पंडित गंगाराम शास्त्री कोई साधारण
ज्योतिषाचार्य नहीं थे। आसपास के पच्चीस गाँवों में उनके नाम की
तूती बोलती थी। शास्त्री ने जो कह दिया, सो कह दिया। वह हो कर
रहेगा। न थोड़ा इधर न थोड़ा उधर। लोगों का भूत, भविष्य और
वर्तमान जैसे शास्त्री जी के शास्त्र में बंद हो। शास्त्री जी
जिस गाँव से निकल जाएँ, लोग झुक-झुक कर उनके पाँव छूते।
आशीर्वाद लेते। गाँवों का कोई भी धार्मिक कार्यक्रम बिना
शास्त्री जी के संपन्न न होता। जिस घर में शास्त्री जी का
पदार्पण हो जाए, उस घर का सौभाग्य। शास्त्री जी की सेवा-जतन
में कोई कमी न आने दी जाती।
यों आसपास
के सारे गाँव ग़रीब किसानों और भूमिहारों से आबाद थे। शास्त्री
जी को उनसे कोई बड़ा आर्थिक लाभ न था। शास्त्री जी ने भी आशा
नहीं की। बस उनके और शास्त्र के प्रति गाँववालों में जो
श्रद्धा थी, उसने उन्हें मोहित कर रखा था। वे प्यार और सम्मान
के भूखे थे। वे मुफ़्त में भी ग़रीब भूमिहारों का भाग्य बतला
देते। बच्चों की जन्मकुंडली बना देते। धार्मिक पर्वों में
पूजा-अर्चना कर देते। कथा बाँच देते। प्रवचन कर देते। उन्हें
छोटी-मोटी बीमारी की पहचान और दवा की जानकारी थी। अपने पास से
मुफ़्त दवा भी देते या लिख देते।
लोग उनके कृतज्ञ होते। अपना सिर उनके कदमों
में रख देते। शास्त्री जी के हृदय में सुख की एक ठंडी सिहरन
दौड़ जाती। वे आँखें बंद कर लेते। आशीर्वाद देते और कुछ मिला न
मिला, वहाँ से चल देते। |