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                     ''कमाल है यार तुम्हारा परिचय 
                    करा कर मैं सायास यहाँ से चला गया कि तुम दोनों एक-दूसरे को 
                    खोज निकालोगे। पर तुम दोनों हो कि अभी भी अनजान मुसाफ़िरों की 
                    तरह सतही बातें किए जा रहे हो।'' मैं उखड़ चुका था। उसकी बातों को अनसुना करते हुए मैंने अपने 
                    कहे पर ज़ोर डालते हुए कहा, ''देख यार, मेरे पास और भी बहुत 
                    सारे काम हैं। तुझे तो मालूम है सम्मेलन में साहित्यिक प्रसारण 
                    का सारा भार मेरे ऊपर है। टीम का चुनाव कर उनके पासपोर्ट, 
                    वीज़ा 
                    का आवेदन पत्र आदि दूतावास को भिजवाना है।''
 ''यार, तू तो यों कह रहा है जैसे तुझे ही सारी भाग-दौड़ करनी 
                    है। तेरे शागिर्दों की टोली क्या मक्खी मारेगी। तुझे तो 
                    आवेदन-पत्रों पर सिर्फ़ चिड़िया बैठानी है।'' उसने मेरे कंधों 
                    को बाहों में लपेटते हुए आगे कहा,
 ''तेरे फ़ोन खटकाते ही सारी टीम को वीज़ा मिल जाएगा। आज की रात 
                    तू यहाँ से सरक भी नहीं सकता है, चारों तरफ़ पहरा है।'' उसने कानफाड़ू ठहाका लगाते हुए मेरे बाहों को ज़रा ज़ोर से सांकेतिक 
                    ढंग से दबाया।
 जिस ढंग से निरंजन मेरी प्रशस्ति कर रहा था उससे स्पष्ट था कि 
                    यह नाटकबाज़ व्यापारी निरंजन आज किसी बंदे का जलूस निकालना 
                    चाहता है। मेरा पत्रकार, कुंडली मारे सर्प की तरह सिर उठा कर 
                    सारे माहौल का जायज़ा लेने लगा। यह निरंजन मुझे निशाना बना कर 
                    कौन-सा खेल-खेलने जा रहा है नुक्कड़ नाटक या व्यापार? हमारे 
                    आस-पास खड़े ऐश समेत सारे अँग्रेज़ी के भक्त सिर उठाए मेरी ओर कौतूहल से देखने लगे। मैं केंद्र में 
                    था। आगे निरंजन कौन-सा पत्ता फेंकता है मैं इंतज़ार करने लगा, 
                    तभी निरंजन ऐश की ओर मुड़ा और उसके पीठ पर ज़ोर का धौल जमाते 
                    हुए बोला,''क्यों ऐश, तुम भी इसे नहीं पहचान पाए? हद है।''
 'नहीं सर, मैं सच में पहचान नहीं पाया।'' उसने आँखें और भौहें नचाते हुए 
                    कहा।
 ''अच्छा बताओ ऐश, क्या तुम कभी बाज़ार सीताराम की गलियों में 
                    रहा करते थे? रामजस स्कूल में पढ़ा करते थे? ''आ रिया, जा रिया'' 
                     
                    बोला करते थे?'' सूटेड-बूटेड ऐश का चेहरा फक्क 
                    सफ़ेद, यूँ कि काटो तो खून नहीं, वह सँभला तो चेहरा पीला पड़ा 
                    फिर लाल हुआ। कोट की जेब से रुमाल निकाल कर माथे का पसीना 
                    पोंछते हुए वह लज्जित-परेशान अपने आस-पास के लोगों से नज़रें 
                    चुराते हुए हाँ-ना में सिर हिलाते हुए हकलाता हुआ इस तरह बोला 
                    जैसे सरे बाज़ार किसी ने उसे नंगा कर दिया हो।
 ''ओह! सर, नो सर, यस सर, बट सर. . .'' कहते हुए वह बगलें 
                    झाँकने लगा।
 मैं तमाशा देख रहा था।
 निरंजन ने उसका हाथ पकड़ा और उसे ठीक मेरे सामने खड़ा करते हुए 
                    कहा,
 ''ठीक है ऐश आज तुम ग्रेटर कैलाश के पॉश फ्लैट में रहते हो, 
                    सूट-बूट-टाई पहन कर, धकाधक अँग्रेज़ी बोलते, खाते और सोते हो पर 
                    बताओ तो बचपन में नीली निक्कर पहने, ठीक साढ़े आठ बजे, गले में 
                    बस्ता लटकाए, जीवा नाम के लड़के के साथ रामजस स्कूल जाते थे या 
                    नहीं?'' निरंजन ने उस ऐश के चेहरे का ऐसा 
                    मुखौटा ऐसा उतारा कि उसकी बोलती बंद हो गई। इस समय वह कंधे 
                    झुकाए टी.वी. कार्टून सीरियल का पिटा हुआ बिल्ला जेरी लग रहा 
                    था।
 ऐश आँखें चुराते हुए, दोनों हाथों से टाई की गाँठ ठीक करते, दबी 
                    ज़बान में मिमियाते हुए बोला, ''ओह! हो सकता है, मुझे 
                    याद नहीं सर। कितना ही समय तो बीत गया सर, मुझे अब वह कुछ भी 
                    याद नहीं 
                    सर।''
 ''ठीक है भइये, तुम खुद को भूल गए साथ ही अपनी अम्मा और अपनी 
                    बोली भी भूल गए। अरे! कभी अपने गरेबान में भी तो झाँक कर तो 
                    देख लिया कर। आशुतोष से ऐश बनकर उसी मित्र पर अँग्रेज़ी में 
                    रोब झाड़ रहा है जो तुझे हाथ पकड़ कर स्कूल ले जाया करता 
                    था। तेरे जाने के बाद तेरी याद में न जाने कब तक आँसू 
                    बहाता रहा। तुझसे मिलने की तड़प आज भी है इस कमबख्त में।''
 ''नो-नो, नहीं-नहीं, वह बात नहीं है सर, बस ज़रा हिंदी 
                    बोलने की आदत छूट सी गई है, फिर अँग्रेजी... ''
 ''हाँ-हाँ बोलो, आगे बोलो न! साले अब आए पटरी पर, जिसे तुम 
                    अभी-अभी अँग्रेज़ी में नसीहतें दे रहे थे वह और कोई नहीं 
                    तुम्हारा पड़ोसी मित्र, तुम्हें अँग्रेज़ी का एस्से रटानेवाला, 
                    हिज्जे ठीक करवाने वाला जीवा है, जीवन आनंद।'' और सुनो उसने ऐश का कंधा थपथपाते हुए, 
                    उसकी थोड़ी और ताजपोशी की,
 ''यह साला जिसे तू भइय्यन समझ रहा है न वह कोलंबिया और 
                    कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ा चुका है। जब-तब इंलैंड, 
                    अमेरिका, योरोप से सेमिनार और कॉन्फ्रेंस वगैरह में सम्मिलित 
                    होने के लिए निमंत्रित होता हैं। शान से हिंदी में लिखता है और 
                    उसी की प्रसिद्धि पाने में गर्व करता है। यह हिंदी का ऐसा 
                    विद्वान है जिसके लोग पाँव छूते है।''
 "छोड़ निरंजन, काफी खिंचाई कर ली, ज़्यादा करेगा तो डोर टूट 
                    जाएगी। कहने को मेरा मन हुआ पर मैं चुप रहा। निरंजन व्यापारी 
                    है वह कोई सीन यूँ ही नहीं क्रिएट करता। मौक़ा मिलते ही वह 
                    अपने पाले में आए गेंद को खूब नचाता है। आज मुझे निशाने पर 
                    लगा, वह गुलाम मानसिकता वाले इस पूरे अँग्रेज़ीदाँ काले साहबों 
                    के गुट को सबक सिखाने का जीता-जागता नाटक खेल रहा है।
 ''ऐश कल तुम बता रहे थे तुम्हारे बेटे का अमेरिका का वीज़ा 
                    निरस्त हो गया है उससे बोल हिंदी की वर्ड-प्रोसेसिंग सीख ले, 
                    फ़ायदे में रहेगा। आज हिंदी का बड़ा बोलबाला है। तूने कभी मिस्टर ग्रियर्सन, डॉ. मैग्रगर, डॉ स्नेल 
                    जैसे हिंदी के स्कॉलरस का नाम सुना है। नहीं न? ऐसे हज़ारों 
                    अँग्रेज़ लोग हिंदी के विद्वान और समर्थक है।'' ''जाने दे यार. . .छोड़. . .'' मैंने उससे कहना चाहा पर निरंजन 
                    उस पर पिला रहा।
 ''अख़बार पढ़ते हो न, सुना नहीं तुमने, बुश गवरमेंट ने अमेरिका 
                    में हिंदी शिक्षण के लिए पचहत्तर मिलियन डालर का ग्राँट दिया 
                    है। वहाँ हिंदी पढ़ाने की सुविधाएँ जुटाई जा रही हैं। इंग्लैंड 
                    में पिछले सात सालों से विश्वव्यापी हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता 
                    हो रही है। हिंदुस्तानी तो हिंदुस्तानी गोरे भी हिंदी पढ़ते 
                    हैं और इस प्रतियोगिता में भाग लेते हैं।'' ऐश और उसके साथी 
                    बुत से खड़े मुँह बाए निरंजन की ओर देखते रहे।
 निरंजन जब चालू हो जाए तो उसे रोकना मुश्किल हो जाता है।
 ''बोलो, क्या यह सिर्फ़ संयोग 
                    है कि अगले महीने अमेरिका में ''आठवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन'' 
                    आयोजित हो रहा है। और जानते हो उसका उद्घाटन कहाँ हो रहा है, 
                    सीधा यूनाइटेड नेशन्स के हेड क्वाटर्स में। भारत और विश्व के 
                    तमाम देशों से सैकड़ों-हज़ारों हिंदी के विद्वान, हिंदी-प्रेमी 
                    और हिंदी-सेवी इस कुंभ में स्नान करने जा रहे हैं। हिंदी के 
                    प्रचार-प्रसार और वैश्वीकरण को लेकर गंभीर विचार-विमर्श हो रहा 
                    हैं। हिंदी जन सामान्य में विश्व भाषा की पहचान बना चुकी है। हिंदी की सेवा में 
                    संलग्न हिंदी-सेवियों को यू.एन.ओ. के सभागार में सम्मानित किया 
                    जाएगा। आशुतोष बाबू, अपनी मातृ-भाषा की महिमा-गरिमा समझो। 
                    उसने उनका फिर बैंड बजाया।''कौवा अगर हँस की चाल चले तो भी कौवा, कौवा ही रहेगा।  आने वाले वक्तों में हिंदी के 
                    बिना अँग्रेज़ी का कोई मूल्य नहीं होगा। आज प्रगतिशील लोग 
                    हिंदी अंग्रेज़ी दोनों में समान रूप से महारत रखने की कोशिश कर 
                    रहे हैं। अगर तुम्हारे बेटे या तुमने अंग्रेज़ी के साथ हिंदी 
                    पढ़ी और सुनी होती, अंग्रेज़ी के साथ अपनी मातृ-भाषा हिंदी की 
                    गरिमा समझी होती तो तुम्हें भी दुभाषिया, अनुवादक या 
                    टेक्नीशियन होने के नाते अमेरिका जाने का वीज़ा मिल जाता। अब 
                    करो जुगाड़, जोड़ो हाथ अँग्रेज़ी के, रगड़ो नाक वीज़ा के 
                    लिए।''
 ''सर. . .सर. . .'' कहता वह निरंजन को अपनी ओर मुखातिब करने की 
                    कोशिश करता रहा पर निरंजन मुझे अपनी बाहों के घेरे में लेता 
                    हुआ, आगे बढ़ गया।
 नाटक खतम हो गया।''यार तुझे हो क्या गया निरंजन? तूने तो उस अँग्रेज़ी-दाँ 
                    पुत्तर ऐश की ऐसी आरती उतारी कि उसे छठी का दूध याद आ गया, अब 
                    न तो वह कभी अँग्रेज़ी बोलेगा न ही हमारे सामने आएगा।''
 ''तुझे क्या पता? साला पिछले एक महीने से ऐश बना, मेरा सिर 
                    अँग्रेज़ी में खाते हुए डींगें मार रहा था यों कि जैसे मुझे पता 
                    ही नहीं कि वह आशू है। ग्रेटर कैलाश में रहता है तो रहता रहे। 
                    बाज़ार सीताराम की गुदड़ी से निकले लालों से उसकी आँखें तो आज 
                    चौंधिया ही गईं, साला फंटूश।''
 ''यार यह तो बता, तुझे कैसे पता चला कि वह आशू है।''
 ''वैसे ही जैसे तूने बड़ी सफ़ाई से उसकी जेब में अपना 
                    विज़िटिंग कार्ड डाला।''
 ''बचपन का साथी है यार। कैसे भूलूँ. . .?''
 ''कवि कहीं का! दोस्त तू नहीं बदलेगा। कल शाम ग्रेटर कैलाश 
                    चलेंगे और उससे जफ्फियाँ पाएँगे।''
 ''मान जाएगा? तूने ज़रा ज़्यादा चंपी नहीं कर दी।''
 ''मानेगा तो उसका बाप भी। बाप-बेटे दोनों बेकार हैं दो 
                    महीने से। नौकरी चाहिए न।''
 ''गुरु, आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन- न्यूयार्क 2007'' के लिए 
                    दुभाषिए चाहिए। इसे और इसके बेटे को भी चिपका देंगे। अपनी 
                    हिंदी है ही ऐसी विशाल ह्रदयवाली, प्रजातांत्रिक सबको अंगीकार कर 
                    लेती है।''
 ''सो तो है ही यार, देख, अगर और कोई जुगाड़ नहीं बनता है तो 
                    मेरी कंपनी दोनों को स्पांसर कर देगी।'' कहते हुए दोनों मित्र 
                    एक-दूसरे के पीठ पर धौल जमाते, ज़ोरों से हँस पड़े. . .
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