चेतना को साधकर वे कुछ सोचना
चाहते हैं, सोचते हैं- समाज में सफलता की गरिमा यही है. .
.अपने लिए कार जैसी जगह यानी पोज़ीशन आरक्षित कर लो और लोग ऐसे
भी हैं जिन्होंने इससे कई गुनी अधिक चलती-फिरती जगहें हथिया
रखी हैं. . .उन्हें हीन भावना महसूस करने की ज़रूरत नहीं। वे
भी कुछ कम या पीछे नहीं। वे बड़ी जगहोंवाले बड़े लोग उनके लिए
प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। उन्हें एक बार यह जानकर अंदर ही
अंदर गुदगुदी भी हुई कि एकाएक वे भी औरों के लिए प्रेरणा के
कारण बन गए हैं. . .लगातार बनते जा रहे हैं।
डेढ़ मीटर बाई दो मीटर के
सुविधा संपन्न आयतन में जो हाड़-माँस का संवेदनशील पुंज समाया
था उसका नाम है एस.के. पालीवाल. . .अध्यक्ष राज्य विद्युत
मंडल, मूलतः इंजीनियर पर अब प्रशासनिक शीर्ष पर।
दौरे पर आए थे वे इस क्षेत्र
में। दौरा काफ़ी सफल रहा था, उनका निरीक्षण, मीटिंग और उसके
परिणाम भी। परिणाम कई स्वरूपों में था। मीटिंग में हुए निर्णय
सभी के अनुकूल थे. . .जनता. . .मंत्री. . .इंडस्ट्रियलिस्ट और
स्वयं खुद वे संतुष्ट थे। उनका संतोष, मानसिक ही नहीं भौतिक भी
था। ब्रीफकेस में संतोष की गर्मी किसी साँप की तरह बंद थी। ऐसे
कई साँपों को उन्होंने वश में किया था और आश्वस्त थे क्यों कि
अलिखित समझौते के अनुकूल इस माह भी वे सफलतापूर्वक मंत्री को
किराया पहुँचा सके थे।
राम मोहन मंत्री जी ने कहा भी
था- देखो पालीवाल. . .विभाग के ये सारे बड़े-बड़े घर मेरे लिए
कोठियों जैसे हैं। मंत्री काल की लीज पर मिले हैं। इन कोठियों
का टेंपररी मालिक होने के कारण इनका किराया मुझे मिलते रहना
चाहिए। आप लोग शान से इनमें रहो। बस महीने के महीने किराया
पहुँचाते रहो। जानते ही हैं, तमाम खर्चे हैं. . .पार्टी और
राजनीति के, सब आप लोगों की मदद से चलता है, वर्ना हम जनता की
सेवा कैसे करेंगे? जनता की सेवा करनी है इसीलिए जनता से यह
टैक्स भी वसूल करते हैं. . .एक बात याद रखिए- किराया न मिलने
पर मकान खाली भी कराया जा सकता है. . .
''ठीक कहा सर. . .खाली कराने की नौबत क्यों आने दें भला. . .हम
भरपूर किराया देने की कोशिश करेंगे। यह नौबत न आएगी कि आपको
दूसरा कोई किरायेदार खोजना पड़े'' - उसी तर्ज में पालीवाल बोले
थे।
वह चौथी मुलाक़ात थी- गेस्ट
हाउस में एक शाम के दौरान, जब राममोहन जी के साथ उन्होंने
शैंपेन की बोतल खोली थी और फिर धीरे-धीरे उन्हें भी खोल लिया
था। आप बहुमत के विशेषज्ञ हैं- उसका व्यापार करना अच्छी तरह
जानते हैं। फ़िक्र न कीजिए, प्रदेश की ट्रांसमिशन लाइनों में
बिजली के साथ-साथ आपकी कीर्ति भी दौड़ेगी. . .पंप की मोटर का
पुश बटन लोग उसकी तरह दबाएँगे जिस तरह चुनावी सील की मुहर
लगाते हैं। मुहर लगाने और पंप की मोटर का स्विच दबाते समय उनका
ध्यान आप पर ही रहेगा।
वाकई अभी के कार्यक्रम में
यही हुआ था। गाँव के विद्युतीकरण की योजना का उद्घाटन था।
राममोहन जी ने ट्यूबवेल के पंप को चालू किया था। तालियाँ बजी
थीं. . .फ्लैश चमके थे।
पत्रकारों के कैमरों के बीच उनकी दृष्टि भी लेंस की तरह स्थिति
का मुआइना कर रही थी और परिस्थिति के स्नैप उतार रही थी।
उन्हें खुशी थी कि स्नैप अच्छे आएँगे। तालियों की गड़गड़ाहट से
राममोहन जी के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई थी। आँखों में प्रभाव
की बढ़ती हुई दृढ़ता का आश्वासन था। इस माहौल को वे सुरक्षा की
ऊँची दीवारों के रूप में देख रहे थे। दीवारें नहीं ढहतीं,
उन्हें कुछ नहीं हो सकता वे उसी तरह सुरक्षित थे, जिस तरह इस
कार की चार दीवारी में।
यद्यपि वे स्पष्ट देख सकते थे
कि उन दीवारों में सेंध लगानेवालों की कमी नहीं है। मंडल के
सचिव दत्ता को उत्पादन एवं पारेषण सदस्य वर्मा के साथ घुलमिलकर
बातें करते देख उन्हें खटका हुआ था। तब उनका दिमाग़ खाली नहीं
था। इस प्रकार को उन्होंने फ़ाइल की तरह मस्तिष्क के पेंडिंग-खंड
में डाल दिया था। अब फ़ुर्सत होने पर वह फ़ाइल खींच ली। अपने
आसपास के प्रत्येक प्रभावित करनेवाले व्यक्ति को वे वृक्ष के
रूप में देखते थे। उनकी समझ की अपनी तीक्ष्ण दृष्टि थी।
वृक्षों की जड़ों का तारतम्य वे उसी तरह परखते थे जिस तरह
बिजली के तारों का जाल देख सकते थे। उनके बारे में मशहूर था कि
विकट से विकट इलेक्ट्रिक सर्किट को वे आसानी से पढ़कर एनालाइज़
कर लेते थे। चाहे वह ट्रांस्मिशन लाइन का उच्च दाब वाला सर्किट
हो या एवीआर पेनेल का सूक्ष्म इलेक्ट्रानिक सर्किट।
एक अनौपचारिक मीटिंग में
वर्मा ने कहा था, ''राममोहन जी को मैं अच्छी तरह जानता हूँ. .
.तब मैं एस.डीओ था. . .उसी कस्बे में राममोहन जी की ठेकेदारी
करते थे। पिछोरा लाइन का इरेक्शन इनकी कंपनी ने किया था। मेरी
अच्छी अंडरस्टैंडिंग थी इनसे। तब वे बिल पास करवाने के लिए
मेरे आगे-पीछे घूमा करते थे। तब क्या पता था कि एक दिन ये
मंत्री बन जाएँगे और मुझे इनके आगे-पीछे घूमना पड़ेगा।''
सुनकर पालीवाल साब मुस्कुराए
थे। अंदर की जड़ों का एक्स-रे उभरने लगा था। ठेकेदार से
अंडरस्टैंडिंग सही होने का तात्पर्य वे खूब समझते हैं। उनकी भी
जिन कंपनियों से अंडरस्टैंडिंग है, उसका स्वरूप वे जानते हैं।
मतलब अंडरस्टैंडिंग अब भी हो सकती है। जनरेशन के कई
कांट्रेक्टस हैं जिन्हें वर्मा की सिफ़ारिश से अवार्ड किया गया
है। ज़रूर राममोहन जी तक वर्मा की सालिड अप्रोच है। वह चेयरमेन
बनने के स्वप्न देख रहा होगा, पर उसे क्या मालूम. . .चीफ़
मिनिस्टर भी मेरी मुट्ठी में है। पिछले माह जनरेशन पुअर था। एक
पावर हाउस भी काफ़ी दिनों से डाउन है। चीफ मिनिस्टर तो यही
समझते हैं कि इसके लिए ज़िम्मेवार मिस्टर वर्मा ही हैं। ही इज़
नॉट दैट काँपीटेंट. . .अब चाहे वह राममोहन जी के कितना ही
क्लोज़ क्यों न हो, उनके लिए खतरा नहीं बन सकता। व्यवस्था के
सर्किट में अगर कोई निगेटिव पोटेंशियल उन्हें बायपास करता हुआ
दिखे तो वे उसका फ्यूज़ उड़ाना अच्छी तरह जानते हैं।
अनायास ही उनका दार्शनिक
चिंतन तकनीकी से प्रभावित हो गया था। वे शरीर को बिजली की
ग्रिड ही मानते थे। ग्रिड यानी तारों. . .लाइनों. . .ट्रांसफॉर्मरों
एवं जनरेटरों का परस्पर जुड़ा हुआ तंत्र, देश भी उन्हें पॉवर-ग्रिड
की भाँति लगता था। कोई जनरेटर्स बनकर ग्रिड को बिजली दे रहा है
तो कोई लाइन बनकर पॉवर ट्रांसमिट कर रहा है। कोई उपभोक्ता भी
है जो बगैर कीमत चुकाए मीटर बंद करके बिजली की चोरी कर रहे
हैं। शरीर हो या देश, दोनों का तंत्र उन्हें बिजली के जाल-सा
लगता था। वे बस एक ही जब्ज पर हाथ रखते थे- फ्रीक्वेंसी पर. .
.अगर फ्रीक्वेंसी पचास है तो मतलब ग्रिड स्थिर है। संतुलित है
अगर पचास हर्टज से कम हो रही है तो तत्काल समझ जाते कि ग्रिड
में डिमांड ज़्यादा बढ़ रही है और सप्लाई कम है। अगर
फ्रीक्वेंसी बढ़ रही है तो. . .मतलब उल्टा होता था। यानी खपत
कम है और जनरेट ज़्यादा हो रहा है। सुधार के लिए शीघ्र ही
कार्यवाही कर दी जाती या तो उपभोक्ता के कुछ फीडर काट दो या
किसी जनरेटर पर लोड घटा दो। संबंधों और आदमी की स्थिति को भी
वे इसी तरह भाँपते थे। अपनी स्थिति और लाभ को किस तरह स्थिर
रखना है- इसके लिए वे 'लोड-डिस्पेच' की तरह हमेशा सतर्क रहते।
कब किस व्यक़्ति को उठाना है, कब किसे दबाना है- यह निर्णय
लेने में उन्हें देर नहीं लगती फलस्वरूप प्रतिष्ठा की उनकी ग्रिड कभी 'कोलॅप्स' नहीं हुई और न ही कभी पूर्ण 'ब्लैक-आउट'
की नौबत आई. . .
स्थानीय चीफ इंजीनियर को उन्होंने पहले ही हिदायत भिजवा दी थी-
पंप के उद्घाटन के साथ वृक्षारोपण भी होगा. . .
वृक्षारोपण की सारी व्यवस्था कर दी गई थी। उन्होंने विनम्रता
के साथ राममोहन जी को आमंत्रित किया था, ''सर. . .प्लांटेशन भी
करेंगे यहाँ, अपनी पालिसी है ग्रीन-गोल्ड की खदानें लगाने की.
. .पूरे स्टेट में हमें रोशनी के साथ-साथ हरियाली भी फैलानी
है, बिजली के खंभों के साथ-साथ वृक्ष भी गाड़ने हैं. . .''
''बहुत खूब पालीवाल साब. . .आपका
चिंतन एकदम साफ़ और दूरदर्शितापूर्ण है। यू आर ए वेरी गुड
एडमिनिस्ट्रेटर।''
''सर! मेहेरबानी आपकी. . .दरअसल ये वृक्ष शिलालेख हैं, प्ले-कार्ड
हैं। यहाँ बोर्ड भी लगा रहे हैं कि आपके कर कमलों से यह पौधा
रोपा गया, लोगों को याद रहता है। पब्लिसिटी होती है।''
''सो तो ठीक है, पर कितने पौधे
जी पाते हैं. . .पानी कौन देता हैं उन्हें? मेरी प्रतिष्ठा की
तरह वे भी सूख जाएँगे- अगले चुनाव तक. . .''
''ऐसा नहीं होगा सर, इन्हें
हमारा कोई व्यक़्ति एडाप्ट कर लेगा। हम स्पेशल मास्टर रोल में
आदमी रखेंगे। इनमें पानी डालने के लिए. . .इन्हें सूखने नहीं
दिया जाएगा।'' |