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१३. ६. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
अमृत खरे, रणवीर सिंह अनुपम, श्रद्धा यादव, सुधा अरोड़ा और  त्रिलोकीनाथ टंडन की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- कवाबों की स्वादिष्ट दुनिया में ले जा रहे है शेफ आलोक नारायण। इस अंक में प्रस्तुत हैं- कमल ककड़ी के सीक़ कवाब।

फुलवारी में बच्चों के लिये- विश्व के २६ प्रमुख देशों के विषय में रोचक जानकारी से परिपूर्ण चित्र आलेख- देश - देशांतर के अंतर्गत

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- माइग्रेन के लिये काली मिर्च, हल्दी और दूध

- रचना और मनोरंजन में

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- अभिव्यक्ति के पुराने अंकों में से प्रस्तुत है- डॉ. सूर्यबाला की कहानी- दादी और रिमोट

कंप्यूटर की कक्षा में- फ़ोटोशॉप का एक मुफ्त और मुक्त विकल्प अनुप्रयोग जिम्प के नाम से उपलब्ध है। क्षमताओं के हिसाब से यह फ़ोटोशॉप के

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- १६ में नवगीतों का प्रकाशन प्रतिदिन जारी है। चनाएँ अभी भी भेजी जा सकती हैं

वर्ग पहेली-०३३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- चौपाल में इस सप्ताह संगीत और नाटक पर आधारित एक कार्यक्रम का नाट्य आलेख पढ़ा गया। नाट्य अंश थियेटरवाला प्रस्तुत आगे पढ़ें...

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य व संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में यू.के. से
तेजेन्द्र शर्मा की कहानी- धुँधली सुबह

आज फिर वही हुआ। ठीक आठ बजे रात को बिजली गुल। दिव्या सहम गई। उसने राहुल को अपनी छाती से चिपका लिया। किन्तु बहुत जल्दी ही उसे अपना निर्णय बदलन देना पड़ा। गर्मी के मारे राहुल ने रोना शुरू कर दिया था। राहुल की चिल्लाहट जैसे अन्धेरे से टकराकर एक गूँज-सी पैदा करने लगी थी। अन्धेरा धीरे-धीरे ठोस हुआ जा रहा था। राहुल चिल्लाए जा रहा था और चीख़ें अन्धेरे से टकराए जा रही थीं। बाहर एक ऑटो-रिक्शा रुकने की आवाज हुई। दिव्या की जान में जान आई। शायद प्रभात आ गया है। कल उसके देर से आने पर दोनों में जमकर युद्ध हुआ था। अब तो यह रोज़ ही होने लगा है। यह छोट-छोटे युद्ध किसी-किसी दिन महायुद्ध का रूप धारण कर लेते हैं। कल रात एक वैसी ही अन्धेरी रात थी। चिपचिपाहट से गीली हुई रात। प्रभात रात के एक बजे घर लौटा था - शराब के नशे में धुत! कितना अच्छा इन्सान हुआ करता था यह आदमी। क्या हो गया है उसे! किसकी नज़र लग गयी है उनके घर को। पूरी कहानी पढ़ें...
*

शरद जोशी का व्यंग्य
नेतृत्व की ताकत
*

कनीज भट्टी का आलेख
रंग बिरंगी जयपुरी रजाइया

*

श्रीराम परिहार का ललित निबंध
शब्द वृक्ष 
*

पुनर्पाठ में अंबरीष मिश्र के साथ बनें
हिमालय के हमसफ़र

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पिछले सप्ताह-

1
नंदलाल भारती की लघुकथा
लैपटॉप
*

एम.एस. मूर्ति से रंगमंच पर
आंध्र प्रदेश की नाट्य शैलिया

*

विवेक मांटेरो से जानें
परमाणु ऊर्जा- आवश्यकता या राजनीति 
*

पुनर्पाठ में राजेन्द्र प्रसाद सिंह का आलेख
भोजपुरी में नीम आम और जामुन

*

समकालीन कहानियों में भारत से
अशोक गुप्ता की कहानी- शोक वंचिता

उस समय रात के डेढ़ बज रहे थे...
कमरे की लाईट अचनाक जली और रौशनी का एक टुकड़ा खिड़की से कूद कर नीचे आँगन में आ गिरा।
लाईट दमयंती ने जलाई थी। वह बिस्तर से उठी और खिड़की के पास आ कर बैठ गई। उसके बाल खुले थे, चेहरा पथराया हुआ था लेकिन आँखें सूखी थीं।
दमयंती ने खिड़की के बाहर खिड़की के बाहर अपनी निगाह टिका दी। चारों तरफ घुप्प अँधेरा था, लेकिन दमयंती को भला देखना ही क्या था अँधेरे के सिवाय? एक अँधेरा ही तो मथ रहा था उसे भीतर तक... नीचे आँगन में दमयंती की सास के पास दमयंती का पाँच बरस का बेटा सोया हुआ था। वहीं, अपने घर से आई हुई दमयंती की छोटी बहन अरुणा भी सोई हुई थी। अँधेरे को भेद कर देखते हुए दमयंती ने सीढियों पर कदमों की आहट सुनी।   पूरी कहानी पढ़ें..

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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