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    साढ़े सात बजे गए थे। एक-एक कर सब आँखें 
    मलते हुए आ रहे थे। हैरी के आकर गोद में बैठते ही हेल्गा ने परे ढकेल दिया। 
    नैनी की बड़बड़हाट जारी थी।''हे यीशू! ऐसा घर मत बनाया करो। कभी नहीं, जहाँ माँ अपने बच्चे को गोद में न 
    बैठाए।''
 ''तुम हो ना इन सबकी माँ...'' कहती हुई हेल्गा उठ गई। मैं भी तैयार होने अपने 
    कमरे में चला गई। बिटिया कान तर तकिया दबाए सो रही थी। वह ग्यारह से पहले नहीं 
    उठती थी।
 मिसेज बेरी ने आज रेवलोन हाउस उतारते हुए कहा, ''आज से तुम रेस्टोरेंट में काम 
    करोगी। अतः शाम को चार बजे छुट्टी होने पर आज मैं आकर ले जाऊँगी। बाद में बस 
    रूट समझा दूँगी।''
 मैंने राहत की साँस छोड़ी। क्यों कि पिछले सात दिन से मुझे यही चिंता सता रही थी 
    कि आगे का खर्च कैसे चलेगा।
 उनका ड़्राइव-इन रेस्टोरेंट सच में 
    बड़ा खूबसूरत था। जवान लड़के-लड़कियों की चहल-पहल से भरा। ख़ासकर पूरा जमघट रात 
    नौ से ग्यारह के बीच होता। सबर्ब के इस इलाके का सबसे अच्छा रेस्टोरेंट। भीतर 
    पाँच जन काम करते थे, मिसेज बेरी 'कैश काउंटर' पर रहती थीं।''दो हैमबर्गर, एक कोला, एक फ्रेस्का। वन बनाना स्प्लिट एंड वन एपल पाई। टू 
    फ्रेंच फ्राइ विथ जंबो चीज़ बर्गर...'' खिड़की पर ऑर्डर की अलग-अलग आवाज़ें, 
    बरसात की मोटी-मोटी बूँदों की तरह टपकती रहतीं। भीतर मशीन की तरह काम करते हुए 
    हमारे हाथ। मिसेज बेरी ने पहले दिन से मुझे विंडो सर्विंग में लगाया। काम था 
    प्लेट आगे बढ़ाना, डॉलर गिनकर मिसेज बेरी को पकड़ाना। टिप अपने पॉकेट में 
    डालना। ज़्यादातर लड़के-लड़कियों का हुजूम नौ से बीस की उम्र के बीच। घर लौटने 
    में रात के ग्यारह बज गए। बिटिना ने मुस्कुराकर पूछा, ''कैसा रहा?
 ''सीखने की कोशिश कर रही हूँ।''
 ''तुम्हारे लिए यह एक अनुभव होगा। तुम रीयल अमेरिका को समझ पाओगी।''
 ''वह कैसे?''
 ''कल शुक्रवार है ना?''
 ''हाँ।''
 ''हम लोग रविवार को बात करेंगे।''
 दूसरे दिन सुबह मिसेज बेरी ने पूछा, ''आज तो तुम्हारी छुट्टी होगी? अब तो काम 
    सीखने तुम सोमवार को जाओगी।''
 ''जी।''
 ''पर उन्होंने फेशियल की प्रैक्टिस घर में करने के लिए कहा है।''
 ''मैं तैयार हूँ।''
 ''चलो मेरी ड्रेसिंग टेबल के दाहिने दराज से सारा सामान ले आओ और प्रैक्टिस 
    चालू कर दो।''
 पहली बार उनका कमरा देखा। ऐसी कोई 
    ख़ास बात नहीं लगी। ड्रेसिंग टेबल लंबा-सा, बेतरतीब फैले हुए सामान, पलंग की 
    बिछावन पर पड़ी हुई नाइटी, ज़मीन पर डॉ. बेरी का मखमली गाउन।ओह! इस घर में सबकुछ इतना बेतरतीब क्यों रहता है? और मिसेज बेरी अपनी ही धुन 
    में अलग। नैनी चीज़ों को उठाती धरती रहती। ''बंदर रहते हैं इस घर में सब बंदर। 
    एक डॉ. बेरी को छोड़कर, बेचारा बेरी!'' नैनी और हेल्गा की कभी पटती नहीं थी। 
    नैनी का कहना था चार बच्चों की माँ होकर भी हेल्गा गृहस्थिन नहीं है। खैर बायीं 
    तरफ़ का दरवाज़ा खोला। हेल्गा ने कहा था नीले रंग का ब्यूटी किट होगा। पर वह 
    मिले तब ना? दुनिया भर की चीज़ें उलटते-पुलटते हाथ एक ठंडी चीज़ से टकराया। 
    चीज़ों का ढेर हटाकर देखा ओह! छोटी-सी पिस्तौल! वह भी ड्रेसिंग टेबल के दराज 
    में? रखते होंगे लोग।''
 फिर नीचे का दरवाज़ा खोला। ब्रा और 
    पैंटी भरे पड़े थे। मैंने सोचा क्या यहाँ एक औऱत साल में दो सौ पैंटी बदलती है? 
    फिर सोचा कि किसी भी चीज़ को भोगने की भी इंसान में क्षमता होनी चाहिए। 'नीला 
    ब्यूटी किट' तीसरे दराज में मिला। बिल्कुल नीचे वाले में। ढेरों दवाइयों के बीच 
    पड़ा हुआ था।मेरा हाथ मिसेज बेरी को बहुत ही मुलायम लगा। सुबह-सुबह भी कनपटी के पास की नसें 
    तनी हुईं थीं।
 ''हाय प्रभा! तुम्हारे हाथ कितने सुहाते हैं? मन कर रहा है सो जाऊँ।''
 ''सो जाओ।''
 ''और मेरा काम?''
 ''करने की ज़रूरत है क्या?''
 एकदम से आँखें खोलकर वे उठ बैठीं, ''हाँ ज़रूरत है, बिल्कुल ज़रूरत है।''
 फिर वही तनाव, वही गंभीर गुमसुम चेहरा जो न कभी अपने बच्चों को देखकर 
    मुस्कुराता और न हँसोड़ पति की खिलखिलाहट में साथ देता।
 उस दिन शुक्रवार था। वीक एंड। दोपहर 
    चार बजे से भीड़ शुरू हो गई। वही ओलों की तरह टपकते हुए तरह-तरह के खाने की 
    चीज़ों का ऑर्डर। काउंटर पर खड़े-खड़े टाँगें दुखने लगीं। रात बाहर २ बजे आखिरी 
    चीज़ बर्गर और कोला काउंटर पर रखते हुए मिसेज बेरी की आवाज़ थी, ''शटर गिरा दो, 
    दुकान बंद है।''टिप के पैसे मेरी कोट की दोनों जेबों में ठुसे हुए थे। निकालकर गिनना शुरू 
    किया।
 ''माई गुडनेस! मिसेज बेरी? एक दिन में डेढ़ सौ डॉलर टिप?''
 ''हाँ और नहीं तो क्या? इतना तो मिलना ही चाहिए।''
 दुखती हुई एड़ियाँ, तनी हुई पीठ की शिराएँ, मैं सब भूल गई। मिसेज ड्यूपॉन्ट की 
    खनकती हुई हँसी याद आ गई। यह अमेरिका है। यहाँ बीस डॉलर से बीस मिलियन कमाया जा 
    सकता है।
 बिस्तर पर देर रात तक नींद नहीं आई। दिल उत्साह से धड़क रहा था। देखूँ कल क्या 
    होता है? लेकिन वह बरसता हुआ शनिवार था। बिक्री हुई मगर कम। ख़ासकर बच्चों के 
    जत्थे बाहर नहीं निकले। कुछ जवान जोड़े थे पर वे खाते कम थे। केवल बीयर या कोला 
    लिए घंटों बैठे रहते। फिर भी टिप में चालीस डॉलर मिले।
 रविवार को छुट्टी थी। रेस्टोरेंट बंद 
    था। डॉ. बेरी ने कहा, ''प्रभा को हम लोग पिकनिक पर ले जाएँगे।''हेल्गा ने कहा, ''नहीं प्रभा आज मेरे साथ बिताएगी।''
 बिटिना ने कहा, ''ममा! प्रभा इतनी मासूम है। उसको तुम क्यों जिंदगी के हादसों 
    से वाकिफ़ कर रही हो?''
 ''बिटिना, मुझे क्या करना चाहिए या नहीं, इसकी इज़ाज़त तुमसे लेनी होगी?''
 बिटिना ने हाथ का चम्मच टेबल पर दे मारा। ''ओह! मैं तुमसे नफ़रत करती हूँ। दिली 
    नफ़रत। क्यों जन्म दिया तुमने हम सबको? क्यों? बोलो क्यों?''
 चाय के कप में तूफ़ान उठ खड़ा हुआ। 
    डॉ. बेरी ने उठकर धीरे से बिटिना को बाँहों में भर लिया, ''शांत रहो मेरी 
    बच्ची! शांत रहो।'' |