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प्रकृति और पर्यावरण

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रूप रंग अमलतास
– कमलेश माथुर


फिर आ गया मौसम धरा के अनुपम शृंगार का। नंगे, पर्णविहीन पीत पुष्प अमलतास के रूप रंग का। अब सजेंगे कसीदे, प्रकृति की पुष्पवल्लरी के। धूप और झुलसती आग उगलते सूरज को छकाएँगे अब लाल सुर्ख गुलमोहर और स्वर्ण पीत अमलतास के मन­भावन पुष्प। लाल-पीले रेशमी पुष्पों के धागों से सजी धरा की यह चिताकर्षक छटा हर जन-मन को अनायास ही आकर्षित करती है। एक तरफ अशरफियों से लदा गुलमोहर अपने आग्नेय पुष्पों से ठौर- ठौर पर अपना जादू चलाएगा। वहीं दूसरी तरफ वनस्पति जगत् में कोमल कमनीय असंख्य बताशेनुमा पीली स्निग्ध पंखुड़ियों वाले पुष्प समूह समूचे अमलतास को पीताम्बरधारी बना देने को आतुर होंगे।

प्रकृति के इस अनूठे आश्चर्य की सबसे बड़ी विशेषता है - अमलतास का पतझड़। मार्च के अन्त तक या अप्रैल के आरम्भ ­ तक इस वृक्ष में लटकती दो फुटिया फलियों का हरा रंग शनैःशनैः काला होने लगता है और यहीं से अमलतास के वृक्ष से सूखे पर्ण झड़ने शुरू हो जाते हैं। पतझड़ की प्रक्रिया लगभग पन्द्रह दिन तक चलती रहती है। इन दिनों शनैःशनैः अमलतास लगभग ठूँठ जैसै पर्णविहीन केवल काली फलियाँ लटकाए मनहूस-सा खड़ा रहता है। ऐसी दशा देखकर इसके पुष्पित पल्लवित देखने की सहज कल्पना निर्मूल लगती है। इस पन्द्रह दिनों तक इस पर्णत्यागी मौन तपस्वी की मानो परीक्षा चल रही होती है कि जब तक इसका एक-एक पर्ण झड़ नहीं जाता और यह एकदम ठूँठ स्वरूप नहीं बन जाता इस पर एक भी कली नहीं चटखेगी, न ही फूल खिलेंगे और न ही बिछेगा पीत पुष्प का कालीन धरा इस पर। शायद इसीलिए अंग्रेज़ी में इस वृक्ष को ‘गोल्डन शॉवर’ कहते हैं। कर्नाटक में अमलतास की डंडी ज़मीन में गाड़कर इसकी पूजा की जाती है। छत्तीसगढ़ के लोग अपने घरों के आसपास अमलतास वृक्ष अवश्य लगाते हैं। वे इसे सौभाग्य
सूचक मानते हैं।

पत्तों की अन्तिम खेप झड़ते ही अमलतास पर जैसे प्रकृति का जादुई चमत्कार होता है। देखते ही देखते रातों-रात इस पर्ण त्यागी मौन तपस्वी का मौन टूटता है। एक सुबह महीन-महीन, हरी-हरी, गोल झरबेरी के झुंड कलियों से लदे-पदे अमलतास को एक सप्ताह के अन्दर-अन्दर प्रकृति आश्चर्यजनक मखमली पीली चिकनी मुलायम अगणित पंखुड़ियों में गुँथे असंख्य समूहों की चादर में सजा-सँवारकर तैयार कर देती है। फिर तो अम्लीय तासीर वाली प्रकृति की इस अनूठी सौगात के रूप-रस-गंध का शब्दों में वर्णन करना कठिन है। अमलतास की इस अनुपम पीताम्बरी छटा का रहस्य अप्रैल माह के मध्य खुलता है। इस समय नर्म-नाज़ुक असंख्य पीतपुष्प वल्लिरयाँ हवा के तनिक स्पर्श मात्र से ही वृक्ष के इर्द-
गिर्द मदहोशी में झूम-झूम जाती हैं और दूर-दूर तक अपनी भीनी- भीनी रसगंध से प्राणी मात्र को मदहोश करती हैं।

मूलतः वनस्पति शास्त्र में अमलतास को ‘औषधीय वृक्ष’ (कैसिया फिस्टुला) के नाम से जाना जाता है। अमलतास अर्थात् अम्लीय, क्षारीय प्रकृति या तासीर वाला वृक्ष। क्षारीय होने के कारण अमलतास की छाल का उपयोग मुख्यतः चमड़ा-शोधन में किया जाता है। इसकी लकड़ी बहुत मजबूत होने से इसका फर्नीचर बनाया जाता है। अमलतास की लम्बी और गोल फलियों का भी बहुमूल्य औषधीय उपयोग किया जाता है। ये फलियाँ चमत्कारिक गुणों से भरपूर है। प्रायः अलसर, तेज बुखार, मलेरिया, पीलिया, कमजोरी एवं पेचिश जैसे रोगों में इनके प्रयोग गुणकारी सिद्ध हुए हैं। कुछेक मान्यतानुसार अमलतास की सूखी फली को सिरहाने तकिए के नीचे रखकर सोने से बुरे, डरावने व दुःखद स्वप्नों से मुक्ति मिलती है अतः भीरू प्रकृति के लोगों के लिए यह अति उपयोगी औषधि है। पर्यावरण की दृष्टि से वैज्ञानिकों ने भी अमलतास के सघन वनों को अपेक्षाकृत सर्वाधिक स्वस्थ और स्वच्छ स्वीकारा है। कुल मिलाकर अमलतास के चिकने, कोमल, रेशम से मुलायम पीत पुष्प समूह के अवर्णनीय सौन्दर्यपान के साथ इसके पत्ते, छाल, फली व लकड़ी का विभिन्न क्षेत्रों में सदुपयोग सिद्ध होने से इस वृक्ष की प्रकृति जगत् में अपनी एक विशिष्ट पहचान सिद्ध होती है। पथरी एवं मधुमेह में भी केसिया पल्प से दवा तैयार होती है। अस्थमा के लिए अचूक दवा है केसिया एवं मधुमेह में भी केसिया पल्प से दवा तै
यार होती है। आयुर्वेद में अमलतास द्वारा विविध रोगों का उपचार एवं विधि वर्णित है।

अमलतास की विशेषता यह भी है कि यह भारत में प्रायः जहाँ पहाड़ी इलाकों में विस्तार से फलता-फूलता है वहीं युरोप और अमेरिका में भी उतने ही चाव से लगाया जाता है। हाँ इतना अवश्य है कि भारत की जलवायु अमलतास के लिए सर्वाधिक अनुकूल एवं उपयुक्त होने से यह भारत के हर हिस्से में और ठौर- ठौर पर अपनी पीताम्बरी पुष्प वितान से आच्छादित छटा के सम्मोहन में बाँधने में सक्षम है। इसे घर, उद्यान, बाग-बगीचे, सड़क किनारे कहीं भी कलम के रूप में रोपा जाता है। असंख्य पीत पुष्प समूह से लदे-पदे इसके चित्ताकर्षक वितान बहुत दूर से ही अपनी भीनी-भीनी मदमाती मधुर गंध से जन-जन को मदहोश करते हैं। अमलतास को महानगरीय सड़कों के किनारे श्रृंखलाबद्ध लगाया जाए तो अप्रेल-मई की झुलसती दोपहर या जे की गर्म लू के थपेड़ों में भी अमलतास की छाँह में राहगीर को स्वर्गीय आनन्द की अविस्मरणीय अनुभूति होगी।

२७ जून २०११

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