| थानेदार 
							: लक्ष्मण :
 थानेदार :
 
 
 
 
 लक्ष्मण :
 थानेदार :
 लक्ष्मण :
 थानेदार :
 
 
 लक्ष्मण :
 थानेदार :
 |  (क्रोध) तुम हमारा दमन करोगे? (मुस्कराकर) आपकी दाढ़ी तो है
                              नहीं फिर भी आपने तिनका कैसे ढूंढ लिया . .
                              .
 हमसे मज़ाक मत कर बालक,
                              हम थानेदार हैं। थानेदार से मज़ाक करना
                              बड़ा महंगा होता है। घर खाली हो जाता है
                              हमारे चंगुल से निकलने के लिए। आदमी
                              हमेशा के लिए गलीगली भीख़ मांगता है
                              और कोई उसको घास नहीं डालता। हमसे
                              मज़ाक करना कानून से मज़ाक करना है और एक
                              बार कोर्ट कचहरी के चक्कर में फंसा तो फंसा
                              समझा बच्चे। अपने को क्षत्रिय कहते हो और
                              वस्त्र मुनियों के पहने हुए हैं, अभी भेस
                              बदलकर धोखा देने के केस में फंसवा सकता
                              हूं... चल बता ये चक्कर क्या है?
 हम अपने पिता की आज्ञा से
                              वनवास के लिए आए हैं।
 तुम जैसों को पिता घर से
                              निकालते ही हैं . . .कहां से आ रही है ये
                              सवारी़?
 हम अयोध्या से आ रहे हैं।
 (सोचते हुए) अयोध्या से
                              पंचवटी में आए हैं। वस्त्र मुनियों के हैं,
                              अपने को क्षत्रिय कह रहे हैं, कुछ घपला है। उस्ताद
                              कहीं अयोध्या का माल इधर और पंचवटी का
                              माल उधर करने का चक्कर तो नहीं है। अरे
                              भईया पहले बताते . . .तुम तो हमारे अन्नदाता
                              हो। ज़रा अपने चरण इधर कर।
 (क्रोध से) सावधान थाना
                              अधिकारी अनर्गल प्रलाप मत कर . . .
 (डरता हुआसा) देखो . .
                              .देखो तुम इस तरह सरकारी कर्मचारी को डरा
                              नहीं सकते हो। हमारा काम पूरी तफ़तीश करना है
                              . . .धमका मत . . .वरना मैं . . .वरना मैं
                              . . .तुझे अंदर कर दूंगा। (कृष्ण सिंह लक्ष्मण
                              के पास आता है, ग़ौर से देखता है।)
 | 
                          
                            | कृष्ण : लक्ष्मण
 कृष्ण सिंह
 
 
 थानेदार :
 | आप लक्ष्मण सिंह हो? लक्ष्मण सिंह नहीं, सिर्फ़
                              लक्ष्मण कहते हैं मुझे।
 ठीक है, नाम के आगे सिंह
                              लगाने से कोई शेर नहीं हो जाता। सिंह तो
                              कईयों के नाम के आगे लगा होता है पर वह
                              पुचकारने पर कुते की तरह दुम हिलाते हैं। पर
                              आप तो साहब असली सिंह हो आपने तो रावण
                              की बहन शूर्पनखा के नाककान काट डाले।
 इसने रावण से पंगा लिया
                              है . . .तू तो गया काम से। शासन से पंगा
                              लेना बड़ा महंगा पड़ता है। तू तो बड़ा
                              पंगेबाज लगता है प्यारे? तभी मुझसे भी
                              पंगे पर पंगा लिए जा रहा है। पर प्यारे पुलिस
                              से पंगा लेना बड़ा महंगा पड़ता है हमारी
                              दोस्ती भी ख़राब, हमारी दुश्मनी भी ख़राब। पर
                              ये तो कहिए श्रीमान पंगेबाज, आपने उस
                              सुंदरी के नाककान क्यों काटे?
 | 
                          
                            | लक्ष्मण थानेदार 
							: 
 लक्ष्मण :
 थानेदार :
 राम :
 
 कृष्ण सिंह
 | वो ज़बरदस्ती मेरे गले पड़
                              रही थी, मुझे शृंगार को उकसा रही थी। हाय, हाय बेदर्दी, इसमें
                              ग़लत क्या कर रही थी अबला नारी? नारी का तो
                              काम ही है उकसाना। तू मत उकसता, सुंदर
                              नारियों के नाक कान काटना कहां का इंसाफ़ है।
                              सुंदर नारी तो हमारे समाज की शोभा है।
 व्यभिचारीणी चाहे कितनी
                              सुंदर हो हमारे समाज की शोभा नहीं बन
                              सकती।
 व्यभिचार तो सुंदर नारी ही
                              करेगी . . .पुरूष का सामना करेगी। काली
                              कलूटी तो दलित बनकर रह जाएगी।
 ( क्रोध से) सावधान
                              सुरक्षाकर्मी, राम नारी के संबंध में
                              अनर्गल प्रलाप नहीं सुन सकता। अपनी जिह्वा
                              को विश्राम दे, अन्यथा . . .
 (थानेदार को मंच के एक
                              कोने में ले जाकर समझाता हुआ) साहब यह
                              थाना है थाना . . .आप भी क्या नारी विमर्श
                              और दलित विमर्श के पचडे़ में पड़ गए। यह
                              बहसें तो बुद्धिजीवियों की जुगाली के लिए
                              होती हैं, आप तो अपनी सुंदर नारियों को
                              ढूंढने की डयूटी पर ध्यान दो। ये हमसे डर
                              नहीं रहे हैं और उसपर बातबात में हमारी
                              हत्या करने की धमकी दे रहे हैं, कुछ ज़्यादा ही
                              पहुंचधरी लोग लगते हैं। आप तो जल्दी से
                              जल्दी इनको रफ़ादफ़ा कर दो ।
 | 
                          
                            | थानेदार : राम :
 थानेदार
 
 
 
 राम :
 थानेदार :
 | (राम से) तो भइए, तेरा
                              यह भाई अपराध करके भागा है। नहीं . . .किसी अपराधी को दंड
                              देकर आया है। हम लोग अपराधी नहीं हैं,
                              सज्जन हैं।
 न . . .न . . .तुम सज्जन
                              नहीं हो सकते। सज्जनों का थाने में क्या
                              काम? आज थाने का उद्घाटन तो है नहीं और
                              भाई उद्घाटन भी होता तो उसे इस प्रदेश का
                              कोई मंत्री करता। मंत्रियों का आशीर्वाद न
                              मिले तो थाने में कोई काम हो ही नहीं
                              सकता, ये तो उनका प्रताप है कि थाने
                              फलफूल रहे हैं तो भइए सज्जन हो तो किसी
                              विद्यालय में जाकर पढ़ाओलिखाओ, हमारे
                              पास क्या करने आए हो?
 भद्र हम कष्ट में हैं, हम आपके पास
                              सहायता के लिए आए हैं।
 (हंसते हुए) सहायता! भई
                              पुलिस को तो खुद हर समय सहायता चाहिए
                              होती है। तुमने देखा नहीं है, चारों ओर
                              पुलिसबूथ बने हुए हैं जिन पर लिखा होता
                              है 'पुलिस सहायता'। इसका मतलब हुआ कि
                              जनता तन और धन से पुलिस की सहायता
                              करे।... तुम्हारी खुशकिस्मती आज हम अच्छे मूड
                              में हैं . . .हम तुम्हारी सहायता करेंगे,
                              बोलो क्या कष्ट हैं?
 | 
                          
                            | राम 
							: थानेदार :
 राम :
 थानेदार :
 
 लक्ष्मण :
 थानेदार :
 | मेरा नाम राम है, किसी दुष्ट ने
                              मेरी पत्नी सीता का अपहरण कर लिया है। किस दुष्ट ने कर लिया है?
 यही तो हम पता करना चाहते हैं।
 अब यही तो ख़राबी है जनता
                              में . . .ज़रा भी सहयोग नहीं करती पुलिस
                              से, चाहती है कि सारा काम पुलिस ही करे।
                              जनता को चाहिए कि चोरडकैतों को पकड़े,
                              अपहरण करने वाले का पीछा . . .उसे थाने में
                              पकड़ कर लाए।
 और पुलिस को क्या चाहिए?
                              पकड़े लोगों से धन बटोरे तथा ईमानदार
                              जनता को पकड़ जेल में डाले।
 बड़ी सयानी बातें करता है
                              तू तो भई . . .ये सयानापन अपने पास रहने
                              दे, वरना तुझे भी ईमानदार जनता बना
                              दूंगा।
 | 
                          
                            | राम 
							: थानेदार :
 
 
 राम :
 थानेदार :
 | इसे क्षमा करें भद्र, आपका
                              धन्यवाद कि आप हमारी सहायता कर रहे हैं। सहायता तो हम अपने बाप की
                              भी नहीं करते हैं . . .ये तो केस ज़रा
                              दिलचस्प है और भई ये सूखे धन्यवाद से
                              हमारा कुछ भला नहीं होता है, हमारे शरीर को
                              चलाने के लिए अगर अयोध्या की सोमरस
                              लाया हो तो दे . . .सुना है बड़ी तीखी होती
                              है।
 मैंने आपसे निवेदन किया है कि
                              हमारा इन चीज़ों में विश्वास नहीं है, हम
                              सज्जन हैं।
 तुम धन्य हो सज्जनो . .
                              .आज का मेरा दिन तो बरबाद हो ही गया। अच्छी
                              बोहनी हुई है आज . . .मैं क्या, सारा देश
                              बरबाद हो रहा है ऐसे सज्जनों के चक्कर में।
                              लोग सज्जन बन रहे हैं और प्रदेश में
                              चोरीचकारी के किस्से कम हो रहे हैं, हमारी
                              असली कमाई के रास्ते बंद हो रहे हैं। एक दिन
                              यही हाल रहा तो सारे थाने मंदिर बन
                              जाएंगे और हम छैने बजाते हुए भजन
                              गाएंगे। सज्जनों ने निकम्मा कर दिया,
                              वरना हम भी थे आदमी काम के। एक तो सरकार
                              तनखाह के नाम पर हमारे मुंह में जीरा डाल
                              देती है और दूसरे तुम्हारे जैसे सज्जनों की
                              जनसंख्या बढ़ रही है। जब एक थानेदार
                              एकदो रथ, एकआध महल, कुछ
                              स्वर्णमुद्राएं तथा एकआध पुष्पक विमान नहीं
                              ख़रीद पाएगा, तो देश की क्या खाक प्रगति होगी।
                              खै़र भई तुम सज्जनों को हमारे दुःखदर्द
                              से क्या? तुम तो अपना दुखदर्द लिखवाओ
                              सज्जन जी। हां भई बोल।
 | 
                          
                            | राम 
							: थानेदार :
 राम :
 थानेदार :
 राम :
 थानेदार :
 
 राम :
 थानेदार :
 राम :
 थानेदार :
 राम :
 | मेरी पत्नी का अपहरण हो गया है। नाम?
 सीता!
 आगेपीछे?
 आगे पीछे से तात्पर्य, क्या है
                              भद्र?
 आगे पीछे का मतलब भी नहीं
                              समझते हो। आगे पीछे का मतलब हुआ सीता
                              क्या? सीता श्रीवास्तव, सीता मिश्र, सीता
                              मेहता, सीता भाटिया, सीता कुंद्रा . . . क्या
                              लिखूं?
 कुछ नहीं, केवल सीता।
 पति का नाम?
 रामचंद्र।
 हूं .. . . .रामचंद्र, कैसे ग़ायब
                              हुई सीता?
 हम अपनी कुटिया में बैठे थे
                              तभी मेरी पत्नी ने कुटिया के सामने एक
                              सोने के हिरण को चरते हुए देखा, और . . .
 | 
                          
                            | थानेदार 
							: | (कुरसी से उचकते हुए)
                              सोने का हिरण . . .यानि हमारे इलाके में
                              सोने के हिरण बन रहे हैं . . .अरे भई वाह
                              केस तो बड़ा दिलचस्प हो रहा है। सोने के
                              बिस्कुट तो बनते थे सोने के हिरण भी
                              बनने लगे और हमें पता ही नहीं। खै़र पता
                              तो मैं कर ही लूंगा . . .काफ़ी माल बनेगा
                              इसमें, जल्दीजल्दी बताओ फिर क्या हुआ। | 
                          
                            | राम : | मेरी पत्नी सीता ने उस सोने के
                              हिरण की इच्छा प्रकट की। मैं धनुषबाण लेकर
                              उस हिरण के पीछे दौड़ा। लक्ष्मण को भी धोखे
                              से कुटिया से हटा दिया। इस बीच किसी ने
                              सीता का अपहरण कर लिया। हमने जब हिरण को
                              मारा तो वह मारीच नामक मायावी राक्षस
                              निकला। (यह सुनते ही थानेदार जैसे
                              हतोत्साहित हो गया। पेन छोड़कर बोला) | 
                          
                            | थानेदार : | मारीच था क्या? न भई,
                              इस मामले में मैं कुछ नहीं कर सकता,
                              मारीच ऊपर वालों का ख़ास आदमी है। तुम तो
                              मेरी भी नौकरी छु़डवाओगे लगता है। भइए
                              अगर ऊपर के आदेश से तुम्हारी सीता ग़ायब हुई
                              हो तो समझ लो उसे ग़ायब होना ही था।
                              तुम सात तालों में बंद करके रख लेते, तब
                              भी तुम्हारी सीता ग़ायब हो जाती। ये ऊपर
                              वाले तो पूरा देश ग़ायब करके विदेशी
                              बैंकों में रख देते हैं, हम तुम किस खेत की
                              मूली हैं। भई सज्जन मुझे माफ़ कर, तेरा
                              दुख मैं समझ सकता हूं... मारीच पर मैं हाथ
                              नहीं डाल सकता हूं। उसके लिए तुझे तगड़ी सिफ़ारिश
                              लानी होगी, मैं मारीच को नहीं पकड़ सकता। | 
                          
                            | लक्ष्मण : थानेदार :
 
 राम :
 
 थानेदार :
 | पर मारीच तो मारा गया। (ये
                              सुनते ही थानेदार के जैसे हाथपांव फूल
                              जाते हैं) मारीच मारा गया। हत्या . .
                              .यानि तुम लोगों ने मारीच का कत्ल कर
                              दिया, बिना हमारी इजाज़त के। हत्या करते हो
                              और अपने आपको सज्जन कहते हो . . .तुम तो
                              हमारे मंत्रियों के भी बाप हो। मारीच की
                              हत्या कर दी।
 मैंने जब मारीच को मारा वो
                              एक मायावी मृग था। मायावी का यही अंत
                              होता है। फिर भी, हमने उसकी ससम्मान
                              अंत्येष्टी भी कर दी है।
 (हाथ में सिर पकड़कर) क्रियाकरम
                              भी कर डाला। यानि हत्या के सारे निशान साफ़
                              कर डाले। बहुत अच्छे, तुम्हें तो इस बात पर
                              पुलिस मैडल मिलना चाहिए। वैसे मारीच की
                              हत्या करके तुमने मेरा सरदर्द कम कर दिया। मैं
                              बहुत दुःखी था उससे, हर समय सिफ़ारिशी केस
                              लाता रहता था और पैसा एक नहीं देता था।
                              गृहमंत्री का बड़ा मुंहलगा था। पर भइए उसके
                              मरने का पक्का कर लिया है न। एक बार पहले भी
                              मारीच के मरने का समाचार आया था।
                              आकाशवाणी ने उसे प्रसारित भी कर दिया था,
                              फिर पता चला कि वो ज़िंदा है। बड़ी बदनामी
                              हुई। खै़र तुमने तो उसका क्रियाकरम भी कर
                              डाला है . . .मर ही गया होगा, तुम तो
                              मुझे बड़ी चीज़ लग रहे हो . . .खै़र,
                              तुम्हारी पत्नी सीता को मारीच ने उड़ाया?
 | 
                          
                            | लक्ष्मण 
							: 
 थानेदार :
 | नहीं, उसने सीता माता के
                              अपहरण में सहायता की। अपहरण किसने किया है,
                              यह जानने के लिए हम आपके पास आए हैं। आप
                              उसे ढूंढने में हमारी सहायता कीजिए। उसका
                              पता चलते ही मैं उसका वध कर दूंगा। (थानेदार
                              यह सुनते ही क्रोध में आता है। मेज़ पर डंडा
                              मारता है)
 हमारे होते हुए तू उसकी हत्या
                              करेगा . . .मैं देख रहा हूं जब से आया है
                              अपने को तीसमारखां समझ रहा है। कानून हाथ
                              में लेना चाहता है। तेरा भाई राम तो पहले
                              हत्या कर चुका है, तू भी करेगा क्या? मालूम
                              है थानों में एक हत्या का क्या दाम चल रहा है
                              . . .एक लाख स्वर्ण मुद्राएं। दे सकता है? अगर
                              दे सकता है तो दोचार हत्याएं और कर डाल,
                              हमारी तो कमाई ही होगी। देख ज्यादा पर मत
                              निकाल . . .हमारे सामने अच्छेअच्छों के पर
                              कट जाते हैं . . .हम कानून के रक्षक हैं। हमसे
                              टकराना कानून से टकराना है, कानून से
                              टकराने वालों को हम अंदर कर देते हैं।
 | 
                          
                            | राम 
							: 
 थानेदार :
 | सावधान थानाधिकारी। अब
                              बारबार लक्ष्मण को अंदर कर देने की धमकी
                              देना बंद करें। तुम जैसे दुष्टों से व्यवहार
                              करना हमें भी आता है। मेरे भाई . . . अंदर कर दूंगा
                              तो हमारा तकियाक़लाम बन गया है। घर
                              में अपने बच्चे भी जब उधम मचाते हैं तो
                              मैं उनको ऐसे ही धमकाता हूं... अंदर कर
                              दूंगा। पर थानेदारनी के होते मेरा यह साहस
                              हो तो . . .(इस बीच एक सिपाही, एक ग़रीब
                              से मनुष्य को घसीट कर लाता है।)
 | 
                          
                            | थानेदार 
							: सिपाही :
 थानेदार :
 
 मनुष्य :
 
 थानेदार :
 | अबे ईंट के भुट्टे, इस
                              नमूने को कहां से पकड़ लाया, ऐसे लग रहा
                              है जैसे हमारे देश का प्रतीक चिह्न हो। साहब ये बड़ी ऊंची चीज़ है।
 (राम लक्ष्मण की ओर संकेत
                              करके) पर इनसे ऊंची चीज़ नहीं हो सकता है।
                              बदमाशी की किन ऊंचाइयों को छुआ है इस
                              हरामजादे ने . . .(मनुष्य के पेट में डंडा
                              घुसेड़ता है) क्यों बे, हमारे सामने ही
                              ऊंची चीज़ बनता है।
 नहीं, मैंने कुछ नहीं किया
                              है . . .जुआ तो दूसरे लोग खेल रहे थे,
                              मैं तो पास बैठा पढ़ रहा था। उन्होंने इस
                              सिपाही को मुद्राएं दीं तो ये उन्हें छोड़कर
                              मुझे पकड़ लाया है।
 चोप्प बेटी के . . .हम पर
                              इलज़ाम लगाता है, तुझे तो अभी देखता हूं...
                              (सिपाही थानेदार को एक ओर ले आता है।
                              सिपाही कुछ रूपए छुपाकर थानेदार को देता है।
                              दोनों में बहस का मूक अभिनय। सिपाही कुछ
                              और रूपए निकाल कर देता है। थानेदार टहलता
                              हुआ मनुष्य के पास आता है।)
 | 
                          
                            | थानेदार : | हूं... तो जनाब नशीले
                              पदार्थों का धंधा करते हैं। बेट्टी के थाने में
                              आज तेरा वो हुलिया बिगाड़ूंगा कि . . . बंद कर
                              दे साले को। | 
                          
                            | राम : थानेदार :
 | (क्रोध) सावधान थाना
                              अधिकारी, यह सभ्य भाषा नहीं है। भइए इसे पुलिस भाषा कहते
                              हैं। जो महत्व साहित्य में अलंकारों का है
                              वही हमारी भाषा में गालियों का है। इन
                              बदमाशों से ऐसे नहीं बोलूं तो कैसे
                              बोलूं? ये कहूं क्या (एक लय में आरती
                              गाने की शैली में बोलता है) हे श्रीमान
                              चोरदेवता जी, धन्यभाग जो हमारे थाने
                              में आप पधारे . . .आपके आने से हमारी
                              कुटिया के भाग जाग गए। आपने हत्या करके
                              बड़ा पवित्र कर्म किया है . . .इस खुशी के अवसर
                              पर मैं आपको हथकड़ी डालकर सुशोभित करना
                              चाहता हूं। आप कौन से हाथ में हथकड़ी
                              पहनना पसंद करेंगे। आपकी सेवा के लिए हमने
                              देसविदेस से अनेक रंगों की हथकड़ियां
                              मंगाई हुई हैं। आप लोहे की हथकड़ी पहनना
                              पसंद करेंगे या फिर सोने की? हे श्रीमान जी,
                              आपने सुबह से नाश्ता पानी नहीं लिया है,
                              क्या मंगवाऊं शाकाहारी या मांसाहारी, पहले
                              नहाना पसंद करेंगे या अपनी परंपरा निभाते
                              हुए बिना नहाए ही खाएंगे?
 (टोन बदलते हुए) रहने दे भाई, रहने दे
                              अपनी सभ्य भाषा। तुम्हारी इसी सज्जनता के
                              कारण तुम्हारी सीता ग़ायब हुई है। आजकल जो
                              जितना असभ्य है उतना ही सुखी है और जो
                              सभ्य है वो गलियोंगलियों मारा फिरता
                              है, ईमानदारी के गीत गाता है और अपने साथ
                              हमारा भी बंटाधार करवाता है। मैं तो कहता हूं
                              सज्जनता छोड़ो तथा अपनी सीता ग़ायब
                              करवाने की जगह दूसरों की सीता ग़ायब करना
                              शुरू कर दो।
 | 
                          
                            | राम 
							: थानेदार :
 | (क्रोध मे) सावधान थाना
                              अधिकारी, तुम्हारी वाणी मर्यादा में नहीं है। हो भी कैसे सकती है, ये
                              पुलिस की वरदी है ही ऐसी चीज़.. घर में
                              बच्चे हर समय कांपते रहते हैं विवाह की पहली
                              रात पत्नी ने ऐसा प्रेमव्यवहार किया जैसे
                              प्यार नहीं कर रही हो बयान दे रही हो। वो
                              रात भर डर के कारण कांपती रही और मैं इस
                              भुलावे में रहा कि मेरे प्यार में कांप रही
                              है। मोहल्ले में कोई शरीफ़ आदमी हमसे हाथ
                              नहीं मिलाता है, घर बुलाते हुए घबराता है।
                              पुलिस का मतलब ही बदमाशी हो गया है। जब
                              बिना बदमाशी के लोग बदमाश समझते हैं
                              तो बदमाशी करके बदमाश कहलाना ज़्यादा अच्छा
                              है। (इतने में कृष्ण सिंह मुस्कराता हुआ अंदर
                              आता है।!")
 | 
                          
                            | कृष्ण सिंह थानेदार : कृष्ण सिंह
 
 थानेदार :
 
 लक्ष्मण :
 थानेदार :
 
 राम :
 थानेदार :
 | सॉब, वो सुनयना
                              मिल गई। कौन सुनयना?
 सॉब वही जो दस दिन
                              पहले ग़ायब हुई थी, जिसके पति ने आपको
                              दस हज़ार मुद्राएं भी दी थीं। बेचारा रोज़
                              चक्कर लगाता है . . .चक्कर भी क्यों न लगाए
                              उसकी बीवी है ही बड़ी मस्त चीज़.., साब
                              घनी सुंदर है।
 (कृष्ण सिंह को गले लगाते
                              हैं) तूने तो कमाल का केस ठीक कर डाला।
                              जियो किड़शन सिंह, जिओ। लोग कहते हैं
                              कि पुलिस काम नहीं करती है। (ओठों पर जीभ
                              फिराते हुए) उसे हमारे निजी कक्ष में ले जा।
 (क्रोध) निजीकक्ष क्यों
                              ले जा रहे हैं?
 तुम अभी बालक हो . . .वहां
                              हम उसका बयान लेंगे। देखेंगे कि दुष्टों ने
                              उसके शरीर को कहांकहां छुआ है, क्यों
                              किड़शन सिंह? (भद्दी हंसी हंसता है।)
 (क्रोध में) दुष्ट थाना अधिकारी,
                              सुनयना को उसके पति को वापस करो, उसे
                              छोड़ दो।
 वापस कर दूं? हाथ आया
                              शिकार छोड़ दूं , बावरा हो रहा है क्या? हाथ
                              में आए शिकार को भी कोई छोड़ता है? भइए,
                              तुम भी तो हिरण के, सोने (सोने शब्द पर
                              बल देता है) के हिरण के शिकार के चक्कर में
                              भटकते रहे, तुमने भी तो उसे मारकर ही दम
                              लिया। हम भी दुष्टों का दलन करने के लिए
                              हथियार उठाते हैं, थोड़े बहुत क्षत्रिय तो हम
                              भी हैं। अब तो यह तीरकमान पर चढ़ चुका
                              है। अब यह किसी के रोके नहीं रूकेगा। यह तीर
                              तो ऋषिमुनियों की कमान पर चढ़ कर नहीं
                              उतरता, मेरी क्या बिसात है? आज संसार की
                              कोई ताकत मुझे नहीं रोक सकती, मैं
                              सुनयना का बयान लेकर ही रहूंगा।
 | 
                          
                            | लक्ष्मण 
							: 
 थानेदार :
 
 लक्ष्मण :
 थानेदार :
 | अनर्गल प्रलाप और कुतर्क मत कर
                              थानाधिकारी, तेरी भलाई इसी में है कि
                              श्रीराम की आज्ञा का पालन कर, सुनयना को
                              उसके पति को तुरंत सौंप दे, वरना . . . वरना क्या कर लेगो . . .देख
                              पुलिस के काम में दखल देना ठीक नहीं है,
                              दखल दोगे तो मैं तुम दोनों को बंद कर
                              दूंगा, तुम दोनों चुप रहो वरना . . .
 भैया ये दुष्ट ऐसे नहीं
                              मानेगा, आप आज्ञा दें, इसका संहार
                              आवश्यक है।
 अरे जा चिलगोजे़.. तेरे
                              दूध के दांत तो टूट लें . . .हमें मारोगे,
                              हमें खत्म करोगे, हम तो . . .
  (लक्ष्मण क्रोधित
                              मुद्रा में बाण मारते हैं। थानेदार हं . . .हं
                              करके हंसता है . . .मंच की पृष्ठभूमि में जाता
                              है। वहां अंधेरा होता है। उसके स्थान पर
                              थानेदार की वरदी पहने सिर पर गांधी टोपी
                              लगाए नेता आता है। लक्ष्मण उसको भी बाण
                              मारते हैं। वह भी हंसता हुआ पृष्ठभूमि में
                              जाता है। उसके स्थान पर थानेदार की वरदी पहने
                              पत्रकार आता है जिसके हाथ में बड़ीसी पेन
                              है। लक्ष्मण उसे भी मारते हैं। वह भी हंसता
                              हुआ पृष्ठभूमि में जाता है। उसके स्थान पर
                              थानेदार की वरदी में सेठ खेमचंद आता है।
                              उसे भी लक्ष्मण बाण मारते हैं। वह भी हंसता
                              हुआ पृष्ठभूमि में जाता है। ऐसे ही वकील
                              आता है। अंततः थानेदार, नेता, पत्रकार, सेठ .
                              . .सब ज़ोर से अट्टहास करते हुए आते हैं।
                              लक्ष्मण फिर बाण मारता है। थानेदार गिरकर मर
                              जाता है। थानेदार की लाश के गिर्द सभी एक
                              घेरा बना लेते हैं।)
                             | 
                          
                            | नेता :
 पत्रकार :
 सेठ :
 
 
 जनता :
 
 
 
 
 
 
 
 
 |  गीतहाय मर गया, मर गया, थानेदार मर गया।
 हमें अनाथ कर गया, थानेदार मर गया।
 मेरा तो चाचा गया
 मेरा तो मामा गया
 मेरा तो भाई गया
 हमें विधवा कर गया, थानेदार मर गया
 साली जनता का डर गया, मर गया, मर गया।
 साली जनता का डर गया!
                              थानेदार मर गया! थाना तो ज़िंदा रहा,
                              थानेदार मर गया।
  (नेपथ्य से गीता का मंत्र
                              गूंजता है न जायते म्रियते वा
                              कदाचिन्नायं
                              भत्वा भविता वा न भूयः
 अजो नित्यः शाश्वतोयं पुराणो न
                              हन्यते हन्यमाने शरीरे।।
 वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
                              नवनि गृह्णाति नरो पराणि।
 तथा शरीराणि विहाय
                              जीर्णान्यन्यानि संयति नवनि देही।।
 नैनं छिंदंति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
 न चैनं क्लेदयंत्यापो न शोषयति मारूतः।।)
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