इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
सुरेश कुमार पांडा, बसंत ठाकुर, नीहारिका झा पाण्डेय,
गोपाल बाबू शर्मा और तरुण
भटनागर
की
रचनाएँ। |
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साहित्य व संस्कृति में-
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1
समकालीन कहानियों में भारत से
जयनंदन की कहानी-
पनसोखा
जब भी गाँव गया बासो ठाकुर
को अलग-अलग वेश में देखा। कभी मिलिट्री के लिबास में, कभी
सिपाही के, कभी करखनिया मजदूर के, कभी रेलवे कुली के। अपना यह
बहुरूप वे हास्य पैदा करने के लिए नहीं बल्कि वस्त्रहीनता की
स्थिति में हास्यास्पद बनने से बचने के लिए अख्तियार करते थे।
बासो ठाकुर हमारे गाँव के नौकरियाहों के आईना थे, जिन्हें
देखकर बहुत हद तक अनुमान लगाया जा सकता था कि यहाँ किस-किस
महकमे में काम करने वाले लोग हैं। बेले-मौके आये नौकरियाहों की
विशेष सेवा-टहल करके वे उनकी देह-उतरनों को प्राप्त करते थे,
जो तुरंत चढ़ जाता था उनके अधनंगे बदन पर। चूँकि अक्सर दूसरे के
मिलने तक पहला तार-तार हो चुका होता था। एक बार तो हद ही हो गयी जब चूहे द्वारा कई जगह काट दिये जाने
की वजह से राजसी पोशाक और सैकड़ों कतरन से बनायी हुई जोकर ड्रेस
को नाटक-मंडली के लड़कों ने बेकाम समझ उन्हें दे दिया।
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वीरेन्द्र जैन का व्यंग्य
पागलपन के पक्ष में
*
मनोज श्रीवास्तव की पड़ताल-
प्रवासी हिंदी साहित्य में परंपरा, जड़ें और देशभक्ति
*
गुरमीत बेदी के साथ पर्यटन में
श्रद्धा और सौंदर्य का संगम मंडी
*
समाचारों में
देश-विदेश से
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पिछले
सप्ताह- |
1
कृष्ण बजगाईं की लघुकथा
तर्जनी उँगली
*
गिरीश पंकज का आलेख
नागार्जुन का कथा साहित्य
*
कमलेश माथुर का निबंध
रूप रंग अमलतास
*
सामयिकी में दयानंद पांडेय का लेख
शब्दाचार्य अरविंद कुमार
*
भूली बिसरी कहानियों में भारत से
हिमांशु श्रीवास्तव की कहानी-
फर्क
बच्चों के
लिये कॉरपोरेशन का स्कूल नजदीक ही, बगल की सँकरी और गन्दी गली
से आगे था। मदन के दोनो बच्चे इसी स्कूल में पढ़ते और अपने
साथियों से रोज नई नई गालियाँ सीख कर अपने घर लौटते थे। यह सब
देख-सुन और अनुभव कर मनोरमा को बड़ा दुख होता था और वह अक्सर
सोचा करती कि उसके बच्चों को ऐसा नहीं होना चाहिये था। कभी कभी
उसकी इच्छी होती कि उसकी इस टीस में उसका पति मदन भी भागीदार
बने पर मदन को जैसे इस भागीदारी से गहरी नफरत थी। जब कभी
मनोरमा यह देखती कि उसके दो लड़के उसके संतान सुख के सुनहले
सपने को सूखे हुए सरोवर में तड़पती हुई मछली का रूप देने की
तैयारी कर रहे हैं तो उसका हृदय संभल नहीं पाता और तब यदि मदन
घर में होता, वह उसके पास आकर बुझते हुए स्वर में कहती, "देखो
चुन्नू या मुन्नू दोनो में से एक भी ठीक नहीं चल रहे हैं।
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