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शास्त्री जी के परिवार को और ज़्यादा कुछ की दरकार भी न थी। परिवार में वह और उनका एक मात्र पुत्र था, तेरह साल का। पत्नी पाँच साल पहले स्वर्ग सिधार गई थी। उनका मन सांसारिकता से उखड़-सा गया था। लड़का चार-पाँच सालों में अपने पाँव पर खड़ा हो जाए, शास्त्र बाँचने लग जाए, ब्याह-शादी हो जाए तो वे एकदम चिंतामुक्त होकर तीर्थाटन को जाने का मन बना चुके थे। मगर अभी देर थी। काम तो करना ही था। काम चल भी रहा था।

हरेक गाँव में एक-दो संपन्न किसान थे ही। उनके यहाँ के सामाजिक-धार्मिक पर्वों पर शास्त्री जी को इतना कुछ मिल जाता था कि खाने-पीने और पहनने की साल भर कोई कमी न रहती। मगर इन्हीं संपन्न किसानों के घरों की नई पीढ़ी के बच्चे, जो शहरों में पढ़ा करते थे, कभी-कभी इनसे ऐसी उल-जुलूल बातें करते थे कि मन खट्टा हो जाता था।

एक दिन एक लड़के ने कहा, ''पंडित जी, अमेरिकी सरकार आतंकवादी लादेन को बड़ी बेसब्री से ढूँढ रही है। आप शास्त्र देखकर उन्हें बता दो कि लादेन कहाँ छिपा है, तो आपको लाखों डॉलर इनाम में मिलेंगे।

दूसरे लड़के ने कहा, ''महाराज, आप तो अंतर्यामी हैं। आपको पता है कि पुष्पक विमान कैसे उड़ता था। लादेन का पता बताने से मिलने वाले लाखों डॉलर का इस्तेमाल आप पुष्पक विमान बनाने में करें। पूरा गाँव उस पर सवार होकर उड़ेगा। दुनिया देखती रह जाएगी। उस पर बड़े अक्षरों में लिखा जाएगा- पुष्पक विमान, द्वारा पंडित गंगाराम शास्त्री, भरमपुर वाले द्वारा निर्मित।

इस नई पीढ़ी में शास्त्रों के प्रति आस्था में कुछ कमी थी। इस कमी ने भविष्य के प्रति उनकी चिंता बढ़ा दी थी। मगर जय हो वर्तमान केंद्रीय सरकार की। उसने विश्वविद्यालयों और स्कूलों के पाठ्यक्रम में शास्त्रोचित बदलाव और ज्योतिष की शिक्षा का प्रस्ताव रखा है। अख़बार में समाचार पढ़कर उनके चित्त को भारी राहत मिली। भविष्य के प्रति चिंता जो धीरे-धीरे घर कर गई थी, मिटने लगी।

सन २००२ का फरवरी महीना। १५ फरवरी से १० मार्च तक विवाह, गृहारंभ और उपनयन मुहूर्त। एक दिन की फ़ुर्सत नहीं। चौबीस दिनों में अट्ठारह परिवारों के घर शास्त्री जी का बुलावा है। किसी-किसी घर में एक से अधिक दिन भी लगेगा। इधर लड़का आठवीं बोर्ड की परीक्षा देगा। पढ़ाई की तैयारी कर रहा है। शास्त्री जी की इच्छा है लड़का अच्छे अंकों से पास हो। हाई स्कूल के लिए शहर में दाखिला लेना चाहता है। लड़के की माँग है कि उसके लिए लूना ले ली जाए। मगर उन्होंने नई साइकिल का ही आश्वासन दिया है। उन्हें डर है लड़का शहर में लूना का बेजा इस्तेमाल करेगा। कहीं कोई दुर्घटना का शिकार न हो जाए। लड़का नाराज है। शास्त्री जी ने कहा है, इस माह और अगले माह के कार्यक्रम जरा निपट जाएँ, फिर सोचेंगे। तुम अपनी पढ़ाई करो ताकि अच्छे अंक मिलें और शहर में दाख़िले में सहूलियत हो। लड़का फिर भी खुश नहीं है।
''मैं भी साथ चलूँगा, पिता जी।''
''साथ चलोगे? वहाँ किसके-किसके घर रुकना पड़ेगा। पता नहीं कैसी व्यवस्था हो। तरह-तरह के लोग मिलते-जुलते रहेंगे। तुम्हारी पढ़ाई कैसे हो पाएगी? तुम यहीं घर में रहो। खाना तो तुम अपने लिए बना ही लेते हो। बिसाहू राउत तुम्हारी मदद के लिए है ही। कोई और जरूरत पड़े, उससे कह देना। मैं बारह मार्च तक लौट आऊँगा।

शास्त्री जी ने अपने शास्त्र और जरूरी सामानों की छोटी-सी गठरी उठाई और चल दिए, पैदल। उन्होंने अब तक साइकिल चलाना भी नहीं सीखा। पैदल से स्वास्थ्य ठीक बना रहता। फिर गाँव से दूसरे गाँव पगडंडियाँ अधिक। बरसात में और फजीहत। सवारी से तो पैदल ही उत्तम है। लोग रास्ता चलते मिलते हैं। पाँव छूते हैं। हालचाल पूछते हैं। सवारी से बार-बार उतरना पड़ेगा। भगवान ने मजबूत पाँव और अच्छा स्वास्थ्य दिया है। इनका इस्तेमाल करना ही चाहिए। इस्तेमाल से ये घटते तो हैं नहीं।

रामगोपाल शास्त्री, यही नाम है शास्त्री जी के बेटे का। रामगोपाल पढ़ाई-लिखाई में मध्यम दर्ज़े का विद्यार्थी है। बाल-सुलभ चंचलता उसमें भरपूर है। लूना की ख़रीदी का पक्का आश्वासन न मिलने से उसका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है। क्या पता पिता जी न भी लें। बिसाहू को चकमा देकर वह अकसर दोपहर में घर से निकल जाता है। उसे दोपहर में नींद नहीं आती। बिसाहू राउत घोड़े बेचकर सोता है। रामगोपाल की ख़बर नहीं रह पाती। गाँव के लफूट बच्चों के साथ रामगोपाल की अच्छी जमती है। कभी गंगा इमली तो कभी छोटे कच्चे आम की फिराक में वह भरी दोपहरी फिरता रहता है। गाँव के सूखते डबरों का कीचड़-पानी मथकर मछलियाँ पकड़ने लगता है। मछलियाँ वह भूले से भी घर नहीं लाता। अपने दोस्तों में बाँट देता है। गर्मी इस साल मध्य फरवरी से ही तेज हो गई है। लगता है मई-जून में आग-सी बरसने लग जाएगी।

शास्त्री जी की अनुपस्थिति में मिलने आनेवालों के पते, नाम और संदेश बिसाहू राउत याद रखता है। शास्त्री जी के लौटने पर वह सब मौखिक बतला दिया करता है। बिसाहू राउत शास्त्री जी का भक्त और अवैतनिक नौकर है। अपने घरेलू कामकाज से छुट्टी पाकर वह शास्त्री जी के घर की परछी में हमेशा डेरा डाले बैठा रहता है। शास्त्री जी के घर से बाहर होने पर तो वह अपना कामकाज भी छोड़ देता है। आठों पहर इस घर की देखभाल, साफ़ सफ़ाई, पानी आदि की व्यवस्था तथा रामगोपाल के संरक्षण का कार्य अपने ऊपर ले लेता है। बिसाहू आज्ञा पाकर भोजन भी तैयार कर सकता है, किंतु शास्त्री जी घर पर अपना भोजन आप ही बनाया करते हैं। बेटे को भी भोजन बनाना सिखा रखा है। हाँ, भोजन जब भी बनता है, उसमें बिसाहू का भी हिस्सा होता है। पत्नी के स्वर्गवास हो जाने पर शास्त्री जी उसे बिसाहू को दे देते हैं। कभी-कभी रुपयों से भी बिसाहू की मदद कर देते हैं। मगर ये सारी मदद अनियमित है।

फरवरी की तेईस तारीख। शास्त्री जी को गृहग्राम भरमपुर से निकले एक सप्ताह हो चुका है। इस बीच तीन गाँवों से चार लोग शास्त्री जी से मिलने आ चुके हैं। आज ही एक किसान अपने बीमार बच्चे को तीन मील से बैलगाड़ी पर बिठाकर शास्त्री जी से शुभाशीष लेने आया है। मगर शास्त्री जी हैं नहीं। सुबह दस बजे का समय है। बिसाहू राउत भी नहीं है। रामगोपाल ने उसे शक्कर लाने गाँव के ही किराना दुकान भेजा है। रामगोपाल घर पर अकेला है। पुस्तक पढ़ने और याद करने की कोशिश कर रहा है। मन आज भी नहीं लग रहा है। जाने किसने बिसाहू राउत को बता दिया कि दोपहर को जब तुम सोए रहते हो छोटे महाराज घर से बाहर निकलकर यहाँ वहाँ फिरते रहते हैं। बिसाहू ने रामगोपाल की शिकायत शास्त्री जी से करने की धमकी दी है। रामगोपाल नाराज है।

''पायलागी, छोटे महाराज।'' किसान ने बैलगाड़ी से उतरते हुए रामगोपाल को सामने देखकर कहा।
''चिरायु भव! पिता जी तो नहीं हैं।'' घर से बाहर बैलगाड़ी के करीब पहुँचकर रामगोपाल ने कहा। सुनकर किसान दुखी हो गया।
''कब तक आएँगे?''
''पंद्रह-बीस दिन बाद। कोई जरूरी काम है?''
''काम. . .? हाँ, शास्त्री जी से बच्चे के लिए आशीर्वाद लेना था। आठ साल का लड़का है मेरा, किशुन। साथ है बैलगाड़ी में। उसका बुखार उतरता नहीं है। दो हफ़्ते हो गए हैं। शास्त्री जी महाराज उसे जरा स्पर्श कर देते तो अच्छा होता। शायद शास्त्री जी की कृपा से ही चंगा हो जाए। पढ़ने में किशुन बड़ा तेज है। पर साल कक्षा में पहला आया था। इस साल परीक्षा में बैठ पाएगा कि नहीं, मालूम नहीं। महाराज होते तो इसका भविष्य भी जान लेता।

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