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अंक – 2    दृश्य - 1   थाने का दृश्य

(थाने का नाम कलियुगी थाना है। थाना क्या है, जैसे भ्रष्टाचार, अनैतिकता और असत्य की मूर्ति है। कुरसी पर बैठा थानेदार ऐसे ही लग रहा है जैसे कीचड़ में काला कमल सुशोभित होता है। उसके चरण कमल सामने रखी मेज़ की फ़ाइलों पर पड़े घोषणा कर रहे हैं कि इस इलाके का सारा कानून इन चरणों के नीचे दबा हुआ है। खाली समय का सदुपयोग करने के लिए थानेदार कान में काग़ज़ का टुकड़ा डालकर मैल निकाल रहा है। थानेदार सिपाही कृष्ण सिंह को आवाज़ लगाता है।)

थानेदार : 
कृष्ण सिंह
किशन सिंह, अबे ओ किड़शन सिंह, अबे ईंट के भुट्टे सुनता नहीं है।
(अंदर आते हुए) देखो, देखो साब आपसे कितनी बार कहा कि मेरा नाम ठीक से पुकारा करो, मेरा नाम किड़शन नहीं, कृष्ण सिंह है। साब, आप चाहे मुझे कितनी गाली दें। गाली ख़राब नहीं लगती हैं, क्योंकि वो तो हम लोगों की रोज़ाना की खुराक हैं रोज़ गालियां देते हैं, रोज़ खाते हैं। जिस दिन छुट्टी होती है, उस दिन गालियां न खाने के चक्कर में अपने को तो कब्ज़ हो ही जाती है। पर साब अपना नाम कोई बिगाड़ कर बोलता है तो भेजा घूम जाता है। नाम मत बिगाड़ो साब।
थानेदार : 

कृष्ण : 
(अट्टहास करते हुए) हो . . .हो . . .हो . . .तू तो बीवियों की तरह बहुत जल्दी नाराज़ हो जाता है। अब तुझे किड़शन कहूं या कृष्ण, तूने कौन–सा रावण को मारना है!"
साब आपकी जनरल नालेज तो हमारे नेताओं की तरह बिलकुल कमज़ोर है। साब, रावण को कृष्ण ने नहीं, राम ने मारा था। लगता है आपने रामायण नहीं पढ़ी है और न ही कभी रामलीला देखी है। साब देखा करो बड़ी धांसू चीज़ है रामलीला।
थानेदार : 

कृष्ण सिंह 
थानेदार : 

कृष्ण सिंह 
थानेदार : 
कृष्ण सिंह थानेदार
अबे तू भी हमारी बीवी के चक्कर में धरम–करम वाला तो नहीं हो गया . . .ये लोग बड़े चालू होते हैं, हमसे तो धरम–करम करवाते हैं खुद नोटों की थैलियां भरते हैं।
थोड़ा बहुत तो धरम–करम करना चाहिए न, अगला जन्म सुधर जाता है।
धर्म की औलाद। यहां पिछले का पता नहीं तू अगले की बात करता है। कलयुग में जो कुछ है, यहीं है यहीं। कत्ल का केस अगले जन्म में नहीं निबटाना होता है, इसी जन्म में निबटाना होता है।
पर वकीलों के चक्कर में तो कई केस किसी भी जन्म में नहीं निबटते। केस निबटाने के लिए जज से . . .
धीरे बोल . . .मानहानी का दावा ठुक जाएगा। ज़्यादा धरम–करम की बातें मत किया कर।
पर साहब रामायण की कहानी है बड़ी धांसू़..।
(गुस्से में डंडे को मेज़ पर मारता है, खड़ा हो जाता है) अबे खाक धांसू है, ईंट के भट्टे़.. चिलगोज़े की औलाद रामायण में जो पुलिस–डिपार्टमैंट की बेइज़्ज़ती की गई है वैसी बेइज़्ज़ती तो किसी ने नहीं की है। तू खुद सोच घोंचू प्रसाद . . .इतने मर्डर हुए, शूर्पनखा जैसी सुंदर औरतों के नाक–कान काट लिए गए, सीता किडनैप हुई, लंका पर अनओथेराइज़्ड़ ब्रिज बनाया गया, हनुमान ने लंका जला दी, क्या–क्या बदमाशी नहीं हुई। इतनी बदमाशी तो हमारे इलाके में कभी नहीं हुई।... अब तू खुद सोच कैकटस की औलाद कि इतना सब कुछ हो जाए और पुलिस का कोई रोल भी न हो। यानि, पुलिस का बायकाट। ये तुलसीदास जैसे रामकथा के लेखकों की सरासर बदमाशी है। वो नहीं चाहते कि हमारा डिपार्टमैंट लाईम–लाइट में आए . . .हम पुलिस वालों को इसके खिलाफ़ जुलूस निकालना चाहिए और तू कैसा पुलसिया है कि रामायण को देखकर खुश हो रहा है। अरे किड़शन सिंह . . .अबे टोपी के . . .ज़रा सोच अगर पुलिस होती तो क्या सीता ग़ायब हो सकती थी, सारा डिपार्टमैंट लग जाता, वायरलेस खड़क जाते . . .बस पुलिस वालों को क्या चाहिए थोड़ी–सी सेवा ही न। पर पुलिस पर तो विश्वास ही नहीं किया। राम–लक्ष्मण पेड़ों से, हिरणों से, पतों से सीता का पता पूछते रहे . . .ज़रा पुलिस स्टेशन आ जाते तो सीता का पता न मिलता।
कृष्ण सिंह
थानेदार
साब बड़ी समझदारी की बातें कर रहे हो, क्या आज घर से ही लगाकर आए हो . . .
चुप ओए खड़क सिंह, हर समय खड़कता रहता है। (कान में फुसफुसाते हुए) अब अगर हमने ना लगाई होती तो क्या हम सुबह–सुबह ऐसी धार्मिक बातें करते? (हंसता है) वैसे तो धार्मिक बातें भी एक प्रकार का नशा है, नशा क्या, नशे का बाप है। अब हमारी थानेदारिन को लो। हर समय मंदिर में छैने बजाती रहती है। हमें पीकर होश नहीं रहता है, वो भजन कीर्तन में बेहोश रहती है। हमें जब बहुत टेंशन होती है तो हम पी लेते हैं, थानेदारनी को जब टेंशन होती है तो वो भजन गाने लगती हैं।
कृष्ण सिंह 
थानेदार : 
कृष्ण सिंह
साब कभी उल्टा नहीं होता है कि आप भजन गाने लगें और . . .
ओए . . .तू हम शहीदों के साथ मज़ाक करता है, (मेज़ के नीचे से बोतल निकाल कर ऊपर रखते हुए) जा हमारे लिए कुछ नाश्ते–पानी का इंतज़ाम कर। सुबह से गला भारत की जनता की तरह सूखकर कांटा हो गया है।
साब मुझे तो आप कांटा लग रहे हो भारतीय जनता के गले का जो एक बार फंस जाए तो जान निकाल लेता है।
थानेदार : बड़े पर निकल आए हैं तेरे . . .एक बार झूठे एनकाऊंटर में तेरी टांग पर गोली मारनी पड़ेगी। (पैग बनाकर पीता है)
कृष्ण सिंहः (पांव दबाता है) नहीं . . .सॉब . . .माफ़ी सॉब . . .मेरे बाल–बच्चे ईमानदार आदमी की तरह कटोरा लिए भीख मांगते फिरेंगे। कल साहब मैं हनुमान मंदिर चला गया था तब से ऐसे नीच विचार हृदय में उठ रहे हैं। साब कल सेठ जी के भाई के कतल वाला केस भी आपने चोखा कर दिया, दोनों पार्टियां खुश . . .साब आपमें कमाल की बुद्धि है, थाने में आपने सबको खुश कर दिया था, साब आप बहुत दरियादिल, दरिया नहीं समुंदर दिल हो।
थानेदार :
कृष्ण सिंह
ओए हमसे मक्खनबाज़ी . . .हमें तिया समझता है। हम कोई भारत की जनता है जिसको जब चाहा बना लिया।
क्या साहब, भारतीय जनता हो आपके दुश्मन, साहब आप तो इस देश का कानून हो, सत्यमेव जयते और मैं हूं आपका पुत्र . . .साब अपने पुत्र से नाराज़ मत हुआ करो, साब सुबह एक खूबसूरत साफ़–सफ़ाईवाली मिली थी। मैंने बोल दिया, हमारे थानेदार जी का शाम को कमरा साफ़ करने आ जाइयो। साब शाम को आप होंगे थाने में दलितों का उद्धार करने के लिए?

थानेदार : 
कृष्ण सिंह 
थानेदार :

 

(मुस्कराता हुआ) साला . . .हरामी।
साहब पूरण के ढाबे से तंदूरी चिकन लाऊं?
जा ले आ . . .सुन ज़रा एक भरी हुई सिगरेट भी देता जा। (कृष्ण सिंह एक अलमारी से सिगरेट लेकर थानेदार को देता है और चला जाता है। थानेदार सिगरेट के कश लगाता है और बड़बड़ाता है . . .) 
साला किड़शिन सिंह . . .हमें तिया नंदन समझता है . . .कहता है रामायण देखो . . .अबे क्या देखो उसमें महादेव जी . . .(नशे में स्वर धीमें होता है) अब क्या है उसमें . . .पुलिस कहां है . . .इतने मर्डर और पुलिस गायब . . .सीता गायब हुई और राम–लक्ष्मण हमारे थाने में नहीं आए। क्यों नहीं आए . . .मैं ढूंढ़कर देता सीता को . . .मैं बिना पैसे के ढूंढ़कर देता . . .पर हम पुलिस वालों पर तो कौनफीडेंस ही नहीं है . . .नो कौनफीडेंस रामा .. . .ऑन पुलिस व्हाई . . .पुलिस नॉट देयर . . .व्हाई . . .                                 

दृश्य - 2

(थानेदार लु़ढक जाता है। मंच पर कुछ क्षण के लिए अंधेरा। प्रकाश आने पर कलियुगी थाने के स्थान पर 'थाना पंचवटी' लिखा हुआ है। थानेदार मेज़ पर लु़ढ़का हुआ है। इस भाग में अंधेरा होता है। मंच की दूसरी ओर से कृष्ण सिंह का प्रवेश, उसके वस्त्र कुछ पौराणिक काल के कुछ आधुनिक काल के हैं। वो हाथ पर सुरती बनाता हुआ चल रहा है। दूसरी ओर से एक तपस्वी आ रहा है। कृष्ण सिंह तपस्वी को नख–शिख कुटिलता से घूर रहे हैं। तपस्वी कांपता है।)

कृष्ण सिंह 
तपस्वीः  
कृष्ण सिंह 
कृष्ण सिंह
तपस्वी : 
कृष्ण सिंह 

तपस्वी : 

कृष्ण सिंह 
तपस्वी : 
कृष्ण सिंह 

तपस्वी : 
कृष्णसिंह :

तपस्वी : 
कृष्णसिंह :

तपस्वी :
कृष्ण सिंह



लक्ष्मण : 

राम : 

लक्ष्मण : 

राम : 

लक्ष्मण : 
कृष्ण सिंहः


राम
लक्ष्मण :
राम : 
लक्ष्मण : 
कृष्ण : 

राम : 
कृष्ण : 
लक्ष्मण : 
कृष्ण : 
लक्ष्मण : 
कृष्ण सिंह 
(मुस्कराते हुए) ये तू कांप क्यों रहा है?
आपके सामने शरीफ़ आदमी कांपने के इलावा और कर भी क्या सकता है?
तो तू शरीफ़ है। (तपस्वी सर हिलाता है)
और हम बदमाश। (तपस्वी सर हिलाता है, अपनी ग़लती समझ हकलाते हुए कहता है।)
नहीं . . .नहीं . . .क्षमा . . .आप भी शरीफ़ हैं।
(हंसते हुए) हम शरीफ़ अब साले हम तो बदमाशों के बदमाश हैं . . .बदमाशी को बदमाशी ही काटती है . . . तो हम क्या हुए बदमाश कि शरीफ़।
थानाध्यक्ष जी आप जो सिद्ध कर दें वही मैं हुआ और वही आप हुए। आपकी वरदी में बहुत शक्ति है प्रभु, आप चाहें तो हत्यारे को शरीफ़ और शरीफ़ को हत्यारा सिद्ध कर दें।
तुम तपस्वी लोग बहुत समझदार होते हो।... तपस्या से क्या–क्या नहीं पा लेते हो, हमें तपस्या सिखाओगे?
जी . . .
जानता है कौन–सी . . . वही सदा जवान रहने वाली . . .जीवन का आनंद लूटने वाली . . .इस थैली में क्या है, यज्ञ का सामान? राक्षसराज रावण का आदेश जानता है, यज्ञ करने वाले के लिए मृत्युदंड!
सुरक्षाअधिकारी क्षमा करें, मैं तो गुरूदेव की आज्ञा का पालन . . .
(उसी स्वर में) तपस्याधिकारी, मुझे क्षमा करें, मैं तो अपने महागुरू थानास्वामी की आज्ञा का पालन . . .साला आज्ञाकारी . . .चल निकाल जो है तेरे पास।
मेरे पास इस समय आपको उत्कोच देने के लिए कुछ नहीं है।
उत्कोच? यह तो सेवा शुल्क है, देता है कि तेरे आश्रम सेवा शुल्क लेने आऊं तेरी कन्या का क्या हाल है तपस्वी . . .बहुत दिनों से दिखाई नहीं दी।
 वो . . .वो . . .(थैली से मुद्रा निकालकर देते हुए) यह आपके लिए हैं।
(गिनते हुए) बड़ा समझदार है, वरना तेरे घर आता। जा तपस्या कर, कोई कुछ नहीं कहेगा और हां मेरे लिए भी। (उसके पिछवाड़े डंडा जमाते हुए) चल फूट . . .

                              (तपस्वी भागता है। उधर से राम लक्ष्मण का प्रवेश)
भैया न जाने कहां छिपा हुआ है पंचवटी थाना। थाने के कोई संकेत चिह्न भी नहीं हैं। मैं तो कहता हूं भैया थाना ढूंढने से अच्छा है कि सीता माता को हम ही ढूंढ लेते हैं।
भैया लक्ष्मण धैर्य . . .कानून व्यवस्था यही कहती है कि हमें पहले कानून का आश्रय लेना चाहिए। यहां के व्यवस्थापक को सीता के अपहरण की सूचना देना आवश्यक है।
मेरा तो यहां की कानून–व्यवस्था में विश्वास नहीं है भैया। जहां सीता माता का अपहरण हो सकता है वहां की व्यवस्था कम दुष्ट नहीं होगी।
लक्ष्मण व्यवस्था कैसी भी हो, तुम अपने क्रोध को संयत रखना। आरामपरस्तों के साथ रहते–रहते इन लोगों की भाषा असभ्य और व्यवहार अशोभनीय हो जाता है। हमें अपना संयम नहीं छोड़ना चाहिए . . .समझे।
जैसी आपकी आज्ञा भैया . . .
(हाथ में सुरती बनाते हुए, चलते–चलते बड़बड़ा रहा है) हमारे साहब को तो चौबीसों घंटे पीने को सोमरस चाहिए और खाने को भुना हुआ हिरण का बच्चा . . .चल बेटा कृष्ण सिंह इंतज़ाम कर। (लक्ष्मण कृष्ण सिंह की ओर इशारा करके राम से कहता है)
भैया इससे पूछें पंचवटी थाने का पता . . .?
इससे? ये तो स्वयं कोई दस्यु लग रहा है।
भैया अगर ये दस्यु है तो थाने का पता अवश्य ही जानता होगा . . .भैया . . .(कृष्ण सिंह को पुकारते हुए) सुनो भद्रपुरूष, क्या आप हमारी सहायता करने का कष्ट करेंगे !"
भई इतनी इज्ज़त से बात मत कर . . .शरीर में गुदगुदी होती है। (राम लक्ष्मण की वेशभूषा को ध्यान से देखता है, आश्चर्यचकित होता है) कौन जीव हो . . .का चाहते हो?
(मुस्कराकर) हमें पंचवटी थाने का पता चाहिए भद्र।
पंचवटी थाना? आपको क्या काम है वहां?
हम ज़रा वहां की व्यवस्था देखना चाहते हैं, काम हम वहां की व्यवस्था देखकर ही बताएंगे।
आप जैसे तपस्वियों को थाने से क्या काम?
हम तपस्वी नहीं हैं।
तपस्वी नही हैं . . .व्यवस्था देखेंगे . . .वो उधर . . .कुछ नहीं . . .कुछ नहीं . . .वो उधर . . .मैं चलता हूं। (यह कहकर कृष्ण सिंह घबराकर भागता है।)

दृश्य तीन

(थानेदार नशे में धुत देश के हितचिंतकों की तरह लु़ढका हुआ है कृष्ण सिंह पास आकर चिल्लाता है . . .सॉब, ओ सॉब . . .सॉब . . .उठो ना सॉब, क्या देश के भविष्य की तरह सोए हुए हो?)

 

थानेदार : 

कृष्ण सिंह 
थानेदार : 

कृष्ण सिंह 
थानेदार : 


कृष्ण सिंह 
थानेदार : 






(नींद से उठता हुआ–सा) अब क्या हुआ। कांप क्यों रहा है . . .क्या सुबह–सुबह कोई उर्वशी या मेनका देख ली है . . .
नहीं साहब, वो दो मानव आ रहे हैं . . .धनुष बाण से लैस हैं . . .थाने का पता पूछ रहे थे।
अबे भुट्टे कोई शिकारी होंगे, हफ्ता देने आ रहे होंगे। बिना लाइसेंस इस इलाके में शिकार जो करने देता हूं... तू तो अपने ग्राहकों को भी नहीं पहचानता है, लगता है तेरी नज़र कमज़ोर हो गई है।
नहीं साहब वो शिकारी नहीं है . . .उनके कपड़े ऋषि–मुनियों के हैं।
अबे इसमें ग़लत क्या है . . .अच्छा है भेस बदल कर शिकार कर रहे हैं। अब हम पुलिस की वरदी पहने हैं पर लोगों का शिकार करते हैं कि नहीं . . .शिकार चाहे जानवर का हो या जनता का, भेस बदलकर ही करना चाहिए। तेरे से तो बगुला समझदार है, तू उससे भी कुछ सीख।
साहब ये गुप्तचर विभाग वाले भी भेस बदल कर छापा मारते हैं।
(घबराते हुए) हां . . .हं . . .हं . . .तू ठीक कह रहा है। कितने घटिया हैं ये गुप्तचर वाले। डरपोक कहीं के, अबे छापा मारना है तो सीना तानकर आओ . . .चोरी पकड़ने के लिए चोरों की तरह आते हैं। अबे देख क्या रहा है चल जल्दी से ये सोमरस की बोतल छिपा, हिरण का मांस उधर रख और जब मैं कहूं तो अलकापुरी की स्पेशल ले आइयो और नुक्कड़ से हिरण के बच्चे को तल कर ले आइयो। बढ़िया भोज होना चाहिए और कुछ सोने के टुकड़े भी रख दीजियो, समझा . . .कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए, वरना यह डंडा देख रहा है। सही स्वागत करूंगा उनका, अगर गुप्तचर विभाग के हुए . . .बहरूपिए हुए तो (डंडा घुमाते हुए) इससे वो स्वागत करूंगा कि कपड़े पहनने भूल जाएंगे। (डंडे को हथेली पर मारता है और चेहरा सख्त करके कुरसी पर बैठ जाता है।) कृष्ण सिंह के साथ राम लक्ष्मण का प्रवेश)

थानेदार : 
राम : 
थानेदार : 
राम : 
आओ . . .ओ . . .शिकारियों . . .पंचवटी में शिकार करने आए हो क्या?
नहीं थाना अधिकारी, हम शिकारी नहीं है।
हमसे उड़ते हो, शिकारी नहीं हो तो इस तीर कमान से क्या गिल्ली–डंडा खेलते हो? (हंसता है। कृष्ण सिंह भी हंसता है)
थाना अधिकारी इस प्रकार का उपहास उचित नहीं है . . .हम क्षत्रिय है और ये शस्त्र दुष्टों का दमन करने के लिए है . . .।

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