"देखो इसके हाथ में एक गुलाब का फूल है जिसे कभी पत्थर पर रख
देती है और फिर उठा कर बालों से ढके हुए चेहरे तक ले जाती हे।
चल कर देखें तो?" भाविका की उत्सुकता बढ़ रही थी। अभिनव ने
गर्दन हिला कर अपनी सहमति दे दी।
पास आकर अभिनव ने हिक़ारत की
नज़र से देखते हुए अँग्रेज़ी में कहा, "लगता है यह कोई
भिखारिन है। इसे कुछ पैसे दे दो।
" बूढ़ी ने बालों को हटा कर अपना चेहरा उठाया, ऐसा लगता
था जैसे उसके चेहरे की झुर्रियों से अतीत की ना जाने कितनी
यादें उमड़ कर निकल रही हों। फूल को अपनी आँखों पर लगाया और
उसे तीन बार चूमा। अँग्रेज़ी में ही कहा,
"मैं भिखारी नहीं हूँ। भिखारियों के नाम नहीं होते, पर
मेरा नाम है - सविता"
अभिनव और भाविका के चेहरों पर एक के बाद एक रंग बदल रहे थे।
गर्दन झुक गईं और एक साथ अनायास ही मुँह से निकल पड़ा, "माँ,
हम से बड़ी भूल हो गई, आप हमें क्षमा कर दें।" वह हल्की-सी
मुसकुरा दी और कहने लगी," खुश रहो बच्चों। आज वैलंटाइन डे है,
जाओ हँसी खुशी से यह उत्सव मनाओ। मैं भी यहाँ अपने वैलंटाइन से
थोड़ी देर बात करना चाहती हूँ।"
भाविका ने थोड़ा साहस बटोर कर पूछा, " माँ, यह फूल, यह पत्थर,
तुम्हारा वैलंटाइन! यह सब क्या है, हमें पूछने का तो कोई
अधिकार नहीं है किंतु उत्सुकता ने यह पूछने के लिए बाध्य कर
दिया।"
सविता ने दूर शून्य में देखा,
फिर दोनों की ओर देख कर कहना शुरू किया, "पहले बैठ जाओ।" दोनों
पास के पत्थरों पर बैठ गए।
"यही वो जगह है जहाँ मेरा `अचल`, मेरा वैलंटाइन, इसी जगह पर
"50 वर्ष" पहले आज के ही दिन मेरी आँखों के सामने मेरे ही
भाइयों के हाथों प्रेम की वेदी पर बलि हो गया था।" अभिनव अपने
को रोकना भी चाहा पर ज़बान से शब्द रुक ना पाए, "उन्होंने ऐसा
कौन-सा जुर्म कर दिया था जो. . ." सविता ने टोकते हुए कहा, "
उनका नहीं मेरा कुसूर था कि मुझ अभागिन ने एक ब्राह्मण के उच्च
कुल में जन्म लिया और वह एक ऐसे कुल से संबंध रखता था जो
इंसानी हैवान निर्धन और ब्राह्मण से नीची जाति की संज्ञा देते
थे। दूसरा अपराध यह था कि उन दिनों लड़कियों को उच्च शिक्षा
नहीं दी जाती थी पर वह उच्च शिक्षा मेरे लिए अभिशाप बन गई। काश
कि मैं आज के युग में पैदा होती। कालेज में ही तो मैं और अचल
प्रेम-सूत्र में बँध गए थे।"
सविता क्षण भर के लिए रुक गई।
अभिनव और भाविका की दृष्टि पत्थर पर टिक गई जहाँ फूल रखा हुआ
था।
"आश्चर्य हो रहा है? उन दिनों अंतर्जातीय-संबंधों के लिए समाज
तैयार नहीं था। "50 वर्ष" पहले "14 फरवरी" के दिन इसी स्थान पर
हम दोनों आगामी जीवन के सुहाने सपनों में डूबे हुए थे कि मेरे
भाइयों और उसके दोस्तों ने अचल को
बड़ी बेरहमी से मार डाला, ठीक उसी तरह जब "14 फरवरी" सन "270
ई." के दिन पादरी वैलंटाइन की रोम के सम्राट क्लॉडियस के
सैनिकों ने मोटे-मोटे डंडों से मार-मार कर हत्या कर दी थी।"
सविता की गर्दन उसी पत्थर पर झुक गई, दोनों ओर गालों पर श्वेत
बालों ने चेहरे को ढक लिया, केवल हाथ में थमा हुआ फूल दिखाई दे
रहा था। उसने एक गहरी साँस ली, बालों को हटाया। आँखों में आँसू
नहीं थे, वे तो "50 वर्ष" तक बह-बह कर सूख चुके थे।
अभिनव और भाविका की उत्सुकता
बढ़ती जा रही थी। वे तो समझते थे कि वैलंटाइन की कोई सुखांत
कहानी होगी जिसके नाम पर यह दिन पूरे विश्व में इतनी धूम-धाम
से मनाया जाता है। भाविका ने उत्सुकतावश पूछा, "माँ, उस महान
व्यक्ति के विषय में आप बताएँ कि वह कौन था, उसके साथ इतना
क्रूर व्यवहार क्यों किया गया?"
सविता के मुँह से एक आह भरी आवाज़ निकल गई, फूल को फिर से
आँखों से लगाया और पत्थर पर रख दिया। दूर क्षितिज की ओर देखने
लगी जैसे वहाँ कोई खड़ा हुआ इंतज़ार कर रहा हो। फिर कहना आरंभ
किया, "उसकी दारुण कथा कहाँ से आरंभ करूँ?. . .ख़ैर, मैं उसके
जीवन के अंतिम दिनों से शुरू करती हूँ।" उसने फूल को फिर से
हाथ में उठा लिया।
"पादरी वैलंटाइन कारागार की
कोठरी में फ़र्श पर बैठा हुआ था। जीवन के अंतिम दिनों को गिनते
हुए आने वाली मौत की कल्पना से हृदय की धड़कनों की गति को
संभालना कठिन हो रहा था। बाहर खड़े लोग खिड़की की सलाख़ों में
से फूल बरसा रहे थे, उसकी रिहाई के नारों से चारों दिशाएँ गूँज
रही थीं। उसी समय सैनिकों की एक टुकड़ी ने आकर बिना चेतावनी
दिए ही इन निहत्थे लोगों पर लाठियों की वर्षा कर, भीड़ को
तितर-बितर कर दिया।
वैलंटाइन गहरी चिंता में सिर
को नीचे किए बैठा हुआ था। अचानक दरवाज़ा खुला तो देखा कि
कारापाल एक युवती के साथ कोठरी के अंदर प्रवेश कर रहे थे।
कारापाल ने पादरी वैलंटाइन को अभिवादन कर नम्रता के साथ कहा,
"फ़ादर, यह मेरी बेटी जूलिया है। आप विद्वान हैं। आप धर्म,
गणित, विज्ञान, अर्थ-शास्त्र जैसे अनेक विषयों के भंडार हैं।
अपने अंतिम दिनों में यदि आप जूलिया को इस असीम ज्ञान का कुछ
अंश सिखा सकें तो आजीवन आभारी रहूँगा। सम्राट क्लॉडियस की
क्रूरता को कौन नहीं जानता, मैं उसके नारकीय निर्णय में तो
हस्तक्षेप नहीं कर सकता किंतु आप जब तक इस कारागार में समय
गुज़ारेंगे, उस समय तक आपकी सुविधा का पूरा ध्यान रखा जाएगा।"
वैलंटाइन की भीगी आँखें जुलिया की आँखों से टकराईं किंतु
जूलिया के चेहरे के भाव-चिन्हों में कोई बदलाव नहीं
आया। जेलर ने बताया कि जूलिया आंशिक रूप से अंधी है। उसे बहुत
ही कम दिखाई देता है। अगले दिन की सायं का समय निश्चित होने के
बाद जूलिया और जेलर चले गए। दरवाज़ा पहले की तरह बंद हो गया।
इसी प्रकार जूलिया हर शाम वैलंटाइन से शिक्षा प्राप्त करती
रही।" अभिनव ने बीच में ही सविता को रोक कर पूछा, "माँ, पादरी
ने ऐसा कौन-सा जुर्म किया था जिसके कारण. . ." वाक्य पूरा भी
नहीं हुआ कि सविता ने कहना शुरू कर दिया, "प्रेम की वेदी पर
बलि होने वाले शहीदों के अनोखे कार्यों को जुर्म नहीं कहते।
यह घटना तीसरी शताब्दी के समय
की है। रोमन काल में सम्राट क्लॉडियस द्वितीय की क्रूरता से
दूर-दूर देशों के लोग तक थर्राते थे। उसकी महत्वाकांक्षा का
कोई अंत नहीं था। वह चाहता था कि एक विशाल सेना लेकर समस्त
संसार पर रोमन की विजय-पताका फहरा दे। उसके समक्ष एक कठिनाई
थी। लोग सेना में भर्ती होने से इनकार करने लगे क्यों कि वे
जानते थे कि क्लॉडियस की वजय-पिपासा कभी समाप्त नहीं होगी,
सारा जीवन विभिन्न देशों में युद्ध करते-करते समाप्त हो जाएगा।
अपने परिवार और प्रिय-जनों से
एक बार विलग होकर पुनः मिलने का कभी भी अवसर नहीं मिलेगा। इसी
कारण, क्लॉडियस ने रोम में जितने भी विवाह होने वाले थे, रुकवा
दिए। शादियाँ अवैध करार कर दी गईं। पति या पत्नी शब्द का अब
कोई अर्थ नहीं रहा। जनता में चिंता की लहर दौड़ गई। यदि कोई
विवाह करता पकड़ा जाता तो उसके
साथ विवाह संपन्न करने वाले पादरी को भी कड़ा दंड दिया जाता।
युवक उनकी इच्छा के विरुद्ध सेना में भर्ती कर लिए गए। कितनी
ही युवतियों ने अपने प्रियतम के विरह में मृत्यु को गले लगा
लिया।
प्रथा के अनुसार लड़के और
लड़कियाँ अलग रखे जाते थे। "14 फरवरी" के दिन विवाह की देवी
`जूनो` के सम्मान में नगर के सब व्यवसाय बंद कर दिए जाते थे।
अगले दिन "15 फरवरी" को `ल्यूपरकेलिया` का उत्सव मनाया जाता और
सायं के समय रोमन लड़कियों के नाम काग़ज़ की छोटी-छोटी
पर्चियों पर लिख कर एक बड़े बर्तन में रख दिए जाते। युवक
बारी-बारी एक पर्ची निकालते और उत्सव के दौरान वह उसी लड़की का
साथी बना रहता। यदि साझेदारी प्यार में बदल जाती तो दोनों चर्च
में जाकर विवाह-बंधन में बँध जाते। क्लॉडियस के इस निराधार
कानून के कारण ल्यूपरकेलिया का यह त्यौहार समाप्त हो गया।"
सविता ने मसकुरा कर कहा, "बोर हो रहे हो ना?" भाविका ने बात को
बीच में ही काट कर पूछा, "क्या वैलंटाइन का विवाह भी रुक गया?"
सविता ने कहा, "नहीं। वैलंटाइन तो पादरी था, वह विवाह करवाता
था, धर्मानुसार अविवाहित जीवन व्यतीत करना होता था। उन दिनों
विवाह को जब ही मान्यता मिलती थी जब चर्च के पादरी के द्वारा
विधिवत कार्य संपन्न हो।"
वैलंटाइन ने प्रेमियों के
दिलों में झाँक कर उनकी व्यथा को देखा था। जानता था कि हृदयहीन
क्लॉडियस का यह कानून अमानवीय था, प्रकृति के प्रतिकूल था,
सृष्टि यहीं रुक जाएगी! सेंट मेरियस के सहयोग से इस कानून की
अवहेलना करते हुए अपने चर्च में गुप्त-रूप से युवक और युवतियों
के विवाह करवाते रहे।
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