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१. ५. २०२

इस सप्ताह-

अनुभूति में- 1
गर्मी के मौसम अनेक रंग भरती, अनेक रचनाकारों द्वारा रची, ढेर-सी रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- गर्मी के मौसम को शीतलता प्रदान करने वाला आम का शर्बत

सौंदर्य सुझाव -- टमाटर के रस को मट्ठे में मिलाकर लगाने से धूप में जली हुई त्वचा को आराम मिलता है और वह जल्दी स्वस्थ हो जाती है।

संस्कृति की पाठशाला- भारतीय संगीत में रे या ऋषभ स्वर का सम्बन्ध ग्रीष्म ऋतु से है। इसके देवता अग्नि हैं और रंग अग्नि समान नारंगी है।

क्या आप जानते हैं? कि भारत के मध्य प्रदेश राज्य में ग्रीष्म ऋतु को यूनाला नाम से और शीत ऋतु को सियाला नाम से भी जाना जाता है।

- रचना और मनोरंजन में

गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं कि मई के महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से 

सप्ताह का विचार- नदियों का जल पीकर भी समुद्र की प्यास नहीं बुझती जबकि बादल उसी समुद्र से जल लेकर पृथ्वी के सन्ताप को दूर कर देते हैं। श्रेष्ठ वही होते हैं जो दूसरों की पीड़ा दूर करते हैं- सभातरंग

वर्ग पहेली-३३७
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से


 

हास परिहास
में
पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य और संस्कृति में- ग्रीष्म ऋतु विशेषांक में

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से आशुतोष कुमार झा की कहानी अविजित

जून का महीना। तपती दोपहर। गर्मी का यह आलम था कि सड़क का अलकतरा पिघल गया था। पैदल चलने वाले लोग पूर्णिया शहर को बीचो-बीच बाँटने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग से उतर कर किनारे-किनारे चल रहे थे ताकि उनके पैर पिघले अलकतरे पर न पड़ें। सड़क पर गुड़कते रिक्शा एवं साइकिल के पहिए पिघले सड़क से चिपक रहे थे। तेज़ी से गुज़रते ट्रक एवं बस जैसे बड़े वाहन अजीब-सी गंभीर आवाज़ कर रहे थे। चार पहिये वाली छोटी तथा बड़ी सवारियों के अलावा इक्के-दुक्के रिक्शे, ऑटो-रिक्शे तथा धूप में झुलसते साइकिल सवार नज़र आ जाते थे। सिवाय उनके मानो पूरा शहर वीरान पड़ा था। चूँकि लाइन बाज़ार में जिला अस्पताल स्थित है तथा यहाँ पूर्वोत्तर बिहार के अधिकांश नामी-गिरामी डॉक्टरों के क्लीनिक भी हैं यहाँ बड़ी संख्या में मरीज़ एवं उनकी तीमारदारी करनेवालों का तांता लगा ही रहता है। इस तेज़ गर्मी एवं चिलचिलाती धूप से बचने के लिए ये लोग सड़क के किनारे, पेड़ों के नीचे या फिर जहाँ-तहाँ दुकानों एवं क्लीनिकों के बरामदों पर... आगे...
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सुभाष नीरव की
लघुकथा- धूप

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कल्पना रामानी की कलम से
''पंख बिखरे रेत पर'' : धूप की विभिन्न छवियाँ
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डॉ. मृदुल शर्मा का निबंध
दहकती धूप की काव्य छवियाँ

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घर परिवार में घर सुंदर बनाने के
सुझाव- धूप से निखरे रूप

पुराने अंकों से विशेष-

दीपिका ध्यानी घिल्डियाल का संस्मरण
पहाड़ पर वसंत

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प्रकृति और पर्यावरण में
मंजु बालौदी का आलेख- पहाड़ों पर बुरांस

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पर्व परिचय में अग्निशेखर से जानें
'नवरेह' है कश्मीरियों का विशेष नवसंवत्सर

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शांति जैन का निबंध
चैत मास का विशेष गीत चैती

वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ
गौरव गाथा में प्रस्तुत है जयशंकर प्रसाद की
कहानी- चंदा

चैत्र-कृष्णाष्टमी का चन्द्रमा अपना उज्ज्वल प्रकाश 'चन्द्रप्रभा' के निर्मल जल पर डाल रहा है। गिरि-श्रेणी के तरुवर अपने रंग को छोड़कर धवलित हो रहे हैं, कल-नादिनी समीर के संग धीरे-धीरे बह रही है। एक शिला-तल पर बैठी हुई कोलकुमारी सुरीले स्वर से-'दरद दिल काहि सुनाऊँ प्यारे! दरद' ...गा रही है। गीत अधूरा ही है कि अकस्मात् एक कोलयुवक धीर-पद-संचालन करता हुआ उस रमणी के सम्मुख आकर खड़ा हो गया। उसे देखते ही रमणी की हृदय-तन्त्री बज उठी। रमणी बाह्य-स्वर भूलकर आन्तरिक स्वर से सुमधुर संगीत गाने लगी और उठकर खड़ी हो गई। प्रणय के वेग को सहन न करके वर्षा-वारिपूरिता स्रोतस्विनी के समान कोलकुमार के कंध-कूल से आगे...

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