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लघु-कथा

लघुकथाओं के क्रम में इस माह प्रस्तुत है
सुधा भार्गव की लघुकथा-
गोवर्धन आनलाइन


“माँ, बैठे-बैठे क्या सोच रही हो?”
“बेटा, कल गोवर्धन पूजा है, गोबर की जरूरत पड़ेगी। इस महानगरी में गोबर कहाँ मिलेगा? दूर दूर तक कोई गाय ही नजर नहीं आती। मैं तो बाहर जाकर भी देख आई। घड़ी-घड़ी कितने चक्कर लगाए होंगे। पिछली बार भी यही हुआ। तेरे पिता जी के श्राद्ध पर गऊ ग्रास देना था आसपास इतनी छानबीन की कि पैर टूट गए पर गाय माता के दर्शन ही न हुए।”
“जब गाय ही नहीं तो गोबर कैसे मिलेगा माँ?”
“ले भैया, आसपास कोई गाय ही न पाले। हमारे गाँव में तो घर घर गाय। आँख झपकते गोबर ही गोबर! अब कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा। अरे तू तो आफिस जा रहा है। लौटते समय जरूर कोई गाय चरती हुई दिखाई दे जायेगी। शाम को घास चरकर लौटे है न! बस एक मिनट को कार रोक लेना ,वही आसपास गोबर पड़ा जरूर नजर आ जाएगा। थोड़ा सा ही उठा लीजो।”

“ओ मेरी भोली माँ, तेरे गाँव की तरह यहाँ गाय-भैंस सड़क पर नजर नहीं आतीं। सड़क पर वो चलेंगी या बस-स्कूटर। उनको खुली छूट दे दी तो सारा ट्रैफिक रुक जाएगा। दो चार बस-ट्रक के नीचे आकर शहीद और हो जाएँगी, और हाँ चारों तरफ गोबर ही गोबर अलग ---उफ, बदबू का साम्राज्य!”
“लाख बदबू हो पर मुझे तो गोबर की जरूरत है। उसी से तो गोबरधन पर्वत बनेगा, तब कहीं जाकर पूजा होगी। मैं नहीं जानती तू कहीं से भी ला।”
“अच्छा, तू गोबर की चिंता न कर। अभी तेरी बहू से कह देता हूँ वह आनन फानन में गोबर का इंतजाम कर देगी। तेरी पूजा से पहले ही गोबर महाराज आन पधारेंगे।”

“क्या कहे! पिछली बार तो दो घंटे बाद भी गोबर न मिला। बड़ी बेचैनी में समय गुजरा। अब बहू ऐसा क्या जादू कर देगी कि ताली बजाते ही गोबर हाजिर।” सवालों से घिरी माँ की आँख बेटे पर जम गई।
माँ को यकीन दिलाने के लिए उसने आवाज लगाई –“अजी सुनती हो, जरा एमोजोन पर ऑन लाइन गोबर के कंडों(उपले) का आर्डर तो दे देना और हाँ, जरा जल्दी ही करना। आज ही अखबार में पढ़ा है, ऑन लाइन कंडों की बिक्री बड़े ज़ोर-शोर से हो रही है। एक मिनट की देरी हो गई तो उपले मिलने से रहे।”
“ठीक है –ठीक है, पूजा तो आपके बिना होने से रही। शाम को ऑफिस से आने के पहले ही कंडे दरवाजे पर हाजिर हो जाएँगे। फिर तो पानी छिड़कते की देर कि गोबर का अंबार ही अंबार नजर आयेगा।

माँ हैरान सी बहू बेटे की बातें सुन रही थी। चुप्पी तोड़ते हुए बोली –“बहू इस जादू नगरी में क्या सब कुछ मिले हैं?”
“हाँ मम्मी जी, कुछ और चाहिए तो वह भी बता दीजिये।”
“बहू, मुझे तो एक जीता जागता पोता और मँगा दे। मैं गोवर्धन भगवान की पूजा बड़े मन से करूँगी। वे मेरी इच्छा जरूर पूरी करेंगे। तू तो बस उसकी बुकिंग कर दे।”
सास की बात सुनकर बहू मुस्कराये बिना न रही और बोली, `अरे माँ जी आप भी न...।

१ नवंबर २०२२

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