कमांडर पंत ने आगे बढ़ कर रेखा
का कंधा पकड़ लिया। उनके साथ सुपरिंटेंडेंट कमांडर गुप्ता भी
आगे बढ़ आए। ''मैडम. . .रवि. . .हमारे बीच नहीं. . .। कल रात बोडो आतंकियों ने रवि को. . .''
''हा-आ. . .'' एक दर्दनाक चीख रेखा के कंठ से निकल गई। खुले
मुँह पर हाथ चला गया। पुतलियाँ विस्मय से फैल गई। वह गिरने-सी
होने लगी कि पंत व गुप्ता ने उसे सँभाल लिया। उसे सँभालते हुए
दोनों ड्रांइगरूम में आए। रेखा की दबी आवाज़ अब वीभत्स चीख़ों
में बदल गई थी। ईशा अपने कमरे से उठ कर आँखे मलते हुए
ड्राइंगरूम में आई।
सी.आर.पी.एफ़. अधिकारियों के बीच अपनी माँ को रोते-बिलखते देख
एक पल के लिए उसका माथा ठनका। फिर उसने भी पूछा, ''क्या हुआ
पापा को?''
जवाब में रेखा की चीख़ें और प्रबल हो गई। पंत और गुप्ता भी अपने
आँसू पोछने लगे।
''नहीं. . .नहीं. . .'' ईशा चिल्लाई। ''पापा को कुछ नहीं हो
सकता। उन्होंने मेरे जन्मदिन पर आने का वादा किया था। वो मर
नहीं. . .'' बुदबुदाते हुए वह नीचे फ़र्श पर लुढ़क गई।
पंत और गुप्ता रेखा को छोड़
कर ईशा को सँभालने लगे। ख़बर ने उसे बेहोश कर दिया था। ''मैडम,
आप रोना छोड़िए और बेटी को सँभालिए,'' पंत बोले। मगर रेखा
चेहरे को हथेलियों से ढक कर करुण क्रंदन करती रही। पंत व
गुप्ता के चेहरों पर परेशानी के भाव और अधिक उमड़ आए। ईशा को
उठा कर दीवान पर रखा व उसके मुख पर ठंडे पानी के छींटें मारे
मगर उसकी बेहोशी नहीं टूटी। तत्काल डाक्टर को घर बुलाना पड़
गया।
डाक्टर ने ईशा की पल्स देखी, ब्लडप्रेशर चैक किया, इंक्जेशन उसे लगाया। एक तरफ़
निर्लिप्त बैठी रेखा से बोला, ''आपकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण
है। अपने ग़म को भूला कर बेटी को सँभालिए। पिता की मौत का गहरा
सदमा लगा है उसे। किशोर अवस्था. . .। ऐसे में अगर आपने भी उसे
सहारा नहीं दिया तो. . .।''
चेहरे से हथेलियाँ हटा कर
रेखा ने ईशा के सुंदर व मासूम चेहरे की तरफ़ देखा। बेहोशी में
डूबी हुई उसकी लंबी व छरहरी देह। रवि से उसे बहुत लगाव था। तीन
दिन बाद उसका पंद्रहवा जन्मदिन था और रवि ने घर पहुँचने का
वादा किया था। जैसी-तैसी जगह, चाहे कितनी भी संवेदनशील
पोस्टिंग में रवि रहा हो ईशा के जन्मदिन पर वह अवश्य घर
पहुँचता था।
रेखा को अपनी बेटी पर तरस आने
लगा। किशोर अवस्था की नादान आयु में ही पिता से वंचित हो गई।
रेखा को अपनी किशोरावस्था का समय सहसा याद आ गया । कहते हैं कि
इतिहास खुद को दोहराता है। वह भी सिर्फ़ पंद्रह साल की थी जब
उसके पिता हार्ट अटैक से अकस्मात गुज़र गए थे। कैसा थरथराता
प्रतीत हुआ था सब। पिता का वजूद बेटी के जीवन में सबसे सबल
रिश्ता होता है उसका ज़िंदगी से मिट जाना। ख़ैर उसके दो बड़े
भाई थे, जिनका साया उसके लिए पिता से भी बढ़ कर था। ईशा का तो
कोई भी नहीं- न भाई न बहन। ''ओह भगवान'' सिहरते हुए रेखा ने
ईशा को भींच लिया। उसके स्वयं के लिए भी अब ईशा के सिवाय कौन
रह गया है?
''यहाँ दिल्ली में आपके रिश्तेदार वगैरह कोई हैं?'' कमांडर पंत
पूछ रहे थे।
''मेरे भाई व माँ यहाँ बसंत कुंज में ही रहते हैं। मगर इस वक्त
वे सभी बद्रीनाथ की तीर्थ यात्रा पर गए हुए है। परसों तक पहुँच
जाएँगे। परसों यहाँ सभी को पहुँचना था, रवि को भी। तीन दिन बाद
ईशा का जन्मदिन है।'' हताशा में वह फिर से विलाप करने लगी।
''नहीं, नहीं मैडम, खुद को सँभालिए,'' पंत ने उसे विलाप करने
से रोका।
''ईशा की ख़ातिर खुद को सँभालिए,'' गुप्ता बोले।
रेखा ने अन्यमनस्क हो एक पल उन्हें देखा, फिर ईशा को और अपने
आँसू पोछने की चेष्टा की। स्थिति उसे पति की मौत पर रोने भी
नहीं दे रही थी। बेटी के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों का बोध
एकाएक उसे बहुत अधिक भारी लगा।
पूरा दिन ईशा दीवान पर बेहोश-सी लेटी रही।
ग्लूकोज़ उसे लगाना पड़ गया था। कितने ही लोग रेखा
के पास अफ़सोस प्रकट करने आ रहे थे। किसने उन्हें ख़बर दी, उसे नहीं
मालूम। पंत व गुप्ता किससे खाना बनवा कर उनके लिए लाए, उसे कुछ
मालूम नहीं। वह बस लगातार ईशा के बगल में खामोश बैठी उसे चढ़ती
ग्लूकोज़ की बोतल को निहारते हुए रवि के संग बिताए दिनों की
यादों में खोई रही।
शाम को जब ईशा की बेहोशी टूटी
तो इस दारुण क्षणों में भी खुशी की हल्की लकीरें उसके चेहरे पर
छा गई। ''पापा?'' ईशा बोली।
वह ईशा का मनोबल बढ़ाने के उद्देश्य से बोली, ''तेरे पापा एक
वीर व साहसी इंसान थे। उन्होंने आसाम में बोडो आतंकवादियों का
सामना करते हुए अपनी जान दी है। वो देश के लिए शहीद हुए है
बेटा। लोग शहीदों की मौत पर गर्व किया करते हैं, अफ़सोस
नहीं,'' कहते हुए वह उठी और रसोई में जाकर चाय बनाई। खुद भी पी
और बेटी को भी पिलाई।
''चल, उठ ईशा नहा-धोले,'' वह उसे पुचकारते हुए बोली। ''तेरे
पापा को सुस्ती कभी पसंद नहीं आती थी।''
पापा का नाम सुनकर ईशा उठ गई।
दोनों माँ-बेटी ने ब्रश किया, नहाए और कपड़े बदले। घर में
एकाएक कुछ पलों के लिए सन्नाटा छा गया था। अफ़सोस प्रकट करने
वालों का ताँता थम गया था। पंत व गुप्ता न जाने कहाँ ग़ायब हो
गए थे।
''तेरे पापा का पूरे देश में गुणगान हो रहा होगा। ख़बरों में
उनकी बहादुरी के विषय में बताया जा रहा होगा। गर्व कर तू खुद
पर कि तू ऐसे पिता की संतान है। वो एक महान इंसान थे। तू बेटा
अपने पिता की तरह बनने की कोशिश करना बहादुर और निडर,'' ईशा को
प्रेरित करते हुए रेखा ने टीवी ऑन किया और ख़बरों वाला चैनल
लगा दिया।
अधिकतर ख़बरें अभी हाल में हुए चुनाव के ऊपर थी। फिर इधर-उधर की
कुछ अन्य सामान्य ख़बर बताई गई। अंत में ख़बर संवाददाता ने
कमांडर रवि शर्मा का नाम लिया तो रेखा व ईशा के दिलों की
धड़कने बढ़ गई। एकटक स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए सुनने लगे। वर्दी
पहने हुए रवि की तस्वीर स्क्रीन पर उभरी तो रेखा व ईशा की थमी
सिसकियाँ एक बार फिर उमड़ गईं।
''कमांडर रवि शर्मा की कल रात अज्ञात कारणों से बड़े रहस्यमय तरीके से हत्या हो गई
है। कहा जाता है कि बोडो संगठन की एक महिला आतंकवादी रेशमा से
उनके नाजायज़ संबध थे। दो साल से रेशमा कमांडर शर्मा की रखैल
बन कर रह रही थी. . .''
रेखा व ईशा ने एक-दूसरे को अवाक देखा। मुँह दोनों का आश्चर्य
से फिर खुल गया। इतने में कमांडर पंत कहीं से कमरे में
प्रविष्ट हुए। टीवी बंद करते हुए दुखी स्वर में बोले, ''क्यों
सुन रहे हो यह ख़बर?'' मगर ख़बर संवाददाता का बोला वह वाक्य
उनके कानों में पड़ गया- ''कहा जा रहा है कि कमांडर शर्मा से
रेशमा
को एक बच्चा भी है. . .।''
रेखा ने अपना सिर पकड़ लिया।
सभी कुछ सांय-सांय करने लगा था। पति की मौत की ख़बर ने उसे
इतना दहलाया नहीं था जितना कि इस ख़बर ने दहला दिया था। रवि के
किसी अन्य महिला से जिस्मानी संबंध. . .इतना ही नहीं उससे औलाद
भी, इतना बड़ा विश्वासघात उसके साथ? रेखा को सहसा सभी कुछ
अंजान व अजनबी प्रतीत होने लगा। यहाँ तक कि खुद का वजूद भी एक
भ्रम लगने लगा।
यह बात उसके सामने अब स्पष्ट थी कि रवि केंद्रीय रिज़र्व पुलिस
कर्मचारियों की आतंकवादियों के साथ होती मुठभेड़ में नहीं मरा
था। न वह देश के लिए शहीद हुआ था। एक आतंकवादी गिरोह की महिला
से नाजायज़ संबंध होने के कारण किसी दूसरे आतंकवादी गुट ने
आपसी रंजिश में उसकी जान ले ली थी।
''मेरे पापा के कोई और बच्चा नहीं है, सिर्फ़ मैं ही हूँ,''
कहते हुए ईशा बिस्तर पर फिर लुढ़क गई थी। कमांडर पंत उसे फिर
सँभालने लगे थे. . .। सभी कुछ इतना सहमा लग रहा था कि जैसे बम
विस्फोट उनके घर में ही हुआ हो और वह सब वहाँ लाशें बन गए हो।
कमांडर पंत अब रेखा से नज़रें
चुराने लग गए थे। रवि की हरकतों ने संभवत: सी.आर.पी.एफ. के सभी
कर्मचारियों के चेहरों पर शर्म का धब्बा लगा दिया था।
थोड़ी देर में उनके मातहत गुप्ता भी पहुँच गए, साथ में उनकी
पत्नी भी थीं। दोपहर का खाना रसोई में अभी अनछुआ पड़ा था और
उनकी पत्नी फिर खाना बना कर ले आई थीं। एक प्लेट पर खाना परसते
हुए मिसेज़ गुप्ता बोलीं, ''रेखा जी, कुछ खाइए। अभी बहुत कुछ
आपको सँभालना है।''
रेखा को लगा जैसे वह कह रही
हैं कि अभी बहुत कुछ आपको और देखना है। ताक़त रखिए झेलने की।
मिसेज़ गुप्ता की ज़िद से रेखा ने थोड़ा-सा दाल का सूप पी लिया,
जबरन एक फुलका गोभी की सब्ज़ी के साथ भी खा लिया। ईशा ने कुछ
भी खाने से स्पष्ट इनकार कर दिया। विस्फारित नज़रों से वह सभी
को देख रही थी। माँ से अधिक भौंचक्की बेटी थी।
रात तकरीबन बारह बजे एक वैन घर के आगे रुकी। रेखा की माँ, भाई
व उनकी पत्नियाँ घबराए हुए से घर में दाखिल हुए। बौखलाई नज़र
से उन सभी ने रेखा व ईशा को देखा। ऑफ़िस के लोगों ने उन तक
सूचना पहुँचा दी थी जिससे वे अपनी तीर्थ यात्रा स्थगित करके आ
गए थे। उनको देख कर रेखा की जान में जान आई। भाइयों की बीवियाँ
ईशा की तरफ़ बढ़ीं, भाई व माँ रेखा की तरफ़। माँ रोते हुए बोली,
''यह क्या हो गया रेखा? मेरी तरह तू भी विधवा. . .।''
कमांडर पंत, गुप्ता व उनकी
पत्नी अपने दायित्व को समझते हुए रेखा के पास ही थमे हुए थे।
अब वहाँ परिवार के लोग पहुँच गए तो लगा कि एक राहत दल पीड़ित
स्थान पर पहुँच गया है। उनकी ज़िम्मेदारी ख़तम। उन्होंने वहाँ
से विदा ली।
एक दबी हुई खामोशी, एक असहजता
वातावरण में। सभी लोग बुरी तरह चकित अचंभित। रेखा का बड़ा भाई,
विनोद चुप्पी तोड़ते हुए बोला, ''हमें रवि के विषय में सभी कुछ
पता चला। उस लड़की रेशमा से उसके संबंध. . .। तुझे क्या कभी उस
पर शक नहीं हुआ?'' पूछते हुए उसके चेहरे पर एक झुंझलाहट थी।
रेखा ने इनकार में गर्दन हिलाई।
छोटा भाई, राकेश बोला, ''कुछ तो कभी. . .। कालाइगाँव से कभी
कोई ऐसा फ़ोन. . .या तूने कभी वहाँ फ़ोन किया हो तो किसी औरत
का स्वर. . .?''
रेखा को सहसा ध्यान आया कि वह कभी खुद रवि को फ़ोन नहीं करती
थी। कालाइगाँव, आसाम वह लगभग तीन साल पहले पोस्ट हुआ था।
हमेशा वह ही उन्हें फ़ोन करता था। यह नियम उनके बीच हमेशा बना
रहा था। जब भी उसकी संवेदनशील इलाकों में नियुक्ति होती थी,
फ़ोन हमेशा वह ही किया करता था। आज यहाँ, कल वहाँ के चक्कर में
उसके अतेपते का तो रेखा को ख़ास पता ही नहीं रहता था।
समय कितना भी जटिल हो, बीत
जाता है। रवि का गोली दगा शरीर ताबूत में दिल्ली पहुँचा। उसकी
अंत्येष्टि हुई और अन्य धार्मिक रस्में भी। रेशमा से उसके
कैसे ही संबंध रहे हो मगर उसकी वैध पत्नी रेखा थी, कानून व
समाज दोनों की नज़र में। उसकी मौत का मुआवज़ा, पेंशन, संपत्ति
आदि सभी पर सिर्फ़ रेखा का हक था। मगर लोग खुल कर उसे सांत्वना
नहीं दे पा रहे थे। वह खुल कर रो भी नहीं पा रही थी। रवि के
रेशमा से संबंधों की चर्चा उसके सभी परिचितों के बीच बड़ी
ज़बरदस्त तरह से हो रही थी। उसके कॉलेज, जहाँ वह अर्थशास्त्र
की लैक्चरर थी, के स्टाफ़ के लोग भी इस संदर्भ में परस्पर
खुसर-पुसर करते थे। मीडिया ने काफ़ी खुल कर इसका प्रचार कर
दिया था। सभी की बेधती, खामोश दृष्टि उससे पूछ रही थी कि क्या
उसे अपने पति पर कभी शक नहीं हुआ?
'नहीं, नहीं,' उसे कभी अपने
पति पर कोई शक नहीं हुआ। कालाइगाँव जब से रवि पोस्ट हुआ था,
तीन साल के दरमियान वह छ: बार दिल्ली घर आया था। उसे ज़रा
भी चेतना नहीं हुई कि उसका पति कहीं कोई गुपचुप प्रेम संबंध
बना रहा है। वह अचरज करने लगी कि अपने ये क़रीबी लोग कितनी ही
बातें हमसे गोपनीय बनाए रखते है। एक दशक से अधिक समय रवि के
साथ गुज़ारने के बावजूद वह उसे कितना कम जानती थी, कहीं उसकी
बेटी भी उसे किसी धोखे में तो नहीं रख रही. . .? अपनों से उसका
विश्वास उठने लगा था।
रवि से हुई अंतिम मुलाक़ात का
स्मरण रेखा ने कई बार किया। उस सुबह वर्दी पहने उसने बड़े
सामान्य तरह से उससे व ईशा से विदा ली थी। कहा था कि कालाइगाँव
में पोस्टिंग के सिर्फ़ कुछ ही महीने शेष बचे है। अगली
पोस्टिंग वह हेड क्वार्टर दिल्ली की लेगा। ईशा का हाई स्कूल का
बोर्ड है। वह घर में रह कर ईशा को गाइड करना चाहता है। उसने यह
भी कहा था कि उसकी ले-दे कर एक ही तो बेटी है। ईशा के जन्मदिन
में वह ज़रूर घर पहुँचेगा।
..........
क्या वजहें थी कि रवि ने किसी
दूसरी औरत से प्रेम संबंध बनाए? इस अफ़वाह में कितनी सच्चाई
है? क्या रेशमा नामक कोई औरत वास्तव में अस्तित्व रखती है?
प्रश्न रेखा के मस्तिष्क पटल पर कोलाहल मचा रहे थे। फिर एकाएक
उसने एक निर्णय ले लिया - कालाइगाँव जाकर अपनी आँखों से सभी
कुछ देखने का। कमांडर पंत को उसने फ़ोन किया। ''मैं कालाइगाँव
उस जगह जाना चाहती हूँ जहाँ रवि रहते थे।''
''अरे मैडम, आप इन किन चक्करों में. . .।''
''नहीं,'' रेखा ने कमांडर पंत को आगे कहने से रोक दिया। ''मेरे
लिए वहाँ जाना बहुत ज़रूरी है। तब तक मुझे चैन नहीं आएगा।'' |