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परमजीत कौर अपने कमरे में गुमसुम
बैठी थी। उसकी आँखें सामने पड़े कलश पर टिकी हुई थीं। उसका दो
वर्षीय पुत्र गहरी नींद सो रहा था। कमरे की निस्तब्धता को उसके
पुत्र की ज़ुकाम से बंद नाक की साँस की आवाज़ ही भंग कर रही
थी। कमरे का टेलिविजन भी चुप था, टेलिफ़ोन भी गला बंद किए कोने
में पड़ा था। किंतु यह चुप्पी किसी शांति का प्रतीक नहीं थी।
परमजीत के मन में तूफ़ान की लहरें भयंकर शोर मचा रही थीं। और
फरीदाबाद के सेक्टर पंद्रह के बाहर एक कुत्ता ज़ोर से रो रहा
था।
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रोना तो अब शायद
पम्मी के जीवन का अभिन्न अंग बनने वाला था। पम्मी...। हाँ,
हरदीप उसे इसी नाम से तो पुकारा करता था। पम्मी और हरदीप
एक-दूसरे के जीवन का अटूट हिस्सा बन चुके थे। पम्मी का उजला
खिला रंग रूप, बेदाग मुलायम चेहरा और अंग्रेज़ी (आनर्स) तक की
पढ़ाई, यही सब गुण तो उसे फरीदाबाद के सेक्टर अट्ठारह से सेक्टर
पंद्रह तक ले आए थे। हरदीप ने पम्मी को अपने किसी रिश्तेदार के
विवाह में देख लिया था। बस! तभी से बीजी के पीछे पड़ गया था,
'बीजी, जे ब्याह करना है, तो बस उस लाल सूट वाली से।'
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'लाल सूट वाली दा नाम तां पुछ लैंदा!' बीजी को अपने पुत्र की
व्यग्रता कहीं अच्छी भी लगी थी, उनका लाडला बेटा जापान जाने की
तैयारी में है। यदि, वहाँ से कोई चपटी नाक वाली जापानी पत्नी
उठा लाया तो बीजी का क्या होगा! बीजी लग गईं लाल सूट वाली की
तलाश में। |