"अबे चरखी के.
. . ईसाई हो गया है क्या, जो प्रभु की इच्छा गाए जा
रहा है। चुप करके जा और लाइसेंस ठीक करवा ले। वरना कार तो दूर,
स्कूटर का लोन भी न मिलने का," मुँहफट करनवाल से रहा नहीं गया।
"मुझे अब स्कूटर का लोन नहीं चाहिए, "उसकी घोषणा ने बाबू
समुदाय के सपाट चेहरों को परेशान कर दिया था।
"तो क्या हवाई जहाज़ का लोन चाहिए," सभी हँस पड़े थे।
"नहीं, हवाई जहाज़ का नहीं - कार का लोन चाहिए। मैं अब कार
खरीदूँगा, स्कूटर नहीं," उसने बिना विचलित हुए उत्तर दिया।
"कार। कौन-सी। शैवर लैट या बयूक।" एक बार फिर ठहाका फूट पड़ा
था। कोई भी उसकी बात के प्रति गंभीर नहीं था। सब यही सोच रहे
थे कि या तो वह मज़ाक कर रहा है या यह सब उसका दिमाग़ी फितूर
है। दो चार घंटे न सही दो चार दिन में ठीक हो जाएगा। पर जब
हालात नहीं बदले तो उसे समझाने की कोशिशें शुरू हो गई।
"पागलपन छोड़ो। मान लो तुमने अपनी कुल जमा पूँजी लगाकर कार
ख़रीद भी ली तो उस सफ़ेद हाथी को पालोगे कैसे? जितनी तुम्हारी
तनख्व़ाह है उतना तो पेट्रोल ही फुँक जाएगा।"
"नहीं ऐसा नहीं होगा, वक्त तेज़ी से बदल रहा है। किसने सोचा था
कि एक दिन मोबाइल फ़ोन पाँच सौ में मिल जाएगा। बस इसी तरह एक
दिन कार भी मिलेगी," उसका विश्वास नहीं दरका।
"ये तुम्हारा दीवानापन है। ऐसा दिन शायद हमारी ज़िंदगी में कभी
नहीं आएगा," साथी ने लंबी साँस ली थी।
"न आए तो न सही। पर अब मैं स्कूटर नहीं ख़रीदूँगा। जब भी
ख़रीदूँगा कार ही ख़रीदूँगा," वह स्थिर दृष्टि से शून्य में
घूर रहा था जहाँ कई कारें सरसराती हुई फिसली जा रही थीं।
"तेरे घर के दोहरे कोई पागलों का डाक्टर नहीं है क्या?" करनवाल
फिर चिढ़ गया। वह चुप रहा।
"अपने दिमाग़ का इलाज करवा ले। जो साहब ने तेरी बातें सुनीं तो
बेवक्त रिटायर कर देगा।"
उसके बाकी साथी इतनी तल्ख
बातें कहते तो नहीं थे पर उनकी रज़ामंदी भी इसी में शामिल थी।
उसे भी इस हक़ीक़त का इल्म था। पर इस सबके बावजूद वह अडिग था।
स्कूटर की जगह कार का लाइसेंस बन जाना उसके लिए न तो 'क्लैरिकल
मिस्टेक' थी और ना ही कोई दुर्योग। वह इसे विशुद्ध ईश्वरीय
संकेत मानता था जो उसे कार ख़रीदने के लिए प्रेरित कर रहा था।
इसीलिए उसने एक मोटर ड्राइविंग स्कूल में दाखिला ले लिया था
और सुबह-सवेरे उठकर कार सीखने जाने भी लगा था। उसे विश्वास था
कि हालात बदलने वाले हैं।
उसने एक डायरी बनाई और उसमें
कारों का विवरण दर्ज करने लगा। किस कार में क्या खूबी है?
कितना माईलेज देती है? शो रूम का मूल दाम क्या है और
इंश्योरेंस-टैक्स वगैरह लगाकर सड़क तक आने में कितना रुपया और
लगेगा। यह सब उसकी डायरी में दर्ज रहता। इसके साथ ही वह देखी
गई कारों के नाम, रंग और मॉडल भी तारीखवार नोट करता। उसका
मानना था कि इससे, उसे एक ऐसी कार ख़रीदने में मदद मिलेगी जो
शहर में सबसे अलग होगी। औ़र तब लोग उसकी कार देखकर उसे दूर से
ही पहचान जाएँगे।
कुछ इतवार उसने कार बाज़ार
में भी गुज़ारे। पर वहाँ जल्दी ही लोग उससे कतराने लगे। दलाल
उससे बात करने में समय की बरबादी को समझ गए। किसी-किसी ने तो
खीझकर उसे झिड़क भी दिया। अंत में उसने कार बाज़ार का रास्ता
ही छोड़ दिया। वैसे भी अब उसके लिए कार बाज़ार का आकर्षण
समाप्त हो चुका था। वहाँ इकठ्ठा सारी कारों का विवरण अब उसकी
डायरी में दर्ज था।
कभी-कभी सड़क पर चलते-चलते,
वह अचानक रुक जाता। जेब से सिगरेट की डिब्बी निकालता। सिगरेट
सुलगाता और किनारे खड़ी किसी सुंदर कार से पीठ टिका कर धुएँ के
गोले बनाने लगता। छुपी नज़रों से लोगों के चेहरे टटोलता। यदि
किसी चेहरे पर कार से टिकी उसकी भंगिमा का दबदबा उभरता, तो
उसका मन लहलहा उठता।
उसकी ऐसी सनकाने वाली स्थिति से भला किसी को क्या एतराज़ हो
सकता था, परंतु इसके बाद उसके बढ़ते जुनून ने कुछ मुश्किलें
पैदा कर दी थीं। जैसे पास से गुज़रती किसी कार को रोक कर वह
पुछता -"आपने यह जो सीट कवर लगाया है, बहुत सुंदर है। कहाँ से
ख़रीदा?" या फिर रोक कर कहता -"आपका हार्न बहुत म्यूज़िकल है।
मुझे भी अपनी गाड़ी में यही लगवाना है। कहाँ मिलेगा?"
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