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कहानियाँ  

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है यू के से तेजेंद्र शर्मा की कहानी- 'एक बार फिर होली'


नजमा की ज़िंदगी का वर्तमान रंग होली के रंगों से गहराई तक जुड़ा है। परसों ही नजमा भारत जाने वाली है। नजमा - एक पाकिस्तानी फ़ौजी की विधवा।  

कराची के एक बंगले में गुमसुम सी बैठी नजमा आज तक अपने जीवन की भूल-भुलइयाँ समझ नहीं पाई है। इस शहर में, इस देश में, वह कितनी बार आहत हुई है। कितनी बार उसने उस मौत को गले लगाया है जिसमे इंसान का शरीर तो नहीं मरता लेकिन आत्मा कई-कई मौतें मर जाती है। आज भी वह छलनी हुई आत्मा को अपने इस शरीर में ढो रही है जिसमें अपने ही ऊपर चढ़ाए गए कपड़ों को उठाने की ताकत नहीं।

यह सच है कि उसने इमरान को कभी अपना शौहर नहीं माना। वैसे निकाह के समय काज़ी साहब के पूछने पर उसने भी "हाँ" ही कहा था। लेकिन अगर अम्मा अपनी मौत का वास्ता दे कर कसमें दिलवाए, या फिर अब्बा मियाँ इस्लाम के ख़तरे में पड़ने का डर दिखाएँ तो वह बेचारी हाँ के अतिरिक्त कह भी क्या सकती थी। बुलंदशहर में जन्मी नजमा पाकिस्तानी सेना के कैप्टन इमरान के साथ विवाह कर कराची में आ बसी थी।
इमरान ख़ासा ज़िद्दी इंसान था, "देखो नजमा, अब तुम मेरी बेगम हो। यू हैव नो चॉयस।"

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