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घर-परिवार जीवन शैली - भारत के श्रेष्ठ गाँव


भारत के सर्वश्रेष्ठ गाँव
जो हम सबके लिये प्रेरणादायक हैं


६- कोकरे बेल्लूर- पक्षी प्रेमियों का गाँव

बेंगलूरु से ९० किमी की दूर स्थित कोकरे बेल्लूर के ऊँचे-ऊँचे पेड़ों पर प्रवासी पक्षियों के कलरव की ध्वनि पर्यटकों का मन मोह लेती है। प्रकृति की गोद में बसा यह गाँव प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा बसेरा बन गया है। मंड्या जिले के मद्दूर तालुक स्थित सिम्सा नदी के किनारे बसे इस गाँव में अक्तूबर के आखिरी सप्ताह से ही दो बेहद खूबसूरत पक्षी पेंटेड स्टॉर्क और स्पॉट बिल्ड पेलिकंस का आना शुरू हो जाता है जिससे गाँव की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। नवंबर महीने में जब ये अपने बच्चों को जन्म देते हैं तब यहाँ खूब रौनक रहती है। मार्च के अंत तक जब ये चले जाते हैं तब सूनापन हो जाता है। पक्षियों के आगमन के साथ ही इस गाँव में पर्यटकों का आना भी शुरू हो जाता है। हालाँकि, यहाँ कोई पक्षी अभयारण्य नहीं है मगर इंसानों के साथ इन पक्षियों का नाता ऐसा है कि यह स्वनिर्मित पक्षी अभयारण्य बन गया है।

विश्व में पेंटेड स्टॉर्क और स्पॉट बिल्ड पेलिकंस इन दोनों पक्षियों की प्रजाति खतरे में है मगर यहाँ इनकी तदाद बढ़ती जा रही है। करीब २० साल पहले यहाँ करीब २५० पक्षी आते थे मगर अब उनकी संख्या १५०० से अधिक है। यानी, इस गाँव में रहने वाले लगभग ४०० परिवारों की तुलना में ४ गुणा अधिक। स्थानीय निवासियों और पक्षियों के बीच एक हैरान कर देने वाला संबंध है। कहते हैं कि वर्ष १९१६ में इस गाँव के लोग किसी बीमारी के कारण दूसरी जगह चले गए। तब पक्षियों ने भी उनका अनुसरण किया और अपना बसेरा बदल लिया और वहीं चले गए जहाँ गाँव के लोग गए थे। कोकरे बेल्लूर में इन पक्षियों के आने का सिलसिला ५०० साल से अधिक पुराना है। इस गाँव का नाम भी इन्हीं पक्षियों के नाम पर रखा गया है। कन्नड़ में कोकरे का अर्थ होता है स्टॉर्क या पेलिकन और बेल्लूर का मतलब गाँव। गाँव के निवासी भी पक्षियों के साथ खूब दोस्ती निभाते हैं। पक्षियों के आने के समय यहाँ के १० छोटे-बड़े तालाबों में इन पक्षियों की पसंदीदा मछलियां तैयार रखी जाती हैं। पक्षियों के लगाव का एक अनूठा उदाहरण यहाँ देखने को मिलता है। लोग अपने घरों की दीवारों पर देवी-देवताओं की फोटो लगाते हैं तो पेंटेड स्टोर्क और पेलिकन को भी वहाँ स्थान देते है।

 १५ मार्च २०१७

(अगले अंक में एक और गाँव)  पृष्ठ- . . . . . .

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