इस
सप्ताह
साहित्य संगम में जयंत
दलवी
की मराठी कहानी का हिंदी
रूपांतर स्पर्श
सायंकाल
की सुनहरी किरणें, अब तक ज़मीन पर उतरी नहीं थीं, इस बड़े पीपल की,
शाखों के बीच से, छन कर आती लग रही थीं। हवा के स्पर्श से पूरा वृक्ष,
गुदगुदा कर मानों हँस रहा था। तने के, एक खोखल में से एक तोता चोंच
निकाले, झाँक रहा था। एक शाख पर, लंबा-सा घोंसला, लटक
रहा था। किस पक्षी का था कौन जाने?
वृक्ष के नीचे, आसमान की ओर ताकते, रामाराव खड़े थे। उनकी आँखों के
आँसू, आँखों तक ही सिमट रहे थे, इसका किसी को पता न था। आज आँखें, न
जाने क्यों भर आ रही हैं। चार वर्ष पूर्व जब नानी आश्रम गई थी, तब भी
आँखें, इतनी तो नम नहीं थी। आज तो वह ठीक होकर, वापस आ रही हैं, आज
तो मन में, आनंद होना चाहिए। पर आनंद हो रहा है क्या?
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सप्ताह का विचार
महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद
है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है।
-जवाहरलाल नेहरू |
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दीपक राज कुकरेजा भारतदीप लिख रहे हैं
विरह में व्यंग्य
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घर-परिवार में अर्बुदा ओहरी के साथ
दौड़ दवाओं की
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क्या
आप जानते हैं?
एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति को यह
नाम होमियोपैथी के जनक जर्मन चिकित्सक सैम्युएल हैनीमैन ने सुझाया
था। जिसे बाद में अमेरिकन मेडिकल एसोसियेशन ने अपनाया। |
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रसोईघर में
तीन नई सब्ज़ियों की व्यंजन विधियाँ
लज़ीज़ खुंभ,
चना पालक और
मेथी आलू
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फुलवारी में खोज कथाओं के अंतर्गत
समुद्र के पार संसार
और बालगीत
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अनुभूति में-
अश्वघोष,
प्राण शर्मा, सुषमा भंडारी, अशोक गुप्ता और अंसार कंबरी की नई रचनाएँ |
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कलम गही नहिं
हाथ
दिल्ली में
पुस्तक मेला चल रहा है और
खबर है कि विश्व पुस्तक मेला हिंदी के सीमित संसार का बोध कराता
है। कविता, कहानी, उपन्यास कोई पढ़ता नहीं, हिंदी किताबें बिकती भी
हैं तो सिर्फ़ अंग्रेज़ी से अनूदित प्रबंधन, कंप्यूटर साइंस, आईटी और
सफलता प्राप्ति के उपायों की, क्यों कि रोज़ी तो इसी से मिलती है।
क्या दूसरे देशों में भी ऐसा है? जी नहीं, क्यों
कि दूसरे देशों में प्रबंधन, आईटी, चिकित्सा विज्ञान और इंजीनियरिंग
अंग्रेज़ी में नहीं पढ़ाए जाते। उनके यहाँ हर नौकरी में अंग्रेज़ी
जानने की ज़रूरत नहीं होती। लोग अंग्रेज़ी हर देश में पढ़ते हैं पर
अंग्रेज़ी के बिना मर नहीं जाते। दुनिया का कोई भी देश ऐसा नहीं जहाँ
विदेशी भाषा जाने बगैर शिक्षा और रोज़गार के लाले पड़ जाएँ।
भारत की नई पीढ़ी के सिर पर आज अंग्रेज़ी का इतना बोझ है उससे अच्छी हिंदी
और हिंदी के लिए समय की अपेक्षा रखना बेकार हैं। भाषा, साहित्य और
संस्कृति को विकास के लिए समय यह सोचने का है कि ग़लती कहाँ है और
उसे कैसे दूर किया जाए। -पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)
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