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व्यक्तित्व

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सच्चिदानन्द राउतराय की रचनाएँ

साहित्य संगम के अंतर्गत कहानी
जंगल

 

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सच्चिदानन्द राउतराय

जन्म : १९१६, खुर्घा, उड़ीसा में। स्वाधीनता-संग्राम सहित अनेक आन्दोलनों में भाग लेने के कारण कई बार जेल-यात्रा। बी. ए. करने के उपरान्त बीस वर्ष कलकत्ते में नौकरी और फिर कटक-वास।

कार्यक्षेत्र : १२ वर्ष की आयु से लेखन में प्रवृत्त सची राउतराय का प्रथम काव्य-संकलन 'पाथेय' १९३२ में प्रकाशित हुआ। आधुनिक उड़िया कविता के भगीरथ के रूप में प्रख्यात आप कथा-शिल्पी, नाट्यकार एवं साहित्य-मनीषी की हैसियत से भी भारतीय साहित्यकारों में अग्रगण्य माने जाते हैं।

प्रख्यात कथा-शिल्पी और साहित्य-चिंतक होने के साथ ही साहित्य के क्षेत्र में आपने अनेक नए प्रयोग किए और फ्रायड तथा युंग के मनोविश्लेषण का उड़िया साहित्य-जगत में प्रवेश कराया। १९३५ में प्रकाशित उनका उपन्यास 'चित्रग्रीव' अ-उपन्यास का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। स्मरणीय है कि विश्वसाहित्य में ऐण्टी नॉवल का आन्दोलन बाद में शुरू हुआ था। जनकवि सची राउतराय ने अपनी कहानियों के लिए भी विषय और पात्र जनजीवन से ही उठाये हैं।

उनकी अधिकतर कहानियाँ श्रमिक, कृषक तथा अन्य पिछड़े वर्गो के संघर्षों, अभावों और उत्पीड़नों के बारे में हैं जो समसामयिक जीवन की विद्रूपता और विकृतियों पर तीखा व्यंग्य करती हैं। उनका साहित्य एक क्षयी सामाजिक व्यवस्था के विरूद्ध मानव-अधिकारों का आक्रोशी घोषणा-पत्र है। वह मानव-गरिमा और भय-मुक्ति के मन्त्रदाता हैं। आपकी साहित्य-साधना का कार्यकाल ५० से अधिक वर्षो का है।

प्रमुख कृतियां व सम्मान -
१८ काव्य-संकलन, ४ कहानी-संग्रह, १ उपन्यास, १ काव्य-नाटक, साहित्य-समीक्षा की तीन पुस्तकें तथा साहित्यिक मूल्यों पर एक महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य प्रकाशित।

पद्मश्री, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड पुरस्कार, आन्ध्र विश्वविद्यालय एवं ब्रहृमपुर विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित। अध्यक्ष, उड़िसा साहित्य अकादमी; सदस्य, फिल्म सेन्सर बोर्ड। विभिन्न देशों में आयोजित साहित्य-संगोष्ठियों में प्रतिनिधित्व। उड़िया कला परिषद का संस्थापन तथा वर्ष १९८६ के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित।

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