बेवजह अचानक गाड़ी रुकवाए
जाने पर कई बार प्रतिक्रिया अत्यंत विस्फोटक होती। पर उस पर
इसका कोई असर नहीं पड़ता। सिर झुकाए हुए चुपचाप वह आगे बढ़
जाता।
गाड़ियों के प्रति उसका रुझान जितना बढ़ रहा था, जिस्म और
पहरावे के प्रति उतना ही घट रहा था। कई सुबह तो उसकी आँखों में
मैला भरा रहता, दाढ़ी बढ़ी रहती और बालों में कंघी करना भी भूल
जाता। मैले कफ-कॉलर वाली क़मीज़ हो, उधड़ी सिलाई वाला स्वेटर या
बिना क्रीज़ की पैंट - उसे कोई अंतर नहीं पड़ता। कंधे पर लटकते
झोले में डायरी, मफ़लर, टोपी, पानी की बोतल और टिफ़िन ठुँसे
रहते। कई-कई बार तो घर से भर कर चला टिफ़िन शाम को भरा हुआ ही घर
लौट आता। अलबत्ता उस दिन डायरी में किसी ख़ास गाड़ी के टायर से
लेकर वाईपर तक का सारा विवरण अंकित रहता।
एक दिन तो हद ही हो गई। एक
जनरल स्टोर के बाहर खड़ी कार का दरवाज़ा खोल कर वह उसमें बैठ
गया। स्टेयरिंग घुमा कर देखा, सीट को आगे पीछे किया। हैंड
ब्रेक को हिलाया डुलाया और मीटर की सुइयों को जाँच-परख कर नीचे
उतर गया। गनीमत यह रही कि कार के मालिक ने उसकी यह हरकत नहीं
देखी और वह एक बड़ी मुसीबत से बच गया।
ऐसे अविस्मरणीय कृत्य वह
सड़कों पर ही करता था। दफ़तर में चुपचाप सिर झुकाए हुए काम
करता रहता। यह बात अलग थी कि उसे अब ज़िम्मेदारी का काम दिया
जाना बंद हो गया था। समझाने वाले कुछ साथी नियति को स्वीकार कर
चुके थे, पर कुछ अब भी नाउम्मीद नहीं थे। हँसने वाले पहले भी
हँसते थे और अब भी हँस रहे थे।
कार लोन के लिए उसने जो
दरख़्वास्त दी थी पहले ही नामंजूर हो
चुकी थी। प्राविडेंड फंड से रुपया निकालने की अर्ज़ी भी खारिज
होने के बाद वह हताश हो गया। शाम को लोगों ने एक नया दृश्य
देखा। वह दफ़तर की सीढ़ियों से उतरकर पोर्च में खड़ा हुआ और
उँगलियों से चाबी फँसाने का उपक्रम करते हुए मुँह से कार
स्टार्ट होने की ध्वनि निकालने लगा। फिर गीयर बदल कर अदृश्य
स्टेयरिंग को घुमाया हुआ दफ़तर के अहाते से बाहर निकल गया।
मुख्य सड़क पर आने से पहले हॉर्न देकर उसने राहगीरों को सचेत
भी किया था। अब ये कौतुक प्रतिदिन देखने को मिलता। स्टेयरिंग
घुमाते और हार्न बजाते हुए दफ़तर में आने के बाद वह पार्किंग
वाले टीन शेड में जाता, अदृश्य कार खड़ी करता, दरवाज़ा बंद
करके उसे बाकायदा लाक करता और फिर शालीनता से सिर झुकाए दफ़तर
की बिल्डिंग में समा जाता। वह नहीं चाहता था कि उसके पास कार
आने के बाद, उसके व्यवहार में कुछ ऐसा लक्षित हो कि साथी उसे
घमंडी समझ लें।
यदि कोई कहता, "यार तुम्हारी
कार में हमें दिखलाई नहीं देती।" तो वह तमक कर उत्तर देता,
"आँख का इलाज करवाओ दिखलाई दे जाएगी।"
कोई छेड़ता, "कार का क्या हाल बना रखा है। साफ़-सफ़ाई भी करते
हो या नहीं?"
"सर्विसिंग करवानी है यार। टाइम नहीं मिलता।" वह निहायत चिंतित
स्वर में उत्तर देता या फिर कभी स्वयं ही कहता।
"आज रास्ते में कुछ प्रॉब्लम कर रही थी। लगता है टयूनिंग
करवानी पड़ेगी।"
ऐसे ही कारणों से उसके लिए "पगला गया है" जैसा विशेषण प्रयोग
होने लगा था। अन्यथा उसके व्यवहार में अन्य कोई ऐसा लक्षण नहीं
था कि उसे पागल करार दिया जाता।
इकत्तीस दिसंबर की रात बेहद
ठंडी थी। चारों तरफ़ घने कोहरे की परत जमी हुई थी। हाथ को हाथ
सुझाई नहीं देता था। इसके बावजूद सड़कें आबाद थीं। गाड़ियों के
पीछे गाड़ियाँ दौड़ी चली जा रही थीं। उसने भी अपनी अदृश्य कार
सड़क पर निकाल ली। जब लाइट जलाने के बाद भी कुछ दिखलाई नहीं
दिया तो उसने फॉग लाइट आन कर दी। अब कुछ दिखलाई देने लगा था।
उसने गीयर बदला, एक्सीलेटर पर पैर का दबाव बढ़ाया। कार उड़
चली। कायदे से इंडिकेटर और डिपर देता हुआ वो बड़ी सड़क पर आ
चुका था। पर जाने कैसे अचानक स्टेयरिंग बहक गया। कार लहरा कर
सड़क के बीचो-बीच आ गई। और एक भयानक आवाज़ के साथ कोहरे की घनी
चादर फट गई!
अगली सुबह!
रंगीन फूलों के हज़ारों खुशनुमा गुलदस्तों से लदा हुआ सूरज,
उसके क़रीब से गुज़रता हुआ शहर की तरफ़ बढ़ गया।
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