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सखाराम को लगा अनिल भाई पर अभी उपयुक्त प्रभाव नहीं पड़ा। राजदाराना अंदाज़ में वह उनके कुछ और क़रीब खिसक आया- 'चलिए यह किस्सा छोड़िए यह तो अंदाज़ा लगाइए कि मंत्री जी और पार्टी की आज की पब्लिसिटी का सेहरा किसके सिर बँधेगा?' ये बातें शंकर साफ़-साफ़ तो नहीं सुन पा रहा था लेकिन सखाराम की अनिल भाई के नज़दीक उपस्थिति से उसे इतना अंदाज़ ज़रूर लग गया था कि बातें उनके ही बारे में होंगी।

'हूँ' अनिल भाई की आवाज़ में पड़ते बल और फिर तेज़ कदमों से उनका मंच की तरफ़ बढ़ना। ये किसी अनिष्ट के संकेत थे। वह आशंकित हो उठा। किसी बात के अंदेशे के एहसास के साथ वह भी मंच की तरफ़ लौटा। उसने पाया अनिल भाई ने नेताजी के कानों में कुछ कहा। नेता जी ने भाषण रोककर उनकी बात सुनी। उसके बाद अचानक अगले ही दो-तीन वाक्यों में ही उन्होंने अपना भाषण समेट दिया।

इधर धन्यवाद कहते हुए वे बैठे उधर अनिल भाई ने तुरंत माइक थाम कर कार्यक्रम की लगभग समाप्ति की घोषणा कर डाली। उसने उनके सामने जाकर कुछ कहने की कोशिश की तो उसे लगभग झिड़कते हुए कह उठे- 'हमेशा बीच में मत घुसा करो शंकर। नेताजी को एक जगह और जाना है। अब समय नहीं है हाँ, सफ़ाई सप्ताह की शुरुआत का कार्यक्रम कहाँ रखा है। चलो वहीं चलो।'

गिरे मन से वह हट गया। समझ गया सखाराम ने बाज़ी मार ली है। इस कार्यक्रम की तो अब आत्मा ही नहीं रही।

मंच से घोषणा हुई- 'मंत्री जी को एक और कार्यक्रम में शामिल होना है इसलिए सभा यहीं समाप्त की जाती है।. . .' साफ़ था कि कार्यक्रम संचालन के सूत्र शंकर के हाथों से छिन गए थे और अब वहाँ उसकी उपस्थिति एकदम बेमतलब और फालतू थी। उसने अपनी आँखों के सामने बस्ती के अघोषित नेता और पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में अपनी छवि के सपने को टूटते बिखरते देखा। वह भी अपने ही अनिल भाई के हाथों। फिर भी उसने एक आख़िरी कोशिश की। सफ़ाई अभियान की शुरुआत करने के लिए मंत्री जी को आमंत्रित करने के लिए उन तक पहुँचने का प्रयास करते समय अनिल भाई ने उसे लगभग झिड़क कर परे कर दिया।
- 'क्या शंकर। बीच-बीच में टाँग अड़ाते रहते हो। हम लाए हैं न मंत्री जी को तुम्हारी बस्ती में तो हमें ही संचालित करने दो।'
शंकर इतना नासमझ नहीं था कि अभी-अभी सुनी गई बातचीत से अनिल भाई के इस रुख को जोड़ न पाता।

इस वक़्त मंत्री जी मंच की साढ़ियाँ उतरकर नुक्कड़ की तरफ़ बढ़ रहे थे जहाँ बाज़ार से ख़रीदी गई नई-नई झाडुएँ और टोकरियाँ स्वच्छता अभियान की शुरुआत की बाट जोह रही थीं। उसने सोचा स्वच्छता अभियान की औपचारिक शुरुआत के तुरंत बाद मंत्री जी चल देंगे और उसके मंसूबों पर तो पानी ही फिर जाएगा।

नेता जी कुछ तो कह जाएँ वर्कर के नाते उसके पक्ष में, पक्की कोलतार वाली सड़क न सही, मुरम वाली की तो घोषणा कर जाएँ। है ही कितना. . .बस एकाध फर्लांग का टुकड़ा ही तो है। उसने बस्ती वालों के सामने बड़ी शेखी बघारी थी और उन पर बड़ा रौब गाँठा था. . .।

मंच से लगभग कूद कर वह उनकी बगल में जा पहुँचा- 'साब मेरे लिए क्या हुकुम है?'
उन्होंने नाराज़ी से उसकी तरफ़ देखा।
- 'क्या मतलब?'
- 'साहेब जी. . .वो पक्के पहुँच मार्ग के बारे में?'
- 'हुँह!' नुक्कड़ की तरफ़ बढ़ते हुए उन्होंने एक समझ में न आने वाला हुंकार भरा। उसने कहना जारी रखा- 'सर जी! इन लोगों के भरोसे के लिए. . .मेरे हक में कुछ. . .आशीर्वाद।' उसने अटकते-अटकते कहा। ताईद के लिए उसने अनिल भाई की तरफ़ देखा किंतु पाया कि वे मनसा वाचा कर्मणा वहाँ नहीं थे। अब यह कार्यक्रम पूरी तरह उनका था और उसका राजनैतिक लाभ उन्हें ही मिले, इसकी फिक्र इस क्षण उनका सर्वोपरि लक्ष्य था। उसकी बात पर मंत्री जी पल भर के लिए रुक गए और उसे ग़ौर से ऊपर से नीचे तक देखा। लगा. . .अभी-अभी गुस्से में फट पड़ेंगे लेकिन शायद चारों तरफ़ इकट्ठे मजमे पर ग़ौर कर अपनी संयत छवि को सप्रयास संभालते हुए ज़रा-सा मुसकुराकर उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोले- 'देखो शंकर...इस बार तो दिक्कत है। हाँ, तुम प्रयास करते रहो...हम ख़याल रखेंगे। जानते तो हो तुम लोगों के लिए तो हम और हमारी पार्टी प्रतिबद्ध है। क्यों अनिल भाई?...' अनिल भाई ने नेता जी से अपनी स्थापित निकटता में और भी वृद्धि की आशा से चारों तरफ़ देखा और ज़ोर-ज़ोर से बोले- 'नेताजी आपने तो आपके जीवन का मिशन ही इन लोगों का कल्याण तय कर रखा है। इसमें भला किसे शक हो सकता है... क्यों भाइयों?' उन्होंने भीड़ पर एक नज़र फेंकी। उत्साह में भीड़ मशीनी तौर पर चिल्लाई। मंत्री जी ज़िंदाबाद! मंत्री जी की जय!

मंत्री जी ने प्रसन्नता से अनिल भाई की तरफ़ देखा और झटके से शंकर के कंधे पर से अपना हाथ हटाया। दिल कर रहा था कि कहीं हाथ धो लें'... पर इसकी गुंजाइश और मौका न देख उन्होंने आगे बढ़कर झाडू-टोकरी उठा ली और नुक्कड़ पर इकट्ठा किए गए कचरे के ढेर में से टोकरी में कचरा भरने लगा। अनिल भाई ने भी एक झाडू हाथ में ले ली और कैमरे वालों को इशारा किया। फ्लैश की जलती-बुझती चमक में हाथ में झाडू-टोकरी लिए, कैमरे की तरफ़ मुस्कान फेंकती मुद्रा में मंत्री जी के फ़ोटो पर फोटो उतरे और शंकर से ट्रेनिंग पाए बस्ती के छोकरों की ब्रिगेड ने मंत्री जी की जयकार से आसमान गुँजा दिया।

बहरहाल फ़ोटो खिंचने के ठीक बाद मंत्री जी दलबल सहित कारों में सवार हुए और रिकार्ड पर अटकी हुई सूई से बार-बार बजने वाली गीत पंक्ति की तरह दुहराई जाती जयकार के शोर के बीच रवाना हो गए।

शंकर ने पाया कि इस आपाधापी में वह बहुत पीछे छूट गया था। अचानक पता नहीं कौन-कौन लोग उसे ठेलते हुए आगे बढ़ गए थे और वह मंच स्थल के पास ही नुची-खुची काग़ज़ की झंडियों के बीच एक ग़ैर-ज़रूरी चीज़ की तरह खड़ा रह गया था। वहीं कहीं लावारिस-सा पड़ा था सुराजी कॉलोनी का वह सपना जिसे उसने मुकम्मिल करना चाहा था।

आज के इस कार्यक्रम के चलते उसकी जो छवि मोहल्ले वालों की नज़रों में थोड़ी उजली हो गई थी वह जैसे फिर माटी में मिल कर मैली हो गई थी। अभी कुछ देर पहले तक उसके प्रति प्रशंसा से भरी उनकी नज़रों में अब फिर लानत थी। जैसे हर कोई कह रहा हो अरे हमने तो पहिले ही कहा था यह लड़का बिगड़ चुका है और किसी काम धाम का नहीं।

उसने महसूस किया कि इस वक़्त उसके भीतर अपनी असफलता की हताशा की बजाए अनिल भाई और उनकी पार्टी के लिए हद दर्ज़े की नफ़रत का जुनून था जो उसे एक अलग-सी अंदरूनी ताक़त दे रहा था। कहने को ये उस राजनैतिक पार्टी के लोग थे जिसके चुनाव घोषणा पत्र में पहिला ही मुद्दा था- हर किस्म के शोषण के ख़िलाफ़ कारगर लड़ाई! कितना झूठ! थू! उसने एक तरफ़ थूका और दृढ़ कदमों से उस तरफ़ बढ़ा जिधर भिनक रहे कूड़े में से बमुश्किल एक फावड़ा कूड़ा मंत्री जी ने ज़रा-सा इधर-उधर खिसका कर सफ़ाई अभियान की शुरुआत की थी जिसके बारे में अगले दिन के समाचार पत्रों में कसीदे काढ़े जाने लगे थे।

कुछ देर तक वह कुछ सोचता रहा। फिर कुछ पलों बाद ही मानो एक जुनून में दोपहर की तपती धूप के बावजूद पूरी ताक़त के साथ वह कचरे के ढेर की सफ़ाई में जुटा हुआ था। मंत्री जी और उनके लगुओं-अगुओं को विदा कर लौटते हुए मोहल्ले वाले उसके आस-पास इकट्ठा होने लगे। फिर स्वतंत्रता सेनानी सुराजी ने आगे बढ़कर एक टोकरी उठाई और देखते ही देखते तमाशा देखकर ताली बजाने वाले हाथ करतब दिखाने वाले कामकाजी हाथ बन गए।

सुराजी कॉलोनी के स्वच्छता अभियान की वास्तविक शुरुआत हो चुकी थी।

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16 अक्तूबर 2007

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