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सोनल : हलो
प्रदीप : सोना, मैं नहीं आ सकता।
सोनल : क्या मतलब! मैं यहां तैयार बैठी हूं और तुम कहते हो
कि नहीं आ सकते।
प्रदीप : बड़े ज़ोरों की बरसात हो रही है सोना।
सोनल : उस दिन मैंने तुमको 'शुगर' क्या बोल दिया तुम अपने
को चीनी का बना हुआ समझने लगे। पानी में तुम गलोगे नहीं। जल्दी
आ जाओ।
प्रदीप : ताने मत कसो। बरसात सचमुच बड़े ज़ोरों की है।
सोनल : देखो बच्चू, तुम आ जाओ नहीं तो तुम्हारी खैर नहीं।
- फोन रखती है।
गुनगुनाती है। दरवाज़े पर घंटी। दरवाज़ा खोल कर अंदर की ओर मुड़
जाती है। -
सोनल : ये हुई न बात। बड़ी जल्दी आ गए। थोड़ी बूंदाबांदी
क्या हुई तुम डिनर ही कैंसिल करने चले थे।
- पूजा का प्रवेश। पुरूष भेष में है मय मूंछों के। पूरी भीगी हुई है।
कपड़ों से पानी टपक रहा है। अजनबी को देख कर सोनल की सिट्टी-पिट्टी गुम।
चिल्लाती है। -
पूजा : चिल्लाओ मत सिस्टर। अकेली रहने वाली लड़की को
अजनबियों के लिए दरवाज़ा नहीं खोलना चाहिए। बुरी बात है। किसी ने
तुमको नहीं सिखाया?
-चाकू निकाल कर दिखाती है। सोनल फिर चिल्लाती है। -
पूजा : चिल्लाओ मत सिस्टर।
सोनल : कौन हो तुम? क्या चाहते हो?
पूजा : खलनायकों वाली हंसी हंसते हुए -
तुम एकदम मत घबड़ाओ सिस्टर। मैं बहुत आराम से अपना काम करूंगा।
सोनल : क्या करोगे तुम?
पूजा : इस चाकू से तुमको ककड़ी की तरह छीलूंगा। तुमको ज्यादा
तकलीफ़ नहीं होगी। मैं बहुत आराम से और होशियारी से यह काम करता
हूं।
सोनल : देखो मुझे मारो नहीं। मैंने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा है।
- पीछे हटती है। उसके हाथ एक टेबल लैंप लगता है। उसी को उठाती है,
पूजा को मारने के लिए। -
पूजा : सोना! सोना स्टैच्यू!
- सोनल वैसे ही मूर्तिवत ख़डी हो जाती है। -
सोनल : कौन हो तुम? मेरा नाम कैसे जानते हो?
- पूजा अपनी नकली मूँछें उतार कर फैंकती है। रेनकोट उतारती है। कैप
उतार कर अपने बाल ठीक करती है और मुस्कुरा कर अपनी सहेली को देखती है। -
सोनल : पहचान कर -
पूजा तुम। तुम . . .ठहर पूजा की बच्ची।
- टेबल लैंप लेकर उसकी ओर बढ़ती है। -
पूजा : सोना, क्या कर रही हो तुम। मैं पूजा हूं, पूजा। तेरी
सहेली।
सोनल : मेरी सहेली! पूजा! मैंने तुमको पहचान लिया है। रूक,
मैं इससे तेरा सिर फोडूंगी। फिर उस चाकू से खीरे की तरह नहीं छीलूंगी
बल्कि कद्दू की तरह काटूंगी।
- पूजा पीछे हटती है। जब दोनों आमने-सामने होती हैं तो सोनल
टेबल लैंप रख देती है और दोनों गले मिलती हैं। प्रकाश धीमा होते हुए
लुप्त होता है। -
- प्रकाश। दोनों बैठी हुई हैं। -
सोनल : यह क्या तरीका था। मेरा दिल अभी तक धक-धक कर रहा है।
इतने सालों के बाद मिल रही है और दिमाग़ में अभी तक फितूर भरा हुआ
है।
पूजा : इते सालों के बाद मिल रहे हैं तभी तो। मैंने सोचा
इस मिलन को यादगार बनाना चाहिए। अब देखो, तुम अपने नाती-पोतों
से मज़े ले-लेकर बोल सकोगी कि मैंने कैसे तुमको डराया।
सोनल : दिल्ली कब आई और कैसे आई?
पूजा : यह लंबी दास्तान है यार।
सोनल : शुरू हो जा। रात अपनी है।
पूजा : तू तैयार थी कहीं बाहर जाने के लिए?
सोनल : नहीं अब नहीं जा रही। जो मुझे बाहर ले जा रहा था वह
बरसात में भीगने से डरता है।
पूजा : अच्छा! कौन है वह?
सोनल : मेरा मंगेतर। इसी पंद्रह को मेरी शादी है।
पूजा : अरे वाह, नाम क्या है?
सोनल : प्रदीप।
पूजा : मुझे बता उसके बारे में।
सोनल : जी नहीं, मैं कुछ नहीं बताने वाली। पहले तू अपने
बारे में बता। दिल्ली कैसे आना हुआ।
पूजा : मैं यहां खोजबीन करने आई थी।
- थोड़ा रूक कर -
जीवन बड़ा कठिन है सोना। पिछले दो
सालों से मैं शादी करने की कोशिश कर रही हूं। ऐसे-ऐसे मिले हैं कि
मत पूछ। एक तो ऐसा-वैसा-जाने-कैसा निकला। और एक न-सूरत-न-शकल-कहां-भूल-आए-अकल!
- सोनल हंसती है। -
यह अभी वाला तो प्रोफ़ेशनल दूल्हा निकला।
वही जो नाम बदल कर और शहर बदल कर शादी करते रहते हैं और दहेज हड़प
कर अपना बैंकबैलेंस बढ़ाते हैं।
सोनल : तू कैसे फंस गई ऐसे आदमी के चक्कर में।
पूजा : अरे किस्मत जो न कराए! वह खुद ही मेरे पास आया था, मेरे
एक रिश्तेदार का हवाला ले कर।
सोनल : उसकी असलियत पता कैसे चली?
पूजा : मैंने दिमाग़ से काम लिया। खोजबीन की। उसका नाम,
उसका पता, उसकी नौकरी, सब कुछ। उसने सब ग़लत बताया था। मैंने
पुलिस में रिपोर्ट कर दी।
- विराम -
तू अरूंधती को तो जानती है।
सोनल : अरूंधती मेहता?
पूजा : वही। आजकल वह अरूंधती कुमार है और सब-इंस्पेक्टर है। अरूंधती
का डील-डौल तो तूने देखा ही है। उसने अपना पुलिसवाला डंडा दिखाया
बस उसने सब कुछ उगल दिया। अरूंधती ने तो डंडे से केवल उसे डराया।
मैंने उसी डंडे से साले को दो जड़ दिए।
सोनल : बापरे! तू एकदम नहीं बदली। हम लोग तुझे निडर
बंदरिया यों ही नहीं कहते थे। अब भी पेड़ पर चढ़ती है?
पूजा : हां रे। तुझे हमारे आंगन के वो दो गुलमोहर के पेड़ याद
हैं।
सोनल : क्यों नही याद होंगे! जब वे फूलते थे तो लगता था
एक बड़ी आग की लपट लहरा रही हो। दीपा ने तो कविता भी लिखी थी उन पर।
पूजा : मैंने मचान बनवाया है और मचान के ऊपर घर। ट्री-हाउस।
सोनल : गुलमोहर के ऊपर घर! उसकी टहनियां तो कमज़ोर होती
हैं।
पूजा : इतनी कमज़ोर भी नहीं कि मेरा हल्का-फुल्का घर न सम्हाल
पाएं।
सोनल : तूने घर बनवाया कैसे? इतनी जगह कहां है वहां?
पूजा : अरे बेवकूफ़ यह क्यों भूलती है कि दोनों पेड़ एक दूसरे
से लगे हुए हैं। एक अच्छाख़ासा घर बना है। सोमू ने मदद की थी उसे
बनवाने में। जब भी मेरा मन करता है मैं एक किताब ले कर ऊपर चढ़
जाती हूं। एकदम स्वप्निल वातावरण रहता है वहां। एकदम आसमान के पास।
काश तू भी मेरे साथ होती।
सोनल : तुझे डर नहीं लगता गिरने का।
पूजा : ऊपर सब डर दूर हो जाते हैं। मेरी छोड़, तू अपने बारे में
बता। यहां तू अकेली रहती है?
सोनल : मजबूरी है। पिताजी देहरादून में हैं। मां को गठिया है,
वे यहां नहीं आ सकतीं। मेरी नौकरी यहां है। चल रही है जिंदगी। कोई
शिकायत नहीं है।
वही कारवां है, वही रास्ते हैं।
पूजा : तुम्हारा पता मुझे सोमू ने दिया था।
सोनल : हां कुछ समय पहले वह यहां आया था। मुंबई जा रहा
था।
पूजा : हां। वह मुंबई में बस गया है। मेरी उससे बात होती
रहती है। सोना!
सोनल : बोल।
पूजा : मैंने फ़ैसला कर लिया है। मैं सोमू से शादी कर रही हूं।
सोनल : यह अचानक ही . . .
पूजा : अचानक नहीं। वह मेरा अच्छा दोस्त है। शादी मैं किसी ऐसे
व्यक्ति से करना चाह रही थी जिसके पास बहुत पैसा हो। सोमू सदा मेरी
सेकैंड च्वाइस रहा है। अब मैंने निर्णय ले लिया है। अब मैं सोमू से
ही शादी करूंगी।
सोनल : सोमू ने तुझसे शादी के विषय में बात की है? तुझसे
पूछा है?
पूजा : नहीं पूछा है तो पूछ लेगा।
सोनल : तू पूरी की पूरी पागल है।
पूजा : तू अपने बारे में बता।
सोनल : मैं एकदम ठीक हूं। तेरी तरह पागल नहीं हूं।
पूजा : अपनी शादी के बारे में बता?
सोनल : मेरी शादी प्रदीप से तय हो चुकी है। एकदम परंपरागत। शादी
अगले महीने की 15 को है। तू दिल्ली में है न तब तक।
पूजा : नहीं सोना, मुझे मुंबई जाना है। सोमू को पकड़ना
है। नहीं तो कोई दूसरी लड़की न पकड़ ले उसको।
सोनल : रूक जा न पूजा।
पूजा : अभी तो मत रोक मुझे। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो 15 से पहले
ही आ जाऊंगी।
सोनल : चल किचन में चल। कुछ खाने का इंतज़ाम करते हैं।
पूजा : और तू मुझे प्रदीप के बारे में बताएगी।
- दोनों हंसती हुई किचन में जाती हैं। अंधेरा।-
- अंधेरे में नेपथ्य से -
पूजा नहीं आई सोनल की शादी में।
समय बीतता गया। सोनल पूजा को नहीं भूल पाई! कैसे भूलती!
बचपन की सहेली जो थी। दस साल बीते। सोनल और प्रदीप को मुंबई
जाने का मौका मिला। सोनल मुंबई, वृहन्मुंबई में अपनी सहेली
को ढूंढ़ना चाहती थी। क्या वह उसे ढूंढ़ पाई!
दृश्य दो
मुंबई में होटल का कमरा
सोनल : काश मैं किसी तरह, किसी
भी तरह पूजा से मिल पाती।
प्रदीप : तुम पूजा से नहीं मिल सकती हो। तुम्हें उसका पता नहीं
मालूम, उसके पति का पूरा नाम नहीं मालूम। तुम्हें केवल इतना मालूम
है कि उसके पति का पहला नाम सोमू है। पूरा नाम तुम्हें याद नहीं रहा।
वास्तव में तुम्हें यह भी नहीं मालूम कि उसने सोमू से शादी की भी
या नहीं।
सोनल : मेरे दिमाग़ में एक आइडिया कुनमुना रहा है।
प्रदीप : क्या कोई जादू जानती हो?
सोनल : जादू-वादू नहीं, मैं उसे टेलीफ़ोन के सहारे ढूंढ़
लूंगी।
प्रदीप : नाम तक तो नहीं मालूम, टेलीफ़ोन नंबर कहां से
मालूम होगा!
सोनल : एक मिनट अपनी बकवास बंद कर मेरी सुनो तो!
प्रदीप : सुनाओ।
सोनल : पूजा एक कुमाऊंनी लड़की है। और सोमू भी कुमाऊंनी है।
प्रदीप : तो!
सोनल : कुमाऊंनी लोग साधारणतया एक-दूसरे को जानते हैं।
प्रदीप : मुंबई में तुम किसी कुमाऊंनी को नहीं जानती हो।
सोनल : मुझे मालूम है। लेकिन मैं पता लगा लूंगी।
कुमाऊंनियों के नाम कुछ अलग होते हैं जैसे रावत, पुनेठा, पंत . . .
टेलीफ़ोन डाइरेक्टरी से एक कुमाऊंनी का पता लग गया तो पूजा का पता भी
लग जाएगा।
प्रदीप : पागल हो तुम। मुंबई की टेलीफ़ोन डाइरेक्टरी के दो मोटे
भाग हैं। और यहां लाखों कुमाऊंनी बसते हैं।
सोनल : देखो-देखो, इस डाइरेक्टरी में मुझे यह नाम मिला,
पंत। सुरेश पंत। नंबर है 25609871।
- नंबर डायल करती है।-
आवाज़ : हलो।
सोनल : हलो, क्या आप सुरेश पंत हैं?
आवाज़ : जी हां।
सोनल : हलो मिस्टर सुरेश पंत, आप कौन हैं? मेरे कहने का
मतलब क्या आप सोमू को जानते हैं? आप कहां के रहनेवाले हैं।
- मुंह बनाती है। -
प्रदीप : क्या हुआ?
सोनल : काट दिया।
- प्रदीप हँसता है। -
सोनल - एक और नंबर घुमाती है। -
हलो, मिस्टर पुनेठा?
आवाज़ : मेरा नाम शिरोमणि पुनेठा है। मुझे आप शिरोमणि
बुला सकती हैं।
सोनल : मिस्टर शिरोमणि . . .
आवाज़: मिस्टर शिरोमणि नहीं, केवल शिरोमणि।
प्रदीप : क्या कहा उसने?
सोनल : हाथ के इशारे से प्रदीप
को चुप कराती है।- शिरोमणि, मेरा नाम सोनल है।
आवाज़ : हलो सोनल, कैसी हो?
सोनल : मैं अच्छी हूं, थैंक्यू।
आवाज़ : तुम्हारी आवाज़ से ही लगता है कि तुम अच्छी होगी।
बोलो मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं।
सोनल : मैं पूजा नाम की एक लड़की को खोज रही हूं। वह अल्मोड़ा
की है।
आवाज़ : सोनल, तुम एक काम करो। तुम सीधे मेरे घर आ जाओ।
यहां आराम से तुम पूजा के बारे में बताना। मैं अकेला रहता हूं। कोई
हमें डिस्टर्ब भी नहीं करेगा।
- सोनल फोन काट देती है। -
प्रदीप : अब क्या हुआ!
सोनल : साला, लाइन मार रहा था।
- प्रदीप खूब हंसता है। -
सोनल :
चुप। एक और नाम मिला त्रिभुवन पंत।
- नंबर घुमाती है। -
आवाज़ : हलो।
सोनल : हलो, क्या आप त्रिभुवन पंत हैं?
आवाज़ : जी हां।
सोनल : हलो त्रिभुवन पंत जी, आप कैसे हैं?
आवाज़ : आप कौन बोल रही हैं?
सोनल : आप मुझे नहीं जानते। क्या आप पूजा नाम की किसी लड़की
को जानते हैं?
आवाज़ : क्या नाम बताया?
सोनल : पूजा। पूजा।
आवाज़ : देखिए देवी जी। मैं शादीशुदा हूं।
- फोन काट देता है। -
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