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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से जितेन ठाकुर की कहानी— 'एक और सूरज'


अधिकांश लोगों ने मान लिया था कि वह पगला चुका है। कुछ अधिक उदार दृष्टि रखने वाले लोग पगलाने के स्थान पर 'सनकना' शब्द प्रयोग करते। परंतु यह तो लगभग तय था कि अब वह पहले जैसा सामान्य व्यक्ति नहीं रह गया है। इसके विपरीत वह अपने प्रति आश्वस्त था और अपने साथियों के प्रति चिंतित। वह अकसर सोचता कि उसके इन बाबू साथियों की आँखें इतनी सूनी क्यों हैं? इनमें कभी भी कोई सपना क्यों नहीं उभरता।

दरअसल, हुआ यों था कि उसने अपनी बेदाग़ नौकरी के सत्रहवें साल में स्कूटर ख़रीदने के लिए कर्ज़ की अर्ज़ी दी थी। दफ़तर ने कर्ज़ मंजूर करते समय जो काग़ज़ माँगे थे उनमें ड्राइविंग लाइसेंस भी शामिल था। वह लाइसेंस बनवाने आरटीओ गया था। उसने लाइसेंस बनवा भी लिया था। पर जब लाइसेंस उसके हाथ में आया तो वह चौंक गया! स्कूटर की जगह कार का लाइसेंस बना हुआ था।

दफ़्तरी भाषा में तो यह महज़ एक 'क्लैरिकल मिस्टेक' थी। पैन की निब स्कूटर पर टिकने की जगह कार पर टिक गई थी। इस ग़लती को बिना जद्दोजहद के सुधारा भी जा सकता था। परंतु उसके लिए तो यह एक ईश्वरीय संकेत था।
"हमें प्रभु की इच्छा का सम्मान करना चाहिए, "उसने पूरा प्रकरण साथियों को बतला कर बात समाप्त कर दी थी।

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