जेनिफर
ने मेरी ओर अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा। मेरी कक्षा में चौबीस
बच्चे थे। पच्चीस मैक्सिमम नम्बर है। एक जगह खाली थी।
सोशल वर्कर रोज़मैरी ने आगे बढ़ कर कहा, "तुम जिधर से आती
हो, वो लोग उसी रोड यानी एजहिल रोड पर वन–ओ–थ्री में आए हैं।
नीला दरवाजा, तीखे लाल अजेलिया, और झूलते हुए पैशन फ्लावर वाला
वह घर नजरंदाज कर पाना आसान नहीं है। तुम उस तरफ से हर रोज
गुजरती होगी, है न?" वह मेरी ओर देख
कर कुछ विचित्र ढंग से मुस्कराई। रोजमैरी से मेरा साबका अक्सर
"स्पेशल नीड" यानी विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को लेकर पड़ता
है। रोज़मैरी योग्य होने के साथ–साथ तेज़ और खुर्राट भी है।
"ओ यस," मैंने कहा, "शायद मकान बहुत दिनों से खाली पड़ा था।
"हाँ–हाँ, वही, वही। अब खाली नहीं हैं।" कहते हुए वह अपना
भार उतार कर चलती बनी।
मिस हिचिंस ने बातों का सूत्र अपने हाथों में लेते हुए
कहा,
"इस बच्चे के लिये सरकार की ओर से विशेष आवश्यकताओं की
सिफारिश की गई है। तुम्हारे लिये एक चुनौती रहेगा।" उसने मेरी
आँखों में सीधे देखते हुए कहा, "दरअसल वह बहुत से स्कूलों में
रहा है, बहुत से बालसुधार घरों में भी। उसका एक पूर्ववृत्त है।
तुम बहुत ही समर्थ और योग्य हो. . . "समर्थ" पर जोर देते हुए
उसने जोड़ा।
"मुझे विश्वास है कि तुम यह चुनौती स्वीकार करोगी और उसके
साथ काम करना तुम्हें पसंद आएगा।" वह जाने को मुड़ी फिर
चलते–चलते साड़ी की चुन्नट को बाएँ हाथ से सम्भालते हुए मुस्करा
कर बोली,
"साड़ी बहुत ही शानदार पहनावा है, इसे पहनना एक कला है।"
असल में यह एक ऐसा खास मौका था जबकि मिस हिंचिस तथा मेरे
अन्य सभी साथियों ने भी "इनसेट" (इन सर्विस ट्रेनिंग) के इस
आयोजन के दौरान पहली बार भारतीय परिधान पहना हुआ था। फिल्म,
स्लाइड, ओवर–हेड प्रोजेक्टर के साथ–साथ पुस्तकें, धर्म–ग्रंथ,
वस्त्राभूषण, हस्तकला, फल–फूल, मिठाई आदि की कलात्मक प्रदर्शनी
क्राउन–हाउस में लग चुकी थी। अंतिम दिन भारतीय भोजन पर सभी
सहभागी अतिथियों को भी भारतीय परिधान धारण करना था। मैं बहुत
उत्साहित थी। यह समाज जिसमें मैं पिछले पंद्रह सालों से जी रही
हूँ मेरी संस्कृति को पहचान नहीं दे रहा था। संपूर्ण वातावरण
मेरी ही पहचान और सोच को बदलने में लगा हुआ था। पर आज ब्रिटेन
के तमाम शिक्षा–शास्त्री, एजुकेशन मिनिस्टर–माग्रेट थैचर और
शर्ली विलियमस साड़ी पहन कर हमारी "एथनॉसिटी" को सम्मान दे रही
है।
वे सांस्कृतिक पहचान और मूल्य जो इस समाज के दबदबे में खो
गए थे, आज पूरे जोर–शोर से उभर कर सामने आए। मेरा स्व बहुत
संतुष्ट था। मुझे यह इनसेट, इनसेट न लग कर एक सांस्कृतिक उत्सव
सा लग रहा था। वास्तव में इनसेट बहुत सफल रहा।
"हमारा इनसेट बहुत सफल रहा है... सफलता का सारा श्रेय
तुम्हें ही जाता है। सिर उठा कर सफलता को अपने अंदर समेटना
सीखो।" कहते हुए जेनिफर ने मेरे कंधे को स्नेह से थपथपाया और
फिर सबके साथ मिल कर एक साधारण शिक्षक की भाँति फालतू सामान
पैक करने लगी।
°°°
इस बीच एक सप्ताह निकल गया। बच्चे की गोपनीय रिपोर्ट आ गई।
जेनिफर जब मुझे फाइल देने आई तो उसके माथे पर चिंता की लकीरें
थीं। उसने बताया बच्चा केवल स्टेटमेन्टेड (सरकार द्वारा विशेष
शिक्षा के लिये नमाँकित) ही नहीं था वह "असवाभाविक रूप से चुप
भी रहता है।"
फाइल के उपर "बीस्माट" नोन एज "बीमा" लिखा हुआ था। फाइल के
अंदर एक भूरा सीलबंद "गोपनीय" लिफाफा था।
क्लास रूम को व्यवस्थित कर मैं फुरसत में रिपोर्ट पढ़ने
बैठी।
रिपोर्ट में लिखा था "बीस्माट का जन्मदिन और जन्म स्थान
दोनों ही काल्पनिक हैं। वह "वार्ड आफ कोर्ट" हैं यानी सरकारी
बच्चा" जीजस! मेरे मुँह से दुःखद निश्वास निकला . . .
मैंने फिर रिपोर्ट पर नज़र गड़ाई। रिपोर्ट बता रही थी कि २
अगस्त १९७० को पाँच फुट दो इंच की एक नाटी, श्वेत–वर्ण, भारी
शरीर लंबे काले बालों वाली पोलिनेसियन स्त्री लंदन हॉस्पिटल,
व्हाइट–चैपल, ईस्ट में दिन के ग्यारह बजे दाखिल हुई। स्त्री के
साथ उसका चार वर्षीय, घुँघराले जिंजर बालों वाला, कारकेसियन–सा
दिखने वाला बालक भी था। स्त्री को तेज रक्तस्त्राव और बालक को
तेज बुखार हो रहा था। पूछ–ताछ करने का वक्त नहीं था। ड्युटी
नर्स मटिल्डा जेम्स ने तुरंत दोनों को एडमिट कर लिया था।
स्त्री के गर्भाशय में किसी नुकीली वस्तु का प्रवेश हुआ था।
डी. एन. सी. से पहले ही स्त्री ने दम तोड़ दिया। स्त्री के पास
ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे उसके निवास स्थान अथवा संबंधियों का
पता चल सके। स्त्री की बाईं बाँह पर टैटू था जिस पर चित्रित
स्क्रॉल के ऊपर "बीस्माट" शब्द अंग्रेजी में लिखा हुआ था।
तमाम खोज–बीन के बाद भी यह नहीं पता चल सका कि "बीस्माट"
किस भाषा का शब्द है और इसका क्या अर्थ हैं। स्त्री के बदन पर
केवल एक सूती पिनाफोर और प्लास्टिक की सेनिटरी पैन्टी थी जो
खून से बुरी तरह लथ–पथ हो रही थी। बालक ने मदर–केयर का बेबी
ग्रो पहना हुआ था। पोर्टर ने बताया, "वह स्त्री बालक के साथ
अकेली ही कॉरीडोर में घुसी थी। उसके या बालक के हाथ में कुछ भी
नहीं था।"
घटना की सूचना हॉस्पिटल ने तुरंत ही स्थानीय पुलिस और
सोशल–वर्कर को दे दी। बालक दो महीने "चिल्ड्रेन वार्ड" में
रहा। माँ की मृत्यु ने उसके दिमाग पर गहरा सदमा पहुँचाया था।
पुलिस खोज–बीन करती रही। स्त्री का पोस्ट–मार्टम हुआ। अखबार और
टी. वी. में मृत स्त्री और बालक के फोटो के साथ "बीस्माट" शब्द
के बारे में भी इश्तहार निकला। पर कहीं से कोई सूचना नहीं
मिली। अंत में बच्चे को "वार्ड ऑफ कोर्ट" (सरकारी बच्चा)
डिक्लेयर कर के उसे "चाइल्ड वेल्फेयर डिपार्टमेन्ट" को सौंप
दिया गया। शव अभी भी मार्चुवरी में हैं। कोर्ट ने फैसला किया
बालक का नाम स्त्री के हाथ पर टैटू से
लिखे शब्द के अनुरूप "बीमा बीस्माट" होगा ताकि उसकी पहचान बनी
रहे।
बीमा बीस्माट का जन्म दिन दो अगस्त १९६८ निश्चित किया गया
जो काल्पनिक होते हुए भी उसके जीवन के सत्य से जुड़ा हुआ है।"
इस अनचीन्हे बालक के प्रति मेरा मन विह्वल हो उठा। मैं सिर
से पाँव तक सिहर उठी। आह! यह कैसा नृशंस संयोग
है। नन्हा–सा निर्दोष बालक जिसने अभी–अभी आँखें खोली हैं उसे
क्या पता? उसे किन अँधेरों से गुजरना होगा!!
मैंने मन–ही–मन निर्णय लिया। इस बालक बीमा को मैं एक केस
हिस्ट्री की तरह स्टडी करूँगी। बीमा बीस्माट हमारे स्कूल में
तीन साल की अवधि तक रहेगा। इस बीच हमारा प्रयास होगा कि हम
अपने स्कूल में उसके लिए एक ऐसा परिवेश तैयार करें, जिसमें वह
कभी भी अपने आप को अपरिचित, अनाथ और अकेला न महसूस करे। आठ
वर्ष की उम्र तक पहुँचते–पहुँचते हम उसे आत्मविश्वास एवं
आत्मसम्मान से युक्त एक साधारण बालक बना देंगे। नये वर्ष के
आरम्भ में जब वह क्रैनमाँ हाई में जाएगा तब
तक उसकी उपलब्धियाँ एक साधारण बालक जैसी हो चुकी होगी।
जेनिफर तथा मेरे सभी साथियों को मेरी योजना पसंद आई। उन
लोगों ने मुझे हर तरह की सहायता का वचन दिया। बाद में जेनिफर
ने मुझे यह कह कर सावधान किया कि इस तरह के केस में
प्रोफेशनैलिज़म की बहुत कड़ी परीक्षा होती है। जेनिफर अच्छी हेड
होने के साथ–साथ बहुत व्यावहारिक और सूक्ष्म दृष्टि रखती है।
उसके बाद और भी तमाम रिपोर्ट थी, जिससे पता चलता था, बालक के
बहुत सारे मेडिकल टेस्ट हुए। बालक "लेफ्ट हैंडेड" हैं। बाएँ
हाथ की उँगलियाँ कुछ टेढ़ी हैं। इसलिए उँगलियों में पूरी पकड़
नहीं हैं। ऑपरेशन के बाद उँगलियाँ संभवतः ठीक हो जाएँगी।
प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण बालक चुप्पा और जिद्दी हो गया
है। बालक के "वोकल कॉर्डस्" बिल्कुल ठीक हैं। बाल मनोवैज्ञानिक
ने अभी उसे "इलक्टिव म्यूट" की संज्ञा दी है।" अनुकूल वातावरण
उसके मन–मस्तिष्क को "प्रेरित" करेगा। समय के साथ बीमा
की मुखरता पनपेगी।
स्कूल ने बीमा की प्रगति के लिए अपनी रणनीति बना ली।
हाउस नम्बर वन–ओ–थ्री से समय निश्चित कर अगले दिन मैं
स्टेला के साथ बीमा तथा उसकी फोस्टर मदर मिसेज् रॉबिन्स से
मिलने उनके घर पहुँची। दिन के ग्यारह बजे थे। गबदा–सा घुँघराले
जिंजर बालों वाला बीमा अपने बेडरूम का पर्दा हटा कर बाहर झाँक
रहा था। मुझे और स्टेला को आते देख कर वह पर्दे के पीछे छुप
गया।
उसे मालूम था कि हम उससे मिलने आ रहे हैं। मिसेज् रॉबिन्स
ने नीचे से आवाज दी,
"बीमा, देखो तुम्हारी अध्यापिका तुमसे मिलने आई हैं।
तुम्हारे लिये कुछ उपहार भी लाई हैं।"
ऊपर से न तो कोई आवाज आई ना ही कोई आया। मैंने मिसेज
रॉबिन्स से कहा,
"अगर हम खुद ऊपर चले जाएँ तो कैसा रहेगा?"
"जाओ, खुशी से जाओ, गुड–लक अगर उसके दर्शन हो जाए दो। बीमा
बिस्तर के नीचे छुपा बिल्ली की तरह बैठा होगा" उसने हँसते हुए
कहा, हँसी में हल्की–सी तिक्तता थी।
"क्यों
क्या बात है? आपके साथ उनका व्यवहार कैसा है? आप मुझे बीमा
बीस्माट के बारे में तफसील से बताएँ। मैं उसकी रिपोर्ट पढ़ चुकी
हूँ। बिना आप के सहयोग के हम उसकी कमजोरियों पर सकारात्मक ढंग
से काम करके उसे एक सामान्य व्यक्तित्व नहीं दे सकते हैं।
"जब तुम रिपोर्ट पढ़ चुकी हो तो तुम्हें मालूम हो चुका होगा
कि वह किन विसंगतियों और त्रासदी से गुज़रा है। मैं स्वयं भी
उसे अच्छी तरह समझ नहीं पाई हूँ। लोग उसे गूँगा, बहरा, बेवकूफ
और आलसी समझते रहे हैं। उसका दाहिना हाथ बेहद कमजोर हैं। बाएँ
हाथ की उँगलियाँ हल्की–सी टेढ़ी हैं।" फिर कुछ रूक कर उन्होंने
बेहद धीमी आवाज में फुस्फुसाते हुए कहा,
"और
हाँ, अभी भी वह नर्वसनेस में बिस्तर और चड्ढी गन्दी कर देता
हैं।" फिर मेरी आँखों में सीधा देखते हुए मेरे मनोभावों को
पढ़ते हुए बोलीं,
"बीमा एक पालतू बिल्ले की तरह है। कई बार उदण्ड हो जाता
है। वैसे वह सारे दिन ऊपर कमरे में बिस्तर के नीचे खेलता या
सोता रहता है। वह तुम्हारे सामने आ जाए तो यह आश्चर्य की बात
होगी।"
मेरा मन द्रवित हो उठा। मैं बीमा से मिलने को आतुर हो रही
थी।
"लेकिन अभी तो वह खिड़की से झाँक रहा था।"
"जाओ, ऊपर जाओ और खुद ही देख लो। तुम सकारात्मक विचारों के
साथ आई हो, यह अच्छी बात है । पिछले घर में उसे बीस्ट या
बीस्टी (जंगली जानवर) पुकारा जाता था। शायद इसीलिए वह इस तरह
की हरकत करता है। उसके साथ
पहले अच्छा व्यवहार नहीं हुआ। उसे बुरे व्यवहार का सामना करना
पड़ा है।" उनके चेहरे पर दुःख की छाया उभर आई थी।
"मिसेज रॉबिन्स आप अच्छी और समझदार महिला है। आप निरंतर
मेरी सहायता करें। बीमा जरूर एक दिन अन्य बच्चों की तरह हो
जाएगा। आपसे बीमा ने कितना कुछ सीखा है आखिर उसे बिस्तर में
सोना और गिलास से दूध पीना आ गया है।"
"हाँ, वो तो है। उसके कान बहुत तेज है इस समय वह सीढ़ी पर
खड़ा सब कुछ सुन रहा होगा। पर बोलेगा बिल्कुल नहीं। रास्कल,
जिद्दी है जिद्दी।" वह फिर हँसी। इस बार हँसी में मधुरता और
ममता अधिक थी क्यों कि वह बीमा के प्रति मेरी रुचि और चिंता से
आश्वस्त थीं।
"बीमा आपके पास कितने दिनों से हैं?"
"पिछले
तीन महीने से, जब आया था तो दाँत काटता था और कागज़ खाता था। अब
वह सब नहीं करता है। बड़ा प्यारा बच्चा है।" उसने सायास ऊपर की
ओर देखते हुए कहा ताकि बीमा सुन सके।
"आप के बेटे डंकन से इसके कैसे संबंध है?"
"मधुर और स्नेहिल। उसी ने तो इसे बिस्तर पर सोना और गिलास
से दूध पीना सिखाया है।"
"मैं डंकन से मिलना चाहूँगी। मुझे पूरी आशा है यदि हम सब
मिल कर सकारात्मक ढंग से काम करें तो बीमा की
जिंदगी में ठहराव एवं आश्वस्ति आ जाएगी। और वह अन्य बच्चों की
तरह आत्मविश्वास से युक्त हमारे समाज का सदस्य होगा।"
वह आश्वस्ति से मुस्कराई,
"वह शर्मीला है।"
"मुझे मालूम है ऐसे संवेदनशील बच्चे यों भी बहुत शर्मीले
होते हैं।" मैंने मिसेज रॉबिन्स के हाथों को एक हल्का स्पर्श
दिया।
इसी बीच स्टेला ऊपर कमरे में बीमा को बाहर आने के लिए
फुसला रही थी। पर वह सचमुच बिल्ली की तरह हाथ–पाँव के बीच सिर
को छुपाए बिस्तर के नीचे बैठा अधखुली आँखों से उसे देख रहा था।
बाहर आने के कोई लक्षण नहीं थे।
मैंने और मिसेज रॉबिन्स ने भी
कोशिश की पर वह बाहर नहीं आया। हम लोग जिगसा–पजल, तस्वीरों
वाली किताबें और जेलीबीन्स का एक पैकेट वहाँ रख, नीचे उतर कर
चलने लगें तो ऊपर बीमा खिड़की से झाँक रहा था।
°°°
दूसरे दिन मिसेज़ रॉबिन्स का फोन आया। बीमा सारे दिन
जिगसॉपजल और किताबों से खेलता रहा। शाम को उसने सारी चीजें
डंकन को दिखाई। डंकन ने उसे बताया जेलीबीन खाया जा सकता है
दोनों ने जेलीबीन खूब स्वाद लेकर खाया।
रात को बीमा किताबें, जिगसॉपजल आदि को सीने से लगाए सोता
रहा।
°°°
स्कूल आते–जाते मैं अक्सर देखती वह खिड़की से झाँक रहा होता
है। मुझे देख अब छिपता नहीं है। मुँह दूसरी तरफ घुमा कर आँखों
के कोरों से देखने की कोशिश करता है।
हर तीन–चार दिन बाद हमलोग बीमा
के लिए नई तस्वीरोंवाली किताबें और जिगसॉपजल आदि मिसेज रॉबिन्स
को दे आते। बीमा के सो जाने के बाद वह उसकी प्रतिक्रियाएँ मुझे
फोन पर बतातीं। और मैं प्रगति–शीट पर नेक्स्ट–स्टेप की योजना
बनाती।
हफ्ते भर बाद वह हमसे दूर नीचे सीढ़ियों पर आ कर कुछ छुपता
हुआ–सा बैठने लगा था। फिर हमने नोट किया कि वह दरवाज़े पर मिसेज
रॉबिन्स के पीछे खड़ा हमारी बातें सुनता रहता है। अतः अब हम
उसकी बातें न कर उन किताबों के बारे में बातें करते जिन्हें हम
उसे दूसरे दिन देना चाहते थे। ताकि उसे लगे कि हम भी वही
किताबें पढ़ते हैं और वह भी उनमें वही रुचि और मजे ले सके जैसा
हम चाहते हैं।
दो–तीन दिन मैं स्कूल नहीं जा सकी। फ्लू हो गया था। मिसेज़
रॉबिन्स ने बताया बीमा सारे दिन मेरा इंतज़ार करता रहा और दूसरे
दिन तो दरवाजा खोल कर बाहर आयरन गेट के पीछे खड़ा बारिश में
भीगता रहा। जिस दिन उसे स्कूल शुरू करना था मिसेज रॉबिन्स और
डंकन उसे स्कूल ले कर आए। डे यूनीफॉर्म में वह बहुत प्यारा लग
रहा था।
स्कूल कारीडोर में कोट हैंगर के
पास, बीमा मिसेज रॉबिन्स और डंकन के साथ खड़ा बच्चों और कथा में
हो रहे एक्टीविटीज़ (तरह–तरह की क्रियाएँ) को देखता रहा फिर
जाने क्या हुआ कि अचानक वह तीर–सा इस तरह भागा कि हम सब हड़बड़ा
गएँ। वह तो स्कूल गेट बंद था वर्ना यह बाहर सड़क पर भाग जाता।
शायद इतने ढेर सारे बच्चे देख कर उसके अंदर पनपता हुआ
आत्मविश्वास थर्रा गया। वह बड़ी देर तक स्कूल गेट के छड़ को पकड़े, हिचकियाँ लेता,
सुबकता रहा।
°°°
अगले तीन–चार दिन वह स्कूल नहीं आया। पर अपने घर के आयरन
गेट के पीछे खड़ा हमारा इंतज़ार करता रहता। सुबह–शाम हमारी खामोश
मुलाकातें होती रहीं। मैं उसे "हेलो" करती तो वह मुस्करा कर
भाग जाता। उसके मनोविज्ञान को देखते हुए मैंने स्ट्रेटेजी
बदली। एक दिन मैंने बीमा से कहा, "बीमा अब मैं तुम्हारे घर
नहीं आऊँगी। तुम मेरे स्कूल नहीं आते। स्कूल में सब बच्चे
तुम्हें याद करते हैं। तुमसे दोस्ती करना चाहते हैं।"
और मैं वहीं गेट की दीवार पर सायास बैठ गई। बीमा थोड़ी देर
सिर झुकाकार गेट में बने मोर के पंखों पर उँगलियाँ फिराता रहा।
फिर गेट खोल कर बाहर आया और मुझसे सट कर चुपचाप खड़ा हो गया।
गेट खुलने की आवाज़ सुन कर मिसेज रॉबिन्स बाहर आ गई। वह मुझसे
यों ही कुछ बातें करती रहीं। बीमा मेरे हाथ में पड़ी चूड़ियों से
खेलने लगा। अचानक वह मेरी गोद में चढ़ा और दोनों गालों पर गीले
चुम्बन दे कर अंदर भाग गया। दोस्ती का वह गीला स्पर्श मुझे
अंदर तक भिगो गया। आस्था और विश्वास के अंकुर पनपने लगे। हम
दोनों के बीच एक सुखद अनुभूति का सृजन
हुआ। मुझमें भी आशाजनक आत्मविश्वास पनपा। मिसेज रॉबिन्स अवाक
खड़ी रहीं। उनकी आँखों ने मानों सपना देखा।
दोस्ती का वह मूक संदेश अपनी बात पूरे प्रभाव के साथ कह गया।
हम दोनों अंदर आए। बीमा को आवाज़ दी। वह बिस्तर के नीचे
छुपा, बंद आँखों की झिर्री से हमें देखता रहा।
अब हमारी मुलकातें बाहर गेट पर किताबों के आदान–प्रदान के
बीच होतीं। वह अक्सर मेरे हाथ से जिगसापज़ल और किताबें बेसब्री
से खींच कर अंदर भाग जाता।
मैं तरह–तरह के प्रयोग कर रही थी . . .
अब फिर मैंने बीमा के घर के अंदर
जाना बंद कर दिया। उसे बाहर ही किताबें देतीं हुई अपने घर चली
जाती . . .
एक दिन उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसकी पकड़ बेहद गहरी और
सख्त थी। नर्म, गुदाज़ गर्म हथेली का स्पर्श मेरे दिलो–दिमाग और
तन–मन से अनबोले, कुछ कह–सा गया। लगा आज हम दोनों के बीच एक और
नया संचार माध्यम कायम हुआ है जिसने हमें एक अन्य संवेदनात्मक
स्तर पर जोड़ दिया है। वह अनबोले ही मुझे खींचते हुए अंदर ले
गया और मेरी गोद में बैठ कर किताब पढ़ने का उपक्रम करने लगा।
मैंने उस दिन उसे पहली कहानी पढ़ कर सुनाई। वह मेरे साथ
शब्दों और वाक्यों पर अपनी उँगलियाँ फिराता रहा।
रात को जब बीमा सो गया तो मिसेज रॉबिन्स ने फोन पर बताया
बीमा स्कूल यूनिफॉर्म और अपनी किताबें वगैरह बेड–साइड टेबुल पर
रख कर सोया है। शायद उसने स्कूल जाने का मन बना लिया है। आप कल
उसे अपने साथ स्कूल लेती जाएँ।
मिसेज रॉबिन्स बीमा की प्रगति के लिए हम दोनों के बीच से
हटना चाह रही थीं।
दूसरे दिन बीमा गेट के पास स्कूल बैग लिए मेरा इंतजार कर
रहा था। मुझे आते देख कर उसने गेट खोला और उँगली पकड़
कर मेरे साथ स्कूल की ओर चल पड़ा। मिसेज रॉबिन्स ने उसे "बाय"
करा पर उसने पलट कर भी नहीं देखा।
बीमा के बारे में बाकी बच्चों को मैं पहले ही तैयार कर
चुकी थी। आते ही बीमा प्ले हाउस में घुस गया और सारे दिन बाहर
नहीं निकला। बच्चों को पता चल गया, बीमा को तवज्जोह पसंद नहीं
हैं। अतः वह उसे अकेले ही प्ले हाउस में खेलने देते। अगर वह
प्ले हाउस में नहीं होता तो जहाँ कहीं भी मैं होती मेरे बायीं
तरफ खड़ा आस–पास होने वाली क्रियाओं को बारीकी से देखता रहता।
मुझे समझ आ गया बीमा को पढ़ने–लिखने में रुचि है। और अब वह
मानसिक रूप से लिखित–चिन्हों को शब्द–चित्र में "इन्टरप्रेट"
करने को तैयार है।
शुरू–शुरू में जब कभी मैं बच्चों के साथ काम कर रही होती
तो वह पास खड़ा पेन, पेन्सिल, रबर आदि जिस किसी चीज की मुझे
जरूरत होती, उठा कर दे देता, जैसे मेरी जरूरतों की लिस्ट उसने
पहले से ही तैयार कर रखी हो।
सुबह अन्य बच्चों के आने से पहले वह स्टेला के साथ
टेबुल–चेयर बुक–कार्नर स्टोरी–कार्नर प्ले–हाउस आदि को नए–नए
ढंग से सजाता। पेन्सिल शार्पनिंग, रंग घोलना, ईज़ल लगना, पानी
और सैंड ट्रे के खिलौनों का चुनाव करना आदि का
कार्य–भार उसने अपने ऊपर ले लिया था।
बीमा की कलात्मक रुचि की झलक उसके रंगों के चयन और काम
करने के तरीके में उभर कर आई। वह कक्षा के माहौल और परिवेश को
जल्द ही समझ गया था। यदि कभी स्टेला को आने में देर हो जाती तो
वह अपने–आप अपनी सूझ और समझ से क्लास को सेट करना शुरू कर
देता। गज़ब की याददाश्त थी बीमा की। एक दिन स्टेला ने मज़ाक में
कहा,
"लगता है बीमा मुझे रिडंडेन्ट कर के मेरी नौकरी खुद ले
लेगा।"
मैंने भी हँसते हुए कहा,
"यह तो सिर्फ इप्तदाए इश्क है होशियार हो जाओ!"
उस दिन बीमा प्ले हाउस में टेडी–बेयर को फ्लैश कार्ड दिखा
रहा था। कुछ कार्ड वह टैडी को देता कुछ अपने पास रखता। उसने दो
अलग–अलग बंडल बनाएँ। शाम को घर जाने से पहले उसने छोटे बंडल को
मेरे सामने खोल कर रख दिया।
और उन पर उँगली रख कर मुझसे उनके उच्चारण पूछने लगा। मेरी समझ
में आ गया वह पढ़ने के लिए तैयार है।
बीमा को बोलना पसंद नहीं था। वह नहीं बोलेगा। मुझे ही नहीं
सभी को मालूम पड़ चुका था। किन्तु उसकी सीखने की प्रवृत्ति गज़ब
की तीव्र थी। और उसकी मूक अभिव्यक्ति उससे भी धारदार।
उँगलियों के टेढ़ेपन के कारण बीमा बायीं हथेली की मुठ्ठी
बना कर उसमें पेंसिल फंसा कर पकड़ता। लिखना उसके लिए बहुत
मुश्किल काम था। लेकिन वह जो भी कुछ लिखता, बहुत साफ और सही
लिखता। जो कुछ अन्य बच्चे चार वाक्य में लिखते उसे वह एक ही
वाक्य में लिख कर अभिव्यक्त कर देता। धीरे–धीरे वह बच्चों के
साथ मेज़ पर बैठने लगा। पर अभी भी जब कोई उसकी ओर देखता तो वह
अपना चेहरा अपनी नन्हीं–नन्हीं हथेलियों में छिपा लेता।
पहले ही महीने में वह फ्लैश
कार्ड के सारे शब्द पहचान गया। समर–टर्म खतम होने से पहले उसने
प्रथम शब्दावली की पाँच पुस्तकों को अच्छी तरह से पढ़ कर याद कर
लिया था। अपनी बात को समझाने के लिए उसके पास बहुत सारे तरीके
थे, पर नए लोगों को बैठा देखकर वह अभी भी प्ले–हाउस में छिप
जाता। लिखित अभ्यास के किसी भी प्रश्न के जवाब में वह एक शब्द
लिख देता जिससे पूरा अर्थ स्पष्ट हो जाता था। पूरे हिसाब के
कार्ड में से वह एक हल निकाल कर रख देता और मुझे पता चल जाता
उसे फारमूला समझ आ गया है। स्कूल के सभी बच्चों ने उसकी तमाम
कमियों के बावजूद उसे स्वीकार कर लिया था। उसका न बोलना अब
हमें उतना नहीं अखरता क्योंकि वह सारे काम बिना मुखरता के कर
डालता था। हम लोगों ने उसके मूक अभिव्यक्ति को स्वीकार कर लिया
था। स्कूल साइकॉलोजिस्ट ने भी उसकी फाइल बंद कर दी थी . . .
स्कूल में जेनिफर और स्टेला को
लेकर कुल दस स्टाफ है। बीमा का सबसे परिचय हो चुका था पर वह
अभी भी सबसे छुपता फिरता। स्पोर्टस डे के दिन उसने किसी खेल
में भाग नहीं लिया बस स्टेला के साथ मेज के नीचे छुप कर बैठा
सबको ऑरेंज जूस के कार्टन और बिस्कुट देता रहा।
गर्मी की छुट्टियाँ हो गई। मेरी माँ बीमार थी मैं भारत चली
गई। लौट कर आई तो मिसेज रॉबिन्स ने बताया, "डंकन ने बीमा को
स्पेन के समुद्र तट पर तैरना सिखा दिया है और वह काफी अच्छा
तैर लेता है।" क्लास के सभी बच्चे कहीं–न–कहीं हॉली–डेज़ पर गए
थे और वहाँ से बहुत सारी छोटी–छोटी चीजें समुद्र तट से चुन कर
लाए थे, जो मुझे ही नहीं आपस में भी एक–दूसरे को दिखाना चाह
रहे थे। अतः हमलोगों ने ऑटम–टर्म प्रोजेक्ट का विषय "नेचर एन्ड
रिफ्यूज" रखा। एक वर्क–टॉप पर सारी चीजें नाम–पट्टी के साथ रख
दी गई।
इसी बीच बीमा ने पोस्ट–मैन
द्वारा, चिठ्ठियों के बंडल के ऊपर से उतार कर फेंके गए
रबर–बैंड से उछलने वाला गेंद बनाया जो पूरे स्कूल को इतना पसंद
आया कि छोटे–बड़े सभी रबर–बैंड का गेंद बना कर उससे खेलने लगे।
कई बच्चे हॉली–डेज से हमारे लिए नन्हें–नन्हें गिफ्ट ले कर आए
थे। बीमा ने भी स्पेन में बहुत सारे शंख, सीप, रंग बिरंगे
नन्हें–नन्हें खूबसूरत पत्थर सी–वीड आदि इकठ्ठे किए थे। जिससे
उसने हम लोगों के लिए तीन बेहद खूबसूरत छोटे–छोटे कलमदान,
प्लास्टिक के पारदर्शी बोतलों पर चिपका कर बनाए थे। जेनिफर को
वह गिफ्ट इतना पसंद आया कि उसने स्कूल असेम्बली में उसे सारे
स्कूल को दिखाया।
अब "नेचर एन्ड रिफ्यूज्" पूरे स्कूल का इनटेग्रेटेड,
टर्म–टॉपिक बन गया। स्कूल के सारे बच्चे और टीचर्स बीमा और
उसके विशेष योग्यता को जान गए। बीमा को पनपने का प्रेरणादायक
सरस वातावरण मिल गया। वह धीरे–धीरे सामाजिक प्राणी बनने लगा।
यद्यपि उसको बोलते हुए अभी तक किसी ने नहीं सुना था। कई बार
बुली (उदण्ड) लड़कों ने उसकी आवाज
सुनने के लिए उसे पीटा भी पर उसके सुबकने के अतिरिक्त रोने की
आवाज किसी ने नहीं सुनी।
जेनिफर ने उसका आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए उसे स्कूल का
डेपुटी हेड–ब्वाय बना दिया। बीमा को अपने काम की समझ थी।
हेड–ब्वाय की उससे अच्छी अन्डरस्टैडिंग बन गई थी। उसकी मूक
प्रवृत्ति उसकी शक्ति बन चुकी थी।
इस बीच इधर कई बातें हुई जिससे मैं मन–ही–मन बीमा के बारे
में चिंतित हो उठी थी वह यह कि रिफ्यूज प्रॉजेक्ट के एक
सब–टॉपिक के अनुसार जब बच्चे अपनी तस्वीर बना कर रंग भर रहे थे
तो बीमा बिना चेहरे की गोलाई खींचे आँख, नाक, होठ आदि बना कर
उसे एक बड़े से प्रश्न चिन्ह से घेर दिया था। चित्र का शीर्षक
उसने दिया, " मैं कौन हूँ?" चित्र के नीचे लिखा था " मैं कहाँ
से आया हूँ?"
इस तस्वीर ने हमे सबको चिंता में
डाल दिया। एक बार फिर स्कूल साइकॉलोजिस्ट को बुलाया गया विचार
विमर्श हुआ। बहसें हुई। निष्कर्ष निकला बीमा बहुत तेज बुद्धि
का बालक है। यह प्रश्न उसका मस्तिष्क बार बार दोहराएगा। इसका
हल किसी के पास नहीं हैं। वह अपने जीवन के सत्य से वाकिफ है।
अतः उसे स्वयं इस सत्य से समझौता कर खुद को टटोलना और पहचानना
होगा। बीमा को संवेदनशील परिवेश जरूर मिला किन्तु साथ ही
संवेदनाओं की तीखी और कटीली झाड़ियाँ भी मिली। जो जाने–अन्जाने
उसे घायल और लहुलुहान भी करती। पर समय–समय पर उसके व्यवहार में
आता ठहराव हमें आश्वस्ति भी देता। बीमा के मन का सौंदर्य उसके
व्यवहार में झलकता। अधिकांश बच्चों की तरह वह स्वार्थी नहीं
था। उसे अपने पूरे परिवेश की जानकारी और चिंता थी। रिफ्यूज
प्राजेक्ट पूरा हो चला था। प्रॉजेक्ट के अंतिम दिन पूरा स्कूल,
बॉरो काऊंसिल के रिफ्यूज ग्राऊंड पर गया। वहाँ बच्चों ने
रिफ्यूज के विभिन्न प्रयोग, उपयोग और उसका पुनःचक्रन यानी
री–साइकिल होना भी देखा। रिफ्यूज प्रोजेक्ट के समापन पर बीमा
ने प्रोजेक्ट पुस्तिका के अंतिम पृष्ठ पर लिखा "वह बड़ा हो कर
रिफ्यूज कलेक्टर" (कचरे का सदुपयोग करने वाला) बनेगा और अपने
आस–पास के वातावरण को स्वच्छ बनाने में काऊंसिल की मदद करेगा।
उसे "ग्रीन हाउस इफेक्ट" की बातें अक्सर चिंता में डाल देतीं।"
रिफ्यूज प्रॉजेक्ट खतम हो जाने
के बाद भी बीमा की रुचि रिफ्यूज में बनी रही। अगले वर्ष उसने
रिफ्यूज की कई और अच्छी–अच्छी चीजें बनाई। मर्टन एजुकेशन
अथारिटी ने उसे कई पुरस्कार भी दिये। वस्तुतः "वाम्बल ऑफ
बिम्बल्डन" वातावरण को साफ रखने के लिए टैडी–बीयर वाला गीत और
नाटक उसी के दिमाग की उपज थी। बाद में किसी और ने उसके विचारों
पर काम कर के नाम कमा लिया वह दूसरी बात है . . .
हमारे स्कूल से पढ़ाई खतम कर के जब वह क्रैनमा हाई जाने लगा
तो बहुत रोया। पर उसे तसल्ली यह जान कर हुई कि उसके सभी साथी
उसके साथ ही क्रैनमा हाई जा रहे हैं। जेनिफर और स्टेला आदि कई
बार उससे मिलने गएँ। बीमा की नई फार्म टीचर को मैंने उसके
प्रगति, स्वभाव, आवश्यकता आदि की रिपोर्ट विस्तार से भेज दी
थी। जब कभी वह संशय में होती, मुझसे विचार–विमर्श करने गॉरिंज
पार्क आ जाती। बीमा अब काफी सतर्क, सजग और आत्मविश्वास से
युक्त हो चला था। मुझसे जब कभी उसकी मुलाकात होती तो वह तीन
उँगलियों से हैट को हल्का–सा उठा, मुस्करा कर
अभिवादन करता।
बीमा के पढ़ने की उम्र उसके वास्तविक उम्र से दो वर्ष आगे
थी। लिखने में उसे अभी भी काफी तकलीफ होती। उसकी उँगलियों के
कई ऑपरेशन हो चुके थे। पर उँगलियाँ सीधी नहीं हो सकी। बोलना तो
उसे कभी पसंद ही नहीं था। मेरे साथ बिताए पूरे तीन साल की अवधि
में उसने केवल दो शब्द और एक वाक्य उच्चरित किया था। एक तो तब
जब बिल्ली ने हमारे "डेन" में बच्चे दिए थे और मिस्टर पेन
उन्हें कहीं फेंकने जा रहा था। वह भागा–भागा आया और मेरे गले
से लग कर सुबकते हुआ बोला, "प्लीज डोन्ट थ्रो पुसी" आवाज भारी
और गहरी थी। मैं पल भर को अवाक रही, कानों को विश्वास नहीं
हुआ। फिर एक दिन जब बिल्ली का बच्चा खो गया था और वह पुस . .
.पुस कह कर उसे सारे दिन पागलों सा पुकारता रहा। सारे स्कूल
में शोर मच गया कि बीमा बोल सकता है और बीमा सारे दिन पुसी के
साथ प्ले हाउस में छिपा रहा . . .
डंकन
की पढ़ाई खत्म हो चुकी थी वह ऑस्ट्रेलिया माइग्रेट कर गया था।
बीमा की रुचि को देखते हुए मिसेज राबिन्स ने काउंसिल से ग्रांट
ले कर घर के पीछे बने शेड को रिफ्यूज वर्कशाप में कन्वर्ट करा
दिया था।
पिछले कुछ दिनों से डायबीटीज के कारण मिसेज राबिन्स को
दिखना और सुनना बन्द हो गया था। बीमा पूरे मन से उनकी देखभाल
करता और घर के पीछे बने रिफ्यूज–वर्कशॉप में तरह–तरह के
खूबसूरत, सजावटी और उपयोगी वस्तुएँ बनाकर मर्टन–एबे में रविवार
को लगने वाले बाज़ार में बेच कर अपनी रोज़ी–रोटी कमाता।
अब वह "वार्ड आफ कोर्ट" नहीं था बल्कि आत्मविश्वास से
युक्त आत्म–निर्भर ब्रिटिश समाज का इकाई था। उसे डोल पर जाना
या सरकारी सहायता लेना पसंद नहीं था . . .
इधर तीन–चार साल से मेरी उससे मुलाकात नहीं हो पा रही थीं।
होम–ऑफिस में कुछ और परिवर्तन हुआ। कॉमन मार्केट ने एथनिक
माइनॉरिटी के कल्चर और बायलिंगुएलिज्म को बचाए रखने के लिए
एजुकेशन डिपार्टमेन्ट को कई तरह की आर्थिक सहायता दी। सेक्शन
इलेविन के तहत मेरा अप्वाइंटमेंट एजुकेशन ऑफिस के ट्रेनिंग
सेंटर में हो गया। और मेरा एजहिल रोड से आना–जाना बंद–सा हो
गया।
अब बीमा से मुलाकात नहीं होती।
वह भी अपने कामों में मसरूफ हो गया था, जीविका जो चलानी थी। उस
दिन रोजमेरी बता रही थी। बीमा को काऊंसिल में रिफ्यूज कलेक्टर
की नौकरी मिल गई हैं। मैंने डॉक से उसे एक खूबसूरत सा बधाई
पत्र भेजा था...
अचानक तीन–चार साल बाद एक रविवार को दोपहर में दरवाजे की
घंटी बजी, दरवाजा खोला तो सामने बीमा बिस्माट खड़ा था। मैंने
उसे अंदर आने को कहा तो वह काफी देर झिझकता–सा बाहर खड़ा रहा।
बारिश हो रही थी, उसे अंदर आना ही पड़ा।
बीमा का चेहरा कुछ लाल सा हो रहा था। वह कुछ उत्तेजित भी
था। शायद उसे कुछ महत्वपूर्ण कहना था। अथवा उसे कोई समस्या थी
जिसका हल वह स्वयं नहीं खोज पा रहा था।
अपने स्वभावानुसार वह काफी देर
चुपचाप बैठा रहा। फिर दीवार की ओर देखते हुए, भारी और गहरी
आवाज में बोला,
"कैन यू विटनेस माई वेडिंग इन कोर्ट?"
मुझे, मेरे कानों पर विश्वास नहीं हुआ। मैं उसे देखती रह
गई। कुछ ठहर कर मैंने उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते
हुए कहा,
"ऑफ कोर्स बीमा, विथ ग्रेट प्लेजर कांग्रेचुलेशन! टेल मी
हू इज शी? एन्ड व्होयर डिड यू मीट हर?
"अ गर्ल नेमड रिफता" उसने मेरी आँखों में देखते हुए उगते
सूरज की रोशनी भरी दीप्ति से कहा . . .
मैंने उसे बहुत प्यार और गहराई से देखा। फिर बात को बढ़ाने
और उससे कुछ और सुनने के इरादे से मैंने पूछा,
"क्या नाम बताया तुमने अपनी फियाँसी का?"
"रिफता!"
"बड़ा प्यारा नाम है . . .कहाँ मुलाकात हुई तुम्हारी उससे?
. . .
और कुछ जो कुछ उसने नपे तुले
शब्दों में बताया, वह और भी दहलाने वाला सत्य था . . .
यही कि पाकिस्तान के सिंध प्रांत के किसी गांव में रहने
वाले अत्यंत निर्धन माँ–बाप की अकेली बेटी रिफता का निकाह
दूर–दराज के रिश्तेदारी ने टेलीफोन पर लंदन निवासी सुहेल कासिम
से करा दिया। सुहेल इल–लीगल इमिंग्रेंट था। वह पहले से ही किसी
गोरी लड़की से इंग्लैण्ड की नागरिकता पाने के लिए शादी कर चुका
था। उसके बच्चे भी थे जो उससे सम्भल नहीं रहे थे। सुहेल को एक
नौकरानी की जरूरत महसूस हुई जो बिना पैसे लिए उसके घर तथा
बच्चों की देख–भाल कर सके।
रिफता एक खामोश, शर्मीली और कोमल स्वभाव की लड़की थी। लंदन
आने पर यह शहर उसे जादू नगरी–सा लगा जहाँ तिलस्म ही तिलस्म था।
वह नर्वस और बदहवास हो गई। डर और घबराहट उसका पीछा ही नहीं छोड़
रहे थे। उधर ऊपर के कमरों में उसे जाने की इजाजत नहीं थी।
सुहेल ने उसे बता रखा था ऊपर एटिक के कमरे में मकान मालकिन का
ऑफिस है जहाँ उसे आधी–आधी रात तक काम करना होता है। अब वह आ गई
है तो नीचे का काम और मकान–मालकिन
के जुड़वा बच्चों की देखभाल के साथ रसोई का काम वह सम्भाल ले।
लंदन कंबख्त बड़ी महँगी जगह हैं, पैसे के लिए बड़े–बड़े पापड़
बेलने पड़ते हैं, उसने कहा। काफी दिनों तक तो रिफत बौखलाई सी
चुपचाप डरी, सहमी–सी वही सब कुछ करती रही जो सुहेल उसे बताता
था। ऐसे ही समय गुज़रता रहा। अचानक एक दिन उसे एहसास हुआ कि उपर
के कमरों में जो गोरी रहती है वह सुहेल की बीवी है। ये बच्चे
जिनकी देख–भाल वह करती है वे सुहेल और उस गोरी के बच्चे हैं।
उसके तन–बदन में चीटियाँ सी रेंगने लगीं।
सुहेल की बीवी आराम–तलब है। घर
के काम उससे संभलते नहीं हैं। एक नौकरानी की जरूरत थी सो सुहेल
ने बड़ी आसानी से टेलीफोन पर निकाह का झांसा दे कर उसे
इंग्लैण्ड बुला लिया। उसे अपने माँ–बाप और रिश्तदारों पर
बेइंतहा गुस्सा आया। वह बिलावजह छली गई। कमीने सुहेल ने सबसे
झूठ बोला है। वह सिर पटक–पटक कर जार–जार रोती रही। फरेब . .
.फरेब, रिफत को मतली आने लगी। बड़ी देर तक वह हाथ पाँव पटकती
रही। उसके दिलो–दिमाग पर ऐसी चोटें लगी कि वह अपना मानसिक
संतुलन खो बैठी। एक दिन सुहेल को अकेले पा, उसने उसके बाहों पर
काट खाया फिर उसके छाती पर मुक्के मारती हुई, खुदा का वास्ता
देती उसने, उसे पुलिस के पास जाने की धमकी दी। सुहेल एकदम बौखला गया। उसने आव
देखा न ताव, जड़ों से उसके बाल खींचते हुए, जवाब में लात और
घूंसे से मारते–मारते जब थक गया तो उसके मुँह पर टेप लगा कर
उसे बाक्स रूम में बंद कर दिया। रिफत दीवार से सिर मारती हुई
बेहोश हो गई। इसी तरह आए दिन के मार–पीट, भुखमरी, शारीरिक और
मानसिक संत्रास से अधपगलाई वह धीरे–धीरे कमज़ोर होती, अपना
संतुलन और वजूद खोती रही।
फिर बदहवासी की हालत में, लाचार एक दिन वह खिड़की से कूद कर
सड़क पर आ गई। उसे नहीं पता था, वह कहाँ हैं? कौन है? कहाँ जा
रही हैं? रात अँधेरी, और तूफानी थी। रास्ता अन्जाना कहीं कोई
मंजिल नहीं थीं। वह सिर्फ एक झीनी नाइटी पहने, नंगे पाँव,
बारिश में भीगती, बेतहाशा भागती, मोटर वे ए ट्वेंटी पर पहुँची।
कब और कैसे पहुँची? उसे नहीं मालूम था।
उसी तूफानी अंधेरी रात में,
सड़क पर भागती किसी आकृति को देख कर मर्टन काऊंसिल के लॉरी
ड्राइवर बीमा बीस्माट ने अचानक तेज़ी से ब्रेक मारा और वह बेहोश
लड़की रिफत मौत से खेलती, लौरी के भारी पहियों के नीचे आते–आते
बची . . . ऐसा ही बताया था उसने।
मेरी आँखों के सामने, बीस वर्ष पूर्व लिखे रिपोर्ट की वे
भयंकर पंक्तियाँ विचित्र हो उठी जिसमें झबरा–सा, घुँघराले
जिंजर बालों वाला चार वर्षीय बालक, अपनी जन्मदायिनी को दर्द
भरे चीखों के साथ, लहु–लुहान, छटपटाते दम तोड़ते हुए देख रहा है
. . .पूछने पर वह अपना नाम तक न बता सका था . . .निर्दोष,
दहशतजदा आँसुओं के साथ आवाज भी खो चुका था . . .
वही बीमा आज एक दहशतजदा, रिफ्यूजी लड़की को आवाज़ दे रहा है
. . .सुरक्षा दे रहा था। बीमा ने केवल अपना नाम ही सार्थक नहीं
किया उसने समस्त संसार को मानवता का महान संदेश दिया है। मेरा
मन बीमा के प्रति सदाशयता और गर्व से भर उठा।
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