प्रवीण बावला को उसकी इस
निर्पेक्षता से आश्चर्य नहीं हुआ, लेकिन उसे लगा कि इस
सिलसिले पूछताछ का यह सुअवसर ज़रूर है। उन्होंने एक पल की देर
किए बिना पूछा, ''उस आदमी की याद आती है?''
वह चुप ही रही, लेकिन इस तरह उसके चेहरे की गंभीरता थी कि
प्रवीण बावला के लिए यह तै कर पाना आसान नहीं था कि वह उनके
भावों की वास्तविकता को समझ लें, फिर भी अनुमान के सहारे उसके
मौन को स्वीकृति मानते हुए दुबारा सवाल किया, ''तो क्या आपने
टीना के पिता को इसके संसार में आने के बाद तलाशने की कोशिश
नहीं की?''
''इससे हासिल क्या होने वाला था?''
''क्यों! एक बेटी को उसके पिता की आवश्यकता नहीं होती है?''
वह फिर मौन रही।
''उसे ढूँढना चाहिए था!''
''क्यों?''
हालाँकि प्रवीण बावला के मन में उसके प्रश्न के उत्तर में कोई
बहुत तर्कपूर्ण प्रश्न नहीं जन्मा, लेकिन उसे क्रिस्टी के
द्वारा यह पता चल गया था कि टीना ने अभी तक शादी नहीं की। उसी
के बल पर उन्होंने कहा, ''प्रेम का अस्तित्व संसार के हर
हिस्से में है और उसकी वास्तविकता और महत्व को भी नकारा नहीं जा
सकता है।''
''लेकिन जो आप कह रहे हैं वह संभव भी तो नहीं। शायद उसे अब यह
सब याद भी न हो। उसका अपना जीवन होगा और अपना संसार, जैसे कि
मेरा यहाँ है। और वह संतुष्ट भी होगा। टीना ने यह कहते हुए
अपने भावों को छुपाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसके स्वर के
कम्पन को प्रवीण बावला ने पढ़ लिया।
उन्हें इस कंपन ने न जाने क्यों एक ख़ास आत्मीय संतोष-सा
प्रदान किया। फिर उन्होंने पूछा, ''नाम याद है?''
टीना ने दिमाग पर ज़ोर लगा कर डेनिश लहजे में जो नाम बताया
उससे प्रवीण बावला ने अनुमान लगाया सचिन। सचिन के आगे मातोंडकर
और इसी तरह के कर उपनाम वाले नामों के भाव से यह अनुमान लगाने
में तनिक भी कठिनाई नहीं हुई कि वह मराठी था।
लगे हाथ उन्होंने क्रिस्टी से पूछ लिया, ''तुम्हें कभी अपने
पिता के संबन्ध में जानने की इच्छा हुई?''
वह चुप रही।
''यह स्वाभाविक है।'' टीना ने जवाब दिया, ''लेकिन मैंने इससे
इसके पिता से संबंधित जिज्ञासा से दूर ही रक्खा।''
प्रवीण बावला की हिम्मत और
बढ़ी तो उन्होंने फिर क्रिस्टी को ही संबोधित करते हुए कहा,
''क्या अपने पिता के संबन्ध में जानना चाहोगी?' मिलना चाहोगी
उनसे?''
क्रिस्टी मुस्कुरा दी। उसकी माँ ने भी उसका साथ दिया। वह ठीक
से समझ नहीं पाए कि उन दोनों ने उसके ऊपर व्यंग्य किया है या
कि अपनी इस मुस्कान के द्वारा उसके प्रश्न का हाँ में उत्तर
दिया है, लेकिन उन्होंने उसे हाँ में ही लिया। और उत्साहित
होते हुए वे भारत की सभ्यता और संस्कृति और वहाँ की जीवन शैली,
पारिवारिक संबन्धों की गरमी के संबन्ध में बातें करने लगे।
उन्होंने गौर किया तो पाया कि आज तो टीना भी उनकी बातों में
ख़ासी रुचि भी प्रदर्शित कर रही है। अब वह क्रिस्टी के प्रति
इसी तरह की भावना महसूस करने लगा था जो एक पिता ही महसूस कर
सकता है। इसमें दिन प्रतिदिन गहराई आती जा रही थी।
फिर तो प्रवीण बावला ने पहली
फुरसत में अपने बम्बई में रहने वाले भतीजे पंकज से संम्पर्क
करके रेलवे में सचिन नाम के मराठी अधिकारी के बारे में जानकारी
हासिल करने का अनुरोध किया।
बढ़ते संबंधों की प्रगाढ़ता के बीच एक दिन मुम्बई से पंकज का
फोन आया तो पता चला कि पश्चिम रेलवे में सचिन मातोंडकर नाम का
एक वरिष्ठ अफ़सर है और संजोग से उसके एक मित्र का परिचित भी
है। यह समाचार पाते ही प्रवीण बावला को मानों मनचाही वस्तु मिल
गयी। भतीजे ने उनके संबन्ध में जितनी जानकारी जुटाई जा सकती
थी, दे दी थी। परिवार के नाम पर एक बेटा है जो कि उन्हीं के
पास मुम्बई में रहकर पढ़ाई कर रहा है। पत्नी से किसी कारण से
बनी नहीं तो दोनों अलग हो गए। भतीजे ने साथ ही उनके मुम्बई
ठिकाने का फ़ोन नम्बर भी दे दिया था।
यह नम्बर पाकर प्रवीण बावला
को लगा कि उन्हें मानों लाटरी का वह नम्बर मिल गया जिसको पाकर
कोई भी पहले पुरस्कार का अधिकारी हो जाता। यद्यपि उन्हें हवा
में तीर चलाना था, लेकिन उन्होंने तनिक देर नहीं की और तमाम
औपचारिकताओं और संकोच को पर धकेलते हुए उसी दिन उन्होंने फ़ोन
लगा दिया। सचिन दौरे पर गए हुए थे। उनके बेटे तरुण से बात हुई।
पता चला कि वह बाम्बे आर्ट कॉलेज में स्नातक का छात्र है। उसने
फ़ोन विदेश से होने के कारण प्रवीण बावला से बात करने में रुचि
भी दिखाई, लेकिन उन्होंने उससे कुछ कहना सुनना उचित नहीं समझा
और अपना नम्बर उसे दे दिया। उसके पिता के आने का दिन पूछने के
बाद फ़ोन रख दिया, लेकिन न जाने उन्हें यह क्यों लगने लगा कि
बस अब लक्ष्य सामने ही है।
तीन दिन बाद वह सोच ही रहे थे
कि सचिन मातोंडकर से ख़बर खैरियत ली जाय, तभी आश्चर्य जनक रूप
से भारत से आने वाली कॉल बजाय उनके भतीजे के, सचिन मातोंडकर की
निकली। चूँकि यह उनके लिए अप्रत्याशित था, इसलिए तुरन्त तो
उन्हें समझ में ही नहीं आया कि क्या बात की जाय, लेकिन
क्षणांश में ही स्वयं को संयत करके अपना परिचय देने के बाद
कहा, ''सचिन जी! आप शायद डेनमार्क आ चुके हैं?''
दिमाग पर ज़ोर देने के बाद संभवतः उन्हें याद आया तो उन्होंने
कहा, ''जी! लगभग बीस बरस पहले मैं वहाँ रेलवे की उन्नति के लिए
तकनीकी कार्यशाला में हिस्सा लेने के लिए गया था।''
''जी!'' प्रवीण बावला अब तक अपनी उत्तेजना पर पूरी तरह नियत्रण
पा चुके थे, ''मुझे पता चला था इसीलिए मैंने आप से पूछा।''
कहते हुए उन्होंने संतुष्टि महसूस की।
फिर सचिन से उनकी बातें चल पड़ीं। सचिन ने उन्हें अपना मोबाइल
नम्बर दे दिया था। उन्हीं के साथ उसके बेटे से भी बातें होने
लगीं। हालाँकि शक की कोई गुंजाइश नहीं थी तब भी वे और कितने
दिन अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख सकते थे? एक दिन उन्होंने
सचिन से पूछ ही लिया, ''आपको उस विजिट में किसी डेनिश लड़की की
याद है?''
पहले तो सचिन समझ ही नहीं पाए कि आखिर प्रवीण बावला जी का आशय
क्या है? लेकिन जैसे ही अतीत की स्मृतियों ने ज़ोर मारा तो
उन्हें अपने अतीत के वे क्षण याद आए जो उन्होंने टीना के साथ
व्यतीत किए थे।
''हाँ! शायद टीना नाम था उसका! लेकिन आपको कैसे मालूम?''
''मुझे और भी बहुत कुछ मालूम है। लेकिन समय आने पर बताऊँगा।''
प्रवीण बावला ने अपनी उत्तेजना पर नियंत्रण रखते हुए कहा।
लेकिन वे अपनी उत्तेजना बहुत
देर तक छिपा नहीं सके और पहली ही फुरसत में टीना को सारी हकीकत
बता दी। बज़ाहिर तो टीना ने कोई भाव नहीं प्रकट किया और इस
सूचना को बहुत साधरण रूप में लेना चाहा, लेकिन असल में यह
समाचार उसके लिए उतना साधारण था नहीं जितना कि उसने दिखाने की
कोशिश की। कहा उसने, ''क्या पता वह व्यक्ति वही हो जो क्रिस्टी
का पिता है।''
''उसका नाम सचिन मातोंडकर था।'' भारतीय नाम को ले पाना यूरोप
के लोगों के लिए कितना मुश्किल होता है इस बात से प्रवीण बावला
परिचित थे इसलिए वे जानते थे कि नाम तो संभवतः उसने उस समय भी
ठीक से न लिया हो, ऐसे में उसके सहारे उसकी भावनाओं को स्पंदित
करने का उनका प्रयास अर्थहीन ही सिद्ध होने वाला था।
उसने उनके अनुमान के विपरीत सिर हिलाते हुए सहमति प्रकट की और
बोली, ''शायद उसका नाम ऐसे ही था।'' कुछ कुछ ऐसे ही फिर उसने
क्षणांश में अपने अतीत की यात्रा की और थोड़ा-सा उदास लहजे में
बोली,
''लेकिन अब तो उसका अपना परिवार होगा, अपनी दुनिया!''
''उसे तो पता भी नहीं होगा कि यहाँ उसकी एक प्यारी-सी बेटी भी
है।'' कहकर वे मुस्कुराए।
जवाब में वह भी मुस्कुराई। परन्तु जब यह खबर उन्होंने क्रिस्टी
को दी तो वह उत्तेजित-सी हो गई। और बोली, ''इसका मतलब, मेरे और
भी भाई बहन होंगे!''
अब प्रवीण बावला को लगा कि अवसर अब आ गया है कि इन लोगों को
फोन के द्वारा मिलवा दिया जाय। और फिर उसी समय उन्होंने सचिन
का नम्बर डायल किया। संयोग से वे मुम्बई में ही थे। कुशल क्षेम
के बाद उन्होंने ने रिसीवर को क्रिस्टी के हाथों में दे दिया।
''हॅलो कहते हुए उसकी आवाज़ लरज़ गई, ''मैं क्रिस्टी! उसने
डेनिश में कहा। फिर उसे याद आया कि वह भला डेनिश कैसे समझ सकते
हैं, तुरन्त ही उसने अंग्रेज़ी में कहा, ''आप की... टीना हैनसन
की बेटी।''
संभवतः वही स्थिति सचिन की भी
हुई होगी जो टीना की हो रही थी। क्यों कि टीना काफी देर तक
खामोश ही रही। वह खामोशी उसने दूसरी तरफ़ से बोलने वाले की बात
सुनने की नहीं धारण की थी, बल्कि चुप्पी, भाषा का वह रूप थी
जिसके अन्दर भावों का समुद्र की लहरों का उफान होता है। उस
उफान को प्रवीण बावला ने पढ़ लिया। वे उसे सिर्फ़ गहरी निगाहों
से देखते भर रहे।
उसके बाद सचिन से बातों का
सिलसिला टीना से भी चल पड़ा। प्रवीण बावला को यह तो पता नहीं
चला कि बातें क्या होती हैं। क्रिस्टी उन्हें बताने की कोशिश
भी करती लेकिन वे बस सचिन की सेहत की जानकारी लेकर उसे टाल
देते। उन्हें ध्यान दिया तो पता चला कि अब टीना का भी उनके पास
पहले की अपेक्षा अधिक फ़ोन आने लगा है और अब वह अपने कारोबार
के अतिरिक्त सामान्य बातों के साथ-साथ प्रवीण बावला के घर
परिवार और उनके अतीत को भी कुरेदने की कोशिश करती है। वे
ज़रूरत भर ही जवाब देते।
वे उसकी बातों से यह महसूस
करने लगे कि जिस अतीत को उसने इस लायक ही नहीं समझा था कि उसके
संबन्ध में कभी सोचा जाय वह अब शायद उसके जीवन में हलचल मचा
चुका है। प्रवीण बावला यही तो चाहते थे। न सही उनका खुद का,
किसी का टूटा घर तो बसे। आश्चर्यजनक रूप से जैसे-जैसे इन
लोगों का रुझान इस तरफ़ बढ़ता जा रहा था वैसे-वैसे वे उस बोझ
से मुक्त होते जा रहे थे जो कि उनके अपने अतीत का बोझ था और जब
तब उन्हें कुचलने दबाने लगता था। वे तनावमुक्त होते जा रहे
थे।
''मिस्टर प्रवीण बावला आज मेरे जीवन का सबसे सुखद दिन है।'' एक
दिन क्रिस्टी ने उत्तेजना भरे स्वर में कहा, ''मेरा एक भाई है।
मम्मी ने कल ही बताया और आज जब मैंने पापा को फ़ोन किया तो उसी
ने फोन उठाया।''
वह बिना उत्तर दिए उसका मुँह देखते रहे।
''मैं एक भारतीय पिता की संतान होने के कारण अपने ऊपर गर्व कर
सकती हूँ! उसकी उत्तेजना और बढ़ने लगी - वह एक शिक्षित लड़का
है। उसने मुझसे सभ्यता के साथ बात की।
''और?'' प्रवीण बावला ने उसे साँस लेने का अवसर देने के लिए
कहा।
''उसने अपना पर्सनल नम्बर दिया।''
प्रवीण बावला मुस्कुराए। लेकिन उसने बिना उनका ध्यान दिए कहा,
''फिर पिता जी से भी बात हुई। वे मेरे लिए वहाँ से तोहफे भी
भेजेंगे।
''तुम क्या अपने पिता जी से मिलना चाहोगी?''
उसने अपनी ही रौ में कहा, ''क्यों नहीं!'' लेकिन फिर उसे जब
अपने जवाब का ख़याल आया तो वह सचेत-सी हो गई और बोली, ''यह तो
मम्मी पर निर्भर करता है। यह उनका निजी मामला है।''
''लेकिन अब तुम अट्ठारह की हो चुकी हो?'' प्रवीण बावला ने उसे
याद दिलाया।
''मुझे उन लोगों से बात करना पसंद है।''
बात करना अब टीना को भी सचिन से अच्छा लगने लगा। इतना कि वह
अक्सर दो दिन का भी अन्तराल नहीं होने देती। इस बात का
टीना ने केवल उनसे संकेत किया
लेकिन सचिन मातोंडकर से खुलासा हो गया। और जब से उन्हें अपनी
बेटी के होने का पता चला वह बेहद भावुक से उठे, प्रवीण बावला
यह महसूस करते तब उस समय वह भी भावुक हो जाते। लेकिन तब वह
अपनी भावुकता पर काबू करके अपने अगले कदम के संबन्ध में सोचने
लगते। यद्यपि वह अपने संबन्ध में नहीं सोचते, लेकिन वह तब बेहद
हल्कापन महसूस करते। कभी-कभी वह ऐसी कल्पना के ताने बाने बुनने
लगते और ऊँची उड़ानें भरने लगते।
और एक दिन उनकी कल्पनाओं के
सच होने का दिन आ गया। प्रवीण बावला के साथ टीना और क्रिस्टी
भारत जाने के लिए एयरपोर्ट पर थीं। क्रिस्टी सलवार कमीज़ पहने
हू-ब-हू नीली आँखों वाली हिन्दुस्तानी लड़की लग रही थी। टीना
भी शालीनता की मूर्ति बनी अपने उत्साह को छुपा नहीं पा रही थी।
टीना प्रवीण बावला का हाथ दबाते हुए भरे गले से कह रही थी, ''ए
सब आपकी वजह से हो पा रहा है। हम अपनी सोसाइटी में सोच भी नहीं
सकते कि कोई बिछ़ड़े हुए परिवार को मिलाने के लिए इतनी तकलीफ़
उठाएगा। बेशक आपने अपने लिए हमसे कभी कुछ नहीं माँगा है, हमेशा
हमे दिया ही है, बट. . आई फील, मैं आपके इस अहसान का बदला कैसे
चुका पाऊँगी... यू नो.. उसके बेटे ने मुझे मम्मी कहा।'' कहते
हुए वह अपनी ममता की भावनाओं को छुपा नहीं पा रही थी। प्रवीण
बावला क्या जवाब देते और कैसे कहते कि वे इसी शहर में रहने
वाली अपनी खुद की बच्ची के सिर पर हाथ फेरने को तरस गए हैं।
क्रिस्टी तो इसी दौरान
मानों हिन्दुस्तान के बारे में अब उससे सबकुछ जान लेना चाहती
थी। वह बार-बार सचिन के बेटे को याद कर रही थी मानो वह मुंबई
एयरपोर्ट पर उसकी प्रतीक्षा में हो।
वास्तव में सचिन अपने बेटे के साथ इन लोगों की मुम्बई के
एयरपोर्ट पर प्रतीक्षा कर रहे थे। साचिन मातोंडकर ने उन्हें
पहचानने में कोई गलती नहीं की। लॉबी से बाहर आते ही टीना सचिन
की तरफ़ लपकी और सचिन टीना की तरफ़, लेकिन पास पहुँचकर वह
दोनों एक क्षण के लिए ठिठके, तभी सचिन के बेटे ने लपककर टीना
को बाहों में भर लिया। प्रवीण बावला थोड़ा दूर हट गए। उन लोगों
को आपस में गले से लगते हुए देखकर उनकी आँखें डबडबा गईं। जल्दी
से उन्होंने चेहरे को साफ़ करने के बहाने से अपने आँसुओं को
पोंछा। जब सचिन के बेटे ने उनके पैरों को झुक कर स्पर्श किया
तो उन्हें लगा कि उसी पल वे बेहद हल्के होकर हवा में उड़ने
लगे हैं। |