| सोनल : आवाज़ बना कर - देखिए देवी जी। मैं शादीशुदा हूं।
 - प्रदीप हंसते-हंसते लोट-पोट हो जाता
है। - सोनल : इसमें हंसने की क्या बात
है! हंसो मत। मेरी मदद जो करो। यह नंबर तुम डायल करके बात करो न!प्रदीप : यह पागलपन है। इस तरह पूजा तुमको कभी नहीं मिलेगी।
 सोनल : प्ली . . .ज़!
 प्रदीप : लंबी सांस खींच कर -नंबर बताओ।
 सोनल : 81766251
 - प्रदीप डायल करता है। नेपथ्य से टेलीफ़ोन
की घंटी की आवाज़ - प्रदीप :
कोई नहीं उठा रहा है। दूसरा नंबर दो।सोनल : 28735139
 - प्रदीप डायल करता है। नेपथ्य से टेलीफ़ोन
की घंटी की आवाज़। कोई फ़ोन उठाता है। - आवाज़ :
हां जी हलो। प्रदीप : सोनल से, धीमे स्वर में -नाम बताओ। जल्दी।
 सोनल रावत।
 प्रदीप : हलो। क्या मैं रावत जी से बात कर सकता हूं।
 आवाज़ : हां जी, स्पीकिंग।
 प्रदीप : रावत जी, मेरा नाम प्रदीप है। मैं एक कुमाऊंनी को ढूंढ
रहा हूं। उसका नाम सोमू है और उसकी पत्नी का नाम पूजा है। वे करीब 10
साल पहले मुंबई आए थे। मेरे लिए उनसे मिलना बहुत ज़रूरी है। क्या
आप मेरी मदद कर सकते हैं?
 - दूसरी ओर से चुप्पी - हलो रावत जी, क्या आप लाइन में हैं?रावत : हां जी। मैं यहीं हूं जी। आपने क्या नाम बताया अपना?
 प्रदीप : मेरा नाम?
 - सोनल से - मेरा नाम पूछ रहा है।
 जी मेरी नाम प्रदीप है। प्रदीप मुरारी।
 रावत : मुरारी! देहरादून मुरारी मिष्ठान्न भंडार वाले मुरारी तो
नहीं?
 प्रदीप : जी मैं वो मुरारी नहीं हूं। हां मैं उनको जानता ज़रूर
हूं। वे हमारे गांव से ही हैं।
 रावत : मुरारी मिष्ठान्न भंडार वाला चोरों का सरदार है। उसने
मुझे ठगा है जी। वह आपको मिले तो उससे ज़रूर कहिएगा कि लोगों को
ठगे नहीं।
 
 - सोनल इशारे से पूछती है कि रावत क्या बोल रहा है! -
 
 प्रदीप : धीमे स्वर में - लंबी कहानी है। देहरादून मिठाई वाले
मुरारी ने कभी उसको ठगा था। उसी की शिकायत कर रहा है।
 सोनल : हे भगवान!
 रावत : हां जी, आप किसको खोज रहे हैं। क्या नाम बताया?
 प्रदीप : उसका नाम सोमू है। मुझे उसका पूरा नाम नहीं मालूम।
 रावत : हां जी। एक फ़ोन नंबर देता हूं, लिखिए। 26535737, यह
रौतेला जी का नंबर है। रौतेला जी यहां के पुराने बासिंदे हैं। लगभग
सभी कुमाऊंनियों को जानते है। और परेल में कुमाऊंनी संस्था का ऑफ़िस
है। वहां भी पता कर लीजिएगा।
 प्रदीप : धन्यवाद।
 रावत : मेंसन नॉट जी। लेकिन आपको तो नाम ही नहीं मालूम
है। मुरारी जी आप बड़े मज़ेदार इंसान हैं जी। नाम नहीं मालूम है।
 - हंसता है और फ़ोन रख देता है। - सोनल : क्या हुआ!प्रदीप : मुंह बनाता है। -
 तुम भी न मुझे कहां-कहां फंसा देती हो! किसी रौतेला का नंबर
मिला है। चलो, यहां भी फ़ोन कर लेते हैं।
 - नंबर घुमाता है। - हलो, क्या मैं रौतेला जी से बात कर सकता
हूं।रौतेला : खांसते हुए - महाशय, मैं रौतेला ही बोल रहा हूं। आप
इतना ऊंचा न बोलें तो मुझे सुनने में सुविधा होगी।
 प्रदीप : रौतेला जी, मैं एक महिला की खोज कर रहा हूं। उसका नाम
है पूजा।
 सोनल : पूजा पांडे। पूजा का शादी से पहले का नाम पूजा पांडे है।
 प्रदीप : पूजा का शादी से पहले का नाम पूजा पांडे है। 10 साल पहले
उसने सोमू नामक व्यक्ति से शादी की थी। मुझे इतना ही मालूम है।
यदि आप पूजा का पता लगाने में मेरी सहायता करें तो महती कृपा होगी।
 
 रौतेला : क्रोधभरी आवाज़ में - आपको मेरा नंबर किसने दिया।
 प्रदीप : एक रावत जी हैं।
 सोनल : वह एक हों या दो हों आप उनसे कह दीजिएगा कि मैं कोई
चलती-फिरती डाइरेक्टरी नहीं हूं।
 प्रदीप : मुझे खेद है कि मैंने आपको कष्ट दिया। पूजा का पता लगाने
का हमारे पास फ़ोन ही एक साधन है। मैं और मेरी पत्नी पिछले दो घंटों
से फ़ोन से पता लगाने का प्रयत्न कर रहे हैं।
 रौतेला : आप सारी रात प्रयत्न करते रहिए, आपको सफलता नहीं
मिलेगी। हां, मैं एक सोमनाथ सौन को जानता हूं। उसका नंबर
लिखिए। एक मिनट . . .हां यह रहा। लिखिए 26688222
 - फोन पटक देता है। - प्रदीप एक बहुत ही क्रुद्ध वृद्ध थे। एक
सोमनाथ सौन का नंबर दिया है।
 सोनल : चिल्लाती है - प्रदीप। प्रदीप।
 प्रदीप : चिल्ला क्यों रही हो!
 सोनल : मुझे याद आ गया। सोमू का पूरा नाम सोमनाथ सौन
है। चलो डायल करते हैं।
 - प्रदीप के हाथ से फ़ोन छीनती है। - नहीं-नहीं मैं डायल नहीं करूंगी। तुम
डायल करो। तुम्हारी किस्मत अच्छी है। प्रदीप : मुस्कुराता है और डायल करता है। -हलो क्या यह नंबर 26688222 है?
 आवाज़ : जी हां। आपको किससे बात करनी है?
 प्रदीप : जी पूजा से।
 सोनल : कौन है?
 प्रदीप : पुरूष की आवाज़ है।
 सोनल : ज़रूर सोमू होगा। फ़ोन मुझे दो।
 - फ़ोन छीनने का प्रयत्न करती है। प्रदीप
नहीं देता है।- पूजा : हलो, मैं पूजा बोल रही
हूं।
 प्रदीप : सोनल को फ़ोन देते हुए - पूजा।
 पूजा : हलो कौन बोल रहा है?
 सोनल : हलो पूजा। मैं सोनल बोल रही हूं।
 -स्वगत- हा . . .ई . . .मेरा दिल कितनी ज़ोर से धक-धक कर रहा है।
 पूजा : सोनल? सो ना!!
 सोनल : हां सोना।
 पूजा : सोना! इते सालों के बाद! कहां से बोल रही हो।
 सोनल : जुहू से।
 पूजा : मुंबई में हो और फ़ोन कर रही हो! अभ्भी तुरंत घर
आओ। मैं फ़ोन में तुमसे बात करने से इनकार करती हूं।
 सोनल : पूजा यदि तुम्हें मालूम होता कि तुम्हारा फ़ोन नंबर
जानने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े तो इस तरह नहीं बोलतीं। बेवकूफ़,
तुमने संपर्क क्यों नहीं रखा? उस भीगी रात के बाद तुम ऐसे गायब हुई
जैसे गधे के सिर से सींग। गधी के सिर से!
 पूजा : कौन बोल रहा है! मैंने तुमको पत्र लिखा था। लौटती डाक
से वापस आ गया था। तुमने घर बदल लिया था और मुझे बताया तक
नहीं।
 सोनल : कैसे बताती? तुम्हारा पता तो नहीं मालूम था।
 पूजा : मेरा फ़ोन नंबर कैसे मिला?
 सोनल : यह तीन घंटे लंबी कहानी है। अंत में एक रौतेला ने
तुम्हारा नंबर दिया।
 पूजा : रौतेला जी ने नंबर दिया! आश्चर्य है। उनसे पूछो तो
समय तक नहीं बताते। कहते हैं घड़ी ख़रीद लो।
 सोनल : तुम्हारा नंबर तो सही बताया। हो सकता है तुम उनको अच्छी
लगती हो।
 पूजा : उनका वश चले तो वे मुझे गोली से उड़ा दें। मैं उनके
बगीचे से गुलाब के फूल तोड़ती रहती हूं। चोरी से। सोमू को गुलाब
बहुत अच्छे लगते हैं।
 सोनल : तो तुमने सोमू से शादी कर ही ली।
 पूजा : शादी को दस साल हो चुके। मैंने तुमसे कहा तो था।
 सोनल : कहा तो था पर मुझे नहीं मालूम था कि कर ही लोगी।
 पूजा : मेरी छोड़, अपनी बता। उसका नाम प्रदीप है न।
 - प्रकाश धीमा होता है।- - नेपथ्य से -दो बिछुड़ी सहेलियां मिलीं थीं। समय का किसे अंदाज़ रहता है! समय
तो अपनी धीर-गंभीर और निश्चित गति से बीतता जाता है पर ऐसे
अवसरों पर लगता है कि समय कैसे बीत गया! अभी तो कितनी बातें और
करनी हैं।
 - प्रकाश - पूजा : सोना, बहुत हो गया। तुम
अभी इसी समय घर आओ।सोनल : कुछ अंदाज़ भी है कि क्या बजा है?
 पूजा : ओह! अच्छा ऐसा करो, कल सुबह-सुबह आ जाओ। एकदम
सुब्बे-सुब्बे।
 सोनल : सुब्बे नहीं आ सकती रे। कल सुबह ट्रेन पकड़नी है।
 पूजा : ओह!
 सोनल : लेकिन मैं अगले हफ्ते फिर मुंबई आ रही हूं। तब मैं
ज़रूर तुमसे मिलने आऊंगी। ये सोना का वादा रहा।
 पूजा : एक दिन रूक जा न। अगला हफ्ता तो बहुत दूर लगता है।
 सोनल : काश रूक सकती। पर तुझे तो मालूम ही है, जीवन के
झमेले।
 पूजा : चलो। कल हम नहीं मिल सकते हैं तो नहीं मिल सकते हैं।
 सोनल : अपना पता दे।
 पूजा : उतरांचल सोसाइटी, फ्लैट नंबर 4, छेडानगर, चेंबूर।
 सोनल : अच्छा पूजा। अगले हफ्ते मिलते हैं। मैं तुमसे मिलने के
लिए बेताब हो रही हूं। तू क्या अब भी पेड़ पर चढ़ती है!
 पूजा : और नहीं तो क्या। तुझे तो मालूम है मुझे गुलमोहर से
कितना लगाव है। यहां सोसाइटी वालों से लड़-झगड़ कर मैंने
गुलमोहर का पेड़ लगा रखा है। मैं तो फुनगी में जा कर ही दम लेती हूं।
तू अगले हफ्ते आ तो सही। तुझे लेकर चढूंगी। ऊपर बैठ कर दोनों खूब
गप्पें लगाएंगे।
 सोनल : अरे बेवकूफ़, पहले की बात और थी। बरगद या पीपल का
पेड़ हो तो तब भी एक बात है। पर गुलमोहर! अरे कहीं गिर-गिरा गई तो
लेने के देने पड़ जाएंगे।
 पूजा : सोना!
 सोनल : बोलो।
 पूजा : कोई गिरने के लिए पेड़ पर नहीं चढ़ता। जिसे गिरना होता
है वह बरगद-पीपल से भी गिर जाता है। केवल कायर ही गिरने के डर से
पेड़ पर चढ़ना छोड़ सकते हैं। मैं कायर नहीं हूं सोना।
 सोनल : अच्छा बाबा, तू कायर नहीं है। तू तो मेरी निडर बंदरिया
है।
 - प्रदीप सोनल को घड़ी दिखाता है। - अच्छा पूजा अगले हफ्ते मिलते हैं।पूजा : भगवान तुमको सुखी रखे।
 - नेपथ्य से - एक सप्ताह बाद सोनल फिर मुंबई पहुंची।
अपनी सहेली से मिलने के लिए उतावली हो रही थी। चेंबूर में छेडानगर
पहूंची।घर खोजा। घर खोजने में कोई परेशानी नहीं हुई। बिल्डिंग के आंगन
में गुलमोहर का एक पेड़ अपने पूरे यौवन पर था। दरवाज़ा खोला भूले-बिसरे
सोमू ने। सोमू, पूजा का पति।
 सोनल : सोमू, पहचानते हो मुझे!सोमू : हां सोना। अंदर आओ। तुम अकेली हो?
 सोनल : हां, इस बार मुंबई मैं अकेली ही आई हूं। पूजा कहां है?
 सोमू : अंदर आओ।
 सोनल : पूजा . . .
 सोमू : पूजा नहीं है सोना।
 सोनल : पूजा नहीं है? कहां गई है? कब तक लौटेगी?
 सोमू : पूजा अब नहीं लौटेगी।
 सोनल : अचंभित - क्या झगड़ा हुआ है तुम दोनों का?
 सोमू : विक्षिप्त है। ज़ोर दे कर कहता है।
-पूजा अब कभी नहीं लौटेगी। वह हमें छोड़ कर चली गई है। वह अब
इस दुनियां में नहीं रही सोना।
 - अपने को संयत करता है। - सोनल : स्तब्ध और अचंभित - पूजा
नहीं रही!सोमू : आज चार दिन हो गए हैं। वह नहीं जाना चाहती थी। पर
गई मुस्कराते हुए।
 - विराम - वह पिछले छह महीनों से बिस्तर पर अपाहिज
थी। उसकी दोनों किड़नियों ने काम करना बंद कर दिया था। पिछले हफ्ते
वह जब तुमसे पेड़ पर चढ़ने की बात कर रही थी तो उसे मालूम था कि वह
एक या दो दिन की ही मेहमान है। वह तुमसे मिलना चाह रही थी, पर रूक
नहीं पाई। - विराम - उसने मुझसे कहा था कि इस हफ्ते मैं
चौबीसो घंटे कहीं न जाऊं। घर पर ही रहूं क्यों कि तुम पहली बार हमारे
घर आ रही थीं। - विराम - उसने तुम्हारे लिए यह संदेश छोड़ा है। - सोनल संदेश खोलती है। - -पूजा की आवाज़ - सोना,जब तुम यह संदेश पढ़ोगी, मैं फुनगी से गिर चुकी हूंगी। विश्वास
करो सोना एकदम नहीं डरी। निडर बंदरिया अंत समय में कैसे डर सकती है।
 जब भी मेरे घर जाओ मैं तुम्हें वहां
अवश्य मिलूंगी, गुलमोहर के ऊपर वाले उसी घर में। जब भी हवा में
गुलमोहर की पतियां सरसराएंगी तुम समझ लेना तुम्हारी बिछु़डी सखी
तुम्हें बुला रही है। गप्पे मारने के लिए। - नेपथ्य से -सोनल वहां से लौटते समय उस
गुलमोहर के पेड़ के नीचे अनायास ही रूकी। एक गुलमोहर का फूल हवा
में डोलता हुआ उसके बालों में उलझ गया। उसने ऊपर देखा, उसे लगा
पूजा कह रही हो - किता सुंदर है न रे!
 जब चली पवन पुरवाईडाली गुलमोहर की लहराई
 सखी मेरी अंखियां भर आईं
 सखी मेरी अंखियां भर आईं।
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