|  गीता 
                    को समझ नहीं आया कि कृष्ण का क्या कहना चाहता है। कृष्ण ने 
                    अपनी बात दूसरे शब्दों में दोहरायी, ''मैं अलग होना चाहता 
                    हूँ।'' ''मैं समझी नहीं।''
 ''मैं अलग रहूँगा।''
 गीता ने कृष्ण के चेहरे को गौर से देखा, ''यह जानने के लिए कि 
                    जो वह कह रहा है क्या वही उसका मतलब है। उसने कृष्ण का इतना 
                    भावशून्य-संवेदनाहीन-संज्ञाहीन चेहरा कभी देखा नहीं देखा था। 
                    गीता को लगा जैसे वह किसी बुत के पास खड़ी है। उसे समझ नहीं 
                    आया कि वह उससे क्या बात करे।
 वह मुड़ी। किचन के पास रुकी, फिर दो कदम चली, फिर रुक गई, घर 
                    के लिविंग रूम को एक नज़र देखा, जिसमें गराज की रोशनी छन कर आ 
                    रही थी। फिर चलने लगी। बेड रूम में पहुँचने के बाद उसे बिस्तर 
                    पर बैठते हुए मानों उसे यकायक होश आया। जॉन और जिम के कमरे की 
                    तरफ़ चल दी, उसके बाद इरमा और ऐडवर्ड के कमरे का दरवाज़ा 
                    थोड़ा-सा खोल कर भीतर देखा। वे सो रहे थे। उसे रुलाई आई। 
                    दरवाज़ा बंद किया और सोचने लगी कि उसने दरवाज़ा खोला क्यों? वह 
                    क्या देखना चाहती थी? वह घर की बैठक की तरफ़ गई, वहाँ सोफ़े पर 
                    लेट गई। गराज में से चीज़ों को हिलाने-डुलाने की खटर-पटर 
                    सुनायी दे रही थी।
 वह सोचने लगी कि उससे कब, 
                    कहाँ, क्या ग़लती हुई कि कृष्ण उससे अलग होना चाहता है? क्या 
                    कोई लड़की उसके जीवन में आ गई है? क्या कोई महिला-साथी? सेना ने ऑफऱ दिया था कि विवाहित दम्पति अपने 'स्पाउस' को साथ 
                    ला सकते हैं। उनके लिए अलग बैरेकों की व्यवस्था रहेगी। वह 
                    क्यों न गई उसके साथ? पर सवाल था पीछे इरमा और ऐडवर्ड का क्या 
                    होगा? उन्हें किस के पास छोड़ें? उनके नाना-नानी या दादा-दादी 
                    के पास? नहीं। बच्चों की परवरिश की ज़िम्मेदारी बच्चों के 
                    माँ-बाप की है। कृष्ण के साथ चली भी जाती, तो बच्चों से अलग वह 
                    भी कितने दिन बिता सकती थी? तभी तो तय किया था कि वह यहीं रहे, 
                    और पीछे बच्चों को देखभाल करे।
 कृष्ण बोला था, ''तीन साल की ही तो बात है पलक झपकते बीत 
                    जाएँगे। युद्ध में जाने के एवज़ में जो अतिरिक्त भत्ता मिलेगा 
                    उससे इतना जुड़ जाएगा कि आर्थिक स्थिति बेहतर हो जाएगी और फिर 
                    आराम से ज़िंदगी कटेगी।''
 उसके बाद जितने दिन कृष्ण 
                    लड़ाई के मैदान में रहा वह टेलीविज़न से चिपकी रही, समाचार 
                    पत्रों में युद्ध की खबरें पढ़ती रही यह जानने के लिए कि लड़ाई 
                    की प्रगति के क्या समाचार हैं। वह टेलीविज़न का कोई चैनल देखना 
                    न छोड़ती। वह इंटरनेट पर खबरें पढ़ती। कभी-कभी उसे लगता कि यह 
                    युद्ध महाभारत से कम नहीं है। महाभारत में यह तो स्पष्ट था कि 
                    युद्ध दो सेनाओं के बीच है। इसमें तो कोई भी बच्चा, या औरत या 
                    मर्द कपड़ों में बम छुपा कर आत्मघाती हमला कर सकता है। उसे 
                    क्रिस का वह चेहरा याद हो आया जो उसने तब देखा था जब क्रिस ने 
                    एड और इरमा को अरबी समझ कर अपनी राइफ़ल सँभालनी चाही थी। हर 
                    किसी पर आतंकवादी होने का शक होता है। लड़ाकू विमानों से बमबारी की 
                    जा रही है। टैंक शहर में चक्कर लगा रहे हैं। कई चैनल तबाही के 
                    दृश्य भी प्रसारित कर रहे है, जिनमें हताहत बच्चों और महिलाओं 
                    की तस्वीरें भी है और साथ है उनके रोते-बिलखते परिजन। यह सब 
                    देख उसका मन दहल जाता। जब कोई अमेरिकी सैनिक गलियों में गश्त करता दिखाया जाता तो वह 
                    उसका चेहरा पहचानने की कोशिश करती । शहीदों के नाम प्रसारित 
                    किये जाते तो उसका दिल धड़कता रहता। कहीं उनमें कृष्ण का नाम न 
                    हो। वह फोन की घंटी सुन कर अक्सर सहम जाती। फिर ख्याल आता कि 
                    अगर कोई बुरी खबर होगी तो पहले पेंटागॉन से फोन आयेगा। नहीं। 
                    वह तो बुरी खबर देने सुबह सुबह घर पर आते हैं। सुबह पांच बजे 
                    ही उसकी नींद खुल जाती। कभी –कभी वह बेडरूम की खिड़की के पास आ 
                    कर खड़ी हो जाती, और बाहर देखती कि कोई कार तो नहीं आ रही? 
                    उसके जहन में न चाहते हुए कैसे कैसे ख्याल आये। लेकिन यह... !  
                    वह रात–दिन कृष्ण की सुरक्षा के लिये परमात्मा से दुआ करती 
                    रही। आज वह सुरक्षित लौटा है तो...!
 गीता का मन हुआ कि अपना दुख 
                    किसी से बाँटे। माँ को फोन करे? माँ भारत गई हुई थीं। उस समय 
                    दोपहर के तीन-चार बजे होंगे भारत में। उसने टेलिफोन उठाया, 
                    चैनई का नम्बर मिलाया, पर इस से पहले कि उसे डायल-टोन सुनाई दी 
                    उसने लाइन काट दी। माँ को परेशान करने से क्या होगा। वह तो 
                    पहले ही क्रिस के साथ उसके विवाह के पक्ष में नहीं थीं। कहती 
                    थीं अमेरिकी है और काला है। क्या पता ..? वह बोली थी, मैं 
                    कौन-सी गोरी हूँ...। बाद में जब माँ ने देखा कि घऱ 
                    के काम-काज में कृष्ण गीता का हाथ बँटाता है, घर की सफाई करने 
                    में उसकी बराबर की मदद करता है, बरतन भी धो देता है, बच्चों को 
                    अपने हाथ से गीता की तरह ही खाना खिलाता है, तो अक्सर कहतीं, 
                    ''कृष्ण मेरे भारतीय दामादों से भी अच्छा ही हैं। लेकिन अब...।तभी गराज में कार स्टार्ट किए जाने की घर्र-घर्र सुनाई दी जो 
                    गराज का दरवाज़ा खुलने की गड़गड़ाहट में डूब गई। कहाँ जा रहा 
                    है कृष्ण? उसने सोचा।
 वह अपने बेडरूम की तरफ़ चल दी। जॉन और जिम के कमरे का दरवाज़ा 
                    खोल कर भीतर झाँका। फिर उनकी कॉट तक गई। उन्हें सोया देखती 
                    रही। सोचने लगी कृष्ण ने जब इस बार इन बच्चों को देखा था, 
                    चेहरे पर कोई विशेष उत्साह नहीं था। ऐसे देख रहा था मानों किसी 
                    और के बच्चे हों।
 उसे गर्भ तब ठहरा था जब कृष्ण थैक्स गिविंग पर आया था। वह तो 
                    सोच रही थी कि एक होगा।
 उसने कृष्ण को फोन पर बताया था,'' डॉक्टर ने बताया है जुड़वाँ 
                    हैं।''
 कृष्ण ने तब भी कोई उत्सुकता नहीं दिखाई थी। बल्कि उसकी चिंता 
                    दूसरी थी।
 बोला, ''हमें ठीक उस जगह तैनात किया जा रहा है जहा सीधी भिड़ंत 
                    है।''
 ''लेकिन तुम्हें कहा गया था कि कॉम्बेट के लिए तुम्हारी ज़रूरत 
                    नही होगी?''
 ''लेकिन जाना होगा।''
 '' क्यों?''
 ''मैं अपने कमांडर को 'न' नहीं कह सकता।''
 ''वहाँ हमारी ज़रूरत है। उन्हें मदद चाहिए।''
 '' तुम मना कर सकते हो।''
 '' तुम पर या इरमा और एड पर कोई खतरा हो, तो क्या मैं सोचूँगा 
                    कि मदद करूँ या नहीं?''
 सहसा उसे ख़याल आया कि इरमा 
                    और ऐड से मिलते हुए भी उसके चेहरे पर कोई खुशी नहीं थी। यह 
                    कैसे हो सकता है, बाप अपने बच्चों से साल भर बाद मिले और 
                    उन्हें देख कर मन में कोई उमंग न उठे? यह कैसी विरक्ति?क्या हो गया है उसे? वह सोचने लगी... जब वह 'थैंक्स गिविंग' के 
                    दिनों में आया था वह ऐसा नहीं था।
 नहीं। वह वैसा भी नहीं था जैसा वह असल में था। बहुत प्यार 
                    करनेवाला और बहुत ख़याल रखनेवाला इंसान था वह। मस्त। जब वेस्ट 
                    प्वाइंट एकडमी से लेफ़्टिनेंट बन कर लौटा था कितना रूपवान और 
                    सुडौल लग रहा था। कहता था, ''आर्मी की लाइफ़ आदमी को बंदा बना 
                    देती है।''
 अपने कमांडर का वाक्य अक्सर दोहराता था। ''मैं ही तुम्हारा बाप 
                    हूँ और माँ भी। अब कुछ सालों के लिए अपने घरों को भूल जाओ। जो 
                    मैं कहूँगा सवाल-जवाब किए बिना करो। नहीं करोगे तो कोर्ट 
                    मार्शल के लिए तैयार रहो।''
 वह अपनी यूनिट के सैनिकों से भी कहता था, ''जीवन में अनुशासन 
                    बड़ी चीज़ है। तुम्हारी पढ़ाई-लिखाई की ज़िम्मेदारी फ़ौज की 
                    है। तुम फौज में अनुशासन से जीना सीखते हो।''
 गीता सोचने लगी क्या हो गया 
                    है कृष्ण को? यह कहने से पहले कि वह अलग होना चाहता है, उसने 
                    बच्चों के संबंध में भी नहीं सोचा। वह बच्चों को क्या बताएगी? 
                    किस तरह बताएगी कि जिस बाप की इंतज़ार वह तीन साल तक करते रहे 
                    वह उन्हें छोड़ना चाहता है? उसने वकालत की पढ़ाई की थी। कानून 
                    की भाषा में बात करना सीख गई थी, लेकिन वह उसका प्रयोग यहाँ 
                    नहीं करेगी। वह हार जाएगी, प्यार पाने के लिए गिड़गिड़ाएगी 
                    नहीं। सुबह का उजाला हो रहा था। 
                    गराज का दरवाज़ा खुलने और बंद होने की आवाज़ सुनायी दी। कृष्ण 
                    अंदर आया। आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया। गीता जॉन और जिम की 
                    दूध की बोतलें तैयार कर रही थी। उसने इरमा और ऐड को पुकारा, 
                    ''उठो। जा कर दाँत साफ़ करो। स्कूल जाने का वक्त हो गया है।''कृष्ण बोला, ''मैं बच्चों की परवरिश का खर्चा दूँगा। तुम्हें 
                    उसकी चिंता नहीं करनी होगी। एक 'नैनी' रख लो। तुम इसी घर में 
                    रहती चली जा सकती हो। नई कार भी ले लो।''
 वह बोलते-बोलते रुक गया। गीता ने उसकी तरफ़ देखा।
 वह रुकते-रुकते बोला, ''मैं अब वह आदमी नहीं हूँ जो मैं था। 
                    मेरे अंदर का आदमी मर चुका है। मेरे में अब वह फीलिंग्स नहीं 
                    हैं जो कभी थीं। मैं प्यार करना भूल चुका हूँ।''
 गीता ने उसकी तरफ़ देखा कुछ इस तरह कि क्या मतलब?
 ''मुझ से यह मत पूछो कि क्यों?'' उसकी आवाज़ में रूखापन था।
 गीता उसको देखती रही। फिर चिल्ला कर पूछा, ''क्यों?'' क्रिस 
                    चुप रहा, तो वह बोली, ''तुम्हें बताना ही होगा।''
 ''मेरे अंदर का इंसान मर चुका है।'' फिर उसने अटकते-अटकते कहा, 
                    ''डिटैच हो कर व्यक्ति किसी को मार सकता है, रेप भी कर सकता 
                    है, पर प्यार नहीं कर सकता।''
 गीता ने आँखें उसकी तरफ़ से हटा लीं।
 वह चला गया। शायद बेडरूम की तरफ़। उसके हाथ में पुराना-सा बैग 
                    था।
 जिसे मारने का पाठ रटा दिया गया हो, चाहे वह मैं हूँ या मेरा 
                    दुश्मन, क्या वह किसी से प्यार कर सकता है?
 गीता के पास इसका उत्तर न था। वह सोचने लगी, तो जो उसने पिछली 
                    बार किया था, क्या वह प्यार था?
 नहीं... वह बलात्कार-जैसा था कुछ। जैसे रेप...। हवस...भूख...। 
                    जिसको प्यार करना आता है वह किसी को मार नहीं सकता।
 उसे कृष्ण पर रहम-सा आया। 
                    उसने सोचा कि वह क्रिस को किसी मनोचिकित्सक के पास जाने की 
                    सलाह देगी। फिर ख़याल आया कि मारना तो सिखाया जा सकता है, 
                    प्यार करना नहीं। वह जॉन और जिम के कमरे मे गई। उनके मुँह में दूध की बोतले 
                    लगाईं। मन ही मन बोली, मेरे पास प्यारे-प्यारे यह बच्चे तो 
                    हैं। उसने उन्हें बहुत प्यार से देखा। मन भारी हो आया। रोने को 
                    मन हुआ।
 |