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साहित्य संगम 

साहित्य संगम के इस अंक में प्रस्तुत है आंडाल प्रियदर्शिनी की तमिल कहानी का हिन्दी रुपांतर छुईमुई। हिन्दी अनुवाद डॉ. कमला विश्वनाथन का है।


"अनु, दादी को हाथ मत लगाना।
बच्ची की पीठ पर पड़ी धौल पद्मावती के तन में गहरायी से उतर गई,  "कम्बख्त कितनी बार कहा है, दादी के करीब मत जाओ, उन्हें मत छुओ, उनके ऊपर मत लेटो, खोपड़ी में कुछ जाए तब न ज़िद ज़िद, तीन वर्ष की है पर ज़िद तो देखो।"
क्रोध का आवेग बच्ची के सिर पर एक घूँसे के रूप में पड़कर ही थमा। दर्द से छटपटाती अनु चीखती हुई रोने लगी। पद्मावती घबरा गईं। उनका मानना था कि बच्चों को बेतरह पीटना, घूँसा मारना आदि पाशविक कृत्य हैं। वे कहतीं, "बच्चे फूल के समान होते हैं। खुशबू बिखेरते हैं। मन को विभोर करनेवाला सुनाद होते हैं। बुजुर्गों से ज़्यादा पवित्र और शुद्ध आत्मावाले। बच्चों को देखकर ही कम से कम बुज़ुर्ग सुधर जाएँ इसीलिए इन छोटे देवताओं को ईश्वर ने धरती पर भेजा है। कौन समझता है इसे हं...।

ये देखो रेवती का भड़कता गुस्सा अनु की कैसी दुर्गति बना रहा है। पद्मावती के मन में पद्मावती के मन में दुख का आवेग उमड़ने लगा।

मेरी खातिर बेचारी कोमल जान मार खा रही है। गलती तो मेरी है न। हे भगवान!" होठों को भींचकर मुँह बंद कर रुलाई रोकते हुए उसने ईश्वर से विनती की। अनु ज़ोर से रोने में असमर्थ हिचकी लेती रही।

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