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                     वह 
                    बार बार खड़े हो कर ऊपर देखता है और बैठ जाता है। आधे घंटे के 
                    कठिन इंतज़ार के बाद ज़मींदार का नौकर संदेश देता है - "मालिक 
                    से आज मुलाक़ात नहीं होगी।" तामि बिना मुलाक़ात किये कैसे चला जाए?
 जब तामि की 
                    पत्नी ज़मींदार के घर आई थी तो यह तय हुआ था कि कर्ज के पैसे 
                    वापस करते ही वह पत्नी को घर वापस ले आएगा। लेकिन ऐसा हो ही 
                    नहीं पाया। आज भी तामि के हाथ ख़ाली हैं। दो हज़ार रूपये का 
                    कर्ज़ लिया था उसने। दो हज़ार रूपये वह कहाँ से लाए? और उसका 
                    ब्याज? वह तो उसे मालूम भी नहीं कि कितना हो गया होगा। फिर भी 
                    वह ज़मीदार से पूछना चाहता है कि क्या एक हफ्ते के लिए वह अपनी 
                    पत्नी को घर ले जा सकता है? वह इस तरह की ज़िन्दगी से तंग आ 
                    गया है। बाहर खड़े 
                    हुए तामि अंदर देख सकता है। पूर्व के द्वार के भीतर अंधेरा है। 
                    अंधेरे के अंदर से मालकिन बाहर आई और तामि को खड़े देख कर 
                    पूछा, "तामि, यहाँ कैसे खड़े हो?"
 "ऐसे ही मालकिन।"
 "तुम्हें गाभिन नंदिनी गाय दी थी। सुना है हफ्ते भर पहले ब्याई 
                    है। उसको वापस कब कर रहे हो?"
 "दो दिन बाद वैद्य ने एक दवा देने को कहा है, उसके बाद नंदिनी 
                    को वापस कर दूँगा।" तामि ने जवाब दिया।
 "उसे जल्दी वापस कर दो। हर किसी को दूध चाहिए।"
 "ठीक है, मालकिन।"
 इसके बाद भी 
                    तामि खड़ा ही रहा।मालकिन ने पूछा, "अब क्या चाहिए?"
 तामि कुछ नहीं बोला। मुँह झुका कर सिर खुजाने लगा।
 मालकिन ने पूछा, "बोलो तामि क्या बात है?"
 "हुजूर मैंने लक्ष्मी के बारे में मालिक से कहा था
 यह सुनते ही मालकिन मुँह फुला कर बिना कुछ जवाब दिये अंदर चली 
                    गई। तामि ने उसे घर के अंधेरे में गुम होते हुए देखा। हर रोज़ 
                    वह तामि और उसकी बेटी के लिये खाने का कुछ सामान देती है लेकिन 
                    आज उसने वह भी नहीं दिया।
 अब तामि क्या 
                    करे? क्या वापस घर लौट जाए? सुलू माँ के बारे में पूछेगी तो वह 
                    क्या जवाब देगा? फिर किसी और दिन का वायदा करना होगा यह सोचते 
                    हुए तामि भारी कदमों से धीरे-धीरे घर लौट पड़ा।  हवेली की 
                    दूसरी मंज़िल से दो आँखें घने पेड़ों के बीच से गुज़रते हुए 
                    तामि का पीछा करती हैं - जब तक वह आँखों से ओझल नहीं हो जाता। 
                    इसके बाद लक्ष्मी नीचे आकर दोपहर के भोजन के लिये ज़मींदार की 
                    प्रतीक्षा करती है। पान में लौंग, इलायची, कत्था, चूना सजा कर 
                    बीड़ा बनाती है। उसे करीने से पीतल की थाली में सजाती है। 
                    बिस्तर की चादर बदलती है। तकिये का खोल बदल कर उसे ठीक से 
                    लगाती है। कपड़े बदल कर सजती-संवरती है और गुलाबजल से सुवासित 
                    होकर ज़मींदार की प्रतीक्षा करती है।  कभी वह 
                    खिड़की पर खड़ी होती है कभी फ़र्श पर बैठती है कभी खेत की ओर 
                    पेड़ों को देखती है और कुछ विचार उसके मन को मथने लगते हैं - 
                    अभी तक उसका पति घर पहुँच गया होगा सुलू ने अपनी माँ के बारे 
                    में पूछा होगा तामि ने फिर से अगली बार का वायदा किया होगा, 
                    फिर सुलू ने क्या जवाब दिया होगा? खट, खट, खट
                    लक्ष्मी खड़ी हो जाती है। पदचाप नज़दीक आती है। दरवाज़ा खुला 
                    है। ज़मींदार आता है और दरवाज़ा बंद कर के सिटकनी चढ़ा देता 
                    है। वेष्टि को उतार कर खूँटी पर टाँग देता है और स्नान करने 
                    चला जाता है।
 लक्ष्मी पलंग 
                    के पायताने बैठ कर पान बना रही है। ज़मीदार कहता है, "तामि आया 
                    था।" लक्ष्मी चुप रहती है। "तुम्हें पता है वह किसलिए आया था?"
 "हूँ।"
 "तुम सोचती हो मैं तुम्हें भेज दूँगा?"
 लक्ष्मी चुपचाप ज़मींदार के सीने पर हाथ फेरती है। उसकी श्यामल 
                    उँगलियाँ ज़मींदार के गोरे सीने पर बालों को सहलाती हैं। वह 
                    लक्ष्मी को आलिंगन में लेते हुए पास बैठने की जगह बनाता है। 
                    लक्ष्मी को पान की सुगंध पसंद है। पान के साथ मिली जुली 
                    ज़मींदार के शरीर की गंध लक्ष्मी को आकर्षित करती है। लक्ष्मी 
                    के कोमल शरीर का स्पर्श करते हुए वह पान का रस निगल कर कहता है 
                    - "तुम्हें मालूम है मैंने तामि को २००० रुपए दिए हैं।"
 "हूँ" - लक्ष्मी सिर्फ़ इतना ही बोलती है।
 ज़मींदार को 
                    यही पसंद है। ऐसा न करने पर वह नाराज़ हो सकते हैं। पर इस समय 
                    वह हुंकारी देना भूल गई। इसके दिमाग में पुराना दृष्य घूमने 
                    लगा है। हवेली के बाहरी आँगन में वह तामि के पीछे डरती हुई 
                    खड़ी है। ज़मींदार दूसरी मंज़िल के जंगले को छोड़ कर नीचे आता 
                    है और लक्ष्मी से पूछता है मेरी बात तुम्हें याद है। लक्ष्मी 
                    कहती है, "हूँ।"  "जब तुम दो 
                    हज़ार रुपए ब्याज के साथ वापस करोगे उसे समय इसे वापस ले 
                    जाना।"तामि ने अपने कंधे पर गमछे को ठीक करते हुए, धोती के छोर से 
                    मुँह को ढ़ँकते हुए सिर झुका कर कहा था, "जी हुज़ूर।"
 फिर उसने लक्ष्मी से पूछा था, "तुम्हारा नाम क्या है?"
 "लक्ष्मी", उसने कहा था।
 ठीक है, दक्षिण में रसोई के पास जाओ वहाँ मालकिन होगी।"
 लक्ष्मी के 
                    लिए माहौल परिचित था। धान कूटना, उड़ाना, अनेक नौकर-नौकरानियाँ 
                    इस काम में लगे हुए - लेकिन इस समय उसकी परिस्थिति अलग थी। वह 
                    मजदूरी करने नहीं आई थी बंधुआ थी। उसे उनकी हुंकारें उनके 
                    चेहरे और हाव भाव रुचिकर नहीं लगे। न ही उन लोगों को लक्ष्मी 
                    का इस प्रकार आना अच्छा लगा। दोपहर में वह अन्य महिलाओं के साथ 
                    भात और कांजी खाने बैठी। शाम के समय सभी कामगार औरते अपनी 
                    दिहाड़ी लेकर चली गईं। लक्ष्मी अकेली रह गई। उसे पति और बेटी 
                    की याद आने लगी। अंधेरा धीरे-धीरे घना हो रहा था। उसका मन दुख 
                    से भर गया और वह रोने लगी।  उसकी समझ में 
                    नहीं आ रहा था कि इस रात में वह क्या करे। मालकिन का व्यवहार 
                    कठोर था पशु के समान। लक्ष्मी ने सुना मालकिन के रसोईघर में 
                    नौकरानी से बात कर रही थी। लक्ष्मी को मालूम है - उस नौकरानी 
                    का नाम माधवी है। छोटी खिड़की के पीछे रात का भोजन तैयार करते 
                    और आते जाते वे लोग लैंप के प्रकाश में दिखाई पड़ रहे थे।
                     इसी समय एक 
                    लालटेन का प्रकाश उसके आया। अब लालटेन ऊँची उठ कर ठीक उसके 
                    चेहरे के सामने थी - और ज़मींदार के चेहरे पर अनेक प्रश्न 
                    चिह्न। वह बिना कुछ बोले धीरे-धीरे दूर चला गया। थोड़ी देर में 
                    माधवी और मालकिन उसके पास आए। नौकरानी के हाथ में एक कटोरी में 
                    तेल, सुवासित साबुन, धोबी के धुले और इस्त्री किए कपड़ों का एक 
                    जोड़ा था। लक्ष्मी नौकरानी के साथ तालाब पर चली गई। 
                     नहाने के बाद 
                    वह अच्छे कपड़े पहन कर घर लौटी थी। रसोईघर में उसे अच्छा खाना 
                    दिया गया था। उस समय नौकरानी का व्यवहार बेहतर था। उसे याद आया 
                    कि दोपहर में कांजी और चावल देते समय उसका व्यवहार कितना कठोर 
                    था। इस समय मालकिन का व्यवहार भी दयापूर्ण था।  आज इस समय वह 
                    ज़मीदार के कंधे पर लेटे लेटे सोंच रही है। किस तरह वह ओखलवाले 
                    कमरे से रसोईघर और रसोईघर से सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर ज़मीदार के 
                    शयनकक्ष तक पहुँच गई हैं। दिन, महीने, साल ध़ीरे-धीरे बीतते गए 
                    हैं। वह धीरे-धीरे इस माहौल की अभ्यस्त हुई है। उसे यह भी नहीं 
                    याद कि वह कौन है। कभी कभी उसे अनुभव होता है - मेरा पति, मेरी 
                    बेटी, मेरा घर मेरा इंतज़ार कर रहे हैं। क्या उसके जीवन का कोई 
                    अर्थ है?"हूँ।" अचानक उस तंद्रा से आकर वह जवाब देती है, "मैं अपनी 
                    बेटी को देखना चाहती हूँ।"
 "हूँ", एक भारी आवाज़ के साथ ज़मींदार हामी भरता है।
 अगली सुबह 
                    रसोईघर में लक्ष्मी ज़मीदार के लिए चाय बनाते समय मालकिन ने 
                    बताया, "आज तुम्हारी बेटी आएगी। ""अच्छा", वह कहती है।
 "ज़मींदार ने तुम्हें नहीं बताया?"
 "नहीं मालकिन।"
 "तामि को किसी से संदेश भेजा था।"
 बेटी से मिले 
                    बिना बहुत समय बीत गया - दो साल या तीन साल। सालों का गणित भी 
                    वह भूल गई है। मेरी बेटी बड़ी हो गई होगी। 
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