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					समकालीन कहानियों में इस माह 
					प्रस्तुत है-
					अमेरिका से इला 
					प्रसाद की कहानी-
					
					सांताक्लाज हँसता है 
	
                    
					  
              
                         
                    
					हो, 
					हो हो! सांताक्लाज हँसता है। 
					उसके साथ हँसते हैं वेरा, बेन और जेनी। उसे घेर कर नाचते हैं। 
					वेरा उसकी दाढी छूकर देखती है- कितनी मुलायम और ठंढी… बर्फ के 
					फाहे लगे हुए… उत्तरी ध्रुव से आता है सांता… चिमनी से घर में 
					घुसता है और बैठके में क्रिसमस ट्री पर छुपाकर रखे उनके पत्र 
					पढ़ता है। फिर उनकी माँगी चीजें रख जाता है। उसे सब पता है अब। 
					आज पकड़ा गया। वेरा ने सब देख लिया है। वह बाहर झाँक कर देखना 
					चाहती है – सांता की स्लेज बाहर होगी। सुनहले सीगोंवाले हरिण 
					जुते होंगे। क्या उनके सींगों पर भी बर्फ है, उजले हो गये हैं 
					वे भी यहाँ तक आते –आते… वह सांता से बात करना चाहती है, पूछना चाहती है- पिछले तीन 
					सालों से आया क्यों नहीं। लेकिन सांता 
					के फोन की घंटी बजने लगी है। सांता यह जा, वह जा…।
					बाय-बाय सांता। कम अगेन.. नेक्स्ट ईयर...
					सांता हँसा – हो, हो…वेरा चौंक कर जागी। सांता आया था। 
					मॉम रसोई में है। बेन और जेनी सो रहे हैं। वह माँ को बताना 
					चाहती है। 
					‘गुड मार्निंग मॉम।“ 
					“गुड मार्निंग बेबी।“ ... 
					आगे- 
					*** 
	
                    
					विमल सहगल का व्यंग्य 
					बीत चले त्योहारों के 
					दिन 
					
					
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					डा. मधु संधु का शोध 
					निबंध 
					२१वीं शती
					का प्रवासी
					उपन्यास: प्रेम के
					विविध रूप 
					
					
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					संस्कृति में जाने 
					जप-माला के अनोखे तथ्य 
					  
					
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      जयप्रकाश चौकसे का दृष्टिकोण-  
		वर्ष का अंतिम दिन- आनंद और अवसाद के बीच  |