|  जेम्स ने एक लंबी साँस ली। मुझसे 
                    पता पूछा तो मैंने जेब से अपना विज़िटिंग कार्ड निकाल कर दे 
                    दिया और बोला, "मिस्टर जेम्स, किसी भी समय मेरी ज़रूरत हो तो 
                    अब बिना झिझक के मुझे फ़ोन कर देना। आइए, मैं आपको आप के घर 
                    छोड़ देता हूँ। मेरी कार बराबर की गली में खड़ी है।'' "धन्यवाद! मैं पैदल ही जाऊँगा क्यों कि इस प्रकार मेरा व्यायाम 
                    भी हो जाता है।"
 घर आने पर देखा तो डाक में 
                    कुछ चिट्ठियाँ पड़ी थीं। मैंने कोर्बी टाउन के एक स्कूल में 
                    गणित विभाग के अध्यक्ष के पद के लिए साक्षात्कार दिया था। पत्र 
                    खोला तो पता चला कि मुझे नियुक्त कर लिया गया है। नए स्कूल के 
                    लिए अपनी स्वीकृति भेज दी। जाने में केवल एक सप्ताह शेष था। 
                    जाते हुए जेम्स से विदा लेने के लिए उसके मकान पर गया पर वह 
                    वहाँ नहीं था। पड़ोसी से पता लगा कि अस्पताल में भरती है। इतना 
                    समय नहीं था कि अस्पताल में जाकर
                    उसका हाल देख लूँ। एक दिन की मुलाक़ात मस्तिष्क 
                    की चेतना पर अधिक समय नहीं टिकी। समय के साथ मैं जेम्स को 
                    बिल्कुल भूल गया।
                    वकील के पत्रानुसार नियत समय पर जेम्स के घर पर पहुँच गया। उसी 
                    दरवाज़े पर घंटी का बटन दबाया जहाँ से 30 साल पहले जेम्स से 
                    मिले बिना ही लौटना पड़ा था। आज बड़ा विचित्र-सा लग रहा था। 
                    लगभग 45 वर्षीय एक व्यक्ति ने दरवाज़ा खोला।
                    मैंने अपना और सीमा का परिचय दिया तो वकील ने भी अपना परिचय 
                    देकर हमें अंदर ले जाकर लाउंज में एक सोफे पर बैठा दिया, वहाँ 
                    तीन पुरुष और एक महिला पहले ही मौजूद थे।  मार्टिन ने हम सब का परिचय कराया। एक सज्जन आर.एस.पी.सी.ए. (दि 
                    रॉयल सोसायटी फॉर दि प्रिवेंशन आफ क्रुएल्टी टु ऐनिमल्स) का 
                    प्रतिनिधित्व कर रहे थे। अन्य तीन, विलियम वारन (जेम्स वारन का 
                    पुत्र), उसकी पत्नी जैनी वारन तथा जेम्स का पौत्र जॉर्ज वारन 
                    थे जो आस्ट्रेलिया से आए थे। बाईं ओर छोटे से नर्म गद्दीदार 
                    गोल बिस्तर में एक बड़ी प्यारी-सी काली और सफ़ेद रंग की बिल्ली 
                    कुंडली के आकार में सोई पड़ी थी, जिसका नाम 'विलमा' बताया गया। मार्टिन ने अपनी फ़ाइल से 
                    वसीयत के काग़ज़ निकाल कर पढ़ना शुरू किए। अपनी संपत्ति के 
                    वितरण के बारे में कुछ कहने से पहले जेम्स ने अपनी सिसकती 
                    वेदना का चित्रण इन शब्दों में किया था:"लगभग 4 दशक पहले मेरे अपने बेटे विलियम और उसकी पत्नी जैनी ने 
                    लंदन छोड़ कर मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया। मैं फ़ोन पर अपने 
                    पोते और इन दोनों की आवाज़ सुनने को तरस गया। मैं फ़ोन करता तो 
                    शीघ्र ही किसी बहाने से काट देते और एक दिन इस फ़ोन ने मौन 
                    धारण कर यह सहारा भी छीन लिया। किसी कारण स्थानांतरण होने पर 
                    बेटे ने मुझे नए पते या टेलीफोन नंबर की सूचना तक नहीं दी। मैं 
                    इस अकेलेपन के कारण तड़पता रहा। कोई बात करने वाला नहीं था। 
                    कौन बात करेगा, जिसका अपना ही खून सफ़ेद हो गया हो।
 6 साल जीभ बिना हिले पड़ी-पड़ी बेजान हो गई थी कि एक दिन एक 
                    भारतीय सज्जन राकेश वर्मा ने पार्क में इस मौन व्यथा को देखा 
                    और समझा। मेरे उमड़ते हुए उद्गारों को इस अनजान आदमी ने 
                    पहचाना। विडंबना यह रही कि वह भी व्यक्तिगत कारणों लंदन से दूर 
                    चले गए।
 राकेश वर्मा के साथ एक दिन की भेंट मेरे सारे जीवन की धरोहर बन 
                    यादों में एक सुकून देती रही, फिर इस भयावह अकेलेपन ने 
                    धीरे-धीरे भयानक रूप ले लिया। आयु और शारीरिक रोगों के अलावा 
                    मानसिक अवसाद ने भी मुझे घेर लिया।
 इस अभिशप्त जीवन में एक आशा की लहर मेरे मकान के बाग में न 
                    जाने कहाँ से एक बिल्ली के रूप में आ गई। कौन जाने इसका मालिक 
                    भी देश छोड़ गया हो और इसे भी इसके भाग्य पर मेरी तरह ही अकेला 
                    छोड़ गया हो! बिल्ली को मैंने एक नाम दिया - 'विलमा'।
 दो-तीन दिनों में विलमा और मैं ऐसे घुलमिल गए जैसे बचपन से हम 
                    दोनों साथ रहे हों। मैं उसे अपनी कहानी सुनाता और वह 'मियाऊँ-मियाऊँ' 
                    की भाषा में हर बात का उत्तर देती। मुझे ऐसा लगता जैसे मैं 
                    नन्हें जॉर्ज से बात कर रहा हूँ।
 एक दिन वह जब बाहर गई और रात को वापस नहीं लौटी तो मैं बहुत 
                    रोया, ठीक उसी तरह जैसे जॉर्ज, विलियम और जैनी को छोड़ने के 
                    बाद दिल की पीड़ा को मिटाने के लिए रोया था। मैं रात भर विलमा 
                    की राह देखता रहा। अगले दिन वह वापस आ गई। बस, यही अंतर था 
                    विलमा और विलियम में जो वापस नहीं लौटा।
 विलमा के संग रहने से मेरे मानसिक अवसाद में इतना सुधार हुआ जो 
                    अच्छी से अच्छी दवाओं से नहीं हो पाया था। उसने मुझे एक नया 
                    जीवन दिया। वह कब क्या चाहती है, मैं हर बात समझ लेता था - ये 
                    सब वर्णन से बाहर है, केवल अनुभूति ही हो सकती है।''
 विलियम, जैनी और जॉर्ज, तीनों 
                    के चेहरों पर उतार चढ़ाव कभी रोष तो कभी पश्चाताप के लक्षणों 
                    का स्पष्टीकरण कर रहे थे। जेम्स ने अपनी वसीयत में मुख्य रूप से कहा था कि मेरी सारी चल 
                    और अचल संपत्ति में से समस्त टैक्स तथा हर प्रकार के वैध खर्च, 
                    बिल आदि देने के बाद शेष बची रकम का इस प्रकार वितरण किया जाएः
 'मिस्टर राकेश वर्मा, जिनका पुराना पता था: 23 रैले ड्राइव, 
                    वैटस्टोन, लंदन एन 20, को दो हजार पौंड दिए जाएँ और उनसे मेरी 
                    ओर से विनम्रतापूर्वक कहा जाए कि यह राशि उनके उस एक दिन का 
                    मूल्य ना समझा जाए जिस के कारण मेरे जीवन के मापदंड ही बदल गए 
                    थे। उन अमूल्य क्षणों का मूल्य तो चुकाने
                    की सामर्थ्य किसी के भी के पास ना होगी। यह क्षुद्र रकम मेरे 
                    उद्गारों का केवल टोकन भर है। मेरे उक्त वक्तव्य से, स्पष्ट है 
                    कि विलियम वारन, जैनी वारन या जॉर्ज वारन इस संपत्ति के 
                    उत्तराधिकार के अयोग्य हैं।"
 वकील कहते-कहते कुछ क्षणों के 
                    लिए रुक गया। विलियम, जैनी और जॉर्ज की मुखाकृति पर एक के बाद 
                    एक भाव आ-जा रहे थे। वे कभी आँखें नीची करते हुए दाँत पीसते तो 
                    कभी अपने कठोर व्यवहार पर पश्चात्ताप करते। विलियम अपने क्रोध 
                    को वश में ना रख सका और खड़े होकर सामने रखी मेज़ पर
                    ज़ोर से हाथ मार कर जाने को खड़ा हो गया तो जैनी ने उसे 
                    समझाबुझा कर बैठा लिया। वकील ने पुनः वसीयत पढ़नी शुरू की तो यह जानकर सभी आश्चर्यचकित 
                    हो गए कि शेष समस्त संपत्ति विलमा बिल्ली के नाम कर दी गई थी 
                    और साथ ही कहा गया था कि आर.एस.पी.सी.ए. को 'विलमा' के शेष 
                    जीवन के पालनपोषण का अधिकार दिया जाए और इसी संस्था को प्रबंधक 
                    नियुक्त किया जाए। साथ ही एक सूची थी जिसमें विलमा को जेम्स 
                    किस प्रकार रखता था, उसका पूरा वर्णन था। आगे लिखा था,
 'विलमा के निधन पर एक स्मारक बनाया जाए। उसके बाद शेष धन को 
                    राह भटके हुए, प्रताड़ित पशुओं की दशा के सुधारने पर व्यय किया 
                    जाए।''
 मैंने मार्टिन से कहा, "यदि आप अनुमति दें तो ये दो हजार पौंड, 
                    जो वसीयत के अनुसार जेम्स वारन मुझे दे रहें हैं, इस राशि को 
                    भी 'विलमा' की वसीयत की राशि में ही मिला दें तो मुझे हार्दिक 
                    सुख मिलेगा।"
 वकील ने कहा, "इस को विधिवत बनाने में थोड़ी अड़चन आ सकती है। 
                    हाँ, इसी राशि का एक चेक आर.एस.पी.सी.ए. को अपनी इच्छानुसार 
                    देना अधिक सुगम होगा।"
 अंत में औपचारिक शब्दों के 
                    साथ मार्टिन ने वसीयत बंद कर बैग में रख ली।बिल्ली, जो अभी भी सारी कारवाही से अनजान सोई हुई थी, 
                    आर.एस.पी.सी.ए. के प्रतिनिधि को सौंप दी गई। इस प्रकार वकील का 
                    भी प्रतिदिन विलमा की देखरेख का भार समाप्त हो गया। सब मकान से 
                    बाहर आ गए।
 मैंने सीमा से कहा कि मैं 
                    तुम्हें उस मकान पर ले जाता हूँ जहाँ लंदन में विवाह से पहले 
                    रहता था। कार दस मिनट में 23 रैले ड्राइव के सामने पहुँच गई। 
                    कार एक ओर खड़ी की और ना जाने क्यों बिना सोचे-समझे ही उँगली 
                    उस मकान की घंटी के बटन पर दबा दी।  एक अंग्रेज़ बूढ़े ने छोटे से कुत्ते के साथ दरवाज़ा खोला। 
                    कुत्ते ने भौंकना शुरू कर दिया। मैंने उस वृद्ध को बताया कि 
                    लगभग 30 वर्ष पहले मैं इस मकान में किराएदार था। बस, इधर से 
                    गुज़र रहा था तो पुरानी याद आ गई. . .।" इस से पहले कि मैं आगे 
                    कुछ कहता, बूढ़े ने बड़े रुखेपन से कहना आरंभ कर दिया। " यदि तुम इस मकान को ख़रीदने के विचार से आए हो तो वापस चले 
                    जाओ। इन दीवारों में केरी और चार्ल्स की यादें बसी हुई हैं। 
                    चार्ल्स की माँ, मेरी पत्नी तो मुझे कब की छोड़ गई।. . .चार्ली 
                    अमेरिका से एक दिन अवश्य आएगा। . . .हाँ, कहीं उसका फ़ोन ना आ 
                    जाए?" इतना कहते-कहते उसने दरवाज़ा बंद कर लिया। अंदर से 
                    कुत्ता अभी भी भौंक रहा था।
 सीमा की दृष्टि दरवाज़े पर अटकी हुई थी, कह रही थी, "एक और 
                    जेम्स वारन!"
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