पद्य
में
गौरव ग्राम में
नरेन्द्र शर्मा
नई हवा में
संजीव कुमार बब्बर
समकालीन कविताओं में
फजल ताबिश
दीप्ति नवल
और
जगदीश चंद्र जीत
कला दीर्घा में-
अमृता शेरगिल,
शैलज मुखर्जी, रवींद्रनाथ ठाकुर और
यामिनी राय की
कलाकृतियाँ
डाकटिकटों पर |
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साहित्यिक निबंध में-
महावीर प्रसाद द्विवेदी
का आलेख
महाकवि माघ का प्रभात वर्णन
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
जी ने प्रस्तुत निबंध के द्वारा संस्कृत के प्रसिद्ध कवि माफ
के जीवंत प्रकृति चित्रण की एक झलक प्रस्तुत करते हुए उनके
प्रभात-वर्णन सम्बन्धी हृदयस्पर्शी स्थलों को अत्यन्त कुशलता
से हमारे समक्ष रखा है।
दो पल में-
अश्विन गांधी का कलम से
मुसाफ़िरी तीसरे दर्जे में
कोई माने या न माने, मुंबई की
लोकल में मुसाफ़िरी का अनुभव ज़िन्दगी में लेना ज़रूरी है।
हाँ, कमज़ोर दिल शायद ज़ख़्मी हो सकते हैं! यह वह ट्रेन है
जहाँ लाखों लोग रोज़ाना एक जगह से दूसरी जगह पहुँचते हैं। जहाँ
दरवाज़े कभी बंद नहीं होते, और कई इन्सान आधे अंदर, आधे बाहर
लटके हुए मुसाफ़िरी करते हैं। एक या दो डिब्बे पहले दर्जे के,
बाकी के सब तीसरे दर्जे के, आम जनता के लिए।
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समकालीन कहानियों में-
भारत से साबिर हुसैन की
कहानी गँवार
सुबह रघु के घर में कदम रखते ही
उसके दिल की धड़कन अनायास बढ़ गई थी। उस समय वह छप्पर के नीचे
रसोई बना रही थी। उन्होंने आकर बाबूजी के पैर छुए थे और उससे
बिना कुछ बोले कमरे में जाकर लेट गए थे। थोड़ी ही देर में शायद
थकान के कारण सो गए थे।
जब से रघु की अधिकारी के पद पर नियुक्ति हुई है, माँ जी ने गँवार
कह-कह कर उसमें हीनभावना की जड़ें इतनी गहरी जमा दी हैं कि उसमें
प्रतिरोध करने की शक्ति भी शेष नहीं रही है।
साहित्य संगम में-
आंडाल प्रियदर्शिनी की तमिल
कहानी का हिंदी रूपांतर-
छुई मुई
"अनु, दादी को हाथ मत लगाना।
बच्ची की पीठ पर पड़ी धौल पद्मावती के तन में गहरायी से उतर गई,
"कम्बख्त कितनी बार कहा है, दादी
के करीब मत जाओ, उन्हें मत छुओ,
उनके ऊपर मत लेटो, खोपड़ी
में कुछ जाए तब न ज़िद ज़िद, तीन
वर्ष की है पर ज़िद तो देखो।"
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