटज घूमने गया था। और वहीं बीच पर उन दोनों की मुलाकात 
					धीरे धीरे एक तरह की मित्रता में बदल गई। आते समय तक रौनी अपने 
					वजूद का अहसास करा चुका था। सिन्थिया सब कुछ छोड़ कर फ्रेंक के 
					साथ इंग्लैंड आने को तैयार थी। उसने फ्रेंक से कहा, 'फ्रेंक, 
					मैं तुम्हारे साथ चलूँगी, मैं अब यहाँ अकेले नहीं रह सकती। 
					फ्रेंक ने उसे समझाते हुए कहा, ' सिन्थिया, मेरे लिये भी 
					तुम्हें अकेले छोड़ कर जाना आसान नहीं है पर मैं वहाँ जा कर 
					अपने माँ बाप को समझा कर सब इन्तज़ाम करने के बाद ही तुमको बुला 
					लूँगा।" फ्रेंक उसे अपना झूठा पता देकर वेल्स वापस आ गया और 
					बाप के पब में हाथ बटाने लगा। सिन्थिया का नाम भी भूल गया। कुछ 
					महीने इन्तजार करने के बाद, जब पत्रों के जवाब भी नहीं आए तब 
					सिन्थिया के पास जो भी जमा पूँजी थी सब एक एजेंट को दे कर किसी 
					तरह इंग्लैंड आ गई।
 
 आते समय माँ ने अपनी दूर के रिश्ते की बहन का पता दिया था। कहा 
					था कि मुसीबत के समय वह आंटी लीना से मदद ले सकती है। यहाँ आकर 
					भी उसकी मुसीबतों का कोई अंत नहीं था। फ्रेंक का गलत पता लिये 
					वह कहाँ कहाँ नहीं भटकी थी। बचे बचाए पैसे भी धीरे–धीरे खतम हो 
					रहे थे। फिर पता लगा कर वह आंटी लीना के पास चली गई। तीन महीने 
					बाद उसने काउंसिल फ्लैट के लिये अर्जी दे दी, काफी भाग दौड़ के 
					बाद एक टावर ब्लॉक में फ्लैट मिला और तब से वहीं रहने लगी।
 
 रौनी टॉवर ब्लॉक में अपनी माँ के साथ रहता था। इनर सिटी के इस 
					इलाके में बेरोज़गारी, जुर्म, ड्रग्स और उससे जुड़े, तमाम 
					अपराधों के बीच पल बढ़ रहे बच्चों की समस्या यहीं नहीं खतम होती 
					बहुत से बच्चे माँ बाप में से एक ही को जानते थे, या फिर साथ 
					रहते तो भी घर की परिभाषा उन पर सटीक नहीं बैठती थी। लड़ाई झगड़ा 
					मार पीट, प्यार का अभाव तथा लापरवाही बच्चों के हिस्से में 
					पड़ती। ऐसे ही घरों के बच्चों में से रौनी भी एक था।
 
 सिन्थिया रौनी का हर तरह से खयाल रखती पर उसे नहीं मालूम था कि 
					बिना अपराध पुलीस उसे पकड़ कर जेल में डाल देगी, और वह रौनी से 
					अलग ही जाएगी। रौनी की माँ जेल में थी बाप का पता नहीं था। 
					रौनी फ्रौस्टर पेरेन्ट्स के पास रहता था, असुरक्षा की भावना ने 
					रौनी के मन में एक ऐसे विद्रोह को जन्म दिया था जिसे रौनी खुद 
					ही नहीं सँभाल पा रहा था। रौनी सोशल वर्कर और फौस्टर पेरेन्ट 
					के बीच एक घर से दूसरे घर भटकता, घर बदलने के साथ साथ रौनी का 
					भाग्य भी बदलता।
 
 मि. ह्यूबर्ट रौनी के क्लास टीचर थे। छ फुटे मिस्टर ह्यूबर्ट 
					बड़े ही रौब–दाब वाले थे। उनकी रगों में शुद्ध एँग्लोसैक्सन खून 
					बहता था और वह शुद्ध अँग्रेजी या जिसे क्वीनज इंग्लिश कहते हैं 
					बोलते थे। रौनी जैसे ब्रोकेन अँग्रेजी बोलने वाले को बड़ी ही 
					नीची निगाह से देखते थे। उन्हें रौनी की आँखों में एक चुनौती 
					भरी अवज्ञा दिखाई पड़ती थी जो कि वास्तव में रौनी के दिल में 
					भरे हुए तूफान का अक्स थी।
 
 लेकिन मिस्टर ह्यूबर्ट ने उसे अपने लिये एक चुनौती मान उस से 
					एक तरह की दुश्मनी ठान ली थी। जब तब स्टाफ रूम में उसकी 
					शरारतों का ब्यौरा लेकर बैठ जाते। और खूब बढ़ा कर उसकी गलतियों 
					का जिक्र करते उसमें रौनी के लिये ज़हर भरा रहता। लेकिन यह सब 
					तो हर दिन ही होता था। रौनी के बारे में हर टीचर को पहले ही 
					बता दिया जाता था ताकीद होती थी, 'निगाह रखना', जरूरत पड़ने पर 
					तो सख्त से सख्त सज़ा भी मना नहीं थी। मुझे भी आगाह किया गया था 
					पर प्रोबेशनरी टीचर होने के नाते बिना ज्यादा कहे सब कुछ बता 
					दिया गया था, और सावधानी बरतने को कहा गया था। लेकिन मेरी भी 
					अपनी सीमाएँ थीं साथ ही कुछ अपेक्षाएँ थीं। टीचर्स का कहना था 
					कि रौनी के लिये यही एक रास्ता है। रौनी को बिना कसूर भी मार 
					पड़ते मैंने देखा है।
 
 और उसकी सफेद कौड़ियों सी आँखों में बेबस दर्द उभर आया था, रौनी 
					का दुर्भाग्य कि बच्चे भी उसे नीची निगाह से देखते थे। उसे 
					बैठना होता था सलीम और रहीम के साथ, जो उसे बिलकुल पसंद नहीं 
					करते थे, 'साले अफ्रिकन' और गाली देते। एक दिन रहीम बोला, 
					'सलीम मेरे अब्बा कहते हैं सिद्दी न, मतलब काले सारे के सारे 
					चोर होते हैं, साले दुकान से स्वीट चुरा ले जाते हैं। सुनते ही 
					रौनी का चेहरा तमतमा गया और रहीम की कॉपी खींच कर उसे धक्का 
					देते हुए भाग गया। सात साल का रौनी एक मिनट भी शांत नहीं बैठता 
					था, हमेशा कुछ न कुछ बदमाशी – कागज फाड़ना, किताबें गन्दी करना 
					टीचर की आँख बचा कर पास के बच्चे की कॉपी खींच लेना और फिर मार 
					खाना। मिस्टर ह्यूबर्ट रौनी को छोटे अपराध के लिये कड़ी से 
					कड़ी सजा देना अपनी जीत मानते, मारते भी, कोशिश रहती कि चोट 
					बाहर से न दिखाई न पड़े।
 
 और उस दिन तो कयामत आ गई लंच से पहले आई टी क्लास में कुछ 
					बच्चे कागज़ के हवाई जहाज़ बना कर एक दूसरे पर फेंक रहे थे, इसी 
					समय मि. ह्यूबर्ट अचानक क्लास में वापस आ कर अपनी टेबल पर बैठे 
					ही थे कि अचानक एक हवाई जहाज़ उनकी टेबल पर आकर गिरा।
 'किसने फेंका, किसकी बदमाशी है।' सख्त निगाहों से लड़कों की तरफ 
					देखा, और गरजे, 'इधर आओ।' अनायास ही सब बच्चों की निगाह रौनी 
					की तरफ घूम गई मिस्टर ह्यूबर्ट 'अपनी कुर्सी से उठे और धीरे 
					धीरे आगे बढ़ने लगे। रौनी काँप उठा और आँख बन्द कर झट से सीने 
					पर क्रॉस बनाने लगा। उस याद आया माँ कहती थीं,'गॉड सच्चे दिल 
					से याद करने पर बेगुनाह को सज़ा नहीं देता' रोनी धीरे धीरे 
					बुदबुदाता रहा 'मैंने तो कुछ नहीं किया है मैने तो... गॉड, मैं 
					तो मैं तो...अच्छा बनना चाहता हूँ। मुझे बचा लो।
 
 'मि ह्यूबर्ट चिल्लाए, 'हाथ आगे करो' सटाक सटाक। वह अस्फुट 
					स्वर में सिसकता हुआ बोला, ममा, मैंने इस बार गॉड से कितना 
					कहा, लेकिन ममा मैं जानता हूँ, तुमने भी तो कुछ नहीं किया था 
					फिर वे तुम्हें क्यों जेल ले गए? रौनी के अंदर भी चट चट कुछ 
					टूट गया। लंच ब्रेक में रौनी आँसू पोछता हुआ बाहर आया। कौन 
					पूछता रौनी से बस आँसू पोछ वह अपने को तैयार कर लेता किसी और 
					हादसे के लिये... उस दिन घर आते समय रौनी ने तालाब में तैरती 
					बत्खों को तमाम पत्थर मारे थे रास्ते में पड़ी हर चीज़ को जूते 
					से कितनी कितनी बार किक किया था।
 
 घर पहुँच कर रौनी ने अपना बस्ता एक तरफ डाल दिया, थोड़ी देर इधर 
					उधर करता रहा, फिर अपनी फॉस्टर माँ मिसेज विल्सन के पुकारने पर 
					बड़े ही बेमन से खाना खाकर टीवी देखने बैठा प्रोग्राम खतम होने 
					से पहले ही वह उठ गया, और अपने कमरे में जा कर पेन्सिल से कुछ 
					लिखने बैठा तो लगा हथेली में दर्द हो रहा है, उसे लगा जैसे 
					सलीम हँस रहा है।
 
 वह सोचने लगा, मैं तो पीछे बैठता हूँ और यह सलीम खुद क्या है? 
					मुझे कभी निगर कभी ब्लैकी या सि... द्दी... कहता है, वह भी तो 
					पाकी है। लेकिन उसकी माँ रोज आती है उसको लेने, लेकिन मेरी 
					माँ... ममा तुम कहाँ हो तुम्हें वे जेल क्यों ले गए? ममा ये 
					लड़के मुझे चारों तरफ से घेर कर खड़े हो जाते हैं, मुझे इतना डर 
					लगता है ममा मेरे पैर काँपने लगते हैं, मैं तो भाग भी नहीं 
					पाता ममा। रहीम मेरी बाजू में दबा दबा कर नाखून से खरोंच लगा 
					देता है, कभी मेरे बालों को खींचता है। क्यों ममा, मैं 
					तुम्हारे पास रहूँगा तो कोई मुझे नहीं सताएगा। मैं काला हूँ तो 
					क्या? मैं इन सबसे तेज़ दौड़ता हूँ, आए मेरे साथ रेस करे मैं आगे 
					निकल कर न दिखा दूँ तो कहे।
 
 मेरा रंग काला है न। गॉड मुझे, नहीं, नहीं मैं कल मिसेज विल्सन 
					का पाउडर लगा कर आऊँगा। खूब सफेद, तब मिस्टर ह्यूबर्ट शायद 
					गुस्सा न हों। मिस्टर ह्यूबर्ट तो पेन्सिल छीन कर मेरी 
					उँगलियों को मरोड़ देते हैं। चोट लगती है ममा तुमको कैसे बताऊँ? 
					मि. ह्यूबर्ट, मैं जो भी लिखता हूँ उसे फाड़ कर पैरों से कुचल 
					देते हैं। कल मैंने धीरे से कहा था फूल मि. ह्यूबर्ट ने मेरे 
					बाल खींच लिये गुस्से में मैंने भी अपने बाल नोच लिये थे। ममा 
					मेरा मन यहाँ नहीं लगता। मैं क्या करूँ, मैं भी तुम्हारे पास 
					जेल में आना चाहता हूँ, ममा वे तुम्हें क्यों ले गए? अच्छा ममा 
					तुम कब आओगी? कभी कभी जब मिस रीमा मेरे पास खड़ी होती हैं, मुझे 
					लगता हैं ममा तुम खड़ी हो, मिस रीमा मैं अब चुपचाप रो लूँगा मि. 
					ह्यूबर्ट गुस्सा करेंगे तब भी, मुझे तुम ममा जैसी लगती हो मैं 
					तो खूब पढूँगा। जाने कब रोनी सो गया।
 
 यह सब ऐसे ही चल रहा था। मेरे मन के किसी कोने में एक दर्द सा 
					था रोनी के लिये – माँ जेल में बाप का पता नहीं। जिस दिन रौनी 
					की शिकायत घर जाती, फौस्टए पेरेन्ट उसे ग्राउंडेड करते उसे 
					खेलने के समय काम करना पड़ता, टी.वी.नहीं देख सकेगा वगैरह 
					वगैरह। मैंने निश्चय किया कि ट्रेनिंग के समय पढ़ी रोजर की 
					प्राइजिंग थ्योरी का प्रयोग करूँ शायद कुछ असर रौनी पर हो।
 
 कई बार ऐसा होता है मैं बैठे बैठे सोचती रहती हूँ, फिर किसी 
					काम में मेरा मन ही नहीं लगता। एक अपराध बोध अंदर ही अंदर मुझे 
					झुलसाता, क्या रौनी की ही तरह मेरे बच्चे को भी टीचर ने सताया 
					होगा। मैंने तो कभी कुछ माना ही नहीं, समझा था कि यह स्वर्ग 
					है। यहाँ कहीं भी अन्याय नहीं। मैं सोचती थी कि यहाँ की सड़के 
					ही नहीं लोगों के मन भी साफ हैं। और आज लगा सड़कें तो साफ हैं 
					लेकिन मन... . । मुझे आश्चर्य होता शिक्षक जो ज्ञान और न्याय 
					की मूर्ति है उनका ऐसा ओछा व्यवहार। जब कभी मेरे बच्चे ने 
					स्कूल में हुई कोई दुर्घटना बताई मैंने उसे हमेशा यही कहा 'तुम 
					अपने टीचर की इज्जत करो।' या बच्चे उसे अगर सताते थे तो कहती 
					थी कि जाने दो वे खुद ही चुप हो जाएँगे।
 काले बच्चों का क्या हश्र होता है यह आज मुझे महसूस हो रहा है।
 
 सोमवार को जब मैं स्कूल गई तो हेड टीचर ने कहा 'मिस रीमा आज आप 
					मिस्टर ह्यूबर्ट की क्लास भी ले लें, वे बीमार हैं। सप्लाई 
					टीचर भी नहीं मिल सकी।' मैंने कहा, 'ठीक हैं।' मेरा स्कूल ओपेन 
					प्लान था, मुझे कुछ अच्छा ही लगा। हेड टीचर जाते जाते कह गई, 
					'मिस रीमा रौनी पर निगाह रखिएगा'।
 
 रजिस्टर लेने के बाद मैंने बच्चों को वर्क शीट दिया और खुद जा 
					कर उन का काम देखने लगी। रौनी की मेज के नज़दीक आने पर मैं खड़ी 
					हो गई रौनी चुपचाप बैठा था, उसने अभी कुछ काम शुरू नहीं किया 
					था। मैंने रौनी को पुकारा, मेरी आवाज़ सुन कर वह थोड़ा सा घबराया 
					फिर मेरी तरफ देख कर बोला, 'यस मिस, रीमा' उसकी घबराहट देख 
					मेरा मन करूणा से भर गया, मैं उसके पास बैठ गई और सोचा रौनी से 
					पूछूँ कि उसने अभी तक काम क्यों नहीं शुरू किया है?
 
 उसे पेन्सिल हाथ में देते हुए मैंने कहा 'रौनी कागज पर अपना 
					नाम लिखो' रौनी का हाथ काँपने लगा उससे कुछ लिखा नहीं जा रहा 
					था। ध्यान से देखने पर लगा उसका चेहरा लाल था, फिर मैंने उसके 
					माथे पर हाथ रखा वह भी उसी तरह तप रहा था। मैंने कहा, ' रौनी, 
					क्या बात है?' रौनी बुदबुदाया, 'आई डोंट नो मिस'। मेरा स्नेहिल 
					स्पर्श उसे कहीं गहरे तक छू गया।
 
 मैंने कहा 'रौनी मैं तुम्हें घर भेज दूँ, तुम घर जा कर सो जाना 
					तुम्हें तो तेज़ बुखार है। रौनी हथेली में मुँह छिपाकर रोने 
					लगा, ममा ममा और उसकी हिचकी बँध गई। जब वह शांत हुआ तो मैंने 
					पूछा, 'रौनी तुम घर क्यों नहीं जाना चाहते।' वह बोला, 'मिस 
					रीमा, मेरी ममा जेल में हैं। मिसेज विल्सन घर जाने पर नाराज 
					होंगी, शाम को टी.वी.नहीं देखने देंगी' क्लास के दूसरे बच्चे 
					थोड़ा अशान्त हो रहे थे। टीचर रौनी से इतनी बातें क्यों कर रही 
					है। एक लड़की मुझसे बोली, 'मिस रीमा, मिस्टर ह्यूबर्ट तो रौनी 
					से कभी बात नहीं करते, यह हमेशा डाँट खाता है।'
 
 मैंने 'चुप रहो' कह कर घुड़कती निगाहों से उसे देखा। रौनी का 
					हाथ पकड़ कर कहा। 'मेरे साथ आओ'। वह बेहद घबड़ा गया। मैंने उसे 
					समझाते हुए कहा, तुम रेस्ट रूम में आराम कर लो, मैं तुम्हें घर 
					नहीं भेजूँगी। रौनी के लिये इतनी चिंता कभी किसी ने नहीं की 
					थी। रौनी के चेहरे पर आश्वस्ति का भाव देख रोजर की प्राइजिंग 
					थ्योरी की उपयोगिता समझ में आ गई। यदि बच्चा अपराध करके सज़ा से 
					बच जाए तो उसे स्वयं अपनी गलती का एहसास होता है, किन्तु बिना 
					अपराध सज़ा बच्चे के लिये डेथ ऐट ऐन अर्ली एज है।
 
 मेरे आने के बाद रौनी बिस्तर पर इधर उधर करवटें बदलता रहा।' 
					मुझे मिस रिमा अच्छी लगती हैं। ममा जब तुम लौट कर आना मैं 
					तुम्हें मिस रीमा से मिलवाऊँगा। तुम भी तो मुझे आराम करने को 
					कहती थीं जब मेरी तबियत खराब होती थी। मेरे पास तीस कंचे थे, 
					सब रहीम ने छीन लिये, ममा तो दूसरे खरीद देती थीं, लेकिन मिस 
					रीमा तुम मेरे कंचे दिलवा देना। मिस्टर ह्यूबर्ट तो बस गुस्सा 
					करते थे, मिस रीमा तो प्यार करती हैं और गुस्सा भी नहीं करती। 
					मैं तो अपनी फिंगर क्रॉस कर के रखूँगा, मिस्टर ह्यूबर्ट कभी न 
					आएँ। मैं मिस विल्सन से भी नहीं कहूँगा, मिस रीमा के बारे में 
					मैं जानता हूँ। मिस विल्सन तो मिस्टर ह्यूबर्ट की फ्रेंड हैं, 
					वो भी मुझे डाँटती रहती हैं। मिस रीमा मैं तुम्हारे लिये एक 
					फूल कल लाऊँगा।
 
 रौनी को हेल्प करने की मेरी तमाम कोशिशें एक हादसे में बदल 
					गईं। तीन बजे जब रौनी की फौस्टर माँ उसे लेने आई तो उसे कुछ 
					अच्छा नहीं लगा, 'एक काले लड़के की हिमायत करना।' रौनी तो खराब 
					है ही, वह कभी भी अच्छा नहीं बन सकता। इसी आधार पर उस के प्रति 
					सब का व्यवहार क्रूर बन गया।
 
 मिस्टर ह्यूबर्ट कुछ दिनों बाद स्वस्थ हो कर लौट आए साथ ही लौट 
					आया रौनी का दुर्भाग्य भी। उसके बाद से रौनी हर दिन लंच में 
					बाहर जाते वक्त मेरी क्लास के दरवाजे पर एक पल को रुकता मेरी 
					तरफ देखता और फिर चला जाता। यही क्रम चलता रहा, कभी उसकी लाल 
					आँखें, कभी उदास चेहरा लेकिन उस एक क्षण में उसकी आँखों में 
					चमक कौंध जाती।
 
 आज फिर लंच ब्रेक में रौनी दिखा, हथेली में ढका सिसकता हुआ 
					चेहरा, मुझे लगा बाएँ पैर से लंगड़ा कर चल रहा है। मैंने सोचा 
					कुछ हुआ होगा। स्कूल में क्रिसमस की तैयारी शुरू हो गई थीं, 
					मैं भी उसी में व्यस्त हो गई थी, बच्चों से कार्ड बनवाने के 
					लिये मुझे कुछ सामान स्ट्राँग रूम से लाना था। क्लास रूम 
					हेल्पर ब्रश वगैरह साफ कर रही थी, मैंने उससे कहा, 'एँजला मैं 
					जरा स्ट्राँग रूम तक जा रही हूँ, बच्चों को देखना, मैं अभी 
					स्ट्राँग रूम के दरवाजे तक पहुँची ही थी कि अंदर से आती तेज़ 
					आवाज सुन कर ठिठक गई। मिस्टर ह्यूबर्ट किसी को धमका रहे थे, 
					'अगर तुमने स्कूल या घर पर किसी से कुछ भी कहा तो मैं हेड 
					मास्टर को बता दूँगा कि तुम स्ट्राँग रूम में चोरी करने आए 
					थे।' और फिर हेड मास्टर तुम्हें स्कूल से निकाल देंगे?' 
					तुम्हें खेलने में चोट लगी है समझे, चलो निकलो यहाँ से।' कहते 
					हुए उसे कमरे के बाहर ढकेल दिया।
 
 रौनी धक्के को संभाल नहीं पाया, फर्श पर लुढ़क गया। जल्दी से एक 
					हाथ से अपनी पैंट पकड़ते हुए उठा, दूसरे हाथ से आँसू पोंछें और 
					घिसटता हुआ एक तरफ चला गया। सब कुछ देख सुन कर मैं सकते में आ 
					गई। तो बेचारा रौनी किसी से शिकायत भी नहीं कर सकता। खैर उसकी 
					शिकायत सुनता ही कौन? बस अब मैं क्या करूँ – छोड़ दूँ इस 
					बेगुनाह बच्चे को किसी की वहशियाना तबियत का शिकार बनने के 
					लिये या आगे बढूँ। मन में एक तरफ अपना कैरियर दूसरी तरफ इंसाफ 
					का तकाज़ा? इसी समय दरवाज़ा खुला और 'ब्लडी निगर' कहते हुए 
					मिस्टर ह्यूबर्ट बाहर निकले? अब उनके चौंकने की बारी थी, बोले 
					'सारे काले चोर होते हैं।'
 
 मैं चुपचाप वहाँ से चली आई। मेरा मन फिर कुछ भी करने में नहीं 
					लगा। मैं प्रोबेशनरी टीचर हूँ , मेरी बात अगर कोई माने भी तो 
					उससे क्या होगा? क्या रौनी को कुछ मिलेगा? मान लो न्याय मिल भी 
					जाए तो क्या प्यार मिलेगा? यदि मेरा प्रोबेशन न पूरा होगा तो 
					क्या होगा? मेरा तो केरियर ही खतम हो जाएगा। इसी उलझन में कुछ 
					तय नहीं कर पा रही थी। एक तरफ मेरा कैरियर तो दूसरी तरफ रौनी 
					की उदास सूनी आँखों से बहते आँसू जिन्हें वह अपनी हथेलियों से 
					पोछता रहता था। छोड़ दूँ उसे अपने आँसूं खुद ही पोछने के लिये। 
					और सब कुछ निगल जाऊँ। यह सब कोरी भावुकता है। लेकिन मेरा मन 
					काँप उठता था। मैंने एक निश्चय किया, और इस्तीफा लिख कर अपने 
					पर्स में रख लिया।
 
 दूसरे हफ्ते स्कूल जाने पर कुछ हलचल का आभास हुआ। रौनी की 
					फौस्टर मदर सोशल वर्कर के साथ स्कूल आई थीं। हेड टीचर मेरी 
					तलाश में थी। कॉरीडोर में मिलते ही धीरे से पूछा, ' मिस रीमा 
					क्या आपको कुछ मालूम है फ्राईडे को रौनी के साथ क्या हुआ था।' 
					'क्यों क्या बात है, रौनी कहाँ हैं?' मैंने कुछ भाँपते हुए 
					पूछा। वह बोली, 'रौनी आज स्कूल नहीं आया है। बातें करते करते 
					वह मुझे अपने ऑफिस में ले गई और कहा, 'सोशल वर्कर और रौनी की 
					फौस्टर मदर आई है। रौनी को गहरी चोट आई है, सोशल वर्कर ने केस 
					अपने हाथ में ले लिया है। और पता कर रही है कि रौनी को चोट 
					कैसे आई है। रौनी डिलिरियम में हैं और बार बार आपका नाम ले रहा 
					है।
 मैं समझ गई, 
					मुझे अब क्या करना है। मैंने अपनी सारी हिम्मत जुटा कर कहा, 
					'हाँ, मैं फ्राईडे को स्ट्रांग रूम में कुछ सामान लेने गई थी 
					पर अंदर से आती गुस्से और धमकी भरी आवाज सुन कर वहीं रुक गई। 
					मैंने अपने कानों से सब कुछ खुद सुना है और मुझे रौनी के लिये 
					गवाही देने में कोई हिचक नहीं होगी।' और उस दिन की सारी घटना 
					उन्हें बता दी।  उसके बाद 
					मेरा मन एक अजीब उदास सकून से भर गया और मैं क्लास रूम में आकर 
					कुर्सी पर बैठ गई। रजिस्टर खोलते ही एक छोटा सा कार्ड गिरा, 
					उठा कर देखा, लिखा था, मिस रीमा आई लव यू। 
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