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					जलवायु परिवर्तन 
					का अहसास- अशोक स्वैन
 
 
											जलवायु 
											परिवर्तन के प्रभाव के बारे में चर्चा 
											ज्यादातर ग्लेशियरों के पिघलने और 
											समुद्र के बढ़ते स्तर पर केंद्रित है, 
											लेकिन नदियों और झीलों पर इस विषय में 
											ज्यादा बात नहीं की जा रही है, जो 
											मानव उपयोग के लिए मीठे पानी की 
											आपूर्ति करती हैं। 
											
											नदियों और 
											झीलों मे पानी की कमी
 गर्म तापमान और वर्षा या बर्फबारी के 
											नियम में बदलाव के कारण दुनिया भर में 
											नदी और झील प्रणाली बड़े बदलावों से 
											गुजर रही है। जबकि पाकिस्तान गंभीर 
											बाढ़ का सामना कर रहा है, कई प्रमुख 
											नदियों में पानी का प्रवाह उत्तरी 
											अमेरिका से यूरोप, मध्य पूर्व से 
											पूर्वी एशिया तक खतरनाक रूप से कम हो 
											गया है।
 
 कोलोराडो में जल स्तर दशकों से गिर 
											रहा है। यह इस स्तर पर पहुँच गया है 
											कि इस गर्मी में हूवर बाँध के पीछे 
											शक्तिशाली मीड झील लगभग एक मृत कुंड 
											बन गयी है। चार करोड़ से अधिक लोग 
											राइन नदी पर निर्भर हैं, जो चिंताजनक 
											रूप से सूख रही है।
 
 राइन पर जल परिवहन पर समझौता यूरोपीय 
											संघ के निर्माण के लिए नींव का पत्थर 
											था। जर्मनी में कुछ जगहों पर उस नदी 
											का जल स्तर ३२ सेंटीमीटर तक गिर गया 
											है, जिससे कंटेनर जहाजों का संचालन 
											लगभग असंभव हो गया है। तथाकथित 'हंगर 
											स्टोन' जर्मनी की राइन नदी और चेक 
											गणराज्य की एल्बे नदी में फिर से 
											सामने आए हैं। 'हंगर स्टोन' एक प्रकार 
											के हाइड्रोलॉजिकल लैंडमार्क हैं जो 
											सामान्यता मध्य यूरोप में पाए जाते 
											हैं। ये पत्थर अकाल इतिवृत्त और 
											चेतावनी के रूप में कार्य करते हैं और 
											वर्तमान पीढ़ी को प्राचीन समय में 
											पड़े भीषण अकालों की याद दिलाते हैं।
 
 यूरोप और चीन 
											अपनी नदियों को खो रहे है
 
 इटली की पो नदी में हाल ही में कई बार 
											बाढ़ आई है, लेकिन इस गर्मी में इसकी 
											नदी के किनारे पर द्वितीय विश्व युद्ध 
											के युग का बम मिला, क्योंकि पानी का 
											प्रवाह लगभग सूख चुका था। फ्रांस को 
											अपने कुछ परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के 
											संचालन को कम करने के लिए मजबूर किया 
											गया है क्योंकि रोन और गारोन नदियों 
											के पानी का तापमान बहुत अधिक था, 
											जिसका उपयोग प्लांट कूलिंग उद्देश्यों 
											के लिए नहीं किया जाना असंभव हो चुका 
											था।
 
 सूखे ने इंग्लैंड की टेम्स नदी का 
											स्रोत भी सुखा दिया है। यूरोप की कई 
											महत्वपूर्ण नदियाँ - डेन्यूब, 
											गार्डियाना और लॉयर में भी पानी की 
											गंभीर कमी है। यूरोपीय सूखा वेधशाला 
											के अनुसार, यूरोप का लगभग आधा हिस्सा 
											सूखे की चेतावनी के अधीन है, और शायद 
											पिछले ५०० वर्षों में ऐसा कभी नहीं 
											हुआ है।
 
 चीन में भीषण लू के कारण सूखे के 
											पुराने कीर्तिमान टूट गए है। नई 
											जलवायु के कारण यांग्त्ज़ी सहित देश 
											की कई नदियाँ सूख रही हैं। विशाल 
											यांग्त्ज़ी ४० करो़ड़ से अधिक लोगों 
											को पीने के पानी की आपूर्ति करती है 
											और चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए 
											महत्वपूर्ण है। इस वर्ष इसका जल 
											प्रवाह पिछले पाँच वर्षों के औसत के 
											आधे से नीचे चला गया है, मुख्य रूप से 
											बेसिन में वर्षा में ४५ प्रतिशत की 
											गिरावट के कारण इसके जल स्तर में कमी 
											हुई परिणाम स्वरूप चीन को शिपिंग में 
											भारी व्यवधान और जल विद्युत उत्पादन 
											में गिरावट के झेलनी पड़ी।
 
											
											बढ़ता तापमान 
											और उसके प्रभाव
 पानी की बढ़ती मांग और तेजी से गर्म 
											हो रहे ग्रह के कारण न केवल नदी 
											प्रणालियों में जल प्रवाह में गिरावट 
											आई है, बल्कि कई प्रमुख मीठे पानी की 
											झीलें भी सूख रही हैं। मध्य एशिया में 
											अरल सागर, बोलिविया में पूपो झील, 
											मध्य अफ्रीका में चाड झील और 
											कैलिफोर्निया में ओवेन्स झील के जल 
											निकाय लगातार सिकुड़ रहे हैं, जिससे 
											इन झीलों में और इसके आसपास एक गंभीर 
											पारिस्थितिक संकट पैदा हो रहा है और 
											खाद्य उत्पादन के लिये और अधिक 
											चुनौतियाँ आ रही हैं।
 
											बरसात 
											के बदलती प्रकृति और अत्यधिक 
											वाष्पीकरण ने दुनिया के कई हिस्सों 
											में नदियों और झीलों में पानी की 
											मात्रा को काफी कम कर दिया है। नदियों 
											और झीलों के सूखने से न केवल सिंचाई, 
											नौवहन और औद्योगिक उत्पादन पर 
											प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है; इसने 
											प्रदूषण के बढ़ते स्तर को भी जन्म 
											दिया है क्योंकि पानी की कमी के कारण 
											सामान्य प्रदूषकों भी पानी में घुलकर 
											नष्ट नहीं हो पाते हैं।
 बढ़ते प्रदूषण और नदियों और झीलों में 
											पानी के बढ़ते तापमान के कारण 
											मछलियाँ, पौधे और वन्यजीवों की मृत्यु 
											हो जाती है। जलवायु संकट ने मौसम के 
											सामान्य रूप को बदल दिया है, नदियों 
											और झीलों और उन पर निर्भर लोगों और 
											पारिस्थितिक तंत्र (इको सिस्टम) को 
											महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है।
 
 जल बँटवारा 
											तंत्र
 
 इसके अतिरिक्त, इनमें से अधिकांश 
											नदियाँ और झीलें देश की सीमाओं को पार 
											करती हैं और दो या दो से अधिक देशों 
											के बीच साझा की जाती हैं। पानी के 
											बँटवारे को लेकर कोलोराडो से राइन तक, 
											डेन्यूब से टर्की की यूफ्रेटिस या 
											फरात नदी और टाइग्रिस या दजला नदी से 
											लेकर अरल सागर तक बेसिन देशों के बीच 
											औपचारिक और अनौपचारिक मानदंड और 
											संस्थान विकसित किए गए हैं।
 
 हालाँकि, ये मौजूदा जल बँटवारे के 
											नियम या बेसिन आधारित जल प्रबंधन 
											संस्थान मीठे पानी पर सहयोग के मार्ग 
											का मार्गदर्शन करने के लिए अपर्याप्त 
											साबित हो रहे हैं क्योंकि जलवायु 
											परिवर्तन ने इसकी उपलब्धता में 
											अभूतपूर्व कमी ला दी है। जबकि नदियों 
											और झीलों पर पुराने जल समझौते गंभीर 
											दबाव में हैं, जल बंटवारे पर नए 
											समझौतों पर हस्ताक्षर करना लगभग असंभव 
											होता जा रहा है।
 
											
											क्या है भविष्य 
											के गर्भ में
 जलवायु परिवर्तन ने पहले ही पृथ्वी के 
											जल संतुलन को खो दिया है, और दुनिया 
											के कई हिस्सों में नदी के प्रवाह को 
											महत्वपूर्ण रूप से बदल दिया है। 
											संभावना यह है कि यह सब भविष्य में भी 
											जारी रहने वाला है। इस साल नदियों और 
											झीलों का सूखना एक साल की घटना नहीं 
											रहेगी, इस घटना के अधिक बार दोहराने 
											की संभावना है। इन सारी समस्याओं के 
											से बचने के लिये सारी दुनिया को 
											जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी लड़ाई 
											को प्राथमिकता देते हुए एक साथ आना 
											चाहिये।
 
											
											१ नवंबर २०२२ |