पल
घटने वाली घटनाओं के केन्द्र बिन्दु के बीच स्थित सुप्त राग
है। जिनमें हलचल होने से घटनाएँ क्रम बनाती हुई घटित होती
है।
तभी देखती हूँ। गेट के सामने
शशांक की गाड़ी रुकती है। वह गेट आहिस्ते से खोलता है। फिर
बहुत सावधानी से कार रिवर्स करता हुआ उसे गेट के अंदर लाता है।
और गैरेज के ठीक सामने खड़ा कर देता है। इंजिन बंद कर, वह
दरवाज़ा खोल कर बाहर निकलता है। पतलून की क्रीज और टाई की नॉट
ठीक करता है। पल भर ठहर कर एक ही दृष्टि में पूरी गाड़ी का
निरीक्षण कर देख लेता है कि गाड़ी ठीक वही खड़ी है जहाँ वह
खड़ी करना चाह रहा था तथा गाड़ी की सभी खिड़कियाँ और दरवाज़े
बन्द है।
पोर्च में आ कर वह दोनों
पैरों को पाँवदान पर रगड़ता है। एक प्रशंसात्मक दृष्टि खिले
हुए फूलों पर डालता हैं। हल्के से डोरबेल बजाता हुआ, रसोई में
काम करती किम की प्रतीक्षा करता है। किम दरवाज़ा खोल कर उसे
लिविंग रूम में बैठाती है।
मुझे याद आता है। आज से ठीक
पच्चीस साल पहले शशांक मुझे चेलसी आर्ट कॉलेज के सामने बस
स्टैन्ड पर मिला था। बीस-बाइस वर्ष का हँसमुख, हाजिरजवाब,
चुस्त-दुरुस्त सुदर्शन शशांक आत्म विश्वास से दीप्त, मन में
उत्साह और कुछ करने की उमंग लिए कुछ ही दिनों पहले लंदन आया
था। बात-चीत के दौरान उसने बताया -
"वह लंदन नौकरी की खोज में आया है ब्रिटिश सिविल सर्विस कमीशन
में भी उसने आवेदन पत्र दिया है।"
कह कर पल भर को वह इस तरह चुप
हुआ, मानो मन-ही-मन तर्क कर रहा हो कि परदेस में, वह भी किसी
अन्जान महिला को, पहली ही मुलाक़ात में इतना सब कुछ बता देना
ठीक भी है या नहीं? फिर एक निश्चय-सा उसकी उसकी आँखों में
उभरा।
तभी बस आ गई। हमलोग बस के
अपर-डेक में आकर बैठ गए।
बैठते ही मैंने पूछा, "क्यों,
क्या सिविल सर्विस से साक्षात्कार का आमंत्रण आया है?"
ब्रिस्बन कट मूछो के नीचे, उसके होठों पर एक खुशगवार
मुस्कुराहट खेल गई। क्षण भर बाद वह संतुलित स्वर में बोला -
"जी, आज ही तो वहाँ से साक्षात्कार का आमंत्रण पत्र आया है।
खूब अच्छी तैयारी करनी है न, इसीलिए तो पुस्तकालय जा रहा हूँ।
पर आपको कैसे पता चल गया?"
उसने प्रश्न भरी दृष्टि मेरी ओर डाली।
मैंने उसे बताया, मैं पेशे से
मनो-चिकित्सक हूँ। लोगों के अंदर होती हुई प्रतिक्रियाओं को
जानना और पढ़ना ही मेरा व्यवसाय है।
अचानक ही उसकी आँखों में, मेरे लिए एक विशेष आदर और स्नेह
झलका, जिसे उसने छुपाने का प्रयास नहीं किया।
थोड़ी देर में उसका स्टाप आ गया। उतरने से पहले उसने मेरा पता
और फोन नम्बर लेते हुए बड़ी आत्मीयता से कहा,
"दीदी इस साक्षात्कार में ही नहीं वरन इस विदेशी धरती पर सफल
जीवन-यापन करने के लिए ब्रिटिश समाज के अदब-कायदे, रीत-रिवाज
तथा मनोभावों के बारे में गहराई से जानना चाहता हूँ।"
प्रतिभाशाली, और तरक्कीपसंद
शशांक अपने आंतरिक एवं बाह्य व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के
लिए अक्सर मुझसे मशविरा लेता। अंग्रेज़ी शब्दों के उच्चारण,
बोलने के सही तरीके तथा भाषा को सुधारने एवं माँजने के लिए
उसने 'ओरियन्टल स्कूल ऑफ लैंगुएजेज़' का सहारा लिया। साथ ही वह
अपने अंग्रेज़ मित्रों के उच्चारण, हास्य और बातचीत के विषय को
ध्यान से सुनता और उनसे उन्ही के तर्ज़ पर उन्हीं के विषयों पर
साधिकार व सहज ढ़ंग से बातें करने का सफल प्रयास करता।
महीने का पहला रविवार उसने
मेरे नाम कर रखा था ठीक साढ़े दस बजे, हाथों में मेरी मनपसंद
'रेड वाइन' की बोतल या ' रेड कारनेशन' लिए दरवाज़े पर उपस्थित
होता। मुझे भी उस सुदर्शन युवक का घर आना अच्छा लगता। मेरे
गिने-चुने परिचितों में बस वही एक ऐसा व्यक्ति था जो सकारात्मक
सोच के साथ किसी भी विषय पर स्वस्थ ढंग से बहस कर सकता था।
हमारे बहस का विषय अक्सर 'इमिग्रेशन' और 'सेटलमेंट इन यू.के.'
हुआ करता था।
"दीदी हमलोग अंग्रेज़ों को
'रेसिस्ट' कह कर उनसे घृणा करते हैं। पर मेरे अनुभव में तो अभी
तक ऐसा कुछ भी नहीं आया। मेरे सभी अंग्रेज़ साथियों और
अधिकारियों का व्यवहार हम सबको साथ बहुत मृदुल है। बात-चीत,
तर्क-वितर्क सब हम आपस में करते हैं। मतभेद होने पर एक-दूसरे
का मज़ाक उड़ाते हुए उत्तेजित भी हो लेते हैं पर दूसरे दिन फिर
अच्छे दोस्त हो जाते हैं। कई बार रंग और नस्ल पर भी करारे
व्यंग्य और तानेबाजी हो जाती है पर ऐसा तो भारत में भी होता
है। हम लोग गुज्जू, बिहारी, बंगाली, और दक्षिणियों का भी तो
मज़ाक उड़ाते हैं।
यहाँ सड़क पर, आस-पास, बस
ट्रेन आदि कही भी मुझे कभी कोई ऐसी अलगाव की या हिकारत की
स्थिति नहीं मिली जिसको मैं नस्ली हूँ ऐसा जान कर बुरा महसूस
हो। अंग्रेज़ भी हमारी तरह साधारण इंसान है उनमें भी वही सब
प्रवृत्तियाँ हैं जो हममें हैं। ऑफिस में लंच के समय यदि मैं
बातों में रम गया तो मेरा बॉस मेरा जूठा बर्तन तक धो देता है।
कई बार मेरे मित्र मेरा बचा हुआ जूठा खा लेते हैं।"
मैं कहती, "भई शशांक तुम्हारा व्यक्तित्व ही ऐसा है कि लोग
तुम्हारे मुरीद हो जाते हैं।"
"नहीं दीदी, ऐसा मत कहिए, मैं तो इस समस्या के तह में जाना
चाहता हूँ, कि आखिर क्यों हमारे लोग अंग्रेज़ों के प्रति मन
में इतना कडुआहट घोले हैं। मेरा अब तक का जो अनुभव है वह मैं
आपके साथ बाँटना चाहता हूँ।"
कमरा 'सेन्ट्रल हीटेड' होने
की वजह से खूब गरम हो रहा है। बाहर बर्फ़ पड़ रही है। मैं
शशांक की बातें सुनती और गुनगुनाती हूँ। 'स्मोक्ड बेवैरियन चीज
फ्रेंच ब्रेड़' 'रेड वाइन' और उसकी बातें, सब कुछ बेहद रसीली
लगती है। मुझ पर हल्का-सा सरूर आ जाता है। और मैं अधमुदी पलकों
से उसके सुदर्शन व्यक्तित्व का प्रसंशात्मक रसासस्वादन करती
हूँ।
वह थोड़ा रुक कर, मुझे गौर से
देखता हैं फिर मुस्कारते हुए बात को आगे बढ़ाता है।
"दीदी यह मत समझना कि मैं अपने लोगों को नापसंद करता हूँ। आज
अपनी मेहनत से मैं एक ऐसी पोज़ीशन पर आ गया हूँ जहाँ से मैं
उनके लिए बहुत कुछ कर सकता हूँ। पर हमारे लोग तो एक स्तर से
ऊपर उठना ही नहीं चाहते हैं। जब भी हम आपस में मिलते हैं,
अंग्रेज़ ही हमारा मुद्दा होता है। अंग्रेज़ों को गालियाँ देते
हुए हम उनकी अजीबो-गरीब खामियाँ निकालते हैं। कभी-कभी तो लोग
ऐसी हास्यप्रद बाते करते हैं कि सिर पीटने को जी करता है। कहते
हैं कि अंग्रेज़ों को अंग्रेज़ी बोलनी नहीं आती। हर शब्द को
चबा-चबा कर बोलते हैं। अरे, भई उनकी भाषा है, जैसे चाहे बोले।
तुम उनकी भाषा बोल रहे हो तो उनकी तरह बोलो। वही मानदण्ड है।
नहीं, वह तो कहेंगे, इनकी आँखों में तो सूअर का बाल है। ये कभी
किसी के अपने नहीं हो सकते हैं। कभी-कभी तो मुझे लगता बरतानिया
में आए प्रवासी यहाँ सदा परदेसी ही बने रहना चाहते हैं, हर
चीज़ को रुपए में तोलते हैं। भला यहाँ वह सुखी कैसे रह पाएँगे?
तन यहाँ और मन वहाँ। बिहारी की परकीया नायिकाओं की तरह..."
मुझे उसकी उपमा हास्यप्रद
लगती है, 'बिहारी की परकीया नायिकाओं की तरह से' मेरी हँसी छूट
पड़ती है। वह कहता है, "दीदी आप मेरी बातों को गम्भीरता से
नहीं ले रही है।"
मैं कहती हूँ, "अरे नहीं मैं तुम्हारी बात को पूरी गंभीरता से
ले रही हूँ। बस तुम्हारी उपमा बेहद गुदगुदाने वाली लगी। अत:
मुझे हँसी आ गई। पर भई देखो सम्हल कर रहना, कही कोई आयातोला
खोमानी तुम्हारे सिर पर फतवा न लगा दे।"
वह एक ज़ोरदार ठहाका लगाता
हुआ कमीज़ के कॉलर में उँगली फिरा कर टाई की नॉट ठीक करता है।
फिर थोड़ा रुक कर वाईन का एक सिप लेता हुआ, सलामी का एक छोटा
टुकड़ा 'फ्रेंच-ब्रेड' के टुकड़े के साथ काँटे में फँसा कर
मुँह में रखता है फिर मेरी ओर देखते हुए स्मित हास्य के साथ
उसी बात को दूसरे ढंग से दोहराता है। |