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आख़िरी बार जब तिया से पति के हक़ से उलझे थे तब भी यही ज़िन्दा अलाव में झोंके जाने की अनुभूति हुई थी। अपने घोंसले को बिखरने से बचाने और तिया को रोक पाने की क़ोशिश में वह झुलसे जा रहे थे।
''सारा शहर जानता है कि मैं जब युद्ध के समय, जान पर खेल कर सीमाओं की रक्षा कर रहा था तो तुमने किस तरह मेरे घर की मान-मर्यादाओं की सीमा को तोड़ा। है फिर भी बच्चों की ख़ातिर मैं तुम्हारे साथ सब कुछ भूल कर रहने को तैयार हूँ।''
''मुझे तुम्हारा उपकार नहीं चाहिए।'' तिया के स्वाभिमान ने उनके प्रस्ताव को ठोकर मार दी।

आख़िरी सांस तक लड़ता सिपाही। उन्होंने पूरा ज़ोर लगा कर अपने आख़िरी हथियार का भी जुआ खेल डाला।
''इस घटना के बाद संजना से कोई शादी नहीं करेगा।''
''तुम्हारे साथ ज़िन्दगी गुज़ारते हुए मैं ज़िन्दा दफ़न हो रही हूँ। मुझे जीने के लिए हवा चाहिए। मैं अपने को बचाऊँ या लाश बन कर बच्चों को देखूँ?'' और तिया सब को छोड़ कर चली गई।

सोहम धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे उतर कर आया।
''डैडी, मम्मी आ गई हैं।''
उन्होंने सिर हिला दिया कि हाँ जानता हूँ।
''उन्हें नहीं मालूम कि आप यहाँ बैठे हैं।''
वह चुप रहे।
सोहम कुछ देर असमंजस में खड़ा रहा।
''आप खाना ऊपर हमारे साथ खाएँगे?''
''नहीं, भूख नहीं।''
''अच्छा, नीचे ही ले आता हूँ। थोड़ा-सा खा लीजिए।''
सोहम एक ही प्लेट में दुगुना खाना भर कर, उसके नीचे एक ख़ाली प्लेट छिपा कर नीचे आ गया।
''थोड़ा-सा मुझसे ले लीजिए।'' कह कर उसने प्लेट में उनके लिए खाना निकाल दिया।
सोहम ने टेलीविजन पूरे ज़ोर पर चला दिया। केशी देखते रहे। शायद टेलीविजन देखने का बहाना करके नीचे आ गया है। फिर उनके साथ होने के लिए या संजना और करण को माँ के साथ अकेला छोड़ने के लिए।

केशी से खाया नहीं गया।
सोहम ने प्रश्न-भरी नज़रों से देखा।
''सिर में दर्द है।'' वह बोले।
''मम्मी से अलग होने पर डैडी को एक साल तक लगातार सिर में दर्द होता रहा था।'' संजना ने बताया था सोहम को।
''डैडी,'' सोहम ने चुप्पी तोड़ी।
केशी ने जैसे बड़ी मुश्किल से पलकें खोलीं।
''शुक्रिया, बहुत-बहुत। आपने जो हम सब की भावनाओं को ध्यान में रख कर हमारा साथ दिया है न, उसका। संजू के मन से भार उतर गया है। आप संजना और करण की ख़ातिर यहाँ आने को राज़ी हो गए, इससे आप हमारी नज़रों में और भी ऊँचे हो गए हैं डैडी।''
वह फीका-सा मुस्कराए। उन्हें सोहम बहुत प्यारा लगता है। उनके इस हवा में डोलते परिवार को, ख़ास कर उनकी संजू को इसी ने थाम लिया था।
''डैडी, मैं मम्मी को बहुत मिस करती हूँ।। संजना ने चार साल में यह पहली बार कहा था।
''मेरी शादी हो रही है और मम्मी जानती तक नहीं।''
''कोई हक़ नहीं है उसे जानने का।'' केशी घायल वन्य-पशु की तरह तिलमिला उठे। अनजाने ही अपनी संजू पर भी वार कर दिया।
''अगर वह शादी में होगी तो फिर..., मैं नहीं आऊँगा।''

संजना तड़पती है। कितनी कठिन होती है अपने दोनों में से किसी एक को चुनने की मजबूरी। क्यों देते हैं लोग अपनी ही संतान को यह ज़िन्दा मौत की सज़ा? चुनो! इसे या उसे?
''तेरा मन नहीं करता माँ को मिलने का?'' सोहम ने संजू से विवाह के बाद फिर पूछा।
''करता है, पर जो उन्होंने किया है उसके लिए मैं उसे माफ़ नहीं कर पाती। डैडी ने तो हम लोगों को नहीं छोड़ा। मैं और करण उनके साथ हैं। बस इन्हीं बैसाखियों के सहारे वह खड़े हैं। नहीं तो वह एक टूटे हुए इन्सान हैं। मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी जिससे उन्हें मुझसे भी चोट पहुँचे।''
''तुम अब सिर्फ़ उनकी बेटी ही नहीं, मेरी पत्नी भी हो। अपना निर्णय ख़ुद लो।''
शादी के बाद भी चार महीने लगे संजना को निर्णय लेने में। भारत उसने कई लोगों को ई-मेल कर-कर के मम्मी का फ़ोन नम्बर लिया। सोहम ने ही कान्फ़्रेंस-कॉल की थी जिसमें न्यूयॉर्क में बैठी संजना, वाशिंगटन में बैठा करण और दिल्ली में बैठी तिया एक साथ फ़ोन पर थे।
एक घड़ी, एक पल, जिस पर बहुत कुछ टिका था।
''मम्मी।'' संजना ने यहाँ से कहा।
'संजूऽऽऽऽ''। तिया आवेग से पागल हो उठी।
''मेरी बच्ची।'' उसके आँसू, हिचकियाँ रुक नहीं रहे थे।
''आज मेरी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा ख़ुशी का दिन है। कहाँ हो तुम लोग?''
''अमरीका में।''
तिया चुप हो गई। यह तो उसकी सोच के बाहर था कि बच्चे देश छोड़ कर ही चले जाएँगे और वह उन्हें देखने को ही तरस जाएगी। इतनी बड़ी सज़ा!
''शादी भी हो गई? करण की पढ़ाई भी पूरी हो गई?''

फिर संभाल लिया उसने अपने को। कोई बात नहीं, बाक़ी की ज़िन्दगी तो है ना।
तिया को खोए बच्चे मिल गए। अक़्सर ई-मेल करती, फ़ोन करती। रो-रो पड़ती। किसी से माँग कर वीडियो-कैम भी ले आई।
बस देख लूँ अपनी संजू को, सोहम को - अपने जमाई को।
करण बात करता तो बिल्कुल बच्चों की तरह रो पड़ता।
मम्मी की कमी महसूस करता था, पर माँ ने ही उसे एक ऐसा घाव दिया था कि वह नहीं जानता कि कभी किसी भी औरत पर विश्वास कर सकेगा।
उसे अपने ऊपर ही अब विश्वास नहीं। किसी पर भी नहीं। बस संजना पर है। संजना बड़ी बहन है, माँ जैसी । नहीं-नहीं, मम्मी जैसी बिल्कुल नहीं। डैडी जैसी भी नहीं, उस जैसी भी नहीं। बस अपने-आप जैसी।
सोहम और संजना ने उसी पर ज़िम्मेदारी डाल दी थी - डैडी को बताने की।
''डैडी, हम ने मम्मी से बात की है।'' उसने बहुत हिम्मत करके केशी को बताया।
केशी को इस बात की सम्भावना थी।
''कब?''
''दो हफ़्ते हुए।''
'मुझे पहले क्यों नहीं बताया?'' उनकी आवाज़ में कड़क थी।
''हमें डर था कि पता नहीं आपकी क्या प्रतिक्रिया हो?''
''ठीक है।'' वह ढीले होकर बैठ गए।

न करण और न संजना को ही उम्मीद थी कि डैडी इतनी शांति से यह बात स्वीकार कर लेंगे। उनके ऊपर से बोझ उतर गया।
संजना ने शुक्रगुज़ार हो कर केशी को फ़ोन किया, ''डैडी आप बहुत अच्छे हैं।''
एक टूटा हुआ आदमी, अच्छा क्या और बुरा क्या? वह कुछ नहीं बोले थे।
''डैडी हम अभी आते हैं''। सोहम की आवाज़ ने उन्हें वर्तमान में घसीट लिया। लगा कि भोजन वग़ैरह सब हो चुका होगा। सोहम उठ कर ऊपर चला गया।
''चलिए मम्मी, हम आप को अपना फ़ैमिली-रूम दिखाएँ''। संजना की आवाज़ थी।
केशी की सांस थम-सी गई - साक्षात्कार की घड़ी!

संजना और करण के साथ तिया कमरे में दाख़िल हुई। आराम-कुर्सी पर केशी को बैठा देख सकपका गई।
उसने संजना की ओर देखा। संजना का चेहरा जैसे इस्पात का बन गया था। जैसे चुनौती दे रहा हो, आज तुम लोग कुछ नहीं जान पाओगे। बरसों के तूफ़ान आपस में ही भिड़ गए थे और चेहरे पर वही थमी हुई प्रलय का भाव।
''सरप्राईज़!'' करण ने जैसे उस अटपटे क्षण को सामान्य करने का प्रयास किया।
केशी ने सिर घुमाया पर तिया के चेहरे को नज़रें छू न सकीं। उसकी नीली साड़ी के बादलों में ही अटक कर रह गईं। उन क्षणों में कितना कुछ ध्यान से गुज़र गया। महसूस हुई तो सिर्फ़ एक टीस, दर्द की एक तीखी लहर। मन की पीड़ा को सुन्न करने का कोई इलाज अभी तक क्यों नहीं बना? उन्होंने आँखे बन्द कर लीं।
''सॉरी, मुझे मालूम नहीं था कि आप यहाँ हैं। तिया कुछ लड़खड़ा-सी गई। शुरू-शुरू में केशी के यहाँ होने का ख़याल तो उसे कई बार आया था पर अब तक वह उनकी अनुपस्थिती के बारे में आश्वस्त हो चुकी थी। अब अचानक सामने पाकर वह उखड़ी, फिर सम्भल गई।

तिया ने आँख उठा कर उन्हें देखा और चेहरे को पढ़ने में ही खो गई। वही लंबा सरु जैसा क़द, चेहरे पर कोमल नाक-नक़्श पर कितना ढल गया है चेहरा? बाल भी बेवक्त पक गए। सफ़ेद होती हुई दाढ़ी में एकदम ऋषि-मुनि जैसे ही लगते हैं।
संजना पता नहीं कब सोहम को पुकारती हुई ऊपर सरक गई। करण माँ को बाँह से लपेटे पास बैठा रहा। संजू हमेशा डैडी की बेटी थी और वह मम्मी का बेटा। वह इन क़ीमती, फिर से हाथ आए पलों को मुट्ठी में खोल-बन्द कर के देखता रहा। हालाँकि उसे ख़ुद ही लगा कि वह उन दोनों के बीच में उजबक-सा बैठा हुआ है।
संजना के आगे-आगे सोहम हाथों में गिलासों की ट्रे और बर्फ़ लेकर आया।
''आज शैम्पेन खोलें? उसने तिया से पूछा।
संजना ने आँखें तरेरीं। बोली, ''डैडी सिर्फ़ स्कॉच ही लेते हैं।''

केशी ने स्कॉच का गिलास थाम लिया। सोहम ने अपने लिए भी थोड़ी-सी स्कॉच ढाली, बर्फ़ डाल कर सोडे से गिलास भर लिया। बाकी तीनों गिलासों में भी वाइन डाल कर सब को गिलास थमा दिए। सबके गिलास एक साथ उठे।
''हैप्पी रियूनियन'' सोहम ने कहा।
गिलास टकराए। साथ ही तिया और केशी की नज़रें भी। पल भर के लिए सब कुछ ठिठक गया- एक इतिहास, साथ जिया उम्र का एक खूबसूरत हिस्सा, एक रिश्ता - जो कभी नितान्त अपना था और अब जाकर पहचान के दूसरे छोर पर खड़ा था। वह चुपचाप बैठे धीरे-धीरे घूँट भरते रहे।
सोहम ने फ़ॉयर-प्लेस ऑन कर दिया। लकड़ियाँ पहले से ही सजी थीं सिर्फ़ गैस का स्विच घुमाया और लपटें उन लकड़ियों के इर्द-गिर्द नाचने लगीं। न धुआँ न राख सिर्फ़ आग और उष्णता का आभास। तिया को अजीब-सा लगा पर कुछ बोली नहीं। कोई भी कुछ नहीं बोला। कमरे की चुप्पी का दिमागों में चल रहे कोलाहल से कोई वास्ता नहीं था।

छोटी-सी संजू घंटों घर बनाने का खेल खेला करती। बरामदे के एक कोने में रामू की मदद से दो खड़ी चारपाइयाँ जोड़ कर तिकोना घर बनता। उसके अन्दर होती संजू की छोटी-सी दुनिया। गुड़िया का सोने का कमरा, ड्राइंग-रूम, छोटा-सा किचन उसमें खिलौनों के बर्तन थे। फिर किसी ने उसे प्लास्टिक का एक टी-सैट भेंट कर दिया। संजू उसमें चाय पीती थकती न थी।
केशी शाम को लौटते तो संजू को ढूँढ़ते हुए वहीं पहुँच जाते। केशी को उसके घर में मेहमान की तरह दस्तक देकर आना होता था। संजू झूठ-मूठ की मिठाइयाँ और नमकीन चाय के साथ परोसती।
केशी आँखो में शरारत भर कर कहते, ''आज बरफ़ी बहुत अच्छी बनी है।''
संजू चिढ़ जाती, ''बरफ़ी नहीं है, चॉकलेट पेस्ट्री है।''
'ओह, सॉरी। अब खिलौने की प्लेट पर पड़े भूरे रंग के कागज़ के टुकड़े को कुछ भी समझा जा सकता है।''
''मम्मी आप भी मेरी चाय-पार्टी में आओ ना।'' वह ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगाती।
''तू अपने डैडी को ही चाय पिला।'' तिया कहती।
''बच्ची का दिल रखने के लिए ही दो मिनट के लिए आ जाओ।'' जब केशी भी साथ मिल जाते तो करण को गोदी में उठाए-उठाए तिया आती।

संजू खिल जाती। उसकी व्यस्तता और बढ़ जाती। करण को वह असली लॉली-पॉप निकाल कर देती।
तिया केशी को देख कर मुस्कराती। संजू जो चीज़ किसी को न दे, करण को देकर ख़ुश होती थी।
''अब हो गया न तेरा घर-घर का खेल। चलो अब चल कर खाना खा लो।''
संजू उमंग से उठ कर केशी का हाथ पकड़ लेती।''डैडी, कल फिर खेलेंगे।''

पिछले चार बरसों से तो संजू ने ही केशी और करण का हाथ पकड़ रखा था। टूट गए थे केशी, बिखर गया था करण। कहाँ क्या ग़लत हो गया? क्या कमी रह गई थी? कोई छोटा-सा छेद जो उन्होंने गम्भीरता से नहीं लिया और अचानक महासागर बन कर सब कुछ लील गया। क्या कमी थी उनमे जो तिया उनसे विमुख होकर दूसरी दिशा में मुड़ गई? उनका अहं लहु-लूहान था।
करण चोट से बौखला कर दिशा ही भूल गया। संजू ने करण का हाथ थाम लिया, आकर पिता के बगल में खड़ी हो गई। कुमारी कन्या माँ बन गई पिता और भाई की। छोड़ दिया वह घर, वह देश वह वातावरण, जहाँ यादों और उठती उँगलियों ने हवा में ज़हर घोल दिया था। शरणार्थियों की तरह घर छोड़ कर आ गए थे, एक नए देश में। हीथ्रो एयर-पोर्ट से दो हवाई जहाज़ अलग-अलग दिशाओं में उड़े थे - केशी और करण अपने भाई के पास, संजना कैनेडा की तरफ़ - अनजानी फुफेरी बहन के घर।

संजना रात गए उस कमरे की छत और दीवारों को ताकती। कहाँ है वह? यह न मायका है, न ससुराल, न अपना घर। ज़िन्दगी इसी किसी रिश्तेदार के घर में आकर रुक गई। उम्र तो अपनी गति से चलती रही। रिश्तेदार का तबादला हो गया। वह फिर बुआ के घर आ गई।
फ़ोन आते-जाते। ''डैडी, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, ख़ुश हूँ। आप किसी बात की चिन्ता न करें। आप ठीक हैं न?''
केशी को गिरने से बचा रही थी तो यही संजना और करण की वैसाखियाँ। बच्चे उनके साथ हैं, बस यही एक बात काफ़ी थी उन्हें ज़िंदा रखने के लिए। तिया उनकी कुर्की नहीं कर सकी। बच्चे तिया के नहीं, उनके साथ हैं। उनका सिर तिया से कई हाथ ऊपर उठ जाता।
कहीं गहरे एक सुख था, उनके अहं को सान्तवना मिलती थी। वह धराशायी किए जाने के बावजूद, फिर से उठकर और अकेले अपनी बेटी का विवाह कर पाने की सामर्थ्य रखते हैं।
सब कुछ होगा पर तिया के बिना।

संजू आहत हुई पर वक्त की नज़ाकत को देखते हुए समझौता कर लिया। डैडी को समझती है। बच्चे ही तो नहीं थे तिया के पास, वह उनके साथ हैं। इसी एक बात पर वह ज़िन्दा थे, खड़े थे। अगर उन्हें लगे कि वह भी तिया के सांझे में आ गए हैं तो शायद चरमरा कर टूट जाएँगे।
बिना माँ के गले लगे संजू सोहम के घर आ गई।

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