प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित 
पुरालेख तिथि
अनुसारविषयानुसार हिंदी लिंक हमारे लेखक लेखकों से
SHUSHA HELP // UNICODE  HELP / पता-


पर्व पंचांग . ४. २००८

इस सप्ताह-
वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में रघुवीर सहाय की कहानी सेब--
चलती सड़क के किनारे एक विशेष प्रकार का जो एकांत होता है, उसमें मैंने एक लड़की को किसी की प्रतीक्षा करते पाया। उसकी आँखें सड़क के पार किसी की गतिविधि को पिछुआ रही थीं और आँखों के साथ, कसे हुए ओठों और नुकीली ठुड्डीवाला उसका छोटा-सा साँवला चेहरा भी इधर से उधर डोलता था। पहले तो मुझे यह बड़ा मज़ेदार लगा, पर अचानक मुझे उसके हाथ में एक छोटा-सा लाल सेब दिखाई पड़ गया और मैं एकदम हक से वहीं खड़ा रह गया। वह एक टूटी-फूटी परेंबुलेटर में सीधी बैठी हुई थी, जैसे कुर्सी में बैठते हैं, और उसके पतले-पतले दोनों हाथ घुटनों पर रक्खे हुए थे। वह कमीज़-पैजामा पहने थी, कुछ ऐसा छरहरा उसका शरीर था और  उस बच्ची में कहीं कोई ऐसा दर्द था जो मुझे फालतू बातें सोचने से रोकता था।

*

हास्य व्यंग्य में महेश द्विवेदी से
किस्सा टैक्स का

*

संस्कृति में रमा चक्रवर्ती का कलम से
झाडू देवी की कथा
*

साहित्यिक निबंध में विजय वाते का आलेख
उजाले अपनी यादों के
*

साहित्य समाचार में
हिन्द युग्म का हिंदी सहयोग, केदार सम्मान' -२००७ अनामिका को, अनीता वर्मा को बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, कुतुबनुमा की काव्य गोष्ठी, प्रो. पुष्पेन्द्र पाल सिंह को ठाकुर वेद राम प्रिंट मीडिया एवं पत्रकारिता शिक्षा पुरस्‍कार।

"प्रवासी आवाज", नाक का सवाल, बीत चुके शहर में, तथा कौन कुटिल खल कामी का विमोचन
 नासिरा शर्मा को कथा यू.के. और उषा वर्मा को पद्मानंद सम्मान

 

पिछले सप्ताह

*

वीरेंद्र जैन का व्यंग्य
पानी बचाओ आंदोलन

*

मनोहर पुरी का आलेख-
भगवान महावीर

*

उमेश अग्निहोत्री का दृष्टिकोण
हिंदी मीडिया कहाँ जा रहा है

*

महेश कटरपंच की पर्यटन-कथा
अनोखा आकर्षण आम्बेर

*

समकालीन कहानियों में
राजेंद्र त्यागी की कहानी परमा परमजीत
फैक्टरी के सायरन ने मुँह आकाश की तरफ़ उठाया और भौ-भौ कर चिल्लाने लगा। मशीनों के चक्के कुछ देर के लिए थम गए। हाथ के औज़ार रख मज़दूरों ने खाने के डिब्बे उठाए और गेट की तरफ़ चल दिए। यह पाली समाप्त होने का सायरन था।
मुन्नालाल ने भी टाट के टुकड़े से चीकट हाथ रगड़े और थके-थके से अपने कदम गेट की तरफ़ बढ़ा दिए। मगर उसकी चाल में आज पहले जैसी वह गति नहीं थी। सायरन की आवाज़ आज उसे वैसा सुकून नहीं दे रही थी। जैसी की सात आठ घंटे मशक्कत करने के बाद किसी मज़दूर को देती है। सायरन की भौं-भौं उसे आज आसमान की तरफ़ मुँह उठा कर रोते किसी कुत्ते की तरह लग रही थीं। बाईं आँख भी यकायक हरकत करने लगी थी। इन अपशकुन संकेतों ने अजीब-सी एक आशंका उसके मन में ला धरी।

 

अनुभूति में- देवमणि पांडेय, रॉबिन शॉ पुष्प, प्रमोद त्रिवेदी, अज्ञेय और रसूल अहमद सागर बकाई की रचनाएँ

कलम गही नहिं हाथ
फुटबॉल इमारात का राष्ट्रीय खेल है। यहाँ के गर्म मौसम के कारण खेल का समय साल में कुछ दिन ही रहता है- सर्दियों के महीनों में। सर्दियाँ भी बिलकुल हल्की गुलाबी रौनक भरी दुपहरी वाली। इन दिनों आवासीय कॉलोनियों की हर सड़क पर फुटबॉल की ऐसी धूम रहती है जैसी भारत में क्रिकेट की। खेल की भी एक आवाज़ होती है.... विजय में डूबी उमंग की, जोश से भरे उत्साह की, कारों के भयभीत हॉर्न की, खिड़की के बिखरते काँच की, बच्चों पर बरसती फटकार की। ये आवाज़ें बड़ी लुभावनी होती हैं और पूरे मुहल्ले को अपने रंग से भर देती हैं। मई के आरंभ तक यहाँ सर्दियों का अंत हो जाता है। यानी दिन सुनसान होने लगते है। पिछले दस सालों में इमारात की संस्कृति में तेज़ी से बदलाव आया है। लगभग पूरा दुबई काँच की गगनचुंबी इमारतों में परिवर्तित हो गया है। पुराने मुहल्ले या तो ख़त्म हो गए हैं या ख़त्म होने की कगार पर हैं। इनके स्थान पर काँच की दीवारों वाली बहुमंज़िली इमारतें आ गई हैं। जो मुहल्ले बच गए हैं, उनमें रहने की अलग शैली है। इनके आलीशान घरों में रहने वाले आभिजात्य बच्चे सड़कों पर नहीं खेलते। वे फुटबॉल के लिए बनाए गए विशेष मैदानों पर खेलते हैं। विशेष मैदान होना अच्छी बात है, पर विकास के साथ हम बहुत सी दिलकश आवाज़ों को भी खो रहे हैं जो भविष्य में कभी कहीं सुनाई नहीं देंगी। --पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)

इस माह विकिपीडिया पर
निर्वाचित लेख- होली

सप्ताह का विचार
जो अपने को बुद्धिमान समझता है वह सामान्यतः सबसे बड़ा मूर्ख होता है। -सुदर्शन

क्या आप जानते हैं? २६ अप्रैल २००८ को जोहानेसबर्ग में खेले गए अफ़्रीकन कनफ़ेडरेशन कप फ़ुटबॉल मैच का सबसे सस्ता टिकट १००,०००,००० ज़िंबाब्वे डॉलर का था।

अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़ें

Click here to send this site to a friend!

नए अंकों की पाक्षिक
सूचना के लिए यहाँ क्लिक करें

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

 

 

 

Google
Search WWW Search www.abhivyakti-hindi.org

blog stats
 

१९४८ २७ ६ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ०