प्रेमचंद
श्री
धनपत राय श्रीवास्तव, जो हिन्दी और उर्दू के लेखक प्रेमचंद
के नाम से प्रसिद्ध हुए, का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी
के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनकी प्रारंभिक
शिक्षा अरबी और फारसी में हुई। १८९८ में मैट्रिक करने के
बाद उन्होंने अध्यापन के क्षेत्र में प्रवेश किया साथ ही
घर पर रह कर बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। राजनीतिक उथल
पुथल के समय उन्होंने नौकरी छोड़ दी और अपना प्रेस खोल कर
'हंस' और 'जागरण' का संपादन करने लगे।
उनकी कुछ
प्रसिद्ध रचनाएँ प्रारंभ में उर्दू में लिखी गईं और बाद
में उनका हिन्दी अनुवाद हुआ। उन्होंने 'माधुरी' का भी
संपादन किया तथा बम्बई की एक फिल्म कंपनी में नौकरी भी की
पर अधिक दिनों तक न रुक सके। उन्हें १९३६ में लखनऊ में
आयोजित सर्वप्रथम भारतीय साहित्य सम्मेलन का सभापति होने
का गौरव प्राप्त है।
उन्होंने
हिन्दी में कहानी और उपन्यास को सुदृढ़ नीव प्रदान की और
यथार्थवादी चित्रण से देशवासियों का दिल जीत लिया। वे अपने
समय में हिन्दी साहित्य के सबसे अधिक पढ़े जाने वाले और
लोकप्रिय लेखक साबित हुए। उनकी साधारण मुहावरेदार भाषा
आसानी से समझ में आती है और गहराई से दिल में उतर जाती है।
उन्होंने भारतीय समाज की कुरीतियों और विडम्बनाओं को अपनी
कहानियों का विषय बनाया।
उनके तीन
उपन्यास 'गोदान', 'निर्मला' और 'रंगभूमि' विश्वजाल पर
डाउनलोड के लिए उपल्बध हैं।
उनका
निधन ८ अक्तूबर १९३६ को हुआ।
प्रमुख
कृतियाँ -
उपन्यास - प्रेमा, वरदान, सेवासदन, प्रेम आश्रम,
प्रतिज्ञान, निर्मला, गबन, रंगभूमि, कायाकल्प, कर्मभूमि,
गोदान तथा मंगलसूत्र (अपूर्ण)
कहानी
संग्रह -
उनकी सभी महत्वपूर्ण कहानियाँ मानसरोवर (चार भागों में)
में संग्रहीत हैं, इसके अतिरिक्त कफन, नव जीवन, प्रसून,
प्रेम प्रतिज्ञा आदि उनके कई कहानी संग्रह प्रकाशित हुए।
|