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					 कैरियर 
					में आगे बढ़ने के लिये पीएचडी करना जरूरी है। इतना अच्छा अवसर 
					फिर नहीं मिलेगा। पिताजी आप ही कुछ कहिये न। हमेशा की तरह 
					श्यामली ने पिता से समर्थन माँगा। 
 न चाहते हुए भी पिताजी ने हामी भर दी। कुछ समय बाद माँ भी राजी 
					हो गई। आखिर जाने का दिन भी आ गया। हवाई अड्डे पर माँ श्यामली 
					गले लगकर फूट फूटकर रो पड़ी।
 
 तुम्हें अपनी कोख से जनम दिया है और हमेशा तुम्हारे भविष्य की 
					चिंता में कभी तुम्हें कभी तुम्हे आँख भर देख भी नहीं पाई, न 
					प्यार कर पाई। सोचा था तुम्हें डोली पर बैठाकर चैन की साँस 
					लूँगी पर यह तो न हो सका। ईश्वर तुम्हें सदा सुखी रखे। बेटी 
					मुझे गलत न समझना। माँ हूँ कभी तुम्हारा अहित नहीं सोचूँगी।
 
 श्यामली भी रोने लगी। बरसों की कड़वाहट एक पल में बह गई।
 
 एक नई उमंग व उत्साह के साथ वह अमरीका पहुँची। थोड़ी बहुत 
					घबराहट व चिंता थी जो तब समाप्त हुई जब उसने अपने नाम की तख्ती 
					एक सज्जन के गले में लटकी देखी। श्यामली उसके पास पहुँची व 
					अपना परिचय दिया। उत्तर में उसे पता चला कि वो श्री ऐडम स्मिथ 
					हैं जो उसके पीएच डी के गाइड होंगे। हँसते हुए उन्होंने कहा, 
					कि भारतीय विद्यार्थियों की आधी चिंता समाप्त हो जाती है जब 
					उन्हें लेने कोई हवाई अड्डे पहुँच जाता है। श्यामली ने पूछा,
					"और दूसरी आधी कब समाप्त होती है?"
 
 "कैंपस पहुँचकर बताऊँगा।"
 पूरे रास्ते ऐडम अमेरिका के बारे में और विश्वविद्यालय के बारे 
					में बताकर उसे आश्वस्त करते रहे।
 "यह है तुम्हारा छात्रावास एवं 
					तुम्हारा कमरा।" ऐडम ने श्यामली को 
					कमरा दिखाया।
 श्यामली को यह केवल एक कमरा नहीं बल्कि एक कमरे का घर लगा। 
					सारी आवश्यकताओं से युक्त।
 "अकेले कमरे में डरने की कोई बात 
					नहीं है।" ऐडम ने हँसते हुए कहा।
 "नहीं... 
					नहीं..." श्यामली थोड़ा झेंप गई।
 "तुमने पूछा था न कि बाकी आधी चिंता 
					कब समाप्त होती है?" वह है दरवाजा 
					खोलने से लेकर उपकरणों के प्रयोग की ट्रेनिंग।"
 श्यामली ने सोचा कि लगता है कि इन्हें भारत से आए 
					विद्यार्थियों के बारे में काफ़ी पता है।
 
 श्यामली को नई जीवन शैली में व्यवस्थित होने में लगभग एक महीना 
					लग गया। श्री स्मिथ ने पूरा सहयोग दिया। ग्रोसरी की खरीदारी से 
					लेकर कार चलाना सिखाने में बहुत मदद मिली उनसे।
 
 श्यामली शोधकार्य में जुट गई। ऐडम के निर्देशन में उसे काफी 
					शोधपत्र भी जीव विज्ञान के जर्नल्स में छपने लगे। अपने कार्य 
					की प्रगति से श्यामली भी बहुत संतुष्ट व खुश थी।
 
 कुछ समय पश्चात जीव विज्ञान के कुछ विद्यार्थियों ने नियाग्रा 
					जलप्रपात घूमने जाने का प्रोग्राम बनाया। श्री ऐडम भी साथ गए। 
					श्यामली की खुशी का ठिकाना न था। नियाग्रा के बारे में बहुत 
					कुछ पढ़ा व सुना था। अब देखने का अवसर मिल रहा था। विशालकाय 
					जलप्रपात को आँखों के आगे देखकर श्यामली रोमांचित हो उठी थी। 
					ऐडम उसे जल प्रपात से संबंधित तथ्य बता रहे थे। नियाग्रा 
					प्रवास के दौरान ऐडम से उसकी काफ़ी बातचीत हुई। जिससे पता चला 
					कि ऐडम दक्षिण भारत की यात्रा कर चुके हैं। भारतीय संस्कृति की 
					अच्छी जानकारी रखते हैं। अपने माता पिता तथा निजी जीवन के बारे 
					में उन्होंने श्यामली को बताया।
 
 दो वर्ष समाप्त होने को आ रहे थे। माता पिता के आग्रह एवं अपनी 
					भी उत्कट इच्छा होने के कारण श्यामली ने भारत जाने की सोची एवं 
					छुट्टी की अर्जी दे दी।
 
 "तुम भारत जाना चाहती हो?" ऐडम ने पूछा।
 "जी हाँ, दो वर्ष को गए हैं माँ पिताजी से मिलना चाहती हूँ।"
 "क्या मैं तुम्हारे साथ भारत चल सकता हूँ, "मैंने उत्तर भारत 
					नहीं देखा है। मैं घूम भी लूँगा और तुम्हारे माता पिता से मिल 
					भी लूँगा।"
 "चलिये मुझे बहुत अच्छा लगेगा।"
 
 श्यामली ने भारत यात्रा की तैयारी शुरू कर दी। माँ पिताजी को 
					अपने और ऐडम के आने की सूचना दे दी। अंततः वह दिन भी आगया जब 
					वे लोग भारत पहुँचे।
 
 माता पिता से गले लगकर श्यामली अपने आप को रोक नहीं पाई। दो 
					सालों में उनकी याद भी बहुत आई थी। कितनी बार अपने कमरे में 
					माँ पिताजी को याद कर के आँसू बहाए थे।
 
 श्यामली ने ऐडम का परिचय करवाया। ऐडम ने भारतीय शैली में 
					अभिवादन किया।
 माँ पिताजी के साथ ऐडम की खूब बातें होतीं। हँसी मज़ाक चलता 
					रहता। कुछ दिन बीत गए। पास पड़ोस वाले पूछने लगे कि यह विदेशी 
					कब तक रहेगा। माता पिता ने श्यामली से पूछा, पर श्यामली को इस 
					बारे में कुछ पता नहीं था। ऐडम से पूछें भी तो कैसे। उसने ऐसे 
					ही कह दिया कि बस एक दो दिनों में घूमने निकल जाएगा।
 
 कुछ दिनों बाद एक शाम श्यामली कहीं बाहर से लौटी। तो घर के 
					अंदर से हँसी ठहाकों की आवाज़ें आ रही थीं। माँ को इतना खुश तो 
					बरसों से नहीं देखा था। श्यामली के पूछने पर किसी ने ठीक ठीक 
					कुछ नहीं बताया। श्यामली अपने कमरे में चली गई।
 
 ऐडम उसके पीछे पीछे कमरे में आए और बोले, "श्यामली मैं तुमसे 
					कुछ कहना चाहता हूँ।"
 "कहिये।"
 "मुझे घुमाफिराकर कहना नहीं आता। भारतीय संस्कृति के अनुसार 
					मैंने तुम्हारे माता पिता से बात कर ली है। अब निर्णय तुम्हारे 
					हाथ में है।"
 "मैं कुछ समझी नहीं मेरे किसी भी निर्णय का आपसे क्या संबंध।"
 "यह निर्णय है शादी का। अब हम दोनो एक दूसरे को अच्छे से जानने 
					लगे हैं एवं मुझे विश्वास है कि हम दोनो एक अच्छे पति पत्नी बन 
					सकते है। यह रही सगाई की अँगूठी यदि तुम इस बात से सहमत न हो 
					तो इसे लौटा देना।" इतना कहकर ऐडम कमरे के बाहर चले गए।
 
 श्यामली ने इस स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी। एक तो उसने ऐडम 
					को इस दृष्टि के कभी देखा नहीं था पर अब उसे लगने लगा था कि वह 
					और ऐडम एक दूसरे के लिये सर्वाधिक उपयुक्त हैं। सगाई की अँगूठी 
					इस तरह उसके हाथों में आएगी यह बात कभी सोची भी नहीं थी। इस 
					उम्मीद में माँ ने आधा जीवन काट डाला एवं पिताजी ने कितने 
					लड़केवालों की चौखट पर नाक रगड़ डाली।
 
 अँगूठी पर आँसू की बूँद गिरते ही श्यामली वर्तमान में लौट आई। 
					उठकर आइने के सामने बैठ गई। आज तक जो आइना उसे बदसूरत कहकर 
					मुँह चिढ़ाता रहा, आज अच्छा लग रहा था। यंत्रवत उसने वह बक्सा 
					खोला जो कभी उसकी शादी के लिये तैयार किया जा रहा था। उसमें से 
					एक साड़ी निकालकर उसने पहन ली एवं दरवाजे की ओर बढ़ी।
 
 बाहर के कमरे से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। कमरे में पहुँची तो 
					देखा कि सब लोग उसी की प्रतीक्षा कर रहे थे।
 
 श्यामली को इस रूप में देखकर माँ पिताजी चौंक गए। जिस लड़की ने 
					कभी बनाव शृंगार नहीं किया उसे सजा सँवरा देखकर उन्होंने मन ही 
					मन आशीर्वाद दिया। श्यामली ने माता पिता की ओर देखा उनकी आँखों 
					में मौन स्वीकृति देखकर वह ऐडम की ओर बढ़ी और बोली, आप अपने 
					हाथों से यह अँगूठी मुझे पहना दीजिये।
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