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 २५. ५. २००९

इस सप्ताह
कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
भारत से प्रवीण पंडित की कहानी कबीरन बी
कबीरन बी का असली नाम मैं भूल गया। सच तो यह है कि अपना असली नाम खुद कबीरन को भी याद नहीं रहा होगा। जाँच-परख करनी हो तो कोई अल्लादी के नाम से आवाज़ लगा कर देख ले। कबीरन न देखेगी, न सुनेगी और ना ही पलटेगी। अगल-बगल झाँके बिना सतर निकलती चली जाएगी, जैसे अल्लादी से उसका कोई वास्ता ही ना हो। शक नहीं कि कबीरन बी का असली नाम- यानि अब्बू का दिया हुआ नाम अल्लादी ही था। अब पैदायशी नाम-ग्राम पर तो किसी का ज़ोर ही क्या? लेकिन जिस घड़ी अल्लादी ने बातों को समझना शुरू किया, उसे लगने लगा था कि वो सिर्फ़ अल्लादी नहीं है। ये बात दीगर है कि यह समझ उसे ज़रा जल्दी पैदा हो गई। वैसे वो जो पूरी-पूरी दोपहरी महामाई के थान पर जाकर बैठती थी, कोई सोची समझी बात नहीं थी। बस बैठती थी, लेकिन करती क्या थी? लोग कहते हैं कि कभी गाती- कभी गुनगुनाती। पूरी कहानी पढ़ें-

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अशोक चक्रधर का व्यंग्य
जय हो की जयजयकार

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डाकटिकटों के स्तंभ में प्रशांत पंड्या द्वारा
डाक टिकटों पर आपका फ़ोटो

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धारावाहिक में प्रभा खेतान के उपन्यास
आओ पेपे घर चलें का ग्यारहवाँ भाग

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समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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पिछले सप्ताह

प्रमोद ताम्बट का व्यंग्य
कबाड़ियों का उज्जवल भविष्य

कथा महोत्सव-२००८ के परिणाम
-- यहाँ देखें --

धारावाहिक में प्रभा खेतान के उपन्यास
आओ पेपे घर चलें का दसवाँ भाग

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डॉ. राजेन्द्र गौतम का आलेख
गीत और नवगीत के धरातल पर कुछ सवाल
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पर्यटन में श्वेता प्रियदर्शिनी के साथ चलें
दो संस्कृतियों के सेतुः जनकपुर

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कथा महोत्सव में पुरस्कृत-यू.एस.ए से सुषम बेदी की कहानी गुरुमाई
उस बड़े से हॉल के एक सिरे पर सिंहासन नुमा चौड़ी-सी आरामकुर्सी थी जिस पर लाल रंग का रेशमी कपड़ा बिछा था। कपड़े के किनारों पर सुनहरी धागों से कढ़ाई की हुई थी। सिंहासन के ठीक उपर छत्र था गुलाबी रंग का जहाँ दोनों ओर खड़े सफ़ेद कुरता पाजामा पहने दो युवक गुरुमाई पर पंखा झुला रहे थे। गुरुमाई बहुत शांत, निरुद्विग्न-सी बैठी थी अपने सिंहासन पर। आँखें ठीक सामने देख रही थी। कभी-कभी हाल में बैठे भक्तों की भीड़ पर नज़र दौड़ा लेती। फिर अपने आप में अवस्थित। जैसे कि ध्यान में ही हो! हॉल में एकदम चुप्पी थी। सब इंतज़ार में थे गुरुमाई के आशीर्वाद के। उनके मुख से निकलनेवाला हर वाक्य आकाशवाणी की तरह पवित्र और पूज्य था। क्या गुरुमाई अपने वचन की इस ताकत से परिचित थी? शायद हाँ। शायद हाँ, शायद नहीं। एक-एक करके लोग उसके पास जाते, कुछ चरणों को छू नमस्कार करते। कुछ साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में चरणों पर शीश रख देते।
पूरी कहानी पढ़ें-

अनुभूति में- विद्या भूषण मिश्र, चंद्रभान भारद्वाज, बलदेव पांडे, मंगलेश डबराल और नवगीत कार्यशाला की नई रचनाएँ

कलम गही नहिं हाथ- शारजाह क्रिकेट स्टेडियम शारजाह की शान है। आखिर इसी से तो इमारात के इस छोटे से सुंदर शहर को...  आगे पढ़े

रसोई सुझाव- कढ़ी में दही मिलाने से पहले उसमें थोड़ा बेसन डालकर फेंट लें। इससे कढ़ी नरम बनेगी दही के दाने दिखाई नहीं देंगे।

पुनर्पाठ में - १ मार्च २००१ को प्रकाशित ममता कालिया  की कहानी मेला

इस सप्ताह विकिपीडिया पर
विशेष लेख- चिरौंजी

क्या आप जानते हैं? कि चिरौंजी या चारोली, पयार या पयाल नामक वृक्ष के फलों के बीज की गिरी है जो खाने में बहुत स्वादिष्ट होती है।

शुक्रवार चौपाल- आज का दिन कार्यशाला का दिन था। यानी सबको मिलकर कुछ रंगमंच पाठों को पड़ना सीखना और दोहराना था। ...   आगे पढ़ें

सप्ताह का विचार- महान विचार ही कार्य रूप में परिणत होकर महान कार्य बनते हैं। --विनोबा


हास परिहास

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

नवगीत की पाठशाला- जहाँ नवगीत लिखने, पढ़ने, सीखने और सिखानेवालों का स्वागत है।

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