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''अमीर खान को।''
''या, ही इस नाइस टू।''
''और तुम कहाँ की हो?''
''न्यूयार्क की, वहीं जन्मी पली हूँ।''
''अमरीकन हो?''
''नहीं, अमरीकी यहूदी हूँ। मेरे बज़ुर्ग दूसरे विश्व युद्ध में सिर पर छत की तलाश में अमेरिका आए थे, अब मेरा परिवार बिज़नेस में है।''
''पढ़ाई कहाँ की?''
''एन.सी स्टेट यूनिवर्सिटी से एग्रीकल्चर में मेजर किया है।''
''अब क्या कर रही हो?''
''डॉ. जोसेफ वन्देज़रऑफ़ के निर्देशन में तुम्हारे साथ ही पीएच.डी करुँगी।''
''मुझे हिन्दी फिल्मों के पुराने गीत सुनने बहुत अच्छे लगते हैं, तुम्हें?'' उसने कार में लता और रफी की सी.डी ऑन करते हुए कहा था,
''मैं गाने कम सुनता हूँ।''
''संगीत में रुचि नहीं?''
''इतनी नहीं...''
''किस में रुचि है?''
''पेंटिंग में.''
''वाओ...ग्रेट, एक दिन देखूँगी।''

और वह उसे उसका घर दिखलाकर, रूम मेट से मिलवाकर चली गई थी। उसका रूम मेट नरेन सान्याल बंगाली लड़का था। बहुत सरल, सादा उसी की तरह का। अभिनव की उसके साथ पहली बारगी में ही दोस्ती हो गई। उसने एक सप्ताह के भीतर अभि को यूनिवर्सिटी के वातावरण से परिचित करवा दिया। यूनिवर्सिटी से बस पकड़ कर वे कैरी के चैदम सकुएर में भी घूम लिए थे, जो यहाँ भारतीयों का चाँदनी चौक है। चाँदनी चौक की हर चीज़ यहाँ मिलती है, वह अमेरिका में बसा हुआ भारत देख कर हैरान हो गया था...

टी.वी पर चल रहे खेल में यू.एन.सी चैपल हिल की टीम जीत गई... और स्वागत कक्ष में बैठे उसके प्रशंसकों का शोर उभरा।

इसी तरह का शोर उस दिन भी उभरा था, जब वेनेसा ने स्टुअर्ड थिएटर में इंडिया नाईट में भांगड़ा डाला था और फिर ''आओ हज़ूर तुम को सितारों में ले चलूँ...'' आशा जी का गीत गया था। भीड़ के शोर से बेखबर बड़ी देर तक वह उस रूह को पहचानने और उसकी गहराई नापने का प्रयास करता रहा, जो इस यहूदी शरीर में बसी उसे अपने पास बुलाने का सन्देश कई बार दे चुकी थी। प्रयोगशाला में गेहूँ की गामीटो साईड और पेस्टी साईड को मिला कर नई किस्म निकालते-निकालते कब उनकी रूहें एक हो गईं और इज़रायली झरना उसके हृदय से बह निकला, उसे पता नहीं चला।

यात्रियों ने आना शुरू कर दिया है और लोग अपनों का स्वागत करने के लिए खड़े हो गए हैं। वह भी खड़ा हो गया। वह बेचैन है कि दादी और माँ का सामना कैसे कर पाएगा?
उसे बहुत देर इंतज़ार करना पड़ा। जहाज़ से उतरने वालों में सबसे अंतिम यात्री भी आ गया, पर दादी और माँ का कुछ पता नहीं। तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी। दूसरी तरफ वेनेसा थी, ''अभि, वापस आ जाओ, वे लोग सहयोजित फ्लाईट नहीं पकड़ सके। अगली फ्लाईट रात के दस बजे आएगी।''

वह झींखा हुआ पार्किंग लाट से कार लेने चला गया। वह द्वन्द्व में है, दादी और माँ अब उसे क्यों मिलने आ रहीं हैं वह तब कहाँ थीं, जब दादा जी ने अपनी अंतिम ईमेल में उसे जायदाद से बेदखल करने की धमकी दी थी और उसने अपनी ईमेल आई डी बदल दी थी और फ़ोन नम्बर भी। दो दिन बाद ही उसने हिन्दू भवन के मन्दिर में जा कर आर्य समाजी तरीके से शादी करवाने के लिए, वहाँ के पुजारी से बात की और उसने वैदिक हवन करने वाले डॉ. भूपेन्द्र गुप्ता और डॉ. वसुधा गुप्ता का नाम उसे दे दिया। पालिका बाज़ार से शादी की साड़ी और शृंगार के प्रसाधन वे दोनों जा कर ले आए। वेनेसा का परिवार भी उसका हिन्दू लड़के के साथ शादी करने के विरुद्ध था। दोनों ने अपने दोस्तों को बुलाया और गुप्ता दम्पति की उपस्थिति में आर्य समाजी तरीके से शादी करवा ली। येरुशलैम के पावन सौन्दर्य ने हिन्दू भवन में मन्त्रों की मधुर ध्वनि और अग्नि के समक्ष जीवन के नए अध्याय का आरम्भ किया, जिसमें कई नए रंगों और रसों का समावेश था, दो विभिन्न संस्कृतियों से एक नए इतिहास का आरंभ हुआ। वह अपने परिवार से रुष्ट था। उसके अनुराग को वह पहचान नहीं पाए थे। उसके प्रेम की गरिमा को ग़लत कसौटी पर कसा था उन्होंने।

कार घर के गैराज में पार्क करते हुए उसे भारतीय व्यंजनों की सुगंध आई, उसने सोचा कि वेनेसा ने माँ और दादी के लिए भोजन बनाया है। ज्योंही उसने दरवाजा खोला, सब एक साथ चिल्ला उठे, ''सरप्राईज़...वह अवाक् सब को देखता रह गया..दादी-दादा जी, माँ और पिता जी, वेनेसा के मम्मी-डैडी और दोनों छोटे भाई... उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, वह कभी वेनेसा और कभी परिवार को प्रश्न सूचक दृष्टि से देखता रहा। उसने तो सब से नाता तोड़ लिया था, वे सब घर में और वह घंटों एयर पोर्ट पर बैठा रहा। दादी ने आगे बढ़ कर रंगों की थाली से गुलाल का टीका उसके माथे पर लगाया और गालों को छू लिया। वह संस्कारवश पैरों पर झुक गया। फिर तो खुशियों का ऐसा दरिया बहा कि सब के पैर छुए। वेनेसा के परिवार के भी। वेनेसा के डैडी बेन्जेमिन ममोला ने उसे सीने से लगा लिया। दादी ने सबके माथों पर गुलाल का टीका लगाया। ममोला परिवार ने बड़े प्रेम से टीका लगवाया। वेनेसा साड़ी में सजी-धजी कहर बरपाती घूम रही है, उसके रूप लावण्य पर नज़र नहीं टिक रही।

वेनेसा इधर आओ, दादी ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया, अपने पर्स से एक डिब्बा निकाल कर, उन्होंने उसे कड़े पहनाए और माँ ने रानी हार। वह उनके पैर छूने को झुकी तो तीनों भावविह्वल हो गईं...परिमंडल में दोनों परिवारों की संवेदनाएँ सुबकने लगीं।

दादा जी ने उसे किंकर्तव्यविमूढ़ देख अपने पहलू में बिठा लिया। ''अभि हैरान हो रहे हो, स्वाभाविक है, तुम तो अपने थे, ऐसे रूठे कि पलट कर नहीं देखा और न्यूयार्क से चली बयार इज़रायल की सुगंध समेटे मैदानी सूखे को भी लहरा गई। तुम ओलों से ही घिरे रहे।''
''आपने मेरी पसंद पर भरोसा नहीं किया।''
''तुम भी तो अपनी परी के अच्छे सन्देश वाहक नहीं बने, इतनी जल्दी धैर्य छोड़ गए।''

दादी बीच में ही बोल पड़ीं, ''तुम से वेनेसा अच्छी जिसने शादी के बाद तीसरे दिन पत्र लिखा, वह पत्र हम सब का हृदय पिघला गया और पिछले एक साल से वह बहू की जिम्मेदारियाँ निभा रही है।'' माँ ने उसके सिर पर हल्की सी चपत लगाई, ''भौंदू, तुम्हें पता भी नहीं चला। तुम अपने ही खोल में कुढ़ते रहे, माँ-बाप का गुस्सा तो हवा की हिलोर होता है, आता है और चला जाता है। वेनेसा तुम्हारा गुस्सा ठंडा होने का इंतज़ार कर रही थी। वह रंगों वाले दिन तुम्हें उपहार देना चाहती थी...इंसानी रंगों के सरप्राईज़ का उपहार। वह कहती है, इससे गहरा कोई और रंग नहीं, गिले-शिकवे भूल कर जब सब मिल बैठते हैं, तो अम्बर से इन्द्रधनुष के रंग भी धरा पर उतर कर अपनी छटा दिखलातें है। होली तुम्हारा मन पसंद त्यौहार है, इसीलिए हम आज आए हैं।''

पिता जी उसके पास आ कर बैठ गए, कुछ देर उसकी पीठ पर हाथ फेरते रहे, फिर बोले, ''दो दिन से हम वेनेसा के परिवार के साथ थे, बहुत अच्छे लोग हैं। वे ही हमें ड्राईव करके लाए हैं, हमें तुम्हारी पसंद और ममोला परिवार पर गर्व है।''
''पर मुझे इतनी देर एयर पोर्ट पर क्यों बैठाए रखा?''
''यह तुम वेनेसा से पूछो, उसी का आइडिया था, ताकि हम आ जाएँ और वह तैयारी कर सके। लैब से तो तुम जल्दी घर आ जाते।''
वेनेसा मुस्कराती हुई उसके बालों में हाथ फेर कर निकल गई।

वह सिर्फ इतना ही कह पाया, ''यह उपहार मैं कभी भूल नहीं पाऊँगा, रंगों का मतवाला कभी सोच भी नहीं सकता कि ऐसी भी होली हो सकती है।'' उसका गला भर गया और आँखों की नमी छुपाने के लिए वह स्टूडियो में पेंटिंग्स को ढंग से रखने के लिए चला गया।

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१ मार्च २०१०

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