''और सर, मिनिस्टर साब का दौरा कैसा रहा?'' कश्यप ने मंजे हुए
डिप्लोमेट की तरह मतलब की बात शुरू की।
''हाँ, उनकी साइट दिखा दी है, नये प्लांट की पंप का उद्घाटन
भी. . .''
''इस नये प्लांट की केपेसिटी दो सौ मेगावाट है न. . .इस बिजली
घर के बनने से काफ़ी पावर-शॉर्टेज दूर हो जाएगी।''
''देखो, क्या बनता है वहाँ, बिजलीघर या कुछ और? एनी हाउ, लैंड
तो अक्वायर करनी ही है। आस्टिज को कहीं और ज़मीन दे रहे हैं,
उन्हें नौकरी भी देंगे, लैंड-सेटलमेंट में देर क्यों लग रही
है?'' उन्होंने अफसराना लहजे में कहा!
''वैसे लैंड-सेटलमेंट के लिए मैंने एक डिप्टी कलेक्टर को
स्पेशली डिप्यूट किया है, आई विल माई सेल्फ लुक इन टू द मैटर.
. .''
''प्लीज डू दैट, मिनिस्टर साब और ऊपर वालों को उस ज़मीन के
खाली होने में ख़ास रुचि है। यह मत भूलना. . .''
''फिर जितनी जल्दी पॉवर-हाउस बनेगा उतना अच्छा. . .''
''वी डोंट नो. . .'' वे मुँह फुलाकर बोले थे।
''आप अगली बार कब आ रहे हैं?'' मृदुला ने
मुसकुराकर पूछा।
''जल्दी ही. . .आकर्षण के और कारण भी है यहाँ. . .प्लांट तो है
ही, आप भी हैं और आपकी यह साहित्यिकता भी इसलिए निश्चित समझिए
कि मैं यहाँ आने के लिए हमेशा ललचाता रहूँगा।''
कश्यप दंपत्ति की मुस्कान फिसलकर
खिलखिलाहट बन गई।
''अब आएँगे तो हमारे यहाँ खाना ज़रूर खाएँगे।'' मृदुला बोली।
''हाँ, आपके हाथ का खाना ज़रूर खाएँगे, फिलहाल आपके हाथ के इस
उपन्यास से ही अपने भूखे दिमाग़ का पेट भरूँगा, एनी वे अभी तो
डिनर तुम लोग मेरे साथ लो. . .''
''इस बार माफ़ कर दीजिए सर, कोई हमारे यहाँ आने वाले हैं. .
.थैंक्यू।'' कहकर कश्यप कुर्सी से उठ गया।
अनायास ही वे भी उठ खड़े हुए। मृदुला की मुस्कुराहट और उसके
सौंदर्य की चमक ने उन्हें चपल बना दिया था। उन्हें वे बाहर तक
छोड़ने गए। कश्यप दंपत्ति के जाने के बाद वे मन ही मन बोले,
''आज कविता लिखने की पहली उपलब्धि के बाद यह दूसरी भी. . .''
कश्यप के जाते ही, एक और कार
सामने आकर रुकी। मुड़ते-मुड़ते उन्होंने देखा - अशोक उतर रहा
था उसमें से। उन्हें कुछ याद आया और मन ही मन सोचने लगे- तीसरी
उपलब्धि भी हाज़िर हो गई।
एकाएक व्यवहारिक हो गए वे। अशोक से हाथ मिलाया और उसे कमरे में
खींच ले गए, ''कैसे हो यंग फ्रेंड, यंग मैन. . .''
''अच्छा हूँ सर. . .आप भी तो यंग ही हैं।''
''मैं ठहरा बूढ़ा. . .तुम यंग लोगों के साथ जब रहता हूँ तो
गलतफ़हमी हो जाती है, आओ बैठो. . .''
अशोक के हाथ में ब्रीफकेस था। वह फुसफुसाकर बोला, ''सर आपकी
अमानत है यह. . .''
''अच्छा!'' खुशी को संयत रखते हुए उन्होंने ऊपरी तौर पर कहा।
''येस सर, पिछले कंडक्टर के टेंडर में हम लोगों को आपने दो
परसेंट प्राइज प्रिफ्रेंस दिलवाया, काफ़ी बचत हो गई। यह
मुआवज़ा और कुछ सेवा चाहें तो हुक्म करें।''
''ठीक है- ठीक है, पर ज़रा उधर राजधानी का भी ख़याल रखना।''
''आप फ़िक्र न करें सर! अशोक बोला, ''हमारी एसोसिएशन का हर
मेंबर पोलिटिक्स में रोल रखता है। उधर राजाओं का हम पूरा ख़याल
किए हुए हैं। अब बताइए, आपको कभी किसी शिकायत या कमी की भनक
मिली?''
''फिलहाल तो नहीं।''
''मिलेगी भी नहीं क्यों कि हम लोग उधर भी पूरा ध्यान रखते
हैं।''
''और क्या चल रहा है?'' पालीवाल साब ने पूछा।
''ठीक है- बस वह देवड़ा ही ज़रा बहकता रहता है। ऊटपटांग बोलता
है कि कंडक्टर वाले लॉस में हैं। बोर्ड के लोग ड्यू रिटर्न
नहीं देते। सीएम से मिलना चाहिए. . .वगैरह-वगैरह।''
''हँ. . .''
''पर आप चिंता न करें। हम बाकी मेंबर्स सँभाल लेंगे और सर वो
अरुण आया था। दस लाख के ऑर्डर दिलवाए हैं उन्हें इस बार. . .''
''ठीक है, गुड. . .लड़का नया-नया काम सँभाल रहा है- ख़याल
रखना।''
''जी. . .''
''ड्रिंक्स. . .''
''श्योर! कभी सर, मुंबई चलिए मज़ा आ जाएगा।''
''चलेंगे- भाई चलेंगे. . .वहाँ तुम्हारी माशूकाओं से भी
मिलेंगे लेकिन यार अब इस बुढ़ापे में क्यों हुज़्ज़त कराते हो।
मन ही नहीं करता इन चीज़ों के लिए। स्केंडल का डर नहीं है तुम
जैसे भरोसे के लोगों के साथ, लेकिन फिर भी मन में कहीं कुछ
रोकता है।''
''आपकी विल-पॉवर बहुत स्ट्राँग है।''
वे स्वयं अटपटा महसूस करते कि यह कल का छोकरा कैसे उनके मन की
कठोर दीवारों को भेदकर अंदर बैठ जाता है। यों सामान्यतः कोई
अन्य उद्योगपति उनसे इतना बेतकल्लुफ नहीं हो सकता- उनके चेंबर
में जाने से घबराते हैं लोग। अधिकांश के साथ 'डील' करते वक़्त
वे कछुए की तरह टाँगें सिकोड़कर कवच के नियम सामने रख देते-
उसी की तहत बात करते। उनके तर्क एकदम संक्षिप्त और सख़्त होते
कि सामनेवाला हथियार डाल देता और अंत में निर्णय वही होता जो
वे चाहते थे।
अशोक में कभी वे अरुण को
देखते- उनका अपना बेटा अरुण। फैक्ट्री शुरू करवा दी है उसे यही
सोचकर कि रिटायरमेंट के बाद उसके साथ काम करेंगे और 'कंसल्टेंसी'
भी। जिस पोस्ट पर वे हैं, उसके प्रभाव की महिमा को ख़रीदनेवाले
कई लोग मिल जाएँगे। रिटायरमेंट के बाद भी। पर वे अच्छी तरह
जानते हैं कि तब कीमत का अंतिम निर्णय उनके वश में नहीं होगा,
अतः अच्छा होगा कि अभी ही स्थायी बंदोबस्त कर लिया जाए, अभी
यानी इस वक़्त जबकि कीमत डिक्टेट करना उनके हाथ में है!
अशोक की समृद्धि में वे अरुण
की परछाई देखते- न केवल भौतिकता की दृष्टि से, बल्कि बौद्धिक
लगाव भी था उनमें। अशोक के घर भी गए थे। उसका संभ्रांत
रहन-सहन, सुंदर बीबी। हर चीज़ में एक शान और गरिमा थी। कहीं वे
अपनी युवावस्था को भी देखते थे। अशोक में, अपने अभाव भरे
तनावग्रस्त युवाकाल में वे अकसर सपना देखते थे। मेरे पास भी वह
सब होगा. . .प्रभावशील पद, पैसा, गाड़ियाँ. . .प्रभाव नौकर
चाकर और एक खूबसूरत पत्नी, बहुत कुछ हासिल भी कर लिया उन्होंने
पर जब यह हासिल हुआ तो एक चीज़ पीछे छूट गई, वह था- युवाकाल की
उम्र और उस दौर की लालसाएँ. . . |