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"यह क्या कह रही हो? वैलंटाइन
डे के इस रोमांटिक अवसर पर सिनेमा, क्लब, या फिर किसी "5
स्टार" होटल में कैंडल लिट डिनर की बात कीजिएगा, हुज़ूर!"
अभिनव ने भाविका की आँखों में आँखें डाल कर मुस्कराते हुए कहा।
भाविका ने अभिनव की आँखों से
अपनी आँखें हटाई नहीं। कहने लगी,` अभिनव, मुझे इन महफ़िलों,
क्लब, सिनेमा और आबादी के शोर-शराबे से दूर किसी जगह ले चलो
जहाँ सारा दिन बस तुम हो, मैं हूँ, चारों तरफ़ पत्थरों से
टकराती हुई हवा का संगीत, स्वतंत्रता से उड़ते हुए पक्षियों का
चहचहाना। जब मैं तुम्हारे नाम को पुकारूँ तो पहाड़ियों से
टकराता हुआ वही नाम गूँजता हुआ हमारे पास लौट कर आ जाए।"
अभिनव भी कुछ भावुक-सा हो गया। कहने लगा, "थोड़ी ही दूर पर
यूनिवर्सिटी के पास ही खूबसूरत पहाड़ी की शृंखलाएँ फैली हुई
हैं, बड़ा मनोरम स्थल है, एकांत भी होगा क्यों कि वैलंटाइन दिवस
पर हमारे जैसे दीवानों के अलावा कौन आएगा!"
दोनों उसी ओर चल पड़े। कुछ दूर ही गए थे कि भाविका ने उँगली के
इशारे से दिखाते हुए कहा, "देखो उस बूढ़ी औरत को, इस वीराने
में क्या कर रही है?" एक पत्थर के पास वह बूढ़ी महिला जिसका
चेहरा गालों के दोनों ओर लहराते हुए सफ़ेद बालों में छुपा हुआ
था, झुकी-सी बैठी थी।
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