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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से
उमेश अग्निहोत्री की कहानी— 'मैं विवाहित नहीं रहना चाहता'


गीता सोच रही थी कि क्रिस के साथ असली बातें तब होंगी जब वे दोनों अकेले होंगे। रात को जब बच्चे सो चुके होंगे और वे दोनों अपने बेडरूम में होंगे अपने बिस्तर पर एक-दूसरे की तरफ़ मुँह किए लेटे हुए, एक-दूसरे की आँखों में भीतर तक देखते हुए...
यों बातें तो उनमें होती आ रही थीं। जो बातें हो रही थीं वे भी काम की बातें थीं।
जब चारों बच्चों को साथ लेकर वह उसे एअर-पोर्ट लेने गई थी, दोनों ने बातें की थी, बल्कि एक-दूसरे को गले भी लगाया था। बातें उनमें तब भी हुई थीं जब वे फैमिली-वेन में एअर-पोर्ट से घर लौटे थे। वह कार चला रही थी, और कृष्ण उसकी बग़ल में पैसेंजर-सीट में बैठा था। सबसे पीछे बूस्टर सीटों पर बैठे इरमा और एडवर्ड उछल-उछल कर तरह-तरह के सवाल पूछते रहे थे, ''पापा, अब तो आप वॉर में नहीं जाओगे? पापा, क्या हमें कल टायेज़ स्टोर ले चलोगे? पापा...पापा... और जब उन्हें कुछ न सूझता तो वे स्कूल में मिले अपने ग्रेड्स के बारे में ही बताने लगते, या फिर आपस में ही लड़ने लगते। गीता और क्रिस उन्हें चुप कराते तो कार की बीचवाली सीटों पर बेबी-सीटों में बँधे जॉन और जिम किलकारने लगते, मानों कह रहे हों, भले ही हमें अभी बोलना नहीं आता, पर हम भी रायन-परिवार के ही सदस्य हैं।
असली बातों से गीता का तात्पर्य उन विषयों पर बातें करने से था जिनके बारे में निर्णय लेना वह टालती आ रही थी।
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