कभी
कभी तो उसकी माँ भी गुस्सा आने पर यह बात याद दिलाने से नहीं
चूकती थी। केवल पिताजी हर समय उसके
समर्थन के लिये तैयार रहते थे। वे हमेशा कहते थे कि रंगरूप
अपनी जगह है जिसे बदला नहीं जा सकता। परंतु पढ़ना लिखना और
लायक बनना अपने हाथ में है। उनकी ये बातें श्यामली का मनोबल
बढ़ाती थीं। देखते ही देखते श्यामली ने जीव विज्ञान में बैचलर
की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर ली।
अभी से लड़का देखना शुरू कर देना चाहिये। रंग के कारण समय काफी
लग जाएगा। फिर हमारे पास इतना धन भी तो नहीं कि दहेज से यह
अवगुण ढँक दिया जाय। दूसरी की भी तो शादी करनी है। माँ की यह
बात कंठस्थ हो गई थी। पिताजी उसकी पढ़ाई पूरी हो जाने की बात
कह कर शादी की बात टाल जाते। परंतु प्रतिदिन के क्लेश से तंग
आकर उन्होंने श्यामली का बायोडेटा बना डाला।
यह क्या लिख दिया काम्प्लेक्शन डार्क अरे इसे पढ़कर तो कोई आगे
बात ही नहीं करेगा लिखिये फेयर
माँ के दबाव में पिताजी ने बायोडेटा बदल दिया। रिश्ते भी आने
लगे। फिर लड़के वालों मे श्यामली को देखने की बात की। श्यामली
एक ओर तो आशावान थी तो दूसरी ओर आशंकित भी। हर लड़की को इस
घड़ी से गुजरना होता है। सलवार कुर्ते से लेकर साड़ियाँ तक
चुनी जाने लगीं कि किस कपड़े में श्यामली का रंग खिला सा
दिखेगा। अंत में हल्के नीले रंग की एक साड़ी चुनी गई।
उस दिन कामवाली बाई को छुट्टी दे दी गई। क्योंकि यही लोग सबसे
अधिक बातें फैलाती हैं। छोटी बहन को उसकी सहेली के घर भेज दिया
गया था। कि कहीं श्यामली की जगह उसे न पसंद कर लिया जाय।
हाथों में चाय की ट्रे लेकर श्यामली ने कमरे में कदम रखा।
आँखें न उठाते हुए भी उसने यह महसूस किया कि सारी नज़रें उस पर
टिक गई हैं। ट्रे रखकर वह एक कोने में बैठ गई।
जाओ तुम अंदर ही बैठ जाओ। चंद मिनटों में ही लड़के की माँ ने
कड़े शब्दों में उससे कहा। श्यामली उठकर भीतर चली गई।
अरे वाह खूब झूठ बोला आपने। लड़की तो एकदम काली है। बायोडेटा
में फेयर लिखा था। यहाँ तो मैं रिश्ता बिलकुल नहीं कर सकती।
लड़के की माँ ने उठते हुए कहा।
श्यामली ने अंदर बैठे बैठे सारा वार्तालाप सुन लिया। उसका दिल
चाहा कि बाहर जाकर चिल्ला चिल्ला कर सबको भलाबुरा कहे पर अपमान
का घूँट पीकर रह गई।
श्यामली को घर में घुटन सी होने लगी थी। अधिक समय कालेज में
बिताती थी। घर लौटते ही अपने कमरे में बंद हो जाती थी। कभी
कभार शीशे के आगे भी खड़ी हो जाती थी। शायद ही ऐसी कोई क्रीम
या लेप बचा था जो नहीं आजमाया गया हो।
इस बीच कमोबेश सभी जगह बातें रंग पर आकर टूट जाती थीं। आरंभ
में तो माँ ने शादी का बक्सा भी तैयार करना शुरू कर दिया था।
कुछ साड़ियाँ खरीदने के बाद वह भी रोक दिया गया। श्यामली ने
किसी दूसरे शहर में नौकरी करने की सोची। परंतु माता पिता के
दबाव के कारण उसी कालेज में प्राध्यापिका बन गई।
समय के साथ माता पिता की चिंता भी बढ़ती गई। एक लड़की तो विवाह
की उम्र पार कर ही गई थी, कही दूसरी के विवाह में भी देर न हो
जाए। यह सोचकर छोटी की शादी धूमधाम से कर दी गई। श्यामली ने
बहन की शादी की तैयारी व मेहमान नवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ी।
पर सबकी आँखों में अपने प्रति अजीब सी बेचारगी देखकर उसे चिढ़
सी होने लगी।
एक दिन श्यामली की माँ कहीं से लौटकर आई और फूट फूटकर रोने
लगी। रोते रोते उन्होंने बताया कि पड़ोसन ने कहा कि बेटा नहीं
होने के कारण बुढ़ापे में सेवा के ख्याल से श्यामली की शादी
नहीं की जा रही है। कौन सी कसर बाकी रह गई, जात पात तक तो छोड़
दिया पर कहीं तय नहीं हुई तो क्या करें। अब तो तलाकशुदा या
विधुर ही रह गए हैं। अब आप इस तरह के लड़के भी देखना शुरू कर
दीजिये। माँ ने पिताजी से कहा।
अब श्यामली के लिये क्या ऐसा बोझा हो गई जरा धीरे बोलो, उस
बेचारी पर क्या बीत रही होगी। उसके बारे में भी तो सोचो पिताजी
ने धीमी आवाज में कहा।
श्यामली ने अपने कमरे से सारी बातें सुन ली थीं। उसका मन हो
रहा था कि जहर खा कर आत्महत्या कर ले। रात दिन इस स्थिति का
सामना करने की अब उसमें हिम्मत नहीं थी। इच्छा हो रही थी कि
कहीं ऐसी जगह चली जाए जहाँ सब अजनबी हों। कोई कुछ न पूछे, कोई
कुछ न कहे।
इधर श्यामली की तीसवीं वर्षगाँठ आते ही माँ पिताजी तलाकशुदा
एवं विधुर लड़के भी देखने लगे। जहाँ लड़केवाले तैयार होते वहाँ
उम्र का अधिक अंतर या बड़े बड़े बच्चों की बात सोचकर माता पिता
पैर खींच लेते। अब श्यामली भी पहलेवाली श्यामली नहीं रही थी।
उसका मुँह भी खुल गया था। कई रिश्ते वह स्वयं भी ठुकरा देती
थी।
एक दिन श्यामली जल्दी घर लौट आई। उसकी खुशी छिपाए नहीं छिप रही
थी। माता पिता को सामने बैठाकर उसने एक साँस में सब कुछ कह
डाला।
मुझे अमरीका के न्यूयार्क विश्वविद्यालय में जीव विज्ञान में
पीएचडी के लिये दाखिला मिल गया है। दो महीने में जाना होगा।
अमरीका के नामी विश्वविद्यालयों में से एक है मैं तो जरूर
जाऊँगी।
माँ पिताजी यह सुनकर सन्न रह गए। वर्तमान में आने में उन्हें
कुछ समय लगा।
इस शहर से बाहर तुम अकेली कहीँ नहीं गईं तो उतनी दूर कैसे
जाओगी। कोई जान न पहचान न अपना देश। मेरा तो जी काँप उठता है
देखकर, माँ ने कहा। |