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केशी पाँच सीढ़ियाँ नीचे धँसे
फ़ैमिली रूम में, आराम-कुर्सी पर अधलेटे से चुपचाप पड़े थे।
व्यस्तता का दिखावा करने के लिए सीने पर किताब नन्हे से बच्चे
की तरह सोयी थी। आँखे टेलीविजन के स्क्रीन को घूर रही थीं पर
देखती कुछ और ही थीं। कानों में ही जैसे सभी इन्द्रियाँ समाहित
हो गईं। ऊपर से आने वाली एक-एक आवाज़ को वह बरसों से प्यासे की
तरह पीने को आतुर हो उठे।
बाहर घंटी बजी। वह उठ कर सीधे बैठ गए। सोहम के तेज़ क़दमों से
बढ़कर बाहर का दरवाज़ा खोलने की आवाज़ आई।
आवाज़ों का एक जुलूस घर के अन्दर घुस आया। संजना और करण अपनी
माँ को लेकर लौटे होंगे? शायद सोहम ने तिया के पाँव छुए होंगे।
''ओह, माई गॉड!'' तिया की ही आवाज़ थी। वही उल्लास भरी। बच्चों
जैसी चहक, ज़िन्दादिल।
''कितना ख़ूबसूरत घर है मेरी बच्ची का?'' आवाज़ सुनाई दी। तिया
ने शायद ड्राइंग-रूम में बाहें फैला कर, चारों ओर घूमते हुए
कहा होगा।
केशी तिया की आवाज़ की घात को सह नहीं पाए। चार साल बाद सुनी थी
यह आवाज़। दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था, सिर घूम गया। लगा, जैसे
किसी ने उन्हें बालों से पकड़ कर, उनका चेहरा जलते अलाव के पास
रख दिया हो। उन्होंने आँखे बन्द कर लीं। संजना और करण की ज़िद
ने उन्हें कहाँ झोंक दिया? |