हालाँकि मैंने हैरिस से सुन रखा
था कि भारतीय लोगों को घूरने की कुछ ज़्यादा ही आदत होती है,
लेकिन वे मुझे इस तरह देखेंगे कि मुझे उनकी दृष्टि चुभने लगे,
मैंने इसकी कल्पना नहीं की थी। मेरे लिए बड़ी मुसीबत थी कि न
तो मैं उन्हें इस तरह देखने से रोक सकती थी और न ही उनके सामने
से उठ सकती थी, क्यों कि वे हमारी शादी के बाद भारत से पहली बार
मिलने आए थे। मैं 'गिनी पिग' (प्रयोगशाला का पशु) बनी चुपचाप
बैठी रही। कुछ क्षण बाद
हैरिस ने उन्हें हाथ-मुँह धोने के लिए कहते हुए मुझे उठकर चाय
बनाने का इशारा किया। मैंने राहत की साँस ली। वे हमारे लिए
बहुत-से उपहार लाए थे। मिठाई के कई डिब्बे, कपड़े और
रिश्तेदारों द्वारा दिए शगुन के रुपए भी। हैरिस ने मुझे समझा
दिया था कि जब वे कुछ दें, तो फौरन मत ले लेना। हम लोगों में
पहले मना किया जाता है और जब कोई दुबारा देना चाहता है, तो हम
कहते हैं कि इसकी क्या ज़रूरत थी? आपका आना ही हमारे लिए बहुत
बड़ी बात है। यह सुनकर देने वाला और भी आग्रह करता है। तो लेने
वाला कहता है कि पहले वे और जिस-जिसको देना चाहते हैं, उसे दे
दें। हमारा क्या है, हम तो घर के ही हैं। मुझे ऐसा करना काफी
अजीब लगा, लेकिन मैंने हैरिस की सलाह का पूरा पालन किया। अचानक
मम्मी ने मेरी ओर देखकर डैडी के कान में कुछ कहा। मेरी समझ में
कुछ नहीं आया, लेकिन उनके चेहरों से मैंने भाँप लिया कि उन्हें
कुछ बुरा लगा है। हैरिस ने बताया था कि मुझे पैर छूते और उनके
सामने बैठते समय सिर को ढकना है, लेकिन मुझे यह याद ही नहीं
रहा था। उसने मुझे इशारे से रसोई में बुलाकर याद दिलाया। मैंने
पूछा, ''अब क्या करूँ?''
वह बोला, ''कुछ नहीं बिगड़ा। तुम सिर पर स्कार्फ़ या मेरा
रूमाल रख लो और उनसे सॉरी बोलकर बता दो कि मैं भूल गई थी। और
हाँ, उन्हें मम्मी और डैडी कहना, मिसेज चावला मिस्टर चावला
नहीं।''
मम्मी और डैडी? मैंने शंका की। वे तुम्हारे मम्मी और डैडी हैं
हैरिस, मेरे नहीं। क्यों न उन्हें आंटी और अंकल कहूँ? आखिर इन
संबोधनों में भी तो प्यार और अपनत्व है।
सुनकर हैरिस के माथे की लकीर उभर आई, तो मैंने और कुछ न कहकर
ओ.के. कह दिया। मुझे रसोई में उस समय और कुछ तो मिला नहीं। एक
नया 'टी टॉवल' पड़ा था। मैंने वही सिर पर रख लिया और
मम्मी-डैडी के पास जाकर सॉरी कहते हुए उनके पैरों पर झुक गई।
वे खुश हो गए। यह तो अच्छा था कि मैंने लंबा कफ़्तान पहन रखा
था, वर्ना मेरी नंगी टाँगे देखकर वे न जाने मेरे बारे में क्या
सोचते।
मम्मी ने वहीं सामान खोलना
शुरू कर दिया और मुझे मेरे उपहार देने लगीं। मैं हर चीज़ की
यंत्रवत सराहना करती गई। वे जब भी कहतीं, मैंने यह ख़ास
तुम्हारे लिए चुनी थी, तो मैं हैरिस द्वारा बताया तरीका अपनाती
और रटे हुए वाक्य में मना करती। मैं उनमें से कितने ही कपड़े
और उपहार लेना नहीं चाहती थी और मुझे सोने के भारी गहने भी
नहीं पहनने थे, लेकिन मेरे लिए कोई विकल्प नहीं था, क्यों कि वे
बुरा मान जातीं, इसलिए मैंने यह कहकर भी कि 'दैट्स टू मच', सब
कुछ ले लिया। वे बहुत खुश हुई और बोलीं, 'हरीश, तेरी बहू बड़ी
अच्छी है। देख, उसे सब कुछ कितना पसंद आया है। तुम फ़ोन पर यों
ही डरा रहे थे कि यह मत लाना और वह मत लाना।
''आपकी बहू अच्छी है तो क्या
मैं बुरा हूँ?'' मुस्कुराते हुए हैरिस ने पूछा और उठकर ऐन्या
के कमरे की ओर चला गया।
अगले ही पल जब वह ऐन्या को गोद में उठाए हुए लौटा, तो मम्मी और
डैडी हैरानी से पहले उसे और फिर मुझे देखने लगे।
फिर मम्मी बोलीं, ''यह कब हुई? तुमने हमें बताया क्यों नहीं?''
डैडी भी मम्मी का साथ देते हुए कहने लगे, ''हम तो दुश्मनों से
भी गए-गुज़रे हो गए, तुमने इतनी बड़ी ख़बर छुपा ली और वह भी
माँ-बाप से?''
साफ़ झलक रहा था कि उन दोनों को बहुत बुरा लगा है और वे समझ
रहे हैं कि हमने उपेक्षा करके उनका अपमान किया है।
मम्मी ने हैरिस के हाथ से
बेबी को लेते हुए चूमा और डैडी को देते हुए बोली, ''लो दादा
जी, पोती को देख लो। यहाँ न आते, तो पता तक न चलता।'' फिर वे
कहने लगीं, ''ये आजकल के बच्चे हैं न। माँ बाप को बच्चा पैदा
होने तक की ख़बर नहीं देते।''
डैडी ने जब ऐन्या को लिया, तो बड़े गंभीर दिखे। जब मम्मी ने
हमें बधाई दी, तो उन्होंने भी उनकी देखा-देखी हमें बधाई दे दी,
लेकिन उसमें शिकायत ज़्यादा थी। मम्मी ने हैरिस से कहा, ''हमें
बताने की ज़रूरत क्या है, अब हम तुम्हारे कुछ लगते थोड़ी है?
तुमने तो माँ-बाप का दिया नाम तक बदल लिया है। फिर मेरी ओर
इशारा करते हुए बोलीं, ''अब यही तुम्हारी सब कुछ जो है। हैरिस
ने मम्मी को प्यार से अपनी बाँहों में लेते हुए कहा, ''नहीं
मम्मी, आप दोनों पहले हैं, और सब बाद में। दरअसल हम आपको
'सरप्राइज़' देना चाहते थे। पर 'सरप्राइज़' देने वाली बात का
'सरप्राइज़' देते हैं, या माँ-बाप को बच्चा होने का भी
'सरप्राइज़' देते हैं?'' मम्मी ने पूरी नाराज़गी जताते हुए
कहा। वे ऐन्या को डैडी के हाथों से लेकर कहने लगीं, ''औलाद का
मोह बड़ी बुरी चीज़ है। आदमी सारी ज़िंदगी जिनके लिए मरता रहता
है, वही कितनी जल्दी ग़ैर बन जाते हैं।''
फिर उन्होंने ऐन्या को सुनाते हुए कहा, ''देख ले, तेरे माँ-बाप
कितने निर्मोही हैं। तू ऐसी मत बनना।'' यह कहते-कहते मम्मी ने
अपने गले की चेन उतारकर ऐन्या को पहना दी। उनकी आँखें भरी हुई
थीं, जब उन्होंने कहा, ''मुझे पता होता, तो मैं तेरे लिए कितना
कुछ लाती। सारी रीझें पूरी करती।''
''सॉरी मम्मी, आप यों ही दूसरा मतलब निकाल रही हैं। हमने सचमुच
आपको 'सरप्राइज़' देना चाहा था और वैसे भी यह अभी सात दिन पहले
ही तो हुई है और सिंथिया इसे लेकर आज सवेरे ही तो अस्पताल से
आई है।'' हैरिस ने उन्हें मनाने के लिए कहा।
''सात दिन पहले क्या फ़ोन
नहीं कर सकते थे? और उससे पहले नौ महीने भी तो गुज़रे थे।''
''मम, ऐन्या तो आपका स्वागत करने के लिए पहले आ गई है, वर्ना
डॉक्टरों के मुताबिक तो इसे आपके आने के कम-से-कम पंद्रह दिन
बाद पैदा होना था। यह तो सिंथिया को अचानक तकलीफ़ हो गई थी,
इसलिए दस दिन पहले इसे अस्पताल ले जाना पड़ा और फिर
'सिज़ेरियन' कराना पड़ा।'' हैरिस ने मम्मी को मनाने के लिए
हथियार डालते हुए कहा।
''तब तो तुम्हारा और भी फ़र्ज़ बनता था कि हमें फ़ौरन बताते।
अगर सिंथिया को कुछ हो जाता तो?'' अबकी बार डैडी ने हैरिस को
पूरी तरह से दोषी बताते हुए कहा। मम्मी बोलीं, ''क्या सिंथिया
ने भी तुम्हें सलाह नहीं दी कि माँ-बाप को सबसे पहले बताना
चाहिए? तभी तो कहते हैं कि अपनी जात-बिरादरी में शादी करनी
चाहिए।''
ऐन्या के दूध का टाइम हो गया
था, इसलिए मैं उसे लेकर अपने कमरे में चली गई। पीछे उन तीनों
में क्या बात हुई, यह तो मैं नहीं जानती, लेकिन मम्मी और डैडी
के चेहरों को देखकर कोई भी समझ सकता था कि वे खुश नहीं हैं।
'लिविंग रूम' में चारों ओर सामान बिखरा हुआ था, इसलिए शाम को
जब मैं हैरिस के साथ उसे समेटने-सँभालने लगी, तो उसने पूछा,
''कैसे लगे मम और डैड?''
''नाराज़ हैं। चलो वह तो समझ में आता है, लेकिन शिकायतें बहुत
करते हैं और घूरते भी बहुत हैं।''
''डार्लिंग इन्हें शिकायतें नहीं, प्यार कहते हैं। माँ-बाप का
प्यार। और?''
''और, 'इंडियन पैरेंट्स' शादीशुदा बच्चों पर भी कंट्रोल रखते
हैं, क्यों? वे अपने फ़ैसले और अपनी इच्छा को सबसे ऊपर समझते
हैं?''
हैरिस चुप हो गया।
मुझे लगा, ''मुझे उसके माँ-बाप के बारे में साफ़गोई नहीं बरतनी
चाहिए थी, इसलिए बोली, ''सॉरी लव, मुझे ग़लत मत समझना। मेरे
कहने का मतलब यह था कि वे बहुत 'सिलेक्टिव' हैं, शायद इसलिए
ऐसा व्यवहार कर रहे थे।
हैरिस ने इसका जवाब यह कहकर दिया- प्यार का मतलब भी तो
'सिलेक्शन' और पसंद ही है। मैं केवल तुमसे प्यार करता हूँ,
किसी औऱ से नहीं, इसलिए मैं भी 'सिलेक्टिव' हूँ। डैडी और मम्मी
हम दोनों से प्यार करते हैं, इसलिए वे भी 'सिलेक्टिव' हैं।
हैरिस अपने माँ-बाप के खिलाफ़
कुछ भी सुनना नहीं चाहता था, लेकिन वे जैसा व्यवहार कर रहे थे,
उसको देखकर मुझे लगा कि उन्होंने मुझे पसंद नहीं किया। उस समय
मैंने यह प्रसंग छेड़ना ठीक नहीं समझा। हैरिस को खुश करने के
लिए मैंने केवल इतना कहा, ''वे बहुत अच्छे हैं और देखो, हमारे
लिए इतनी दूर से कितनी सुंदर चीज़ें लाए हैं।
हैरिस के लिए उसके माँ-बाप का व्यवहार 'नॉर्मल' था, लेकिन मेरे
लिए बेगाना और अजीब। यों मेरा पहले दिन का अनुभव उतना बुरा
नहीं था, जितने की मुझे आशंक थी, लेकिन अभी तो मुझे तीन महीने
उनके साथ बिताने थे। बहुत कुछ देखना-सुनना था। रात होते-होते
मम्मी ने आन्या को उठाने और दूध पिलाने के मेरे ढंग की आलोचना
की। वे बोलीं, ''बच्चे को उठाते समय नीचे हमेशा अपनी बाँह रखनी
चाहिए, नहीं तो बच्चे की गरदन मुड़ने का डर होता है।'' यह कहने
के साथ मम्मी मुझे बच्चे को सावधानी से उठाने का ढंग सिखाने
लगीं। फिर बोलीं, ''पता है, बच्चे को दूध पिलाते समय नज़र लग
जाती है। औरों की क्या, खुद अपनी नज़र भी लग जाती है। इसलिए
बच्चे को आँचल के नीचे दूध पिलाना चाहिए। और किसी के सामने भी
नहीं। इसके बाद वे उठकर गईं और मेरी 'ड्रेसिंग टेबल' से
'आइब्रो पेंसिल' ले आई, जिससे उन्होंने ऐन्या के गाल पर डिठौना
बनाया और कहने लगीं, ''ले, अब किसी की नज़र नहीं लगेगी। वे
क्या कह रही हैं, यह तो मैं नहीं समझ पाई, लेकिन जो कुछ
उन्होंने किया, उससे मैंने अंदाज़ा ज़रूर लगा लिया।
मम्मी और डैडी को आए कुछ ही
दिन हुए थे कि एक रात ऐन्या ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।
मम्मी ने आकर कहा, ''कहीं इसके पेट में हवा तो नहीं? उन्होंने
उसका पेट दबाकर देखा और बोलीं, ''सख़्त है, हवा ही है।''
वे रसोई में गईं और जाने क्या ढूँढ़ने लगीं। कुछ मिनटों के बाद
आकर उन्होंने पूछा, ''सिंथिया बेटे, क्या घर में हींग है?''
वे पंजाबी में जो कुछ कहती थीं, पहले दिन से ही हैरिस मेरे लिए
उसका अनुवाद करता आ रहा था।
मैंने कहा, ''सॉरी मम, हींग तो नहीं है, हम इस्तेमाल नहीं
करते। पर उसका क्या करेगी?''
''बेबी को बाँधूँगी।'' मम्मी ने कहा।
मैंने जवाब दिया, ''मम, उससे तो बहुत बदबू आएगी। बिस्तर पर
सोया नहीं जाएगा। मैंने यह भी कहा, ''डॉक्टर से न पूछ लें?''
उससे क्या पूछना? इससे कोई नुकसान थोड़े ही होता है।
यह कहकर उन्होंने हैरिस से पूछा कि क्या डॉक्टर ने चौअरका या
ग्राइप वॉटर वगैरा देने को नहीं कहा?''
और जब उसने सिर हिलाया, तो बोलीं, ''यहाँ आसपास कोई भारतीय
दुकान तो होगी। मुझे बताना, मैं कल वहाँ से हींग लाऊँगी और अगर
मिला, तो चौअरका, घुट्टी या ग्राइप वॉटर भी लाऊँगी।
मैंने कहा, ''इफ़ यू डोंट माइंड मम, '' हम डॉक्टर से पूछकर ही
कुछ दें, तो अच्छा है।''
मम्मी ने मुँह बना लिया और अपने कमरे में चली गई।
ऐन्या रो रही थी। उसे परेशान देखकर हमने अस्पताल को फ़ोन किया
और उसे वहाँ ले गए।
अगले दिन मम्मी और डैडी
भारतीय दुकान का रास्ता पूछकर गए और उससे हींग और ग्राइप वॉटर
ले आए। मैं हींग के प्रयोग के बिल्कुल ख़िलाफ़ थी, लेकिन मम्मी
नहीं मानीं। हैरिस भी चुप रहा। उन्होंने लाल कपड़े की
छोटी-छोटी पोटलियाँ बनाई, उनमें थोड़ी-थोड़ी हींग रखी और काले
धागे से ऐन्या की बाँहों तथा गले में वे पोटलियाँ लटका दीं।
हींग की बदबू का ऐन्या ने कैसे सहन किया, यह तो वही जाने,
लेकिन मुझसे उसे गोद में लिटाया नहीं जा रहा था। जब मम्मी
ग्राइप वॉटर देने लगीं, तो मैंने रोक दिया। मैंने 'सर्जरी' को
फोन करके नर्स से पूछ लिया था और उसने कहा था, ''पहले लोग देते
थे, लेकिन अब नहीं देते, उसमें अल्कोहोल होता है।
नर्स ने उसके कष्ट के लिए एक और दवाई बताई थी, जो मैंने मँगा
ली थी। जाने उससे या हींग से ऐन्या को वैसा कष्ट फिर नहीं हुआ।
मुझे मम से रोज़ शिकायतें और
हिदायतें मिलतीं, तरह-तरह के उपदेश मिलते। ऐन्या की मालिश करने
का ढंग, नहलाने का ढंग, उसे अकेली सुलाने की बजाय अपने साथ
सुरक्षा से सुलाने का ढंग, जिससे वह दब न जाए, मुझे क्या खाना
चाहिए और क्या नहीं, वगैरा वगैरा। मैं अच्छा कहकर सुनती रहती,
लेकिन डॉक्टर से पूछे बिना कुछ न करती। एक दिन उन्होंने हैरिस
से कहा, ''हरीश पुत्तर, आज ज़रा गुड़, जीरा और देसी घी ले
आना।''
''क्यों? वह किसलिए?'' हैरिस ने सहज जिज्ञासावश पूछा। मेरे
सामने वह मम्मी से इंग्लिश औऱ पंजाबी दोनों में बात करता था,
ताकि मैं भी उसे समझूँ और उसमें हिस्सा लूँ।
मम्मी ने कहा, ''सिंथिया के लिए जीरे वाला गुड़ बनाना है। बेबी
होने के बाद जच्चा का पेट उसी से साफ़ होता है। और सुन, यह
खुराक नहीं खाती। माँ को अपने और बच्चे दोनों के लिए खूब खुराक
खानी चाहिए।''
शाम को हैरिस आया, तो पता
नहीं वह गुड़, जीरा औऱ घी लाना सचमुच भूल गया था या जान-बूझकर
नहीं लाया था। देखकर मम्मी को अच्छा नहीं लगा, इसलिए अगले दिन
वे फिर उसी भारतीय दुकान पर गईं और तीनों चीज़ें ले आईं। मैंने
देखा कि पहले उन्होंने घी में जीरा भूना और फिर उसमें गुड़
मिला दिया। घी से तर और अजीब स्वाद और गंध वाला, चिपचिपा-सा
'फ़ज' बन गया। मम्मी ने मुझे प्लेट में डालकर दिया। मैंने गुड़
कभी खाया नहीं और वह तो घी और जीरे वाला था। नाक के पास लाते
ही मुझे उससे भयानक बास आई। मम्मी के आग्रह पर मैंने थोड़ा-सा
चखा ज़रूर, लेकिन यह कहकर रख दिया कि अभी खाऊँगी, तो उल्टी आ
जाएगी। बाद में खा लूँगी।'' |