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कमांडर पंत ने रेखा का जोरहाट तक एयर टिकट बुक करवा दिया। जोरहाट से बस द्वारा उसे कालाइगाँव पहुँचना था जहाँ अरबिंदा उसे लेने आने वाला था। वह आसामी युवक रवि का ड्राइवर था। रेखा जैसे ही बस से उतरी चपटी नाक वाला अरबिंदा उसके नाम का पोस्टर लिए उसकी प्रतीक्षा में खड़ा था। वह चुपचाप उसकी तरफ़ बढ़ी। वह जीप से उसे सी.आर.पी.एफ़. के गेस्ट हाउस में ले आया। रेखा स्नान वगैरह करके तरोताज़ा हुई। मेस में जाकर थोड़ा खाना भी खाया। तत्पश्चात अरबिंदा से बोली, ''तुम रेशमा को जानते हो?''
उसने सहमति में गर्दन हिलाई।
''मुझे उसके घर ले चलो। जानते हो न उसका घर?''
सहमति में गर्दन हिलाते हुए हल्के से बोला, ''जीप में बैठिए, मैडम।''
जीप चलाते हुए वह अपनी टूटी हिंदी में बोला, ''भौत दूर है साब की उन घरवाली का घर. . .। शहर के दूसरे कोने में।''

रेखा के दिल में हठात एक स्पंदन हुआ। अरबिंदा रेशमा को रवि की घरवाली मानता था। 'ओह किस्मत क्या-क्या दिन दिखाने थे. . .' वह बुदबुदाई। फिर ख़ामोश वह खिड़की से बाहर का नज़ारा देखने लगी। कितना भिन्न प्रतीत होता है अपने देश का यह भूभाग। यहाँ के लोग, भाषा सब कुछ कितना अलग है। ऐसा लगता है जैसे हम किसी दूसरे द्वीप में पहुँच गए हों। एक कसक-सी उसके दिल में उठने लगी कि वह कभी रवि के जीवनकाल में इधर क्यों नहीं आई। दिल्ली में रहते हुए वह सोचा करती थी कि हिंदुस्तान बस उसके आसपास की दुनिया है। लेकिन नहीं हिंदुस्तान में तिब्बत, मणीपुर अरुणाचल प्रदेश ऐसे कई इलाके हैं जो आज भी देश की मुख्य धारा से एकदम विलग हैं।

जीप शहर के भीड़-भड़क्के से दूर किसी ग्रामीण इलाके की सुनसान सड़कों पर दौड़ने लगी थी। सुरम्य प्रकृति व सरसराती निस्तब्धता। रेखा विचारों की उधेड़बुन में थी कि एक सुंदर उपवन के बीच बनी कॉटेज के सामने अरबिंदा ने जीप रोक दी। रेखा ने कॉटेज को निहारा - हरे पेड़ों से घिरी छोटी-सी कॉटेज सुंदरता का प्रतीक थी। एक अजनबीपन रेखा को डस गया। फिर भी वह कॉटेज की तरफ़ बढ़ी। ''मैं आऊँ, मैडम?'' अरबिंदा ने पूछा।
''नहीं तुम यहीं इंतज़ार करो,'' वह बोली और आगे बढ़ ली।

ज़िंदगी भी अजीब क्षणों को लेकर आती है. . .। दरवाज़े के पास वह काफ़ी देर तक खड़ी रही, हिम्मत ही नहीं हो रही थी खटखटाने की। अंदर से किसी शिशु के रोने की आवाज़ आ रही थी। इतनी दूर आकर वह रेशमा से बिना मिले तो जाएगी नहीं, सोचते हुए उसने हल्के हाथों से दरवाज़ा थपथपाया। एक औरत ने दरवाज़ा खोला, गोदी में कुछ माह के शिशु को पकड़े। जैसे ही उस औरत ने रेखा को देखा, विस्मय के भाव उसके चेहरे पर प्रकट हुए, फिर वह एकाएक दरवाज़ा बंद करने लगी। रेखा ने तुरंत दरवाज़ा पकड़ लिया।

उस औरत ने ज़्यादा ज़ोर नहीं लगाया, बल्कि झिझक कर पीछे हट गई। रेखा दरवाज़ा धकेल कर अंदर दाखिल हो गई। सामने दीवार पर उसे अपनी सास की बड़ी से फ़ोटो टँगी नज़र आई। फ़ोटो पर बनावटी फूलों का एक बड़ा-सा हार भी टँगा था। रेखा ने घूर कर अपनी सास की तस्वीर को देखा। पिछले साल ही उसकी सास का देहांत हुआ था। उसने अपने घर में सास की कोई फ़ोटो कभी नहीं टाँगी। उसकी अपनी सास से ऐसे संबंध ही नहीं थे। मगर रेशमा के घर में टँगी सास की मुसकुराती तस्वीर रेशमा से उनके संबंधों को बयाँ कर रही थी।

रेखा ने कमरे में दृष्टि दौड़ाई। पूरा कमरा केन की वस्तुओं से सजा था। लकड़ी के कैबिनेट पर रवि व रेशमा की प्रेम मुद्राओं में खिंची तमाम तस्वीरे सजी थी। एक फ़ोटो में रवि, रेशमा और उनका बच्चा, जो कि रवि की गोद में था। यह फ़ोटो एकदम नई होगी, क्यों कि बच्चा जो अब रेशमा की गोदी में था मात्र दो-तीन महीने का लग रहा था। ईशा की भी फोटो लगी थी। वहाँ सभी के फ़ोटो मौजूद थे, सिर्फ़ रेखा की छोड़ कर।
रेशमा एक तरफ़ दूर खड़ी थी, गोदी में अपना बच्चा पकड़े।
''बैठो,'' रेखा ऐसे बोली जैसे वह उसका घर हो और रेशमा उसकी मेहमान हो।

झिझकते हुए रेशमा उसके सामने बैठ गई। काले रेशमी बाल, गोरा रंग. . .वह एक जवान व सुंदर औरत थी, मुश्किल से उसकी उम्र पच्चीस-छब्बीस की प्रतीत हो रही थी। रेखा पूरे चालीस साल की। रवि उससे सिर्फ़ एक साल बड़ा था।
एक लंबी साँस भरते हुए रेखा ने पूछा, ''तुम्हें मालूम है कि मैं कौन हूँ?''
''हाँ मैंने आपकी फ़ोटो देखी हुई है,'' वह सिर झुकाए हुए बोली।
उसकी गोदी में बच्चा रोने लगा। वह अपना कुर्त्ता ऊपर करके उसे दूध पिलाने लगी। ''यह लड़का है?'' उसने पूछा।
''हाँ।''
''कब हुआ?''
''तीन महीने पहले।''

रेखा अनायास ही सोचने लगी वह व रवि हमेशा दूसरे बच्चे की चाह में रहते थे। कभी रवि की संवेदनशील पोस्टिंग की वजह से उनके बीच विछोह बना रहा था तो कभी यों ही. . .समय बीतता चला गया। ईशा चौदह साल की हो गई। और वह चालीस की, जहाँ औरत को गर्भ धारण करने से पहले काफ़ी सोचना पड़ता है।
रेशमा धीरे से बोली, ''मुझे मालूम है कि आप यहाँ क्यों आई हैं?. . .आप जानना चाहती हैं कि मेरे रवि से संबंध. . .'' कहते हुए उसकी आँखें भर गई। रेखा को उस पल लगा कि रवि केवल रेशमा का ही मर्द था। उसका अपना कोई नहीं।
''वह बहुत अच्छे इंसान थे,'' वह रूँधे स्वर में बोली।
``हूँ. . .अच्छे इंसान।'' रेखा के जले दिल से कटाक्ष उभरा। ''एक बेवफ़ा पति की पत्नी होने से बेहतर तो विधवा हो जाना है।
''आप उन्हें जैसा भी मानती हो मगर वो मेरे लिए एक बहुत अच्छे इंसान थे,'' रेशमा बोली। फिर एकदम तटस्थ भाव से अपनी कहानी सुनाने लगी. . .।

उसका परिवार आसाम व नागालैंड की सीमा पर डीमापुर जिले का रहना वाला था। पुलिस को उन पर शक था कि उनका संबंध डीएचडी, डीमा हलीम डोगा आतंकवादी गिरोह से है जिनका लक्ष्य डीमासा जनजातियों के लिए एक अलग राज्य, डीमाराजी बनाने का है।
''हम पहाड़ी गाँवों के लोग कहाँ से आतंक फैलाएँगे? आतंकवादी तो पाकिस्तान के आई.एस.आई. के लोग है। पुलिस हम पर बेकार का शक करती है,'' रेशमा अपनी कहानी सुनाते हुए बोली।
एक शाम सुरक्षा दलों के जवानों ने उनके घर में आक्रमण किया कि उन्होंने अपने घर में आतंकवादियों को शरण दे रखी है।
''वे हमारे रिश्तेदार थे, मेरी बहन के ससुराल वाले। अगर आपके किसी रिश्तेदार के आई.एस. आई. से संबंध है तो आपके उससे रिश्ते टूट तो नहीं जाएँगे?'' उसने रेखा से पूछा। रेखा के पास कोई जवाब नहीं था। मगर वह देख रही थी कि रेशमा काफ़ी अच्छी हिंदी बोल रही थी। रवि से सीखी होगी।

केवल शक की बुनियाद पर सुरक्षा कर्मचारियों ने उसके परिवार के सभी सदस्यों को मार दिया। एक केवल उसकी जान बच पाई थी, रवि की वजह से। जब तक सुरक्षा दल के कर्मचारी रिवाल्वर गोली उसके सीने में उतारते रवि अपने दल का प्रतिनिधित्व करते हुए वहाँ पहुँच गया। उसने उसे बचाया व बाद में सुरक्षा प्रदान की। उसका सारा परिवार उसकी आँखों के सामने जल कर भस्म हो गया था। डीमापुर में रहने से उसका मन घबराने लगा था। वह वहाँ अपनी सारी संपत्ति बेच कर कालाइगाँव आ गई। और वहाँ कॉटेज लेकर रहने लगी।
''वह बहुत अच्छे थे. . .वह बहुत अच्छे थे. . .'' रेशमा बार-बार दोहराती जा रही थी। रेखा को समझने में देर नहीं लगी कि रवि व उसके बीच मानवता का रिश्ता धीरे-धीरे प्रेम में बदल गया था।

कहानी ख़तम होने के बाद उनके बीच एक सन्नाटा छा गया। रवि के प्रति रेखा को और वितृष्णा होने लगी। उसने सिर्फ़ उसे ही धोखा नहीं दिया, बल्कि रेशमा की मजबूरी का भी फायदा उठाया।
``मैं आपके लिए कुछ पीने के लिए लाती हूँ,'' रेशमा बोली और अपनी गोदी के शिशु को सोफ़े पर लेटा कर चली गई। रेखा ने बच्चे को देखा। कहा जाता है कि जितनी भिन्न प्रकृति के गुणसूत्र आपस में टकराते हैं उतनी सुंदर नस्ल पैदा होती है। शिशु विलक्षण सुंदर था। उसे देख कर कोई उसे बिना प्यार किए रह ही नहीं सकता था। वह यकायक रोने लगा। रेखा ने संभ्रम से इधर-उधर देखा, फिर उसे गोद में उठा लिया। बच्चा खामोश होकर अपनी गहरी काली आँखों से उसे घूरने लगा, जैसे कुछ मनन कर रहा हो। ऐसे ही गहन विचार रवि के चेहरे पर भी प्रकट हो जाते थे रेखा सोचने लगी।

रेशमा चाय बना कर ले आई। रेखा की गोद में अपना बच्चा देख एक पल के लिए ठिठकी, फिर उसके चेहरे पर भीनी मुस्कान तैर गई।
''क्या नाम है इसका?''
''मनु। उन्होंने ही रखा था।''

रेखा ने अपनी आँखों से सभी कुछ देख लिया था, सुन लिया था। अब वहाँ ठहरने का कोई औचित्य नहीं था। जब वह उसके घर से बाहर निकलने लगी तो रेशमा ने उसे रोक कर कुछ चीज़ें पकड़ाई जो रवि ने ईशा के लिए उसके जन्मदिन पर देने के लिए ख़रीदी थी। मालाएँ, कंगन व कानों के टॉप्स जिनमें उत्तरी-पूर्वी प्रदेश की नक्काशी व दस्तकारी की स्पष्ट झलक थी। ''रवि कहते थे कि ईशा को गहनों का बहुत शौक है'' रेशमा हँसते हुए-सी बोली। ''उसके जन्मदिन पर रवि को ज़रूर पहुँचना था मगर यह हादसा. . .। पंद्रह की हो गई न ईशा?'' रेशमा ने पूछा तो रेखा ने ठंडी साँस भरते हुए हामी भरी।

रेशमा ईशा का नाम लेकर उसके विषय में ऐसे बतिया रही थी जैसे वह उसे अर्से से जानती है। इसका अर्थ कि रेशमा के साथ रवि के रिश्तों में एक पारदर्शिता थी। वह निःसंदेह उससे सभी कुछ बाँटा करता था। और इधर अपनी जायज़ पत्नी से वह कितना कुछ छुपा कर रखता था। वह इस प्रदेश की हवा मिट्टी व रेशमा की गंध लेकर उसके पास पहुँचता था और वह कभी महसूस ही नहीं किया करती थी। कितना सतही था उसका रवि से रिश्ता।
रेशमा उसे जीप तक छोड़ने आई। उससे विदा लेकर रेखा जीप में बैठ गई। न जाने क्यों रेशमा से मिलकर उसे एक हल्कापन महसूस हो रहा था, जैसे एक भारीपन, एक तनाव सिर से उतर गया हो।

........................

दिल्ली लौट कर रेखा की ठहरी ज़िंदगी ने रफ़तार पकड़ ली। उसने अपने कॉलेज जाना शुरू कर दिया था। ईशा भी अपने स्कूल की पढ़ाई में तल्लीन हो गई। रवि मर गया था मगर वह केस थमा नहीं था। जाँच-पड़ताल चल रही थी। कुछ न कुछ ख़बरों में उस केस से संबंधित आता रहता। रवि के साथ उल्फा, डीएचडी आतंकवादी गिरोहों की चर्चा हो जाती। रेशमा भी अफ़वाहों में उछल जाती। यह राष्ट्रीय मुद्दा बन गया था। रेखा के पास कोई चारा नहीं था, सिर्फ़ टीवी बंद कर देने के। वह अपनी ज़िंदगी को इन सभी से बहुत अधिक प्रभावित नहीं करना चाहती थी।

लेकिन, लगभग दो माह बाद, एक दिन रेशमा को टीवी स्क्रीन पर देख कर रेखा चौंक गई। वह पुलिस हिरासत में थी। पुलिस के अनुसार वह पहले से ही डीएचडी, डीमा हलीम डोगा आतंकवादी गिरोह से संबंध रखती थी, जिससे पुलिस उसके पीछे थी। फिर अभी हाल में उसने रवि के हत्यारों से बदला लेने के लिए कइयों को मौतों के घाट उतार दिया था। कुछ निर्दोष जाने भी ले ली थी। उसके बच्चे की भी चर्चा होती कि उसे देखने वाला कोई नहीं है। वह अभी फिलहाल किसी बाल कल्याण संस्था के हवाले है। बाद में सरकार फ़ैसला करेगी कि उसे कहाँ भेजा जाए।
अकस्मात रेखा के सम्मुख उस मासूम बच्चे का चेहरा तैर गया. . .''मनु,'' वह बुदबुदाई।

रवि ने उसके साथ छल किया था। चाहे परिस्थितियोंवश या उसकी कुछ मजबूरियाँ हो विश्वास व निष्ठा, विवाह के दो अनिवार्य तत्वों का उसने हनन किया था। वैसे उमर के इस मुकाम पर पहुँच कर वह समझने लगी थी कि चाहे कितना ही प्रयास कर लिया जाए जीवन के प्रसंग व कार्यभार बिल्कुल सही व सटीक घटित हो. . .यह संभव नहीं। घरबाहर व अपने-परायों के बीच सामंजस्य बिठाते हुए कितनों का अनुचित व्यवहार हमें झेलना पड़ता है। कितने ही अन्याय हमें सहने पड़ते हैं। कितने समझौते व त्याग हमें करते पड़ते हैं। कई बार अपना वजूद भुला कर दूसरों के लिए जीना पड़ता है। अगर वह अपने स्वर्गवासी पति को माफ़ कर दे. . .? उसके बच्चे को एक स्थाई घर. . .?
यह उसका दिमाग़ क्या सोच रहा है? अन्यमनस्क-सी वह फ्रिज की तरफ़ बढ़ी। पानी की बोतल निकाल कर गिलास लबालब भरा और सोफ़े पर बैठ कर ठंडे पानी के घूँट के साथ वह ठंडे दिमाग़ से वस्तुस्थिति पर मनन करने लगी. . .। घर से कोसों दूर सीमा पर बसे अंजान क़स्बों में रवि का कार्यस्थल रहता था। कई बार जटिल, नाजुक स्थितियों का उसे सामना करना पड़ता था। रेशमा की मदद करते-करते अगर उसका दिल फिसल गया तो कोई बहुत आश्चर्य की बात नहीं। आख़िर एक साधारण इंसान ही तो था वह। यह भी हो सकता है कि रेशमा ने खुद ही अपने को उसके सम्मुख समर्पित किया हो। फिर जान गँवा कर रवि अपनी ग़लतियों की सज़ा भी भुगत चुका है। आज ज़िंदगी उससे कुछ माँग रही है उसे पीछे नहीं हटना चाहिए।

एक ठोस निर्णय लेते हुए रेखा सोफ़े पर से उठी फ़ोन के पास पहुँच कर कमांडर पंत का नंबर घुमाया।
उसका स्वर सुनकर कमांडर पंत बोले, ''जी मैडम?''
''मुझे रवि के बच्चे की कस्टडी चाहिए,'' वह दृढ़ स्वर में बोली।
कुछ पलों के लिए कमांडर पंत ख़ामोश बने रहे, फिर बोले, ''मिसेज़ शर्मा आप ग्रेट हैं।''

एक बार फिर रेखा उन्हीं रास्तों से कालाइगाँव पहुँची। रेशमा से मिलने जेल गई। इन दो महीनों में वह एकदम पतली हो गई थी। मगर चेहरे पर वहीं कशिश अभी भी थी। इस बार रेखा ने उसे घूर कर देखा - ऐसा सुंदर व मासूम चेहरा मगर सिर में घातक जुनून। वह बोली, ''मुझे फाँसी लगे या आजीवन सजा हो, मुझे चिंता नहीं। मुझे बस इत्मीनान है कि मैंने रवि को मारने वालों को मार गिराया है। बदला ले लिया है।'' रेखा ने जब उससे उसके बच्चे की कस्टडी की बात की तो उसकी आँखों में अकस्मात आँसू भर आए। कुर्ते की बाँह से आँसू पोंछते हुए उसने सहमति में गर्दन हिला दी। उसे निहारते हुए रेखा सोचने लगी क्या है मनुष्य हृदय भी. . .। एक तरफ़ इतना कठोर कि लोगों के प्राण ले ले दूसरी तरफ़ इतना कोमल की एकदम से द्रवित हो जाए।

''मैं तुम्हारे बच्चे की अच्छी परवरिश करूँगी रेशमा।'' उसका हाथ दबाते हुए रेखा ने उसे आश्वासन देने का प्रयत्न किया। रेशमा के चेहरे पर एक फीकी हँसी बिखर गई।

..................

रेखा ने अपने कॉलेज से एक लंबी छुट्टी ले ली। नई परिस्थितियाँ जो उत्पन्न हो गई थी। घर में एक अबोध शिशु आ गया था। उसे काफ़ी व्यवस्थाएँ करनी थी। फिलहाल तो घर में बच्चे से संबंधित तमाम वस्तुएँ बिखर गई थीं - पालना, प्राम, बोतलें, टेडी बियर्स. . .। ईशा छोटे भाई की देख-रेख में रेखा का पूरा हाथ बँटा रही थी। एक दोपहर रेखा मनु को बोतल से दूध पिला रही थी और ईशा बगल में बैठी मंत्रमुग्ध उसे निहार रही थी। पिता की मौत से जो अभाव उसकी जिंदगी में आया था, मनु उसकी पूर्ति कर रहा था। सहसा वह रेखा से बोली, ''मम्मी, आप एक बहुत ही स्ट्रॉंन्ग व ग्रेट वूमेन हो। मुझे आपकी तरह बनना है. . .।''

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९ मार्च २००७

 
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