ऋतुओं की झाँकी (वर्षा ऋतु)
-महेन्द्र सिंह रंधावा
जेठ और अषाढ़ की प्रचंड गर्मी के बाद आकाश में बादल उठते दिखायी
देते हैं, मानो, इंद्र के सफेद हाथियों का दल झूमता हुआ चला आ
रहा हो। वर्षा की आस लगाए किसान उन्हें देखते ही हर्ष से नाच
उठते हैं। ठंडी, सुहावनी वर्षा ऋतु आयी जान, प्रेमियों को भी
बड़ा आनंद होता है। काले–पीले रंग के घुमड़ते हुए बादलों को देख
और उनका घोर गर्जन सुन कर मोर आनंद से बोलने लगते हैं। वे अपने
इंद्रधनुष–जैसे सतरंगी परों को उठाकर मस्ती से झूम–झूम कर
नाचते हैं। कदम्ब के वृक्ष बड़े–बड़े गोल पीले फूलों से लद जाते हैं।
वर्षा के बादल मूसलाधार पानी बरसाते हैं और इस तरह धरती लहलहा
उठती है। वे प्यास से तड़पती भूरी धरती को नया जीवन प्रदान करते
हैं। उस पर सहसा, हरी घास का सुंदर गलीचा बिछ जाता है। गहरे
लाल रंग की वीर–बहूटियाँ वधू वसुंधरा को चमकीले लाल रत्नों से
सजा देती हैं। वर्षा की बूँदे आम की पत्तियों पर पट–पट शब्द
करती गिरती है और उनके गिरने से ऐसा मालूम होता है, मानो,
पेड़ों की चोटियों से सुरीले संगीत की मधुर ध्वनि निकल रही हो।
पके, अमृत–जैसे मीठे, रसीले, सुनहले पीले आम टहनियों से टपक कर
नीचे गिरने लगते हैं। बच्चों और औरतों के झुंड आमों की खोज में
अमराइयों में घूमते हुए दिखायी देते है। गाँव के तालाब की शांत
जलराशि पर गिरती हुई वर्षा की बूँदों से उत्पन्न
रंग–बिरंगे बुलबुले आँख– मिचौनी
का खेल खेलते और क्षण भर चमकने के बाद जल में फिर विलीन हो
जाते हैं।
बादल फट जाते हैं और वर्षा की फुहार की झीनी–झीनी चादर की ओट
में सूरज दिखायी देता है। आकाश में इंद्रधनुष निकल आता है,
मानो, धरती और आसमान सतरंगी रेशमी डोर के झूले में मिल कर झूल
रहे हों।गांवों के चरागाह हरी घास से ढक जाते हैं। उन में
गायों और भैंसों के झुंड आनंद से चरते रहते हैं। आमों और हल्के
हरे शीशमों की टहनियों में हरे तोते उड़ते फिरते हैं। केसरिया
रंग की तितलियाँ घास के सफेद फूलों पर नाचती हैं।
सावन की गीली हवा चमेली की सुगंध से भर जाती है। रात की रानी
और मेहंदी अलग ही अपना सौरभ लुटाती हैं। गंधराज (गार्डीनिया
फ्लोरिडा) के सुंदर सफेद फूल, झाड़ियों में लगे, ऐसे दिखायी
देते हैं, मानो, गहरे–नीले आकाश में तारे छिटक रहे हों। द्रुत
गति से बहती हुई सरिताओं के कूलों पर चम्पक की स्वर्णिम
आभावाली कलियाँ हवा में झूमती हैं।
वर्षा ऋतु में नदियों में मटमैले जल की बाढ़ आती है। उनके तेज
बहाव से तटों के बड़े–बड़े पेड़, जड़ सहित उखड़ कर, तिनके की तरह
पानी में बहते हैं। हवा के थपेड़ों से बादल रात–दिन इधर–उधर दौड़
लगाते और गरजा करते हैं। अँधेरी रात में तेज हवा के झोकों से
पेडों और लताओं की पत्तियों से पानी की बूँदे लगातार टपका करती
हैं। मधुमक्खियों को फूलों
की सुगंध और मकरंद का ध्यान ही नहीं
रहता। उनके झुंड के झुंड वर्षा की बूँदों के डर से छिपे बैठे
रहते हैं।
प्रेमी रसिकों का महीना सावन है। सावन के समीर के स्पर्श से
बिछुड़े हुए प्रेमियों के हृदय में विरह की पीड़ा जाग उठती है और
उनकी मिलन की आकांक्षा प्रबल हो उठती है। विरहिणियाँ व्याकुल
हो उठती हैं। संयोग में रत प्रणयी घनघोर घटा और चमकती बिजली को
बार–बार देखते हैं। अपने सुनहले पैरों को समेटे और श्वेत पंखों
को पसारे, कजरारे बादलों को चीर कर उड़ती हुई वकपंक्ति वर्षा के
आनंद में उन्मत्त प्रेमियों के हृदय में उल्लास पैदा कर देती
है। |